जुड़वा बेटी-समीक्षा
हमर महतारी भाखा के मान सम्मान ल बढ़ाये के उदिम म लगे, जी तोड़ मेहनत करैया, गुरुदेव अउ भैया अरुण निगम सुपुत्र स्व. जनकवि कोदूराम दलित जी के जतका तारीफ करे जाय कमे परही। श्रद्धेय दलित जी छत्तीसगढ़ी भाखा म छंदविधा म सूत्र के भरपूर पालन करत पहिली छंदकार रहिन कहना अतिशयोक्ति नई होही। हमर गुरुदेव भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य प्रबंधक के पद से सेवा निवृत्त होय हें। ए बात ला अइसन झन समझे जाय के मैं चारण बनके चाटुकारिता के जउन रीत रिवाज चल पड़े हे उही ल अपनावत लिखत हँव। हिरदे ले उपजे भाव ए। जइसे होवत देखत हौं ओइसे लिखत हौं।
हमर गुरुदेव के इच्छा हे के उंखर स्व. पिताजी के सपना ल पूरा करँय। ए परिवार म गुरुदेव अउ उंखर पिताजी के अलावा गुरुदेव के भाँटों गीतकार, गायक, कवि ़़स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया जी के चर्चा करना घलो जरूरी हो जथे। प्रसिद्ध गीत "मोर संग चलव रे", "मोर घुनही बँसुरिया", "पता दे जा रे, पता ले जा रे गाड़ी वाला" जइसे अउ कई ठन भावपूर्ण गीत के रचनाकार गायक के ए बछर म अकस्मात निधन होवई पूरा साहित्य जगत ल स्तब्ध कर दे हवै। अपन राज बर, इहाँ के गरीब गुरबा बर उंखर अंतस के पीरा ल समझे बर कोनो प्रयास नई करिन। साक्षात सरस्वती इंखर घर म निवास करथें। हमर गुरुवईन भाभी सपना निगम घलो एक अच्छा रचनाकार अउ मधुर कंठ के मालकिन हवैं।
आज हमर प्रांत म अतेक बड़े बड़े साहित्यकार हें,
फेर अवइया पीढ़ी ल सिखोय बर, निखारे बर उंखर कतका योगदान हे मैं समझथँव। सबो जानत हें। बड़े बड़े साहित्य मनीषी, साहित्य विदुषी मन अपन अंतस ल चिटिकुन झाँक के देखैं त जवाब खुदे मिल जाही। शायद ए डर हो सकत हे के साहित्य के अलग अलग मठ के मठाधीश मन के गद्दी ल कोनो दूसर झन कब्जिया लँय।
गुरुदेव के सपना हे के जइसे जम्मो प्रांत के बोली भाखा के एक अलगपहिचान हे, मान हे, सम्मान हे ओइसने हमरो बोली के मान सम्मान होना चाही। एकर खातिर भैया के पहिली प्रयास एला साहित्य के काव्य जगत म उतारे के चलिस; छंदमय कविता के रचना कर कर के। केवल रचना कर कर के नहीं; साहित्य प्रेमी मन ल नाना प्रकार के छंद के बारीक सूत्र समझावत सिखोवत छंदमय कविता लिखे बर पोट्ठ करे के। ए कड़ी म गुरुदेव के हमर भाखा म छंद के बारीक सूत्र समझावत वैभव प्रकाशन रायपुर ले प्रकाशित "छंद के छ" किताब के कोई सानी नइये। हिंदी म घलो इंखर दू अउ किताब "शब्द गठरिया बाँठ" अउ "चैत की चँदनिया" म इंखर स्वरचित हिंदी के जबरदस्त छंद अउ गीत के आनंद ले जा सकथे। छंद सीखे जा सकथे।
आज गुरुकुल परंपरा नँदाये बरोबर हे। ए बात अलग हे के बाबा रामदेव के पतंजलि संस्था म ए परंपरा ल बढ़ावा देवत हें। फेर ओ हर शिक्षा के क्षेत्र म आय सँगे सँग विशुद्ध हिंदी अउ संस्कृत के ज्ञान, वेद शास्त्र के ज्ञान देवत हे।
