एक रंग उछाह के !
चन्द्रहास साहू
Mo 8120578897
मीटिंग सिराइस तब जी हाय लागिस। जम्मो अधिकारी के रंग बदरंग होगे रिहिस डी एफ ओ साहब के दबकाई चमकाई मा। धोबी पछाड़ कस धोए रिहिन साहब हा। वन तस्करी, अवैध कटाई अउ अतिक्रमण बड़का एजेंडा रिहिन। चौकीदार हा चोर होगे हाबे तब का रखवाली होही।कतको साहब देखे हंव मेंहा अपन बारा बच्छर के नौकरी मा। मीटिंग मा अब्बड़ कड़क अउ ईमानदारी के प्रवचन सुनाथे अउ दू नम्बरी बुता मा टोंटा तक बुड़े रहिथे। कोन जन ये साहब हा कइसन हाबे ते ...? अभिन तो नेवरिया आवय - नवा बईला के नवा सिंग चल रे बईला टिंगे टिंग।
आजकल सिरतोन नौकरी करना अब्बड़ कठिन बुता होगे हाबे। अधिकारी मन कोनो मौका नइ छोड़े तुतारी मारे बर। फिल्ड के परेशानी ला कोनो नइ सुने। टारगेट पूरा करे बर कागज मा घोड़ा दउड़ाथे। पब्लिक के दबाव, नेता मन के प्रेशर अउ अधिकारी के टॉय-टॉय...घरवाली के चिक-चिक। कतका ला झेलबे ...?
"अरे रेंजर साहू साहब ! दारू पी के चिल मारे कर। मीटिंग सीटिंग के टेंशन झन लेये कर अतका। थोकिन कुछु बात होये नही कि मरो जियो टेंशन लेथस।''
भलुक मेंहा मने मन मा गुनत रेहेंव फेर रेंजर नेताम साहब हा मोर मन के गोठ ला जान के किहिस।
"दारू पीये ले टेंशन नइ दुरिहाये नेताम जी ! भलुक शरीर ला नुकसान होथे।''
मेंहा समझाय लागेंव अउ उदुप ले फेर आरो आइस डीएफओ साहब जम्मो झन ला सेंट्रल हॉल मा फेर बलावत हाबे।
"अब का बांचगे फेर ..। अब का पूछही ...? जम्मो ला तो पूछ डारे रिहिन। फेर...?''
नेताम जी डर्रावत किहिस अउ सेंट्रल हॉल मा अमरगेंन जम्मो कोई। बड़का कुर्सी मा साहब बइठे रिहिस। आगू मा रंग गुलाल अउ मिठाई के डब्बा माड़े हे।
"हम सब एक विभाग के है तो सब लोग एक परिवार की तरह है। आओ, सब मिलकर होली मनाते है। हमारा मासिक बैठक इसलिये होली के चार दिन पहले रखा गया था। सबको हप्पी होली।''
"हप्पी होली सर !''
जम्मो कोई एक संघरा केहेन। अब सब स्टाफ संगी-संगवारी कस रंग गुलाल लगाए लागेन। चुटकी भर गुलाल साहब के माथ मा लगायेंव। साहब घला लगाइस अउ पोटार लिस। फारेस्ट के जम्मो अधिकारी मन अब संगी-संगवारी बरोबर मया के रंग मा रंगे लागेन। प्युन नगाड़ा बजावत रिहिस अउ डीएफओ साहब फाग गीत सुनावत रिहिस। रीना सीमा रेशमा मेडम मन घला कनिहा मटका-मटका के बिधुन होके नाचत हाबे। शर्मा जी घला अब शरमाए ला छोड़ देहे अउ मेडम मन ला रंग गुलाल मा बोथत हाबे।
साहब कोती ले जेवन के बेवस्था घला रिहिस। जम्मो कोई खायेंन अउ साहब हा मिठाई डब्बा देके बिदा दिस। महूँ हा वाश रूम मे जाके फ्रेश होयेंव अउ घर लहुटे के तियारी करेंव। अब मोर गाड़ी जुन्ना सर्किट हाउस ले पचपेड़ी नाका कोती दउड़े लागिस। उदुप ले गोसाइन के गोठ के सुरता आगे। रंग गुलाल,हरवा हार, पिचकारी ले आनबे। ........अउ मोर पुचपुचही बेटी हा राधा बने के जम्मो सवांगा लानबे पापा कहिके फरमाइश करे हाबे। मोर टूरा घला कहाँ कमती रही ..? वोहा तो छलिया किसन आवय सिरतोन। जब ले जानबा होइस पापा रायपुर जवइया हाबे तब ले पापा के अब्बड़ सेवा जतन मा लग गे। नहाए के गरम पानी ला बाथरूम के बाल्टी मा झोंक डारिस। सेविंग ब्लेड ला बदल दिस अउ मोर पहिने बर अपन पसंद के कपड़ा जौन प्रेस नइ होये रिहिन तौनो ला प्रेस कर डारिस। मोर जूता ला चमका डारिस अउ गाड़ी ला घला पोंछ के चका चक कर डारिस।
"तबियत तो बने हाबे न बेटा तोर ! आज अब्बड़ सेवा जतन करत हस दाई-ददा के। जम्मो बुता ला आगू-आगू ले करत हस जिम्मेदारी ले।''
टूरा मुचका दिस।
"कुछु तो बात हे बेटा ! अइसने फोकटे-फोकट अतका सेवा नइ करस।''
"कु.....कुछु नहीं पापा ! आप ही तो कहिथो जिम्मेदार बनो कहिके तेखर सेती...!''
टूरा गमकत रिहिस।
"बता न रे..!''
"गेयरवाला साइकिल चाहिये पापा ! कॉलेज जाय - आय बर।''
लइका बताइस।
"कतका मिलथे बेटा ?''
"पन्दरा बीस हजार मा आ जाही पापा !''
"आय, अतका महंगा मिलथे रे ! अभिन तो जुन्ना साइकिल मा काम चला। फोकट खरच झन करा बेटा !''
"सायकिल लेबे कहिके रोज बिटोवत हाबे। ले देना। दूसरा लइका मन तो बाइक बर तंग करथे फेर हमर लइका हा सायकिल मांगत हाबे। ले आनबे रायपुर ले।''
"सिरतोन काहत हस हेमा !''
मोर घर के सुप्रीम कोर्ट ले आदेश होगे अब तो सायकिल बिसाये ला लागही। महूँ गुनत हावंव। हमरे स्टाफ के टूरा हा स्पोर्ट बाइक बिसाये बर घर मा चोरी करिस अउ जानबा होइस तब अपन दाई ददा ला मारे बर दउड़ाइस। जम्मो ला सुरता कर डारेंव अब मेंहा।
मोर गाड़ी अब भीड़ के चक्रव्युह में फंसगे रिहिस। जम्मो कोती पी ...पी.....पी....पो... पो... के आरो आवत रिहिस अब। तिहारी बाजार आवय जम्मो कोई जरुरत के जिनिस बिसाथे।
ड्राईवर ला पार्किंग मा गाड़ी ठाड़े करे बर केहेंव अउ मेंहा बाजार करे लागेंव। खोसखिस-खोसखिस करत भीड़ सिगबिग-सिगबिग करत मनखे। कोन दुकान मा जावंव। कहाँ गोड़ मड़हाव । मोर तो मति छरियागे। बुध पतरागे। भीड़ मा नइ खुसरेंव भलुक रोड तीर मा अब्दुल्ला सिंगार सदन नाव के दुकान ले बिसाये लागेंव अब राधा रानी के सवांगा ला।
"दो हजार आठ सौ बीस रूपिया लागही साहब।''
"अब्बड़ लूट हाबे भाई ये तो ! अट्ठारा सौ दो हजार के जिनिस ला सोज्झे तीन हजार मा बेचत हावस।''
"तिहार सीजन मा चंदा वाले मन अब्बड़ परेशान करथे। नेता मंदहा गंजहा जम्मो ला देये ला लागथे। .... अउ नइ देबे तब तो एको दिन दुकान नइ खोल सकबे अतका हलाकान करथे। का करबो साहेब ! हमन तो छोटे बैपारी आवन। मन मार के चढ़ोतरी चड़ाए ला परथे। इहां के थानादार के घला हप्ता बंधाये हाबे साहब ! किराया भाड़ा बढ़गे तौन अलग। वोकरे सेती कीमत मा ऊंच नीच करे ला परथे। '
दुकानदार बताए लागिस।''
गोठ बात करत मोर बिसाये जम्मो जिनिस ला पैकिंग करे लागिस।
"कोन थाना मा पदस्थ हाबो साहब ! गोठबात ले सज्जन लागथो।''
"हा...हा.... थाना मा नही भैया ! मेंहा फोरेस्ट डिपार्टमेंट मा रेंजर हंव।''
मुचकावत केहेंव अउ पइसा पटा के नंगाड़ा पसरा कोती चल देंव।
मेहनतकस मन बर रामकृष्ण अउ अब्दुल्ला कोनो मा भेद नइ हाबे। एक मुसलमान हिन्दू धर्म के आराध्य देव के सवांगा बेचके अपन परिवार चलावत हाबे अउ हिन्दू भाई मन चादर मा नक्काशी करथे। उस्ताद बिस्मिला खान ला कोन नइ जाने ? जौन हा मंदिर मा बइठके मोहरी बजाइस अउ मानवता के सार गोठ ला सिखा के चल दिस। अइसने तो हमर संस्कृति अउ परम्परा हाबे फेर ...? धर्म के नाव मा लड़ा के अपन सुवारथ पूरा करत हाबे। सब जानथे कोन हरे तौन ला। मनेमन गुनत आगू गेयेंव।
आनी बानी के मनखे रिहिस। कोनो नकली चूंदी लगा के किंजरत रिहिस, कोनो हा मुखोटा लगा के। कोनो माला मुंदरी पहिर के बइठे हाबे अउ कतको झन रंग गुलाल ले सराबोर होगे। ...रंग ? रंग कमती अउ बदरंग जादा दिखत हाबे नशापान अश्लिलता संवेदना शून्य संस्कारहीन नवा पीढ़ी के।
नगाड़ा छांट डारेंव बिसाये बर। एक जोड़ी गद अउ ताल के जोड़ी। पइसा देये बर हाथ ला लमाइस वोहा थोकिन झिझकत रिहिस। कुछु डर्रावत घला रिहिस। ससनभर वोला देखेंव। कुछु जाने पहिचाने बरोबर लागत हाबे
दुबर पातर काया। सादा करिया के खिंजरहू दाढ़ी वइसना मुड़ी के चूंदी। अपन दिमाग मा जोर देयेंव। कोनो लकड़ी चोर तो नइ होही। कोनो वन जीव के तस्करी करइया..? अब्बड़ सवाल आवत हाबे।
"का नाव हे तोर ?''
गरजत पुछेंव जवनहा ला।
"म...... म..... मोर साहब ? डेढ़ी जेवनी ला देखे लागिस।''
"हा तुम्ही से पूछ रहा हूँ।''
फेर दबकायेंव।
"म...म... मन्नूराम साहब !''
कांपत हाथ ले पइसा ला झोंक लिस। अब महूँ ला सुरता आगे ये तो मोर गाँव रामपुर ले ताल्लुक राखथे।
"कइसे ? तुम्ही हो न जो मेरे गाँव की एक लड़की को भगा लिये थे।''
जवनहा अब सकपकागे।
"वो लड़की अब मोर गोसाइन बनके मोर संग मा रहिथे साहब ! आप देख भी सकथव साहेब ! मोर घर जाके। थाना कछेरी झन लेगबे साहेब मोला तोर पाँव परत हंव।''
दूनों हाथ जोड़ डारिस।
"तुम तो रूपये और गाहना जेवर भी चोरी किये थे न ?''
"....न ..न .. नही साहब !''
"लबारी झन मार आज तो सब जान के रहूंगा।''
सिरतोन मा आज तो खोदा-निपोरी करेच ला लागही। उड़हरिया भागगे कहिके गाँव भर सोर उड़े रिहिन वो बेरा। कटा-कट बईटका होइस। दू जाति अउ दू पारा के नाक के सवाल रिहिन। अब्बड़ गारी बखाना होये रिहिन। गाँव मा दू पार्टी हो गे रिहिन। मेंहा तो सुने रेहेंव टूरा हा अब्बड़ नशा बाज अउ कई परत ले जेल घला चल देहे कहिके। ....आज पकड़ में आयेस मोला जानेच ला परही...।
"चल बइठ गाड़ी में।''
"चल साहब !''
एकेच बेरा मा तियार होगे मन्नुराम हा। ड्राईवर ला आरो करेंव बाजार ले निकल के बिसाये नगाड़ा ला लाने बर। अब मन्नुराम के बताये रद्दा मा गाड़ी दउड़े लागिस। तेली बांधा ला नहाक के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी सड़क ले जोंरा अउ जोरा ला नाहक के धरमपुरा जावत हावन अब।
"ट्रिन .....ट्रिन....!''
मोर फोन के घंटी बाजीस। चन्द्रकला आवय मोर नान्हे बहिनी।
"कतका बेरा आबे भईया! मोला लेये बर ? मेंहा तियार होगे हंव।''
नोनी गमकत पुछिस।
"एकाध घंटा मा अमर जाहूं नोनी !''
मेंहा बतायेंव फेर अब दमाद इतराए लागिस।
"झटकुन आ भईया ! तोर बहिनी हा सोला सिंगार करे हे। मेकअप बोथ के आगोरत हाबे। झटकुन आ ...! जम्मो मेक अप धोवा जाही ते तोर गाँव वाला मन नइ चिन्ह सकही हा.. हा...।''
"येला तो अब्बड़ गोठ उसरथे धत....!''
बहिनी हड़का दिस अउ दमाद खिलखिलाके हाँसत हाबे अब नोनी घला हाँसत हे अउ ऊंकर मया ला देख के कठल-कठल के महूँ हा हाँसे लागेंव।
"ले इहाँ ले रेंगे के बेरा फोन करहूँ।''
"हाव !''
फोन कटगे।
सिरतोन हमर छत्तीसगढ़ मा कतका सुघ्घर लोक परंपरा हाबे जेमा सामाजिक आर्थिक अउ वैज्ञानिक कारण ले कसाए हाबे जम्मो परंपरा हा। हमन ला गरब हाबे अइसन भुइयां के संतान आवन।
नवा बहुरिया हा पहिली होरी ला अपन मइके मा मनाथे। नवा बहुरिया ला सास संग जरत हाेरी ला नइ देखे के विधान हाबे। काबर अइसना मान्यता हाबे ? राउत कका के गोठ के सुरता आगे उदुप ले। होली ताप के प्रतीक आवय अउ बहुरिया अउ सास के बीच तमो गुण झन राहय भलुक सबरदिन मया पलपलावय वोकरे सेती बहुरिया ला मइके पठो देथे। छत्तीसगढ़ मा जादा ले जादा बिहाव हा चैत बैसाख मा होथे अउ फागुन के आवत ले कतको बेटी मन के कोरा हरियाए लागथे। वोकरे सेती मइके मा जाके सुघ्घर संस्कार लेथे बेटी मन। अप्पढ़ के इही गोठ ला विज्ञान घला मानथे आज। एक अउ मान्यता के अनुसार शिव जी ला धियान ले जगाये के उदिम करइया कामदेव भस्म होगे। कामदेव ला फेर जीवन मिलथे वोकरे सेती माता पार्वती ला ददा राजा हिमांचल हा अपन घर लेग जाथे उछाह मनाए बर। ...मइके के अंगना मा बेटी फेर कुलके लागथे ये बेरा। ... अउ मया मा गुरतुर विरह के स्वाद ला चिखत रहिथे गोसइया हा। दुरिहाए ले मया बाढ़ जाथे। अउ एक-एक दिन ला अंगरी मा गिन-गिन के अगोरा करथे वोहा।
गाड़ी रुकिस अउ मोर सुरता के धार फेर टूटिस।
धरमपुरा के हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी मा अमर गेंन हमन अब। गाड़ी ला ठाड़े करिस ड्राईवर हा अउ अब हमन आखिरी गली मा पानी टंकी के तीर जाये लागेंन जवनहा मन्नुराम के संग। इहिंचो चौक मा अंडा रूखवा ला कामदेव के प्रतिक मान के गड़ियाये रिहिस, ससन भर देख के जोहार करेंव अउ अब अमर गेंव मन्नुराम अउ मालती के घर। प्रधानमंत्री आवास योजना मा मकान मालिक मालती बाई के नाव चमकत रिहिस। दू कुरिया के सुघ्घर घर। आधा छत ढ़लाए हाबे अउ आधा मा खपरा छानी। मोहाटी मा आरो करिस मन्नुराम हा। मालती हा कपाट ला हेरिस अउ मोला तो देख के सुकुरदम होगे।
"हमर घर पुलिस काबर आये हाबे ? का होगे ?''
