गुनान
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एक ठन कार्यक्रम मं गए रहेंव ...बुधियार वक्ता मन ल सुने के सुख मिलिस त घर आके गुने बर पर गिस ..श्री क हर साहित्य संसार के नम्बर एक वक्ता , लेखक आय त श्री ख हर एक नम्बर के कवि अउ गायक आय , श्रीमती ग हर पहिली साहित्यकार आय ...अउ बहुत अकन विचार ।
गुने लागेंव नम्बर मं काय धरे हे भाई ..कोन कलम हर आम आदमी के सुख दुख ल लिखिस , समाज के विसंगति ल उजागर भर नइ करीस समाधान घलाय बताइस उही कलम के जय जयकार होही । साहित्य के कोनों भी विधा मं लिखे जावय अइसने साहित्य हर कालजयी होही ...छुट्टी पटिस न ? नहीं भाई ...एक जरुरी बात अउ हे ..।
" कहत सबै बेदी दिए , आंक दस गुनो होत " ..बेंदी माने शून्य , आंक माने अंक ...एतरह गुनिन त एक से ले के नौ तक के अंक के संग शून्य लगा दिन अंक दसगुना बढ़ जाही है न ? चिटिक थिरा के गुनव ..अंक के पाछू मं शून्य लगाहव त दस गुना होही जइसे एक (1) के बाद शून्य (0) = 10 होही फेर शून्य लगाहव त 100 हो जाही इही तरह हरेक शून्य हर अंक के दसगुना बढ़ोतरी करही ...बढ़िया बात आय न ? त भाई हम अंक ( नम्बर ) के चक्कर ल छोड़ के खुद ल शून्य बना लिन न ...कतका मजा आही ..? फेर एक जरुरी बात के शून्य बनबो कइसे ?
क्रोध , मोह , ईर्ष्या , अहंकार असन पंच मकार ल छोड़ के न ...उहुंक ये तो जोगी जती मन के साधना आय त हमर बर जरुरी हे आज के मकार माने मैं , माइक अउ मंच के मोह ल छोड़े ले शून्य बने जा सकही ...। जे दिन ये मकार ले मुक्त होय सकबो शून्य बन जाबो ...फेर का ...जेकर बाजू मं बिराजबो ओकर महत्ता दसगुना बढ़ जाही । संगवारी मन ! इही शून्य के साधना हर तो निर्गुण ब्रम्ह के साधना आय त आनन्दमय कोष के जागरण आय ..चिटिक गहन गम्भीर विचार आय फेर गुनव न साहित्य लेखन हर घलाय तो एक तरह के साधना च आय जेला शब्द ब्रम्ह के साधना कहिथें । साधना कोनो किसिम के होय उद्देश्य तो आंनद के प्राप्ति आय जेला सियान मन परमानन्दम् माधवम् कहिथें ।
मनसे च तो आन ..भूल , चूक होई जाथे तभो चिटिक थिरा के गुने बर परही अंक बने ले जादा फायदा शून्य बने ले मिलही ।
सरला शर्मा
दुर्ग
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