धन्य हे आज के सोशल मीडिया। व्हाट्सएप। अतका अच्छा माध्यम हे के घर बइठे इच्छा शक्ति रहय त जउन पाव तऊन सीख सकत हौ, सिखो सकत हौ। तौ भाई हो ए गुरुकुल परंपरा ल इही सोशल मीडिया के माध्यम से हमर परम श्रद्धेय गुरुदेव निगम भैया मन शुरू करिन। सीखौ अउ अनिवार्य रूप से शिष्य बना के सिखोवव। ए हर मूल मंत्र ए। आज एकर नतीजा ए निकले हे के हमर राज के हर जिला से कम से कम डेढ़ सौ छंद साधक हो गे हें। केवल साधक भर नइ होय हें एक अच्छा रचनाकार हो गे हें। मँहू शिष्य बने के प्रयास करे रेहेँव फेर एक समर्पित शिष्य के योग्यता अपन म नई पाएँव। ए छंद साधक मन के ग्रुप केवल गुरु शिष्य के रूप मा चलइया स्कूल भर नोहै। ए एक परिवार बन गे हे।
हरेक बड़े छोटे बर अतका मया के मैं कुछ केहे नई सकँव। भले मैं शिष्य नई बन पाएँव फेर परिवार के सदस्य बने रेहे के सौभाग्य पा के मैं धन्य हो गे हँव। प्रणम्य गुरुदेव अउ भैया निगम बर गोस्वामी तुलसीदास जी के सुंदरकांड के इही चौपाई ल फिट पाथँव.....
सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही।
देखेँव करि विचार मन माही।।
प्रति उपकार करँव का तोरा।
सन्मुख होइ न सकत मन मोरा।।
भाई हो, ऊपर के चौपाई हर भगवान राम के, उंखर प्रिय सखा ( ओइसे ओ सखा रातदिन स्वामी के नाम के माला जपत रहिथे अउ स्वामी के सेवा म भिड़े रथें। अपन आप ला उंखर सेवक कहलाना ही पसंद करथें) संकटमोचक प्रभु हनुमानजी बर ए। मैं कहाँ ए चौपाई ल अपन बर लागू कर सकत हौं...फेर एकर उदाहरण प्रस्तुत करे के एके कारण ए, एके अर्थ लगाये जाय के, मैं गुरुदेव के ऋण से कभू उऋण हो सकौं।
आज छंद परिवार के समर्पित साधक के बात करे जाय त मोर बड़ मयारुक चोवाराम वर्मा "बादल" भैया के नाव ल सबले आगू रखिहौं। प्रकांड विद्वान, चार चार विषय म स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त, बड़ मिलनसार वर्मा समाज के प्रतिष्ठित अउ प्रांतीय अध्यक्ष। सबले इंखर खासियत विनम्र स्वभाव।साहित्य प्रेमी। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के सातों कांड के गहन अध्ययन करइया, केवल अध्ययन भर नहीं ओकर टीकाकार घलो। आज छंद परिवार उंखर ले गौरवान्वित हे। उंखर सतत साधना के नतीजा आय के उंखर तीन किताब "छंद बिरवा", रउनिया जड़काला के, दूनो पद्य अउ कहानी, लघुकथा, व्यंग्य संग्रह जुड़वा बेटी प्रकाशित हो गे हे। दूनो ल पढ़ डरे हँव। अतके तक सीमित नइयें। अनेकों सम्मान इनला मिल चुके हे। सम्मान के लंबा लिस्ट ल ए मेरन नई मड़ावत हँव। इंखर किताब के पीछू डहर दे हवय। किताब के फोटू मड़ावत हौं ओमा देखे जा सकत हे।
