Thursday, 31 August 2023

संक्रमण काल चलत हे* (ब्यंग)

 *संक्रमण काल चलत हे*              

                                               (ब्यंग)

                        जब संस्कार हर संक्रमित होइस तब टूरी टूरा मन कटत नाक ला लुकाए बर, गमछा मा मुँहूँ ढाँक के, अपन मुँह बोला जोड़ी सँग, फटफटिया सवार होके भागे के शुरू कर दिन। सपुरन तन ढँकाय वाले कपड़ा नवा संस्कृति के नाक काटे बर भरपूर हे। एक यहू समय देखे ला मिलिस कि ये धरती मा महामारी अतका पाँव पसारिस कि धरती छोटे परगे। जेकर प्रतापी किरपा ले सब नकाबधारी होगे। छोटे बड़े मानव प्रजाति के जीव के मुँह मा मास्क नाम के कलेंडर झूलत मिलिस। हम सोचत रेहेंन कि ये संक्रमण मनखे देख के आही। फेर ये धन बली पद बली कँगला खली सबला मुँह मा तोपरा बाँधे बर लचार कर दिस। हमरे परोसी मंडल चीन जी अइसे फोरन बघारिस कि चुकता दुनिया खेर्र खेर्र खाँसे ला धरलिस। आसा करत रेहेंन कि बड़े दाऊ अमेरिका जी ये संक्रमण ले लड़े बर अपन सबो अस्त्र सस्त्र ला संक्रमण वाहक डहर ढिलही। फेर वोकरो एको हथियार काम नइ आइस। काम आइस तो मुँहूँ के तोपरा जेला मास्क के नाम ले जानेंन। ये कोरोना तो बड़े बड़े ब्रम्हास्त्र धारी अहंकारी के अभिमान ला टोर देय रिहिस। आज वो हथियार यूक्रेन के सद्भावना सेवा मा लगे हे।

           जिंकर उपर अगरबत्ती, मोमबत्ती, अउ लोभान के धुँवा देखावत रेहेन। वो किरपा बरसाय ला छोड़ के क्वारिंटिन हो गेय रिहिन। किरपा के नाँव मा सेनेटाइजर बरसिस। कोरोना दू चार साल अउ रतिस ते आरती अउ चघावा मा मजा उड़ाने वाला कला मंडली मन मिहनतके कमाई खाय के आदत तो बना डारतिन। कोरोना ला धन्यवाद एकर सेती देथँव कि संक्रमण काल मा मुँहूँ मा तोपरा लगाय के आदत तो पार देय रिहिस। फायदा ये रिहिस कि एकर ले मनखे के चित्र अउ चरित्र हर ढँकाय रिहिस। एकरे सेती लोगन के करुवाहा इरखाहा भाखा हर छना छना के मीठ मीठ निकले। काल जब मुँड़ी मा उलानबाँटी खेले के रियाज करिस तब मनखे प्रेम दया करुणा अउ सद्भावना के रसा बाँटत फिरिन। जुट्ठा हाथ मा कउँवा नइ खेदे तेमन के दान मा राज खजाना छलकत मिलिस।

                 मोर कयराहा मितान हर सवाल करत कथे - - - - - - - - - कस जी वो गनपत के गोठ आजकल फेर बदल गेहे। मास्क के उपकार ले मीठ बोल सँग छै हाथ दुरिहा ले पैलगी करत दुनिया देखे के आसिस देवय, तेन हर आज राष्ट्रवादी के कट्टर विचारधारा के वायरस मा संक्रमित करके बिमार करत हे। मँय केहेंव--------देख जी इँहा हर आदमी काहीं ना काहीं बिमारी ले संक्रमित हे। कोनों ला समाज सुधारे के, कोनों ला देश सुधारे के। बस्सौना नैतिक मानसिकता ले संक्रमित मनखे चाहथे कि वोकर मनोरोग के सिकार होके सब संक्रमित हो जाय। दू मुँहा अउ बहुरूपिया के असल सुभाव ला मनखे समझ नइ पाय। एकरे सेती अइसन सुभ चिंतक मनके मुँह मा थया नइ रहय। अब जब मुँहूँ के ढकना निकल गेहे तब अपार जन हितैसी के वायरसी खादा ला खेखार खेखार के थूँकत हे। जेकर ले कुछ ना कुछ मन तो संक्रमित होके महा अभियान मा जुड़ही। अउ फेर हाँड़ी के मुँहूँ बर परई बने हे। मनखे के मुँह मा काला ढाँक डारबे। बोल बचन करके बखेड़ा खड़ा करना जिंकर धरम हे वो कउँवाँ कभू  कोइली के बोल बोलथे तभो संका होय लगथे कि, एकर बोल मा कते संगत के असर हे। जे कउँवाँ कोलिहा के लहू मा सदा दिन समाज ला संक्रमित करे के वायरस खुसरे हे, वो अपन सुभाव ला बदल तो नइ डारे।

            छोटे बड़े बिमारी ले बाँचे बर जीवन दायनी अस्पताल के खटिया मा आसंदी होना परथे। सरदी खाँसी मा घलो पाँच पच्चीस हजार के सेनेटाइजर डाक्टर के जेब मा छिड़कना परथे। तभो इँकर  सेवा भाव नइ मरे। अउ अपन मन भावन गोठ ले कहीं कि  (साॅरी) यमराज के आगू मा हम ढिल्ला परगेन।

