Thursday, 31 August 2023

आऊटसोर्सिंग

 आऊटसोर्सिंग 

                              मंगलू अऊ बुधारू खुशी के मारे पगलागे रहय । लोगन ला बतावत रहय के , हमर प्रदेश के क्रिकेट टीम ल रणजी ट्राफी खेले के मौका मिलगे । गाँव के महराज किथे - ये काये जी ? एमा खुश होये के काये बात हे ? सरकार ल खुश होना चाही । क्रिकेट के समान बेंचइया अऊ खेलइया ल खुश होना चाही । बुधारू कहत रहय - हमर बेटा मन कालेज के बड़े क्रिकेट खेलाड़ी आय , ऊँखर खेल ल देखके , ऊँखर चयन , प्रदेश के टीम म होवइया हे । समारू किथे - निचट भकला हो जी तूमन । नानुक सरकारी कालेज , जिंहा खेले के सुभित्ता एक डहर , पढ़हे के सुभित्ता तको निये , तेमा पढ़हइया ल , कोन बड़े जिनीस नाव अऊ काम मिल जही ? कोन ओकर खेल ल देखके , मोहा जही तेमा ? मान लो कन्हो मोहाइचगे , त ये रणजी – फनजी ट्राफी बर मेच खेले ले का होही ? मंगलू जवाब दिस - तूमन ल कहींच समझ निये खेलकूद के । तूमन जिनगी भर नांगरजोत्ता के नांगरजोत्ताच रहू । अरे ऊँहा बने खेलही त , आई. पी. एल. के कन्हो टीम मालिक के नजर में नइ आही जी ...... । 

                कभू बाप पुरखा सुने नइ रहय समारू , पूछ पारिस - ये आई. पी. एल. खेले ले काये होही ? मंगलू किथे - जिंहा एकेक रन बनाये के अऊ टीम म सिर्फ नाव लिखाये के , बड़ पइसा मिलथे कथे बइहा ……. उही आई.पी.एल.आय । बिहान दिन मंडल बने बर , गाँव म बइठका सकलागे । जम्मो झिन अपन अपन लइका ल क्रिकेट खेले बर भेजे लागिस । खुडवा , खो-खो , गुल्ली-डंडा सब नंदागे ।  

                                गरमी छुट्टी बिता के बड़े गुरूजी अइस त इहाँ के नावा चरित्तर ल देखके पूछिस - कस जी , तुँहर लइका मन के नाव प्रदेश के रणजी टीम म आगिस , अऊ हमला कहीं जनाबा तको नइ करेव । बुधारू किथे - निही , अभू कहाँ आहे गुरूजी । अभू टेम लगही तइसे लागथे । गुरूजी पूछिस - त क्रिकेट के नाव ले खरचा करे बर , रणजी टीम चुनइया मन तूमन ला पइसा दीस होही न .....? मंगलू मुड़ी गड़िया के धिरलगहा किथे - तहूँ अच्छा मजकिया कस गोठियाथस गुरूजी , अपने मारे बाँच लेले त हमन ल दिही । गुरूजी फेर पचारिस - त सरकार डहर ले , क्रिकेट बर या कनहो अऊ बूता बर , फोकट म पइसा बाँटे के योजना चलत होही ... ? बुधारू किथे – गुरूजी घला , बड़ मजाक करथे गा ...... , अभू चुनई थोरेन आहे गा , तेमे फोकट देवइया मन आही ? इहाँ पइसा धरके , राशन कार्ड म , चऊँर नइ मिलत हे ..... फोकट म कोन दिही ... उही मन रात दिन खाँव खाँव करथे ।  

                                गुरूजी पूछत रहय - बता मंगलू , रामू के लइका काये पढ़े हे ? मंगलू जवाब दिस -ओ हा कालेज पढ़ पुढ़ा के बइठे हे गुरूजी , अपन यूनिवर्सिटी म अव्वल रिहिस । गुरूजी फेर पूछिस - अऊ होशियार सिंग के लइका ? समारू किथे – वो काला पढ़ही गा , ले दे के कालेज पूरा करिसे । गुरूजी फेर पचारिस - त नौकरी कोन ल मिलिस । बुधारू किथे - होशियार सिंग के लइका ल । गुरूजी फेर प्रश्न करिस - काबर मिलिस ? मंगलू मुड़ी डोलावत किहिस - ओला नइ जानों गुरूजी । गुरूजी भन्नाये रहय - अब तैं बता बुधारू , दुलारी के नोनी काये पढ़े हे ? बुधारू किथे - वा .... नइ जानबो गुरूजी । बिचारी भउजी हा , कुटिया पिसिया करके नोनी ल नर्स बई बने बर लिखइस , पढ़हइस । गुरूजी किथे - फेर का होइस ? ओला तो अपन कालेज म सोन के मेडल घला मिलिस का ? बुधारू किथे - वा .... गुरूजी , सब्बो बात ल जानत हँव । उही मेडल के भरोसा , नोनी हा शहर के प्राइवेट अस्पताल म नौकरी घला करथे । गुरूजी पचारिस - अऊ तोर परोसी परदेसिया के नोनी ? बुधारू किथे - ओहा सरकारी अस्पताल म नौकरी करथे । गुरूजी किथे - अरे मुरूख , दुलारी के नोनी के प्राइवेट अस्पताल म शोषण होवत हे , अऊ परदेसिया के गदही टूरी सरकारी अस्पताल म मजा मारथे । अब तूहीं मन बतावव , एकर काये अर्थ हे ? कन्हो समझिन निही । समारू किथे - तिंही बता गुरूजी .... काबर बेंझावत हस । गुरूजी बतावन लागिस - बेटा तैं छत्तीसगढ़िया अस , तोर भाग म सिर्फ दूसर के गुलामी , शोषण ..... लिखाहे । तोर लोग लइका , जेन दिन कमजोर अऊ अक्षम रिहीन तेन दिन तक , लुका लुका के , बाहिर के मनखे मन ल , इहाँ नौकरी दिन । अभू तुँहंरों लोग लइका मन , बाहिरी मन ले जादा सक्षम अऊ सजोर होगिन , तेकर सेती , बाहिरी मन ल भरती करे खातिर , नियम पास करे बर परगे । इही ल येमन आऊटसोर्सिंग कहि दिन । जम्मो झिन के कान खड़े होगे , कलेचुप सुनत हे । मंगलू पूछिस - ये आऊटसोर्सिंग काये गुरूजी ? गुरूजी बतइस - एकर मतलब , इहाँ के सोर्स ल , इहाँ ले बाहिर करना , अऊ इहाँ के मनखे मन ला , इहाँ के सोर्स ले दूरिहा देना आय । गुरूजी सरलग केहे लागिस - लइका मन क्रिकेट खेलही , रणजी टीम म चयन हो जही , आई. पी. एल. खेले ल मिल जही , अऊ तुँहर घर पइसा के खजाना आ जही , सोंचत हव तूमन ? मुरूख हव जी । जेन समे रणजी टीम के चयन होही , तुँहर नोनी बाबू के कन्हो कका बन के आगू म ठाढ़ नइ रही , हाँ नाव कटवाये बर जरूर हमरे कन्हो बड़े भई , आगू खड़े मिल जही । हमर प्रदेश के रणजी टीम म , एको छत्तीसगढ़िया नइ चुने जा सके , यहू मा पूरा आऊटसोर्सिंग चलही । 

