Monday, 15 April 2024

कहानी :

  कहानी :


             // कॊनो ल झन बताबे //


          जिनगी म घाम-छइहाँ, सुख-दुख, आवत-जावत रथे। जिनगी म दुख के बाद सुख आथे त सुख के आनंद अपार होथे, अउ कहूँ सुख के बाद दुख आथे त जिनगी बिताना मुसकिल हो जथे। जिनगी करेला अउ नीम कस करु होथे त कभु शक्कर अउ गुड़ कस मिट्ठ होथे। तभे तो मोहनी के जिनगी ह गुड़-शक्कर के चासनी म पगाय सुख म बीतत रिहिस। कोनजनी ओकर जिनगी ल काकर नजर लग गिस। ओकर जिनगी म दुख के बदरी छाय लागिस । रातकुन मोहनी राँध-गढ़ के अपन गोसइया ल देखत रथे जेवन जेय बर। अब आही...तब आही ...कहिके।

          सोहन अब पहिली असन बेरा म घर नइ आवय, तेला मोहनी जानत हावय फेर बपुरी काय करय, नारी-परानी के जात..।

अपन गोसइया के पहिली कभू जेवन नइ जेय हे अतका दिन होगे।

           थोरिक बेर के गेय ले खट-खट मोहाटी के कपाट बाजिस। मोहनी जान डारिस, मोर गोसइया आगे कहिके। कपाट ल  हेरिस । सोहन लड़भड़ावत-लड़भड़ावत घर म आइस ।

          "तेंहा आज फेर पी के आय हस जी।"

          "पीहूँ  नइ त काय करहूँ, दिनभर ट्रेक्टर चलाथँव, तेला नइ जानस का ?" लड़भड़ावत सोहन किहिस।

          सोहन के गोठ ऊपर मोहनी किहिस-"आज महिना के दूसर दिन आय, मालिक ह आज के दिन तोला पगार देथे। तोर खिसा ल देखा तो जी। देखन दे। हाय दई ! करम फाटगे मोर। एके हजार रुपया बचाये हस ? बाकी पइसा मन कति गय ? कहूँ तेंहा जुवाँ-चित्ती खेल के तो नइ आय हस ?"

           "हाँ... हाँ... मेंहा  जुवाँ-चित्ती तको खेल के आय हँव, का करबे मोर तेंहा ?" सोहन तमतमावत किहिस- "जा तेंहा भात खा ले। मेंहा खा डारे हँव।" काहत करु-करु गोठियात; अउ लड़भड़ावत अपन कुरिया म जाके खटिया म सुतगे।

          मोहनी अगास के चंदा संग जम्मो चंदैनी ल देखत अंगना के खटिया म सुते-सुते सुरता म बुड़गे। 

          सोहन मोला अड़बड़ मया करे। कभू पियई-खवई अउ जुवाँ-चित्ती खेलई ल नइ जानय; भलुक दूसर मनखे मन ल बरजे। हम दुनो परानी चिरई-चुरगुन के चींव-चींव ले उठन भिनसरहा। चिरई-चुरगुन के चींव-चींव ह अलारम घड़ी कस तो आय। दूध के चाय बना के देंव, काबर कि वोहर दूध वाले चाय ल अड़बड़ पसंद करे। गाँव म बरदी चराय बर हर बछर लगे। बरदिहा के अउ का बुता... बरदी चराय के ताय।

           सबो गाय-गरु मन ल सकेल के खइरखाडाँड़ म लेगे। सोहन गाय-गरु मन ल अड़बड़ मया करय। सिरतोन म वोहा गाय-गरू ल मनखे कस मया करय। समुंदर ले गहिरी मया बाँटय। दुहनी म दूध ह समुंदर कस कभू लहरा नइ लेवे। गाय के थन कभू नइ पोचके। गाय अउ बछरु के आँखी म कभू आँसू आवन नइ दिस। अपन मालिक ल तको कभू निरास नइ करिस। अइसन समझदार रिहिस। मोर आदमी बर कभू चीला रोटी, मुठिया रोटी, अंगाकर रोटी बनाव तेला खा के बरदी चराय बर जाय। मँझनिया ओकर पसंद के साग राँधव। कभू-कभू करेला, ता कभू कढ़ी राँधके लेगँव। चाट-चाट के खाय। ताहन चटकारा मारत बिधुन होके सुग्घर दोहा सुनाय।

