Monday, 15 April 2024

लघुकथा,दोस्ती के फर्ज

 लघुकथा,दोस्ती के फर्ज

---------------------

बहुत पहिली के बात आय एक गाँव में दो भाई रहय बड़े भाई सुखीराम अउ छोटे भाई  ध्रुव प्रसाद , दोनों में राम लक्ष्मण जइसे जोड़ी रहिस।गांव दू ठन गुट में बंटे रहिस।

एक ठन गुट गौटिया  मन के अउ दूसर गुट  छोटे किसान  मन के।

त एक  बिहाव के नेवता मिलिस ओ नेवता छोटे भाई के दोस्त के रहय।बड़े भाई ल पूछिस कइसे करंव भैया  बिहाव में  जाय बर।बिहाव हमर विरोधी खेमा के लइका जउन मोर मित्र आय ओला मैं कहे हंव मैं तोर बिहाव में जतुर हूं।त अपन वादा ल  निभाहूँ ।लेकिन ओ मन जउन साधन में जाही ओमा मैं नइ जॉनव काबर कि ओ मन नइ लगय ये खेमा के लोगन मन ला।त मैं अपन साधन में जाहूं।ओ समय साइकिल ककरो ककरो घर भर रहय ,मोटर गाड़ी के जमाना नइ रहिस,बइला गाड़ी में सब बरात जावय। त बड़े भैया कहिस तुंहर लइका लइका में दोस्ती हवे ओ काबर छुटहि बड़े मन के विवाद अपन जघा हे।जा तँय बिहाव में शामिल होबे।त ये  बता  कइसे जाबे ,त छोटे भाई झटकुन कहिस मैं जबान दे हंव  त मैं रेंगत चल देहुँ फेर जाहूं जरूर । फेर बिहाव में संघरे बर रेंगत चल दिन।जब ओ गाँव में पहुँचिस  तब बहुत रात हो गय रहिस,पूछत ओ बिहाव घर मे गिस अउ पानी पी के बिना खाय  सुत गए। थकान में नींद  झटकुन पड़गे।

बिहनिया कुन सब देखिन त सब सोंच में पड़ गय ये विरोधी खेमा के बाबू ह कइसे अउ काम अउ कतका बेर आइस हवे।जब नींद से उठिस त बोलिस कि मैं रेंगत अपन  सँगवारी के बिहाव में आय हंव  जुबान जो दे रहेंव न।फिर दूल्हा बने उकर सँगवरी  जब अपन सँगवरी ल अपन बिहाव में आय देखिस त बिकट ख़ुश होइस अउ अपन सँगवारी धुवप्रसाद ल अपन गले से लगा लिस।अउ कहिस आज तँय पूरा गाँव  दू खेमा में बंटे हे तभो मोर दोस्ती खातिर   ककरो परवाह करे बिना आ गए।मोर दोस्ती के लाज अउ मान रख लेव।

जाय के बेरा अपन बइला गाड़ी मा बिइठा के लानिस।अउ पूरा गांव में चर्चा  होइस कि येला कहिथे दोस्ती अउ  जुबान के पक्का होना।

रचनाकार-डॉ तुलेश्वरी धुरंधर, अर्जुनी ,बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment