पावन राखी के धागा
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राखी तिहार के दिन बिहनिया ले गाँव भर मा उछाह हे। शादी-शुदा बेटी मन के अपन मइके म भाई ल राखी बाँधे बर आना जाना लगे हे त कतको घर दमाद बाबू नहीं ते भाँचा ह राखी पहुँचाये ला आये हे।
कुँवारी नोनी मन जेकर सगे भाई भइया हें ते मन ल राखी बाँध के पारा-बस्ती के रिश्ता नाता के भइया मन ल तको घूम-घूम के राखी बाँधत हें। गाँव के पुरोहित ह तको अपन यजमान मन ला आज घर आके आशिर्वाद देवत राखी बाँधत हे।
फेर आज द्रोपदी के मन अच्छा नइ लागत ये।घर के काम-बुता ल मनढ़ेरहा कर तो डरे हे फेर बेरा चढ़गे तभो ले नहाये-धोये नइये। रोवासिच-रोवासी लागत हे। काबर नइ लागही ---उहू ह तो अपन अबड़ मयारुक भइया कन्हैया ल राखी बाँधे बर हर बछर जावत रहिसे ।कन्हैया ह वोकर सग्गे भइया नइ रहिस --- बिन बताये कोनो नइ जान पातिन --अतका गहिरा पवित्र प्रेम रहिसे दूनो मा।
द्रोपदी ह तो अपन महतारी-बाप के एकलौती बेटी आय।मइके के चार घर के आड़ म कन्हैया के घर । वोकर बेटी उर्मिला ह द्रोपदी के सहेली रहिस।अपन घर ले जादा तो द्रोपदी ह उँहेच समे बितावय।उँहे खावय-पियय अउ उँहे रात के सुत तको जवय।दुलौरिन भउजी ह तको अपन ये ननद ल बेटी ले जादा मया देवय।
द्रोपदी ल सुरता आवत हे के जब वो कालेज म पढ़त रहिसे त शहर के एक झन बदमाश टूरा ह अबड़ेच छेंड़छाड़ करे ल धर ले रहिसे।नइ सहइच त एक दिन डर-डरके अपन भइया ल बताये रहिसे तहाँ ले वोकर भइया ह जाके वो टूरा ल समझाइच फेर वो बदमाश टूरा ह उल्टा अपन संगवारी मन संग मिलके भइया ले कसके मारपिट करके अउ चाकू मारके भागगे रहिन।भइया ह महिना भर अस्पताल में परे रहिस---लटपट म जान बाँचे रहिस फेर ये घटना बर भइया ह कभू वोला दोसी नइ मानिच।
द्रोपदी के बिहाव ल कन्हैया ह अपन घर म मड़वा गड़िया के करे रहिस। अउ भाई के जम्मों नेंग ल निभाये रहिसे।
तीजा-पोरा म लेगे ल कन्हैया भइयच हा आवय अउ वो हा उँहे सगा उतरय।
पिछू साल ताय करोना मा चारे दिन म वोकर इंतकाल होगे। लाखों रुपिया लगगे फेर वोकर भइया नइ बाँचिस।
आज राखी के दिन वोकर रहि-रहि के सुरता आवत हे।घेरी-भेरी आँखी ले आँसू टपक जावत हे। कुछु म मन नइ लागत हे।
द्रोपदी के पति रमेश ह वोकर मन के दशा ल समझ गे रहिस।वो ह समझावत कहिस---कन्हैया भइया के सुरता आवत हे का वो ? भगवान के मर्जी के आगू ककरो भला का चलथे? ले मन ल बोध के नहाँ धोले अउ वो दे राखी अउ मिठाई नाने हँव ,पूजा-पाठ करके भइया के फोटू म बाँध के भोग लगा दे।
मया के फुहारा कस बरसत ढ़ाँढ़स के बोली ल सुनके द्रोपदी के हिरदे म भरे दुख के नदिया म पूरा आगे। वोह बोमफार के रोये ल धरलिस। रमेश ह लटपट म चुप कराइस ।
कुछ समे पाछू वोकर आत्मा थिरालिस तहाँ ले स्नान करके नवा लुगरा पहिन के --घी के दिया जलाके अपन मयारुक भइया के फोटू के आरती उतारके पावन राखी के धागा ल अरपित करदिस।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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