                               बुधारू किथे - गुरूजी , तैं कहत हस तेमें सचाई हे , फेर हम छत्तीसगढ़िया मन , जब लड़ भिड़ के अपन बर प्रदेश बना सकत हन , अपन राज लान सकत हन , तब का हमन अपन टीम म अपन लइका के चयन नइ करवा सकबो ? गुरूजी पूछिस - कोन कथे तूमन अपन प्रदेश बनवाये हव कहिके , अऊ कोन कथे तुँहर राज चलत हे कहिके ? तोर गाँव के मुखिया कति आय ...? तूमन अपन लइका ल मास्टरी के या नर्स बई के नौकरी देवा नइ सकत हव , अऊ बात करथव ....... । रिहिस बात तुँहर मेहनत ले प्रदेश बने के ? तूमन तो अपन भाखा तक ल राजभाखा नइ बनवा सकत हव , अतेक बड़ प्रदेश कइसे बनवा डरहू ? समारू हाँसत किहिस - ओकर बर तो आयोग बनाये हे शासन । गुरूजी किथे - आयोग के काये माने हे तेमा , इहाँ बइठने वाला ल लालबत्ती धरा के ओकर मुहूँ ल टोनही कस धर देथें , जब तक खुरसी म रिथें ....... मुहूँ तोपायेच रिथे । अब तो उहू दिन बादर दूरिहा निये बेटा , जब तुँहर राजभाखा आयोग म , दिल्ली के मनखे आके बइठही , अऊ केहे जाही , इहाँ के मनखे म योग्यता निये , तेकर सेती आऊटसोर्सिंग करे गे हे...........। 

               समारू पूछिस - त अब काये करे जाये गुरूजी ? गुरूजी उपाय बतावत किहिस - ये समस्या ले दू तरहा ले निपटे जा सकत हे । पहिली ये के , अपन नाव ल , छत्तीसगढ़ के भुँइया ले कटवा दव । गुरूजी चल गे हे कारे .... फुसुर फुसुर गोठियाये लागिन सबोझिन .....? बुधारू किथे - समझेन निही गुरूजी ? गुरूजी जवाब दिस - मोर केहे के मतलब ये आय के , अपन आप ल बहिरी मनखे बताहू तभे , तुँहर लइका मन के नौकरी लगही , रणजी टीम म खेले बर मिलही , उही बहाना आई.पी.एल. म जाही , तभे तहूँ मन मंडल बनहू , अऊ इहाँ के राज पाठ घला सम्हालहू । दूसर उपाय बड़ कठिन आय । किटकिट ले मुठा बांधत मंगलू किहिस - कतको कठिन रही , अपन लइका लोग के खातिर वहू कर लेबो । गुरूजी बतइस - त अभू ले , जऊन खांधी म बइठे हव , तेला पोट्ठ बनावव , ओमा आरी झिन चलावव , निही ते , नकसानी झेलत रहिहौ , अऊ दूसर मन , मजा ले ले के अमरबेल कस चुँहकत रहि तुँहर लहू ल , अऊ तूमन , धान के कटोरा धरे , दाना दाना बर लुलवावत किंजरत रहू ....., कहत कहत गुरूजी पट ले गिरगे , परान निकलगे ..... । कोन जनी अऊ का बतातिस ..... गुरूजी चल दिस । फेर कन्हो ऊँकर एको बात ल नइ मानिस ...। कतको झिन अभू घला अपन आप ल छत्तीसगढ़िया बता के अपनेच नकसानी करे म लगे हाबें , अऊ कतको झिन थोरकुन लालच म फँस के , अपने गोड़ म पथरा कचारत , इहाँ ले आऊट होये के अगोरा करत हे ......... । 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

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