*बदला* ( छत्तीसगढी कहानी)
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
*पार्षद पति घर ले जल्दी-जल्दी बाहर निकलिस। बदला लेहे के एकर ले अच्छा मौका नि मिलतिस! पाछू-पाछू नौकर हाथ म डंडा ले के भागिस! एही ला कहिथें- खग जाने खग की भासा!...... मालिक का चाहत हे एला चौबीस घंटा ओकर संग म रहइया नौकर ले जादा अउ कोन समझ पाही?*
( 1 )
पार्षद पति संतोष यादव अपन वार्ड म बहुतेच लोकप्रिय रहिस। रात के 12 बजे घलो वार्ड के रहईया मन ओला फोन करें त ओमन के समस्या ला ओहर हल करे के कोशिश करे। काम करना एक बात हे अउ लोगन मन ला खुश करना दूसर बात। शिकायत तो शिकायत ए, रहिच्च जाथे!
एक दिन रात के एक बजे अशोक टंडन के फोन आइस कि ओखर घर के बिजली गोल हो गे हे। पार्षद पति बोलिस कि भैया ठीक करावत हौं, चिन्ता के कोनो बात नि हे। ओ समय आँधी-तूफान चलत रहिस। फोन करे के बाद टंडन जी सुत गे अउ पार्षद पति फोन म बिजली विभाग के अधिकारी मन करा सम्पर्क करे के कोशिश करे लगिस, फेर बात नि हो पाइस। एक घंटा बाद जब पानी गिरना रूक गे तब अपन स्कूटर म बिजली आफिस गइस।उहाँ एक झन लाइनमैन बइठे रहे। लाइनमैन बतइस कि एक ठिन पेड़ बिजली तार उपर गिर गेहे हे, तेकरे कारण वार्ड के आधा हिस्सा म बिजली बन्द हे, सुधार के काम कलेच हो पाही! पार्षद पति अशोक टंडन ला सूचना देहे बर फोन करिस फेर ओखर मुबाईल बन्द रहे।
. एक सप्ताह बाद वार्ड म समस्या निवारण शिविर लगे रहे। अशोक टंडन तो खार-खाय बइठे रहिस। चालीस-पचास लोगन के बीच गुस्सा म बोलिस- इहाँ पार्षद पति के का काम हे? पार्षद महोदया ला बुलावा! दिन-दिन भर बिजली गोल रहिथे। कोनो ला कोई फिक्र नि हे। शिकायत करौ तब भी कोनो ध्यान नि दें!....... घरेलु महिला मन-ला घरेच्च के काम करना हे त पार्षद काबर बनथें!.......ओ दिन अशोक टंडन के उग्र रूप अउ पार्षद पति के गुस्सा ला देख लोगन मन अकबका गिन। ये तो अच्छा होइस कि दुनों के बीच मारपीट होवत-होवत रहि गे!
. संतोष यादव वार्ड म पार्षद रह चुके हे। नगर निगम के पिछला चुनाव म महिला आरक्षित सीट होय के कारण संतोष यादव अपन घरवाली ला चुनाव लड़वाइस अउ ओहा जीत गे। एक साल बाद नगर निगम के चुनाव फेर होवइया हे अउ अबकी बार वार्ड नं 17 महिला आरक्षित नि होही त सत्ता पक्ष ले ओला टिकट मिले के पुरा उम्मीद हे। वास्तव म संतोष यादव के महत्वाकाँक्षा नगर निगम के महापौर बने के हे फेर एकर बर ओला पार्षद के चुनाव जितना परही!..... लोगन मन के दिन-रात काम करे के बाद घलो पाछू ले कोनो पार्षद पति कहिके ब्यंग्य करथे त ओला बिछी के डंक जइसे चुभथे। अशोक टंडन के ताना ह दिल के अंतस म हमा गे।
. ( 2 )
शनिच्चर के दिन पार्षद पति के घर तीर सब्जी बाजार भरे। सुबेरे सात बजे ले लेके रात के नौ बजे तक गहमागहमी रहे। पाकिटमार मन घलो अपन बूता म लगे रहें! हर हप्ता कोनो-न-कोनो के या तो मोबाईल चोरी होय या फिर पाकिटमारी!
संतोष यादव रात देर तक वार्ड के कुछु-कुछु बूता म लगे रहिस। एकरे सेती सुबेरे नींद नि खुल पाइस अउ आठ बजे उठिस।
`` अरे रामू, कहाँ मर गे ? गइया-बछरू ला बाहिर बाँध दे अउ अँगना के सफई कर।महापौर घर आने वाला हे।
- ठीक हे मालिक।
थोरकुन देर बाद पार्षद पति के आवाज फेर सुनाई परिस- रामू, गइया तीर म काकर स्कूटर खड़े हे?
- मालिक, अशोक टंडन के स्कूटर ए। दूरिहा फेंक दो का?
- तैं काबर फेंकबे बुरबक! तोर करा लड़े हे का? स्कूटर उपर नजर रख अउ जइसे टंडन आही, मोला खबर करबे!
बदला भंजाय के बढ़िया मौका मिल गे। पार्षद पति के भीतर के गुस्सा उबाल मारे लगिस।.....स्याले ला आज सबक सिखाबेच्च करहूँ!
. ( 3 )
- मालिक टंडन आ गे हे अउ अपन स्कूटर मेर खड़े हे!