"नंद बाबा के नौ लाख गइया अउ गली म दूध बोहाय।"

दूध दही के पुरा बोहाय रे , लेवना के पार बँधाय।"

           दोहा सुनत-सुनत गोबर बिनँव। छेना थापँव। मोर आदमी के स्वभाव अड़बड़ सुग्घर रिहिस। तेखरे सेती ओकर सबो मालिक मन ओला भाय। दुनो परानी कभू-कभू मालिक मन ल छुट्टी माँग के मड़ई देखे बर जावन। तेंदु के लउठी धरे, धोती-कुरता पहिने अउ मुड़ म पागा बाँधे बड़ सुग्घर दिखे। हाथ म ललहूँ चुरी, ललहूँ लुगरा, कान म खिनवा, नाक म नथनी, गला म सुता, ,गोड़ म साँटी मोला बड़ खुलय। "तोर हाँसी ले मोती झरथे, अउ बोली ले मंदरस टपकथे"। अइसने तो काहय ओहा । अवइया-जवइया मन देखते रहि जाय। दुरिया ले मड़ई के आरो मिलत राहय। गरम-गरम जलेबी ले लो...। गरम-गरम बरा भजिया खा लो...। फुग्गा लेलो...फुग्गा..।

मड़ई म पहुँचते बड़ जोर से पियास लागिस।

दुनो झन एक ठन होटल म गेन।

"पानी देतो भइया बड़ जोर से पियास लागत हावय", हलु-हलु वोहा किहिस। ओखर गोठ ल सुन के होटल वाला के गोसाइन किहिस - "बरा-भजिया तको खाहू कि पानी भर ल पीहू।"

            "बरा-भजिया तको खाबोन दीदी फेर पहली पानी पीये बर दे।" मँय कहेंव।

 ‌         पानी निकाल के दिस। दुनो झन पानी पीयेन त जीव ह जुड़इस। गरम-गरम बरा-भजिया खाके ससन भर मड़ई किंजर-किंजर के देखेन। रइचुली तको झुलेन। रइचुली के आवाज बड़ नीक लागे। रिकिम-रिकिम के जिनिंस बिसाएन।

 ‌        ओ दिन आज घलो सुरता हावय। जेन दिन ईटा ठेकेदार के ट्रेक्टर ड्राइवर गोलू ह मोर जिनगी म जहर घोले बर सँझा कुन दूध माँगे बर आइस अउ किहिस- "सोहन भइया तेंहा

तो बने ट्रेक्टर चलाय बर सिखगे हावस।" मेंहा ये गोठ ल सुन के अकचका गेंव, कब ट्रेक्टर चलाय बर सिखगे कहिके? तब गोलू बताइस -"बरदी चरात-चरात मोर संग ईंटा भट्ठा कन बइठे। मेंहा ओला रोज एकक कन चलाय बर सिखोवँव।" भौजी तोला आज ले भइया ह नइ बताय हे ? वोहा  गोठ ल टारत किहिस - फुरसत म बताहूँ कहिके नइ बताय रेहों  मोहनी। "ले दूध के चाय बना मोहनी ।"

"हव"

"ए दे चाय। अदरक, लौंग, लइची डार के बनाए हँव।" मोहनी किहिस मुड़ ढाँकत। अउ दुनो झन ल दिस।

          "सोहन भइया ते अब बरदी लगे बर छोड़ दे।" चाय पीयत-पीयत गोलू किहिस।

बरदी नइ लगहूँ त काय करहूँ जी। मोर पेट- रोजी कइसे चलही? मेंहा नइ छोड़ सकव जी।" सोहन किहिस।

          "बरदी चरा के आज तक कोनो धनवान बने हे जी सोहन ?" पेट अउ पीठ भर चलत हे तुँहर। मोहनी भौजी बर न बने ढंग ले कपड़ा लत्ता, सोन, चाँदी, बिसा सकत हस; अउ न तो बने घर बना सकत हस ? मोर ठेकेदार के ट्रेक्टर ल तो चला। बने पइसा कइसे नइ कमाथस, तेला मँय देखथँव।

          "बरदी चरात हँव, तिही म बने जियत खात हन भइया। लालच नइ करना हे।लालच के घर खाली होथे।" सोहन मुचमुचावत किहिस।

          "बने सोच-बिचार ले सोहन", काहत ओकर जेब ल रुपया ले गरम कर दिस अउ किहिस- "काली बताबे।"

 ‌       सोहन के मन म लालच आगे। कोनो भी मनखे के मन म लालच आइस ताहन ओ मनखे के मरे बिहान ताय। लालच म सोहन के सोचे-बिचारे के शक्ति कम होगे; अउ तुरते किहिस- "येमे काली बताय वाला का बात हे ? अभी बतावत हँव। मेंहा ट्रेक्टर चलाय बर राजी हँव। फेर मोर कमाय के दिन ह एक महीना बाचे हावय। ले का होही। बन जही।" मुचमुचाय लागिस अउ दूध ल धर के चल दिस। गाँव भर म सोर होगे कि सोहन ह बरदी लगई ल छोड़ही कहिके ।

          एक दिन गाँव के सियान सुखउ ह सोहन ल समझाइस - "बेटा सोहन, पहाटिया लगे बर झन छोड़। तुँहर पुरखौती के बुता आवय। इही बुता ले तोला गाँव भर के मनखे मन जानथें ; अउ गोठियाथे कि सोहन राउत असन बरदी चरइया ये करा एको झन नइ हे। बेटा तोर छाती गरब म फूलना चाही। बेरा राहत ले जाग जा बेटा, नइते पाछू पछताबे।"

           मोर गोसइया  पीये बर अउ जुआँ-चित्ती खेले बर कब सिखिस, पार नइ पायेंव । केहे गेहे न हरही के संग कपिला के बिनास। गोलू हमर घर के धुर्रा बिगाड़ दिस।

          छानी ले रच-रच के आरो आथे। मोहनी झकनकाके उठ जथे। देखथे त बिलई छानी म दउड़त रथे। घड़ी ल देखथे, रात के दू बजगे राहय । बपुरी लाँघन सुतगे।

           एक बखत मोहनी के तबियत खराब होइस।  मनखे के जात तबियत कभू-कभू ऊँच-नीच होत रथे।

मोहनी किहिस- "मोर तबियत बड़ जोर के खराब हावय जी। चल डॉक्टर कन जाबो।"

           "तोर तो एकक कन बर डॉक्टर ए....। सोहन ह बड़बड़ाय लागिस-मोला आज नइ उसरत हे।" एकात दिन जाबो कहिके रेंग दिस ।

बपुरी मोहनी मन म गाँठ बाँध डारिस। "भइगे मेंहा अपन दाई घर जाहूँ। उही कोती इलाज करवाहूँ", काहत घर ले दु-चार ठन कपड़ा-लत्ता ल झोला म धर के निकलगे। वो रेंगत-रेंगत जावत रिहिस। उही रद्दा म एक झन फटफटी वाला फक-फक ले उज्जर, गोल सकल, हाँसत बदन, जवनहा मनखे आवत रिहिस। तेला मोहनी रुके बर किहिस।

फटफटी वाला गाड़ी ल रोकिस। 

         "भइया तेंहा भाठागाँव जावत हस का ?" मोहनी किहिस ।

         "हव बहिनी।" फटफटी वाला किहिस।"

         "महूँ ल भाठागाँव जाना हावय। भइया फटफटी म बइठार ले।"

         "हव बहिनी..., काहत फटफटी म बइठारिस।

         एती सोहन काम करके आइस। मोहनी घर म नइ रिहिस। गली म सुकवारो ह झींटी-झाटा लकड़ी बोही के आवत रिहिस। 

सोहन पुछिस- "सुकवारो तोर काकी ल देखे हस का ओ ?"