दूनो कालजयी रचना बन गे हवँय। अइसने उंखर कलम बिन रुके रेंगत रहै, माँ शारदा उंखर ऊपर हमेशा छाहित रहँय इही शुभ कामना हे। छंद बिरवा ल पढ़े बहुत दिन हो गय। अभी अभी उंखर कहानी, लघुकथा, व्यंग्य, अउ लेख संग्रह ल पढ़ेंव। कोनो लघुकथा, कहानी, लेख, व्यंग्य अइसे नई होही जेला पढ़ के आदमी आनंदित नई होहीं। मोला त साच्छात अइसे लगथे चोवा भैया मोर आगू म बइठ के सुनावत हें। अपन मिठ मिठ बोली म। अउ मैं सुनत भर नइ अँव घटना ल अपन सामने होवत देखत हौं चाहे इंसानियत के अर्थी निकालत ड्राइवर के पिटाई वाले कहनी, "इंसानियत के लाश" होय या किताब के शीर्षक वाले कहनी, "जुड़वा बेटी" चाहे एक गरीब छेरी चरवाहा के अपन टूरा के पिटई करके ओकर खेले कूदे के दिन म ओला काम बूता म फँदई वाले कहनी "गौरव"; पढ़ के मन भर जथे। आँखी ले अपने अपन आँसू झरे लगथे। आज के नारी मन बर, उंखर हौसला बढ़ाये बर "अति के अंत" एकदम फिट बइठथे। अतके नहीं धन्य हे वो बाप; बेटा के मया म अँधरा बन के नई रहय। अपन बेटा के चरित्तर ल जानथे। एक नवा नवेलिन बहू के इज्जत लूटे बर आबरू होय खातिर बेटा के हत्या होय के बावजूद भी हत्यारिन बहू अउ ओकर पति ल जेल से छोंड़वा के उंखर घर बसइया अइसन बाप आज के जमाना म कोन होही। ओइसने लघुकथा "बुधवारो" हवय। हमर समाज, समाजे भर के बात नोहै, जन सधारन घलो, काकरो शारीरिक बनावट म काँही खामी ल देख के ओला हिकारे, या चिढ़ाए बर पाछू नई रहँय। संबंध बनई के त बात छोड़ौ। मगर ए बात मरद बर लागू होवत नई दिखै। कतको लँगड़ा लुलवा रहँय जमीन जयदाद देख के या कमैया देख के ओकर बिहाव होइच जथे। ए बुधवारो एकरे शिकार हे ए कहनी मा। सबले बड़े बात हमर भाखा म बादल भैया के लिखे के जउन कला हे, भाव ल अपन शिल्प म निखारथें, अद्भुत हे। कविता के रूप म कथन कइसे छूट सकत रहिस। छत्तीसगढ़ी कहानी किरिया म देखौ..." मोरो स्कूल के जम्मो गुरुजी मन शिक्षा कर्मी आँय। सब बेहाल हे, बिगड़े चाल हे। कुछु बोलथौं तहाँ ले मोर काल हे"। ए बात आज के सरकारी स्कूल के दशा बयान करथे। जम्मो कहानी किस्सा व्यंग्य एक से बढ़के एक हे। 'सबक' शीर्षक ल पढ़ के मैं चिटिकुन रबक जथौं। अइसे लगथे मोरे घर के घटना त नोहै। फरक अतके हे इहाँ मोर असन मूरख तको ढोंगी के जाल म फँसे के नजदीक पँहुचे रथे के गोसइनिन डेना ल धर के तीर देथे त बाँच जथे। भाई हो जम्मो कहनी के सार ल इहाँ मढ़ा देहौं त पाठक मन ल पढ़े के ओतेक आनंद नई आही। बस थोकिन हमर ठेठ छत्तीसगढ़ी के दू चार शब्द के मायने किस्सा के तरी म लिखा जतिस त समझे बर सरल हो जतिस। ओइसे बुद्धिजीवी मन बर समझना कठिन नई ए।ए उंखर दूसर कालजयी रचना ए।
परम आदरणीय चोवा भइया अइसने निरंतर लिखत रहँय। साहित्य के सेवा करत रहैं। उंखर जस चारो मुड़ा फइलत रहै, न केवल राज म, देश म बल्कि पूरा जग म।
उनला हिरदे ले शुभकामना देवत..
सूर्यकान्त गुप्ता
जुनवानी भिलाई(छ.ग.)
7974466865
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