Sunday, 20 August 2023

अध्यात्मिक शक्ति के अक्षय पुंज : स्वामी आत्मानंद


 

अध्यात्मिक शक्ति के अक्षय पुंज : स्वामी आत्मानंद

          'हमर स्वामी आत्मानंद' श्री चोवाराम वर्मा 'बादल' के लिखे छत्तीसगढ़ी के पहिली चम्पू काव्य आय। जउन म कृतिकार स्वामी आत्मानंद जी के सरी जिनगी ल चम्पू काव्य के माध्यम ले छै सर्ग म पिरोये के बढ़िया प्रयास करे हें। ए प्रयास सराहे के लाइक हे। एकर लेखन के पाछू रचनाकार के मिहनत तो हे, असल श्रेय उन ही जाथे। पर बादल जी एकर लेखन बर 'छंद के छ' अउ 'छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर' व्हाट्सएप समूह के योगदान घलव बताँय हें। उहें छंद के छ के संस्थापक अउ छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर के एडमिन श्री अरुण कुमार निगम जी ए किताब के भूमिका म चोवाराम वर्मा 'बादल' जी के साहित्यिक अवदान के जानबा देवत उन ल ऊपर बताय गे दूनो परिवार के गौरव माने हें। एमा कोनो दू मत नइ हे, काबर कि बादल जी सरलग कलम चलावत हें अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य बर नवा-नवा काज करत हें। ए किताब बर पूर्विका लिखत वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती सरला शर्मा जी चम्पू काव्य के आरो देवत लिखे हें- 'मुख्य बात के गद्य के प्रयोग काव्य अंश के व्याख्या या टिप्पणी नइ होवय बल्कि कथा ल आघू बढ़ाय बर गद्य के प्रयोग करे जाथे। कथोपकथन बर भी गद्य के प्रयोग करे जाथे कहे जा सकत हे। भाव प्रधान कथ्य बर काव्य के त वर्णनात्मकता बर गद्य के उपयोग होथे।' 

          सच म चम्पू काव्य साहित्य के अइसे विधा आय जेन म सबो साहित्यकार के कलम नइ चल पाय। साहित्यिक आयोजन मन म घलव कभू चम्पू काव्य कोति चेत नइ करे जाय। एकर बड़का कारण आय ए विधा के प्रकृति। ए अइसन विधा आय जेन म गद्य अउ पद्य दूनो साहित्यिक विधा के समिलहा रूप होथे। पूरा लेखन गद्य अउ पद्य दूनो म सँघरा चलथे। रचनाकार अपन सहूलियत ले गद्य अउ पद्य के संग अपन कथानक ल विस्तार देवत आगू बढ़थे। जेन बात ल पद्य म बने ढंग ले कहे जा सकथे, उहाँ पद्य के संग बढ़थे, जिहाँ गद्य म कहई ठीक जनाथे उहाँ गद्य म सवार होके आगू बढ़थे। कुल मिलाके इही काहन कि जे रचनाकार गद्य अउ पद्य दूनो विधा म पारंगत रही, उही रचनाकार ह चम्पू काव्य के सृजन कर सकथे। इही पाय के बहुतेच कम साहित्यकार मन ए विधा म लिखे के विचार करथें। गद्य अउ पद्य दूनो म बराबर दखल रखइया कतको साहित्यकार हें, फेर चम्पू काव्य के इतिहास इही बताथे कि ए विधा म लेखन न के बराबर हे। हाथ के अँगठी म गिने जा सकत हे। एकर एक ठन कारण यहू समझ म आथे कि एला कोनो लोकनायक के जिनगी ऊपर या ओकर ले जुड़े कोनो घटना ऊपर लिखना होथे। जेकर बर शोध अउ बड़का अध्ययन के जरूरत रहिथे। सावचेत घलव रहे ल पड़थे कि कहूँ मेर विवाद पैदा करे के लाइक बात झन आवय। लोकनायक के जीवन वृत्त असल जिनगी म जइसन निर्विवाद रहिस वइसने लेखन घलो राहय। उँकर उजास भरे जिनगी ले समाज जगर-मगर होवत राहय अउ प्रेरणा लेवय। तभे लेखन सार्थक रही।