         "हव।" ओ तो आमा बगीचा डाहर लकर-धकर जात हे।" सुकवारो बताइस।सोहन तुरते अपन फटफटी ल देखाय रद्दा म दउड़इस। फटफटी ल अइसे दउड़ावत रिहिस कि जानो-मानो ओखर फटफटी ह हवाई जहाज आय।

          मोहनी ललहूँ लुगरा पहिरे रिहिस। सोहन दुरिया ले चिन्ह डारिस।

          मोहनी ...मोहनी...ए  मोहनी , ए  फटफटी वाला रुक... रुक.... करके चिल्लावत रिहिस। अउ टीट  ...टीट ... हार्न ल बजावत रिहिस।

          आवाज ल सुन के फटफटी वाला के जीव ह धुक ले करिस। डर के मारे बपुरा फटफटी ल रोकिस।

          "काय भइया , काय होगे जी काबर चिल्लावत हस ?" फटफटी वाले किहिस।

          "तेंहा मोर गोसइन ल कहाँ लेगत हस रे ?" किहिस अउ उनिस न गुनिस एक झाफड़ जमा दिस। अउ मारे बर धरत रिहिस। मोहनी लटपट छोड़ाइस अउ अपन गोसइया ल किहिस- मोर बात ल  सुन तो ले,मेंहा अपन मर्जी ले येकर संग अपन दाई घर जात रेहों ,तेंहा बिना सोचे समझे एक झाफड़  जमा देस।मोहनी अपन गोसइया ल माफी माँगे बर किहिस। सोहन माँफी नइ माँगिस, तब मोहनी अपन गोसइया कोती ले माँफी मागत वो फटफटी वाले भइया ल कथे-"भइया ए घटना ल कोनो ल झन बताबे।"फटफटी वाला कथे- "काबर नइ बताहूँ ? मोला मारे हे तेला, नइ जानस का बहिनी ?"

मोहनी कथे- "बहिनी केहे हस त, बहिनी के लाज ल रखबे भइया। ए घटना ल कोनो ल झन बताबे।

          "मेंहा जान डारेव बहिनी। ए घटना ल काबर कोनो ल झन बताबे काहत हस तेला। फटफटी वाले काहन लागिस। ए घटना ल कोनो ल बता दुहूँ त कोनो रद्दा रेंगइया दुखयारी मइलोगन मन के कोनो सहायता नइ करही।भइया केहे हस त मोर एक ठन सवाल हे बहिनी।"

          "बता न भइया, का सवाल ए ?

          "ये मंदहा अपन जिनगी म कभू सुधरही ? मोला भगवान उपर भरोसा हावय भइया कि मोर जिनगी म एक न एक दिन अँजोरी जरूर आही। मोर गोसइया एक न एक दिन जरुर सुधरही। ओखर आँखी जरुर खुलही। घुरवा के दिन घलो बहुरथे। ओइसने मोरो जिनगी ह बहुरही। धीर म खीर हे । दाई-ददा मन के तको लाज ल राखना जरुरी हे। मन के हारे हार अउ मन के जीते जीत।

          मोहनी के सुग्घर गोठ ह फटफटी वाला भइया के अंतस म समाय लागिस। बहिनी बर मया पलपलाय लागिस। दुख दरद अउ घुस्सा ह कमती होय लागिस।

             "मोर एक ठन बात हे, मानबे त बताहूँ ।"

             "का बात भइया?"

             "तोर गोसइया ल बने समझाबे। कोनो भी मनखे ल बिना सोचे समझे मारे के नोहे कहिके।"

              "हव भइया"। मुड़ ल ढाँकत मोहनी किहिस |

फटफटी वाला अउ मोहनी के गोठ ल सुन के सोहन ल अपन गलती के एहसास होइस | ओकर बाद सोहन ह फटफटी वाला ले माफी माँगिस अउ किरिया खइस कि मँय गलत रद्दा ल छोड़ के अपन घर परिवार के सुख ,शांति अउ समृद्धि म धियान दुहूँ। अब एती मोहनी ल कोनो शिकायत के मौका नइ देवँव। 

          मोहनी सोहन के बात ल सुनके के फटफटी वाला ल किहिस - "सुने भइया, मँय केहे रेहेंव न, मोला भगवान उपर पूरा भरोसा हे कहिके। भगवान मोर बिनती ल सुन लिस।"

         फटफटी वाला, "हव बहिनी कहिके..."  मोहनी के केहे गोठ ल गाँठ बाँधके अपन रद्दा म चल देथे।