वन विभाग के मोर खाकी वर्दी ला देखके संसो करत पुछिस मालती हा। सिरतोन पारा वाला मन के मन मा घला अइसना विचार आवत रिहिस होही तभे तो अब्बड़ झन मोला देखे लागे।
"कुछु नइ होये हाबे मालती ! हमर घर सगा आये हाबे वो ! चिन्ह।''
मालती फेर संसो मा परगे। मेंहा मुचकावत रेहेंव अउ टूप टूप पाँव परके पुछेंव।
"चिन्हेस दीदी ?''
"कोन .....? कन्हैया दाऊ के बेटा आवस न !''
मेंहा मुड़ी हलाके हूंकारू देयेंव।
"अब्बड़ दिन मा देखे हंव भाई तोला ! ...स्कूल ड्रेस पहिर के स्कूल जावस तब के देखे रेहेंव। अब तो अब्बड़ बड़का होगे हस। मेंछा दाढ़ी जाम गे। उप्पर ले ये वर्दी पुलिस के। नइ चिन्हावत रेहेस। का अनित होगे कहिके डर्रा गे रेहेंव। जी धुकुर - पुकुर होवत रिहिस।''
"पुलिस वाला नो हरो दीदी ! झन डर्रा फारेस्ट वाला हरो। फारेस्ट रेन्जर हरो मेंहा।''
"सब बने बने भाई ! गाँव में सब कोई बने हाबे न। मेंहा गाँव के जम्मो झन ला सुघ्घर राहय कहिके गुनत रहिथो फेर गाँव वाला मन हमर मन ले रिसागे। जतका के प्रेम बिहाव नइ करे हावन वोकर ले जादा जम्मो नत्ता-गोत्ता टूटगे। न दाई ददा आवय, न भाई भौजी मन अउ न गाँव के एक झन कुकुर आवय। का होइस तोर भाटो हा आने जात के हाबे ते फेर अब्बड़ मया अउ मान देथे। ..अउ का चाही एक नारी ला....हूँ..हूँ.......?''
मालती बताये लागिस एक सांस में। अब तो वोकर नाक सुनसुनाइस अउ थोकिन हिचके लागिस ....अउ अब गो .... गो... कहिके गोहार पार के रो डारिस। दूनो आँखी ले आँसू के धार बोहाए लागिस।
"चुप न वो ! ये ले चाहा पी।''
मन्नुराम आवय ट्रे में चाहा धर के आइस अउ देवत किहिस। अदरक वाली चाहा के ममहासी अब जम्मो घर मा भरगे।
"अई.... तेंहा बना डारे। मेंहा बनाये रहितेंव वो !''
अचरा ले आँसू पोंछत किहिस मालती हा।
"तेंहा तो मगन होगे रेहेस वो ! अपन मइके के सुरता मा तब सगा-पहुना के मान-गौन करे बर मोला रंधनी कुरिया मा जाये ला परही।''
"अब्बड़ सुघ्घर चहा बनाये हावस भाटो ! तेंहा आज भर नइ बनाये हावस। रोज-रोज चाय बना के दीदी ला पियाथस तभे तो अदरक चाय शक्कर जम्मो हा संतुलित मात्रा मा हाबे न एक कम, न एक जादा।''
मेंहा अब मन्नूराम ला कुड़काए लागेंव।
मन्नूराम घला अब गमके लागिस।
"महरानी बरोबर राखे हाबे। बाहिर के जम्मो बुता ला तोर भाटो करथे अउ घर के बुता ला मेंहा। घर में दोना पत्तल बनाये के मशीन लगाये हाबन। वोकरे भरोसा घर खरचा चलाथंव। महिला स्वसहायता समुह ले जुड़के दू पईसा कमाये ला अउ बचाये बर सीखे हंव। प्रधानमंत्री आवास योजना मा घर घला बनावत हांवव दू कुरिया के। बांचे एक किस्त आही अउ जम्मो ला सपुरन करबो।''
चाहा के मिठास के संग अपन जिनगी के मिठास ला बताए लागिस मालती हा अब।
".......फेर मन अब्बड़ कलपथे। सुध लागथे अपन ननपन मा बिताए गाँव बर। कभु नइ गुने रेहेंव मोर जम्मो हा अइसना बिरान हो जाही अइसे। कभु-कभु ददा हा लुका-चोरी गोठिया लेथे तब बताथे। हमर समाज वाला मन आज घला ठोसरा मारे बर नइ छोड़े जब मौका देखथे अब्बड़ ठोसरा मारथे। दू चार झन सियान मन जादा अतलंग लेवत हाबे। बेटी हा सबरदिन वोकर मन के खेलउना बनके रही का ? बेटा कोनो आनजात टूरी संग प्रेम विवाह करके ले आनिस तब समाज मा मिल जाथे अउ बेटी चल दिस तब मइके ला छोड़ा देथे। अइसना हाबे हमर समाज हा। छूट जाही का नानपन के खेले कूदे गाँव ? मया दुलार पाये नत्ता-गोत्ता मन ...? गाँव के माटी ला खुंद लेये के अब्बड़ साध हाबे। गाँव के दीदी, भईया, भाई-भउजाई मन ले हाँस गोठिया लेतेंव। कका काकी दाई बबा संग भेंट लाग लेतेंव ....अब्बड़ साध हाबे फेर ......जम्मो अबिरथा हाबे भाई ! बस, मन दउड़थे भर पाँव तो इहिंचे रहिथे।''
मालती के आँखी सुन्ना होगे रिहिस फेर अंतस रगरगावत हाबे।
"ददा हा पाछू के डांड के चुकारा नइ करे हाबे। अब जाहूं तब फेर डांड पड़ जाही ....? इही डर के सेती तरी-तरी दंदरत रहिथो।''
मालती फेर बताइस वोकर आँखी मा फेर महानदी के लहरा दिखत रिहिस।
"चल दीदी मेंहा लेगहूं तोला अपन संग। पहिली होली ला मइके में मनाथे जम्मो बेटी मन। चल ! झटकुन तियार हो। गाड़ी घला मोहाटी मा ठाड़े हाबे।''
मालती के आँखी जोगनी बरोबर चमकिस अउ फेर बुतागे।
"कोनो कही कहि तब मोर दाई-ददा बर बोझा हो जाही भईया ! नइ जावंव। समाज के कोचिया मन के ढ़ीले आगी ले तहूँ नइ बाचबे। कभु रायपुर आथस तब अइसना आ जाबे अउ चल देबे उही सुघ्घर रही.....?''
मालती किहिस।
"तुंहर घर बेटी बनके झन जा भलुक मोर घर मोर बहिनी बनके चल वो ! कुछु नइ होवय। कोनो गाँववाला काही बोलही .....मेंहा हाबो भरोसा राख।''
मन्नूराम घला हुंकारू दिस अब मुड़ी हला के।
दर्जन भर पिंयर पाका केरा निकालिस अउ परोसी मन ला आरो करिस।
"बिमला सोहागा आसमती कलिन्द्री सुशीला......आवव वो ! मोर भाई आये हाबे मोला लेये बर। भलुक मेंहा नइ लाने रेहेंव तभो ले अब सब घर जाके केरा बांटे लागिस।
"ये दे दीदी बहिनी ! मोर भाई आय हाबे होली मा लेवाए बर। तुमन अब्बड़ पूछो न कब आही तोर भाई ...। लेंव केला ला झोंकव। मोर थानादार भाई आये हाबे। अपन ड्यूटी कोती ले आये हाबे बहिनी तेकर सेती कोनो तेल तेलई नइ लाने हाबे वो।''
मालती के गोठ सुनके मने मन मुचकावत रेहेंव। गमकत रेहे हंव महूँ हा अब नवा दीदी पाके।
बाहां भर चूरी गोड़ मा माहुर लगा के तियार होगे मालती हा।
"ले भाटो ! बने रहिबे। मन के रांधबे अउ मनके खाबे। दीदी के सुरता मा आधा पेट खा के झन रहिबे। दुब्बर पातर हाबस आगू ले, अउ झन दुबराबे हा...हा...।''
मेंहा मन्नू भाटो ला अब मसखरी करेंव।
जम्मो कोई खलखला के हाँस डारेंन अब।
""ट्रिन...... ट्रिन !''
मोर छोटे बहिनी चन्द्रकला घला तियार होगे रिहिन अब। अभनपुर कोती गाड़ी दउड़े लागिस अब नवा उछाह के संग। दीदी के चेहरा मा सतरंगी रंग दिखत रिहिस अब जेमा एक रंग उछाह के रिहिस।
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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