           हमर सौभाग्य आय कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के सबो विधा म सरलग लेखन करइया श्री चोवाराम वर्मा 'बादल' चम्पू काव्य लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य के ऊपर अँगरी उठइया मन ल बता दिस कि एक अँगरी दूसर ऊपर उठाबे त तीन अँगरी ह अपने कोति उठथे। पाछू कुछ एक महीना पहिली शिक्षकीय सेवा ल पूरा करत आप सेवानिवृत्त होय हव। छत्तीसगढ़ी म कविता संग्रह 'रउनिया जड़काला के' अउ छंद के किताब 'छंद बिरवा', अउ दू कहानी संग्रह 'बहुरिया' अउ  'जुड़वाँ बेटी', बालगीत संग्रह 'माटी के चुकिया', छत्तीसगढ़ी छंदबद्ध महाकाव्य 'श्री सीताराम चरित' के संग हिंदी म कुण्डलिया संग्रह 'कुण्डलिया किल्लोल' ए जम्मो प्रकाशित कृति आपके साहित्यिक यात्रा के लेखा-जोखा बताथें। इही क्रम म छत्तीसगढ़ी के पहिली चम्पू काव्य 'हमर स्वामी आत्मानंद' आपके अध्ययनशीलता, शोध अउ साहित्य के प्रति आपके समर्पण के परिचायक आय। आप अपन पारिवारिक, सामाजिक, शिक्षकीय दायित्व के निर्वहन करत जउन साहित्यिक दायित्व के बीड़ा उठाय हव ओहर साहित्य प्रेमी अउ रचनाकार मन बर प्रेरणा बनही। आज छत्तीसगढ़ी साहित्य ले जुड़े साहित्यिक बिरादरी के अइसे कोनो नइ होहीं, जउन आप ल नइ जानत होहीं। आपके आम लोगन मन के बीच एक अच्छा रमायणिक के छवि घलव हे। आप लीला मंडली ले जुड़के अपन अभिनय अउ वादन कौशल के प्रदर्शन ले लोगन के बीच साहित्य ले अलग एक अलगे छाप घलव बनाय हव। आप सहज अउ सरल व्यक्तित्व के धनी आव। आप ले कतको पइत मुलाकात होय हे, फेर कभू नइ जनाइस कि आप के भीतर चिटिक भर भी अहम भाव हे। 

           कोनो भी विराट व्यक्तित्व के जीवन चरित्र ल एक किताब के रूप म सिरजाय ले सदा समाज अउ जन मानस के हित होथे। चरित्रवान अउ अध्यात्मिक व्यक्तित्व हमेशा समाज ल नवा दिशा देथें। भटकाव ले उबारथें। उँकर विलक्षणता ले समाज हमेशा प्रेरणा लेथे। मनखे के संवेदनशीलता मनखे ल सतत् समाज हित म काम कराथे। इही संवेदनशीलता विराट व्यक्तित्व के नींव/नेंव धरथे। रामकृष्ण परमहंस अउ विवेकानंद के अध्यात्मिक रद्दा 'जन सेवा ही प्रभु सेवा है' ल अपनाये छत्तीसगढ़ म जन्मे स्वामी आत्मानंद जी के जीवन चरित्र ऊपर केन्द्रित चम्पू काव्य समाज म निश्चित रूप ले अध्यात्मिकता के संग परोपकारिता अउ सेवाभाव जागृत करही।

           भारतीय संस्कृति के अनुरूप किताब के शुरुआत मंगलाचरण ले करे गे हे। संगेसंग माटी महतारी के वंदना/स्तुति करे गे हे।

           पहिली सर्ग म स्वामी जी के बचपना के  चित्रण हे। उँकर बालहठ के वर्णन पढ़त सूरदास जी द्वारा लिखे भगवान श्री कृष्ण जी के बालहठ के सुरता करा देथे। लइकापन ले भजन अउ अध्यात्मिक रुचि के संग पढ़ई के ओकर लगन ओकर तिर कुशाग्र बुद्धि होय के परछो देथे। महात्मा गांधी के आश्रम के प्रेरणादायी कहानी ले उँकर कुछ बालहठ छुटिस अउ चारित्रिक विकास होइस। विवेकानंद जी के बारे म जान के खासा प्रभावित घलव होइन अउ उँकर भीतर कइसे आध्यात्मिक संस्कार कूट-कूट के भराइस ए जाने बर मिलथे।

          दूसरइया सर्ग म स्वामी जी के घर परिवार ल छोड़ सन्यासी के मार्ग म आगू बढ़े के वर्णन मिलथे। जेमा घर ले कलेचुप निकले लइका के दाई-ददा के स्वाभाविक संसो अउ व्याकुलता के मार्मिक अउ जीवंतता पाठक के अंतस् ल हिलोर देथे। लौकिक अउ अलौकिक जिनगी के प्रति लेखक के समन्वय अद्भूत हे।

        "स्वामी जी हमन हमर बेटा तुलेन्द्र ल खोजत आय हावन। इहाँ आये हे का महराज?"  

