*दुस्सासन के साहस*.
ब्यंग.
जेन देश राज मा पुरूष के प्रधानता हे उँहा नारी जात ला पिड़हा मा बइठार के पूजा करना सृष्टि रचइता के सँग मजाक हो सकथे। जे मन इँकर पाँव धो के पीये हें उही मल लिख दिन कि "यत्र पूज्यन्ते नारी तत्र रमन्ते देंवता" अइसन पूजनीय नारी के सम्मान वस्त्र दान करके नहीं वस्त्र उतार के करे जावत हे। वस्त्र हरण के गरिमा ला दुस्सासन जइसे साहसी पुरूष हर देख लगाइस। जे हर आज के समाज बर प्रेरणादायी हे। जेकर नतीजा आय कि दुर्योधन अउ दुस्सासन जइसे कीरा काँटा दिनोदिन पनपत रथे। पति पीड़ित मन नारी उत्पीडन केंद्र के सुविधा ले तलाक ले सकथे। फेर कोंवर पीकी ला रमजे के, डोंहरू ला मुरकेटे के, अउ छतनार काया ला चील गिधान असन झपट के लहू-लुहान करे के नवाचार चलत हे। भुगतमान देंह ला सरकारी सहानुभूति के घुनघुना मिलथे। अउ दुस्सासन ला सुरक्षा। इही मन घुनघुना बजा बजा के बताथें किये दुनिया मा जइसे बिना कपड़ा के आए हव ओइसने ही तुमला सोभा देथे। (ये कायदा पुरूष बर लागू नइये।
नारी जात के कोख ले जनम धरने वाला मन ही तिरिया जात ला पाँव के पनही कहिके सम्मान देथे। संसार के सबो नारी परानी ला बहिनी बनाना नैतिक अपराध मा गिने जाथे। ओकरे सेती ये नत्ता ला स्वीकार कर पाना आदमी अउ आदमीयत बर खतरा माने गेय हे। उपर वाला स्त्री जात ला भोग विलास के समान बनाके भेजे हे तब सँगे सँग दुर्योधन अउ दुस्सासन घलो भेजे हे। पेट के भूख कइसनो करके मारे जा सकथे। फेर हवस अउ वासना के भूख दाँत झरे अउ चूँदी पाके वाला के घलो नइ मरे। ना उमर के सीमा हे ना जात धरमके ना तो नाता रिस्ता के। चील गिधान कस मास चिथोल के भूख मेंटाना मानव कर्तव्य मा आथे। ३६४ दिन तिरिया जात समाज के दुधारी तलवार मा नरी टेकाय मिलथे। बाँचे राखी के एक दिन सुरक्षित हे अइसे कल्पना करे मा का सिराही।
चार दिवारी सुन्ना घर मा छेड़खानी करे ले मनखे ला वो सम्मान नइ मिले जतका खुले बजार मा मिलथे। अउ कहूँ सामुहिक सहकारी भाव ले होगे तब प्रसंसा के फोटू अखबार तक नइ गिस माने चउँथा स्तंभ के खोरवापना उजागर हो जही। नारी ला अबला कहि कहिके उँकर मनोबल उपर चंदन लेप करत रथें। नारी सबल होथे ये बात के परिचय फूलन देवी हर देय रिहिस। मरियादा के निठल्लापन के गवाही देय बर दाई ददा के संस्कार घलो रूधना बारी के ओधा ले हुँकार भरत मिल सकथे। ३३% के कोटा मा पुरूष मन के दुख के कारन ये हे कि ३ परसेंटी वाले के कद काबर बाढ़गे? राजनीति के कुरसी बचाय बर नारी जात के इज्जत अस्मिता के हत्या करवाना अउ चार छै बालटी आँसू बोहाना ये दूनों के आपसी अंदरूनी संबंध गहरा हे। नारी जात के दुखड़ा उपर बहे आँसू के सुद्धता पैथोलॉजी मा पता नइ चले ओकरे सेती आँसू ला राजनीति के रंग घोर के बोहाना परथे। कोनो तिरिया इन्साफ न्याय के लड़ाई करत करत दुनिया ले तिरियागे तब ये लड़ाई ला लड़त रेहे बर कोनों दूसर ला अपन इज्जत इही वहसी कामी दुराचारी समाज के हवाला करना परथे। कोख भितर हत्या से लेके तलाक, चीर हरन से लेके नबालिक सँग कुकरम इज्जतदार समाज के बेटी बचाओ नारा ला बल देथे। कबीर तुलसी दयानंद विवेकानंद अउ कतको नंद समाज बर प्रेरणा तब तक रिहिन जब तक मनखे के चेतना अउ सतबुद्धि नइ जागे रिहिस। अब जाग गेहे तब दुर्योधन अउ दुस्सासन असन पात्र मन ही जवान पीढी के आदर्श हो सकथे। चरित्रहीन पति अपन घरवाली ला ये बताथे कि भाईचारा के नाता ले परोसी सँग हाँस के गोठियाना स्त्री अधिकार मा नइ आय।
महिला हिमालय मा चढगे, चंदा मा चल दिन। फौजी अउ पायलट बनगे, नेता मंत्री बनगे। नारी नारी के दुख मा संसदीय आँसू बोहाय के दम घलो रखथें। फेर नारी के आँसू पोंछे बर फूलन बने के हिम्मत नइये। कुस्ती कला मा धोबी पछाड़ के गुन नइ सीखे ले अउ फूलन के जीवनी नइ पढ़े के सेती ही हल्ला मँचिस। सीखे रतिस त कुकरमी कुरिया भीतर ले स्टेक्चर के सवारी करत गुप्तांग के इलाज बर बिदेश जातिस। मणिपुर के मामला एतिहासिक नोहे ना निर्भया पहिली केस आय। आसाराम एके ठन उदाहरण नोहे ना आंध्रा बिहार एके बखत लहूलुहान होय हे। दास प्रथा अउ हरिजन शब्द के परिभाषा जानके अब के घटना मा भारतीय परम्परा के भान होथे। जे मन जानत हे वो मन नाक तमड़ के आँसू नइ बोहाय। वो मन जानत हे कि ये आदर्श परम्परा ला जिया के राखे बर दुस्सासन जइसे साहसी मानव धरती मा होना जरूरी हे।