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भोलाराम सिन्हा,

ग्राम -डाभा,पो० करेली छोटी 

वि०ख०-मगरलोड

जिला -धमतरी

मो०न०   9165640803

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 ओम प्रकाश अंकुर: समीक्षा 


कोनो ल झन बताबे: एक संदेशपरक कहानी 


अपन पूर्वज के बेवसाय करे बर सरम नइ मरना चाही बल्कि गरब होना चाही। कोनो काज छोटे नइ होय।पर कतको झन  आन मनखे के उभरौनी म आके लोगन मन अपन पूर्वज के काम -धंधा करे म  हीनमान समझथे। संगे -संगे सिधवा मनखे मन घलो दूसर के उभरौनी म आके गलत रस्दा डहर चले ल लग जाथे। दारू,जुआं- सट्टा म भुलाके अपन हांसत -खेलत परिवार ल नरक कोति  ढकेल देथे। अइसन स्थिति म एक नारी ह धीरज धरके कइसे अपन गोसइया के जिनगी म बदलाव लाथे वोकर उदाहरण हे  आदरणीय भोला राम सिन्हा के कहानी - कोनो ल झन बताबे।


  कहानी के  मुख्य पात्र सोहन बरदिहा हरे। इही उंकर पुरखा के बेवसाय हरे जेकर भरोसा उंकर जिनगी के गाड़ी चलथे। सोहन अब्बड़ सिधवा हावय।अपन गोसइन मोहनी संग सुख के जिनगी बितावत हे। पर एक दिन सोहन के एक झन मितान ह वोला बरगला देथे कि ये बरदिहा काम म कोनो मजा नइ हे। वोकर मितान ह वोला ट्रेक्टर चलाय के संगे- संग दारू अउ जुआं - सट्टा जइसे गलत रस्दा म चले बर घलो सिखो देथे। येकर ले सोहन अउ मोहनी के परिवारिक जिनगी ह डगमंगाय ल लगथे। मोहनी ह पाछु बेरा के उदाहरण देके अपन गोसइया सोहन ल नाना प्रकार ले समझाथे कि जउन रस्दा डहर चलत हस वोहा ठीक नइ हे। ये गलत रस्दा ल छोड़ दे जी! इही म हमर परिवार के भलाई हे।पर सोहन ह अपन गोसइन बर नंगत भड़क जाथे अउ मारपीट कर देथे। ये सब ले परेसान होके मोहनी ह एक दिन अपन घर ले निकल जाथे मइके जाय बर।


      इही जगह कहानी म टर्निंग पॉइंट आथे। मोहनी ह एक झन फटफटी वाला ल बैठाय ल कहिथे। जब सोहन अपन घर जाथे अउ मोहनी ल नइ पाय त आस -पड़ोस ल पूछथे त पता चलथे कि मोहनी पैदले निकल गे हावय।सोहन उत्ता - धुर्रा अपन गाड़ी ल चलात मोहनी करा पहुंच जाथे अउ गुस्सा म आके फटफटी वाला ल तमाचा मार देथे। अउ मारत रहिथे त मोहनी ह छोड़ाथे। इही जगह कहानी के शीर्षक ह चरितार्थ होथे। फटफटी वाले ह अपन बहिनी बरोबर मोहनी ले कहिथे कि ये सब घटना ल कोनो ल झन बताहू नइ ते कल - जाके कोनो ह विपदा म फंसे कोनो नारी के मदद नइ करही।  ये जगह मोहनी ह घलो धीरज ले काम लेथे।जब तीनों झन के गोठबात चलथे त कहानी के मुख्य पात्र सोहन के हिरदे परिवर्तन हो जाथे अउ दारू,जुआं- सट्टा ल छोड़े के प्रन करथे। ये प्रकार ले कहानी उद्देश्य परक हे कि अपन पुरखा के बेवसाय ल छोटे झन समझव। गलत रस्दा ल छोड़े म ही भलाई हे अउ कोनो मदद करत हे त वोला धन्यवाद देवव ।

 वोकर हीनमान  झन करौ।

 

   कहानी के भाषा सरल, सहज हे। शैली प्रवाहमय हे। कहानी म कुछ मुहावरा के प्रयोग करना रिहिस। येकर ले कहानी म अउ कसावट आतिस। सुघ्घर कहानी खातिर कहानीकार आदरणीय भोला राम सिन्हा जी ल गाड़ा- गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।

           -ओमप्रकाश साहू अंकुर

         सुरगी, राजनांदगांव

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