                प्रेम रोगी मन उढरिया भगाथे नइते पइठू खुसरथे। अइसन उदाहरण नवा पीढी ला घोर संक्रमित तो कर हीसकथे। हम तो अइसन प्रेम रोगी ला सोसल डिस्टेंस के सलाह घलो नइ देवन। कारण ये हे कि एकर ले उढरिया अउ पइठू परम्परा के प्रासंगिकता खतरा मा आ सकथे। अउ फेर कुकुर मन ला कुकुर गत के होय के का आसिस देना।

             जेमन राज धरम के रोग ले पीड़ित हें, वो मन सिंघासन ला कपुरखौती खेती समझ के अपन  नाम मा फौती उठाना चाहत हे।हमला जेमन लोभ लालच देके फाँसिन वोला पाँच साल बर भेज पारेन। आज वो मन अहंकार के रोग ले संक्रमित होके संविधान के बाप बने मा लगे हे। खुशखबरी ये हे कि जेला जनता के दरद निवारक कहिथन। वो आडंबर अउ अंधभक्ति के वायरस ले संक्रमित हे। इँहा एक पेड़ के अलग अलग डारा मा अलग अलग किसम के फूल फुलथे। ये कलम अउ सर्जरी के असर आय। बेसरम के डारा मा गोंदा फूलो सकथन इही दुहरा चरित्र के दरसन हर समाज के दरपन हे।

           साम्प्रदायिकता अउ धार्मिकता ले संक्रमित मानव मानवता ला हाथ के कठपुतरी बनाके नचावत हे। जे काबा भर पोटारे हे वो मन ला कट्टरता के केपसूल खवाये जाथे। ईश्वर बड़े हे कि अल्ला, जीजस बड़े हे कि नानक? सामंती सोच वाले मन सब ला अपन ले छोटे ही बताथे। आज हम वो विचार धारा के संक्रमण काल मा फँसे हवन जिंहा मुड़ी डोलाके हामी भर सकथन। संवेदना के पेड़ संक्रमित होके सुखा गेहे। ठुड़गा पेड़ के छाँव मा बइठके मुरझाय मनोदसा ले कइसनो करके उमर भर जीये के संसो मा समय काटना सार हे। वोहू मा झूठ लबारी सहे के टीका लगाके। अपन भावना विचार ला चपक के राखे के इम्युनिटी होही तब बाँच जबे। इन्कलाबी बनके समाज के सरदी मा बोहावत नाक नइ पोछ सकस। इहाँ तो हाना जुमला तानाशाही साम्राज्यवाद कुटिल राष्ट्रवाद हर ब्लड सुगर अउ ब्लड केंसर बनके देश के रग रग मा बोहावत हे। साँस मा अविलोम बिलोम करबे तभो संक्रमित हवा हर ही बाहिर भीतर होही। सदाचार अउ नैतिकता के सेनिटाइजर बेंचबे तब पोसवा उत्पाती वायरस मन तोर घर भूँज दिहीं। तोर बागी बने के पहिली बगोनिया मा जीमी काँदा कस उसन दिहीं। समाजिक समरता के रसा ला सरो सरो के वुहानी लैब असन आपसी लड़ाई के वायरस बनावत रथे। राजनीति के लैब मा ये प्रयोग होवत रथे कि कुरसी तक अमरे बर कते चुनावी वायरस ला ढिलना हे। धरम आस्था राष्ट्रीयता अउ सम्प्रदाय मा झूठे सहानुभूति के वायरस बगराके नास्तिक ला अपन विचारधारा के आस्तिक तो बना ही सकथे।

              मोर एक झन मितान किहिस कि--------धरम के ठेकेदार मन उपासना के मास्क पहिरे राजनीति के घोड़ी चढ़के दुलहा असन संसद के आसंदी होगे। राजनीति हर धरम के रिक्सा मा सवारी करत साम्प्रदायिकता के पालनहार बनत हे। इँकर बर तोर तिर कोनों सेनिटाइजर हावे का? तब मँय केहेंव----------जेन ग्रीन जोन मा हम हरियात रेहेंन, आज वोला अतका संक्रमित कर डारे हे कि जम्मो मानवता रेड जोन के घेरा मा साँस गीनत हे। बुद्धिजीवी होय के नाता ले पाव डेढ पाव गारी वाला कविता ला पुड़िया बाँधके पत्थरबाज असन फेंक तो सकथन। फेर वो मितान कथे----------   १८५७ से लेके १९४७ तक कविता नवा जागरन लाके चेतना जगाइस। तोला भरोसा हे कि ये तोर पुड़िया नवा क्रांति लाही? आज अराजकता असमानता बैमनस्यता कट्टरता ले उपजत हिंसा राजनीति के आसिस ले फलत फूलत हे। इँकर संक्रमण ले नव जवान युवा चेतना तको सहीद होवत हे। एकता अखंडता के घोल वाला सेनिटाइजर ले समाज मा भीषण सुधार आये के संभावना बनथे। फेर ये उपचार उन मनके सहन सक्ति ले बहिर हे जेमन लार्ड डलहौजी खानदान के हें। आज हर अस्पताल थोपे विचारधारा के संक्रमित मरीज ले भरे परे हे। आगू मा अउ चुनाव आवत हे। माने फेर नवा संक्रमण काल आही, फेर रेड जोन के घेरा परही। छुटकारा पाये बर हे त रसता रेंगत पथरा मा हपट के मर।साबित तो करि दिहीं कि कते वायरस के संक्रमण ले मरे। हम तो अति संवेदनशील जगा मा बइठके बगरे वायरस के टरे बर हवन कराय के बिचार रखे हन। पूर्ण आहूति बर बिना संक्रमित मनखे के खोज चलत हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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