नारी जात फूल असन कोंवर होथे। नारी माया ममता के मुरती आय। नारी गऊ हे। नारी अबला होथे नारी खेलौना हे। जे मन जइसन नजर ले देखिन परिभाषा मा बाँध दिस। नवा नाम यहू हे कि तिरिया जात माने बच्चा जने के मशीन। जेकर कोख मा खराब सिरजन होथे तब वोला उँहिचे मारके कूड़ादान के नीला हरा डब्बा मा विसर्जित करे जाथे। बहिनी तो फकत खून के रिस्ता ले ही बनाये जा सकथे। सबो ला बनाही तौ दरिंदगी के सार्थकता बर दूसर लोक खोजे बर परही। फेर ये कलजुगी धरा मा आज मोर बहिनी नइ बाँचिस माने काली तहूँ राखी के दिन अगास कोती रसता देखबे। राजनीति एक फलत फूलत दुकान आय जिंहा संवेदना के आँसू मोफत मिलथे। जिंहा पल पल करके न्याय मरत हे वो न्यायपालिका सडक बाजू के खोमचा टपरी आय। इहाँ न्याय के एक कप चाय बर धन अउ इज्जत दुनों के चघावा देय बर परथे।
नारी सम्मान नारी अस्मिता नारी विमर्श नारी संवेदना नारी उत्पीड़न अउ नारी सुंदरता के पाठ रट रट के कतको झन पी एच डी कर डारिन। फेर उँनला पाँव के पनही माने छोडत नइये। पाँव के जगा मूँड़ मा चघाहीं तब मरद जात के मरदानगी के का होही? सहिर लुधियानवी जी नारी जात के वकालत मा गीत लिख डारिस कि---------
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया।
जब जी चाहा मसला कुचला, जब चाहा धुत्कार दिया।
फेर हास्य कवि बर नारी जात अच्छा पात्र बिषय बन गेहे। पुरूष के पुरसारथ अउ पराक्रमी पना हर तिरिया जात ला घरके पोसे कुकरी असन पोइले बर कटारी धरे मिलथे। फाइल दफ्तर दफ्तर नाचत रही, राजनीतिक दया के आँसू नाली मा जावत रही। पक्ष विपक्ष बैमनस्यता के आँच मा इंसानियत ला लडवाते रही। तिरिया जात के चीर हरन दुस्सासन कुल के मन करते रहीं। दुर्योधन के जंघा अकुलाते रही। रावन के पुष्पक छानी उपर मँडरात रही। काबर कि ये करम हमर परम्परा अउ पहिचान बन चुके हे। नारी सम्मान नग्नावस्था मा जादा सोभादायी हे। देंह निंचोय अउ चिथोले बर चील गिधान बनके लहूलुहान करना नारी उपर आदमी के आदर्श संस्कार के दर्शन कराथे। विश्व महिला दिवस के दिन एको ठन घटना नइ घटे ले मरद समाज अपन नामरदानगी के सरम ले मूड़ नँवा के रेंगथे। मुँहूँ के कथनी ला मन मा उतार के देख। वो अभागिन तोर अपन के सगे तो घलो हो सकत हे। कलंकित समाज के आँसू धरे बजार मा राखी के जगा मंदी के जमाना मा कफन सस्ता होना तय हे। रोज चार ठन घटना घटे के डर ले पुरूष प्रधान समाज के प्रस्ताव ला स्वीकार करके बइठे हें। भले संताप के आँच मा समूचा सृष्टि के बिनास बर बिनती बिनोवत हें।
राजनीति के पिसान साने बर पीड़िता के अँगना मा आँसू बोहाना परथे। जेकर छिटका अखबार अउ मिडिया तक जाना जरूरी हे। नइते कोन जानही कि सुभ चिंतक कोन कोन हे? अपराधी खून के रिस्ता या सगा होगे। अउ नही ते पारटी ले गहरा रिस्ता रखथे। तब उही डरे सहमे दबे कुचले महिला थाना मा रिपेट लिखवा दे। जम्मो जिनगी ठसन ले जी के मरही तब आजीवन कारावास के फरमान आही। हमर चिंता अवधपुर के भव्यता उपर हे। मणिपुर तो चुकता देश हे तब फोकट चिंता करके समय गँवाना अकारथ हे। दुस्सासन कुल के अबादी जम्मो देश मा बगरे हे। जेकर करनी उपर लोहा पथरा ले कड़ा शब्द मा निंदा भर ही करे जा सकत हे। दूसर कोनों उपाय ही नइये। तभे तो दुस्सासन मन के साहस दिनो दिन बाढ़ते हे। जावत जावत एक झन बढ़िया शायर के दू लाईन घलो गठिया लव कि---------
किसी को काटों से चोट पहुंचा किसी को फूलों ने मार डाला।
जो इस मुसीबत से बच गये उसे तो उसूलों ने मार डाला।।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
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