         एहा घर ले बिन बताय कहूँ निकले/गवाँय बेटा के दाई ददा के अंतस् के हाल बताथे।

         "हाँ, हाँ आये हे ना। उही हर तो आय युवा ब्रह्मचारी तेज चैतन्य।.....चलव मिलवा देथँव।"  स्वामी जी ह कहिस।

          महतारी बाप हा तुलेन्द्र ल देख के बोमफार के रो डरिन।

         तेज चैतन्य ह समझावत कहिथें- "अब मोर बाँचे जीवन ह स्वामी विवेकानंद अउ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बताये मार्ग- 'जन सेवा ही प्रभु सेवा है' म चले बर अर्पित होगे हे।

          ए तरह कहे जा सकथे कि ए किताब ह समग्र रूप ले पठनीय हे। स्वामी आत्मानंद के जिनगी ले यहू बात सीखे ल मिलथे कि पहिली देश फिर शेष। उन श्रीरामकृष्ण परमहंस जी के उपदेश ल आत्मसात कर दीन-दुखी, उपेक्षित अउ पिछड़े मन के हित बर सदा संसो करँय अउ उँकर उत्थान बर हर संभव प्रयास करँय।

          स्वामी आत्मानंद जी केवल अध्यात्मिक नइ बल्कि वैज्ञानिक सोंच वाला विराट व्यक्तित्व रहिन। उन्नत अउ समता वादी विचारधारा के रहिन। बालिका शिक्षा अउ नारी के प्रति सम्मान भाव उँकर मन म राहय।

          अध्यात्मिक शक्ति जड़ बुद्धि म असीम चेतना के संचार करथे। अध्यात्मिक शक्ति अउ चिंतन मन के नकारात्मक भाव अउ ऊर्जा के दमन करथे। अंतस् म सकारात्मक भाव भर परोपकारी बनाथे। प्राणी ल मन म नाना प्रकार ले उपजे अहंकार ले बचाथे घलव। अइसने अध्यात्मिक शक्ति के अक्षय पुंज रहे उच्च शिक्षित, भारतीय संस्कृति के उन्नायक, सद्साहित्य के अध्येता अउ तपस्वी स्वामी आत्मानंद जी के जीवन चरित्र ल आखर म समेटना लोकजीवन बर कोनो उपहार ले कमती नइ हे। आज जब नैतिकता ल ताक म रखे मनखे चारित्रिक रूप ले लालच के दलदल म फँसते जात हें। जिनगी म अशांति हे। रपोटो-रपोटो के हरहर-कटकट म तरी मुड़ ले बूड़े हें, मनखे-मनखे म सेवा अउ परोपकार के भाव नदारद दिखत हे। अइसन समे म स्वामी आत्मानंद जी ऊपर लिखे ए किताब निश्चित रूप ले अध्यात्मिक अउ परोपकारी चरित्र के निर्माण बर मील के पत्थर साबित होही।

          'हमर स्वामी आत्मानंद' छत्तीसगढ़ी साहित्य ल नवा आयाम दिही। साहित्यिक दृष्टि ले काव्य सौंदर्यं रस, छंद, प्रवाह सबकुछ मिलथे। गद्य म जेन शैली के दर्शन होना चाही, वोकर पाठक ल कमी महसूस नइ होवय। लोकोक्ति मुहावरा के प्रयोग ले सुघराई बाढ़ गे हे। ए जरूर हे कि कोनो-कोनो जघा प्रूफ रीडिंग के कमी बाधा परत दिखथे।

          आखिर म इही कहना चाहहूँ कि ए धरती म जन्मे अवतरे संत-महात्मा कभू कोनो समाज विशेष के बपौती नइ होवय बल्कि पूरा विश्व के होथे। विश्व के कल्याण बर होथे। वसुधैव कुटुम्बकम के भाव इँकर मूल म रहिथे। भले उन मन कोनो राज म परिवार अउ समाज म पैदा होथे, पर उन अपन कर्म ले समाज विशेष ले ऊपर उठ के पूरा मानव समाज के हो जथे। आशा करत हँव कि बादल जी के स्वामी आत्मानंद जी के जीवन चरित ऊपर ए कृति आधुनिकता के फेर म भटकत समाज ल अध्यात्मिक शक्ति के महत्तम समझे बर संजीवन बूटी के बुता करहीं।


*कृति का नाम : हमर स्वामी आत्मानंद*

*कृतिकार : श्री चोवाराम वर्मा 'बादल'*

*प्रकाशक : वैभव प्रकाशन रायपुर*

*संस्करण : प्रथम 2023*

*मूल्य- 100/-*

*पृष्ठ   -  95*

*कॉपीराइट : लेखकाधीन*


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला-बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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