पार्षद पति घर ले जल्दी-जल्दी बाहर निकलिस। बदला लेहे के एकर ले अच्छा मौका नि मिलतिस! पाछू-पाछू नौकर हाथ म डंडा ले के भागिस। एही ला कहिथें- खग जाने खग की भासा!...... मालिक का चाहत हे एला चौबीस घंटा ओकर संग म रहइया नौकर ले जादा अउ कोन समझ पाही? रामू मने-मन म गुनत रहिस- मोर हीरा असन मालिक करा लड़हि त आज एक-दू डंडा पेलाबेच्च करहूँ!..... जेल जाय ल परहि-त-परहि फेर टंडन ला आज सबक सिखाबेच्च करहूँ!
घर ले बाहर निकलिस त पार्षद पति देखथे कि अशोक टंडन ओकर गइया-बछरू ला मूली के भाजी अउ केला खवावत हे। ओकर चेहरा म पीरा के भाव स्पस्ट झलकत रहे। ओकर कातर दृष्टि अउ आँखी म आँसू देखके पार्षद पति के गुस्सा अउ खीझ धरती के अंतस म हमा गे।
- का होइस टंडन भाई?
चल घर म चाय पीबो।
- नहीं भैया, चाय नि पियों। परसों रात बिहान-पहाती बेरा म मोर गइया अउ बछरू ला एक ट्रक ह टक्कर मार के भाग गे! सबेरे गइया ला चरे बर ढीले रहें।
- पुलिस म रिपोर्ट करे का? चौक के सीसी टीवी फुटेज म ट्रक के पता चल जाही।
- पता लगा के का करिहौं भैया? गइस तेहर तो लउट के नि आय। ओ दिन बिना मतलब तोर उपर गुस्सा हो गे रहें, माफी देबे भैया!
- ठीक हे भैया, चार बरतन एके मेर रहिथे त टकराबेच्च करथें!
- *डाॅ विनोद कुमार वर्मा*
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समीक्षा---
ओम प्रकाश अंकुर:
आदरणीय विनोद वर्मा जी आप मन पार्षद पति अउ एक नागरिक के बैर ल अपन कहानी के माध्यम ले सुघ्घर सकारात्मक मोड़ दे हौ । कहानी" बदला "के माध्यम ले जिहां आज के सरपंच पति, पार्षद पति के दखल के ठोसहा वर्णन करे हौ। कतको बेरा कइसे गलत फहमी हो जाथे यहू ल बताय हौ। कई बार तमतमाय ले बात ह बिगड़ जाथे । जन प्रतिनिधि मन के सनमान घलो जरूरी हे।काबर कि इही मन आज के भगवान हरे। इंकर मन ले का बैर करबे तेकर सेति एक नागरिक ल ही संवासे ल पड़ही इही म भलाई हे। भले समस्या ह सुरसा सहिक अपन मुख ल
फइलात राहय। राजा अउ बैद/ डाक्टर मन ले दुश्मनी करबे त नुकसाने होथे। तेकर सेति एक नागरिक ल ही नरमाय ल पड़थे। बदला ह बने संदेशप्रद कहानी हे। मानलो स्थिति परिस्थिति वश गुस्सा होगे हन अउ अहसास होइस त वोला स्वीकार कर लेय म ही भलाई हावय। ये बात ये कहानी म बने उभर के सामने आय हे। भाई चारा के सुघ्घर संदेश हे ।एक सुघ्घर कहानी बर वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।🌷🌷🌹🌹
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पोखनलाल जायसवाल:
सबले बड़े लोकतंत्र के बड़े विडंबना आय कि आज सत्ता मिले पाछू सत्ता के दुरुपयोग बाढ़ गे हे। आरक्षण के चलत नारी शक्ति पद म विराजथे तो, फेर सत्ता के चाबी पुरुष तिर पहुॅंच जथे। कारण कुछु रहाय। आगी ले ॲंगरा जादा तपथे। यहू बात आय कि जे तपथे ते खपथे घलव। पाॅंच बछर बीते म अइसन के कोनो पुछारी नि रहय। फेर ए पाॅंचेच बछर म क्षेत्र अउ समाज के दशा अउ दिशा दूनो अइसे बदल जथे, जेकर कल्पना नइ करे गे राहय। ए विचारणीय हे। इही दिशा म ताना मारत कहानी के कथानक बढ़िया हे।
सत्ता के मद म कतको तो मानवीयता ल भुला जथे। सत्ता के लपट म रहे के लालची लगवार मन आगी लगाय के एको मउका नि छोड़य।
बात तो तब हे जब अपन अंतस् ल एक पइत ठंडा दिमाग ले झाॅंकन। काबर कि कखरो अंतस् निर्मल होथे। खोट तो मनखे के लालच अउ सइता नि रहे ले मनखे के अंतस् ऊपर पड़े मइल आय। जेकर छटत भर के देरी रहिथे। मन बिल्कुल साफ हो जथे।
भाषा प्रवाह बढ़िया हे। शीर्षक मोला कहिनी के प्रतिनिधित्व करत नि लगत हे। बदला के भाव भी कहानी म नि आय हे। कहूॅं टंकण त्रुटि तो नइ होगे हे। बाकी शीर्षक चुने के अधिकार रचनाकार ल हे।
सकारात्मक संदेश देवत कहानी बर आद. विनोद वर्मा जी ल अंतस् ले बधाई 💐🌹🙏😊
पोखन लाल जायसवाल
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