Monday, 15 April 2024

कहानीकार डॉ. पदमा साहू *पर्वणी* खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य “बिंदा “

 कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य


                      “बिंदा “


छै बछर पहिली के बात आय। स्कूल खुले महीना भर होय रिहिस। साहू बहिनजी लइकामन ल रोज खेल-खेल मा जोड़ के पढ़ाय के चालू करे रहिस। आज साहू बहिनजी लइकामन ल स्कूल मा “कोन का बनही?” खेल खेलावत रिहिस। गोल घेरा बना के ओसरी-पारी लइकामन ल साहू बहिनजी पूछत गीस –राधा तें का बनबे?, गोंदा तें का बनबे?, माया तें का बनबे? रमेश तें का बनबे? राधा कहिथे में मैडम बनहूँ, गोंदा कहिथे डॉक्टर बनहूँ, माया कहिथे में पुलिस बनहूँ। रमेश कहिथे किसान बनहूँ । सबों लइकामन ल अइसने पूछत गीस लइकामन उत्तर देवत गीन। अब बिंदा के पारी आगे बहिनजी कहिथे – "तें का बनबे बिंदा?"

बिंदा झट ले कहिथे –“मैडम में पायलट बनहूँ।”

साहू बहिनजी कहिथे –"पायलट कोन ल कहिथे जानथस बिंदा।"

बिंदा कहिथे –"हाँ, हवई जिहाज के ड्राइवर ल। मैडम हमर स्कूल के ऊपर ले कभू-कभू हवई जिहाज उड़थे न त हमन देखथन।"

साहू बहिनजी बहुत सुघ्घर कहिके लइकामन ले ताली बजवाईस।लइकामन अब्बड़ खुश होगीन। अउ स्कूल के छुट्टी घलो होगे।

      रोज अइसने खेल-खेल मा जुड़ के गाँव के सब लइकामन मन लगा के पढ़ें अउ स्कूल आवँय। साहू बहिनजी कक्षा चौथी अउ पाँचवी ल पढ़ाय। चौथी पाँचवी के सब लइकामन बने सुग्घर-सुग्घर दिखैं। नोनीमन बनें अपन चुंदी मुड़ी ल कोर गाँथ के आवैं फेर बिंदा निच्चट जकड़ी भूतही कस आवय।

        बहिनजी एक दिन बिंदा ल अपन ऑफिस मा बुला के कहिथे –“कस बिंदा तुंहर घर तेलफूल नइ हे वो, तोर चुंदी मुड़ी ल कोरइया गंँथइया नइ हे वो। देख तो कइसे दिखत हस अउ रोनहू-रोनहू काबर रहिथस।” 

बिंदा मोर घर मा मोर मुड़ कोरइया, बेनी गँथइया कोनों नइ हे मैडम कहिके भागत कक्षा मा चल देथे। फेर बिंदा पढ़ई मा अपन कक्षा पाँचवी मा होशियार रहै। जइसन नाम तइसन गुन, बिंदा बहुतेच बिंदास। बिंदा के गुन दिब्य रहे उत्ताधुर्रा उत्तर देवय बहिनजी पढ़ाय पाठ के कोनों प्रश्न पूछे त। गरीबघर के लइका होय के खातिर वोकर तीर कापी, कलम नइ रहय त साहू बहिनजी वोला कापी कलम घलो लेके देवय। 

       बिंदा रोज स्कूल आवत रहिस फेर धीरलगहा वोकर स्कूल अवई कम होय लगीस। बहिनजी अपन कक्षा मा जाय त सब लइकामन ल रोज देखे फेर बिंदा ल दू दिन देखे चार दिन नइ देखे त वो संसो मा परगे कि बिंदा तो होशियार लइका हरे फेर रोज स्कूल काबर नइ आवत हे। वोकर ले रहे नइ गीस त कक्षा मा एक दिन लइका मन ले पूछिस–“बिंदा कइसे रोज स्कूल नइ आवय रे कहाँ जाथे, का करथे? दू दिन आथे चार दिन नइ आवय।”


लइकामन कोनों बतइन कि बिंदा के दाई–ददामन अलग–अलग रहिथें अउ बिंदा अपन आजीदाई के संग रहिथे। कोनो कहिथे गाँव गेहे, कोनो कहिथे दूसरा घर काम करे बर जाथे, फलाना ढेकाना।”


बहिनजी कहिथे– “होगे-होगे बेटा हो, बिंदा आही त मोला बताहू न।” कहिके लइका मन ल पढ़ा के बहिनजी कक्षा ले चल दीस ।

        इतवार के छुट्टी के बाद सोमवार के बिंदा ल स्कूल मा देख के साहू बहिनजी प्रार्थना के पाछू वोकर तीर मा जाके अकेल्ला मा पूछथे –“बिंदा कइसे तें रोज स्कूल नइ आवस? तोर पढ़ई के अब्बड़ नुकसान होवत हे । का बात हे मोला बता न।” बिंदा के आँखी वाेकर दुःख दरद ल बोलत रहिस फेर वोकर जुबान बोल नइ पावत रहिस।


बहिनजी कहिथे –“बता न बिंदा का बात हे, तें स्कूल नइ आवस त जाथस कहाँ, करथस का?”


बिंदा रो के कहिथे– में काबर गरीब हों मैडम?


बिंदा के बात ल सुन के साहू बहिनजी अकचकाके का होगे बिंदा कहिके पूछथे।


बिंदा अपन आँसू ल पोछत कहिथे– “हमन गरीब हन, गरीबमन नइ पढ़े, तोला रोज स्कूल जाय के काम नइ हे कहिके मोर ददा हा मोला झन पढ़ कहिथे। दू दिन स्कूल जाबे चार दिन मोर तीर रहिबे अउ गरीब घर जनम ले हस त काम करे ल परही कहिके अपन जघा राजनांदगाँव ले जथे मैडम ।” 


“त उहाँ जाके का काम करथस तें हा।” बहिनजी पूछीस 


कुंँअर मन के लइका बिंदा सुसक-सुसक के कहिथे–“ददा मोला दूसर घर झाड़ू पोछा, बर्तन करेबर काम मा भेजथे मैडम। मोर ददा दूसरा दाई (माँ) रख ले हे वहू हा मोला घर के काम बुता कराथे। अउ तो अउ मोला बिकट मारथे। अउ बने ले खाय पीये बर घलो नइ देवय। में पढहूँ कहिथों त पढ़न घलो नइ देवय। आज लाके घर छोड़े हे त स्कूल आय हंँव मैडम।”

बहिनजी कहिथे –“तोर सगे दाई कहाँ हे ? वोकर तीर काबर नइ राहस?”

बिंदा कहिथे –“मोर ददा दूसर दाई ला लेहे अउ मोर दाई ल घर ले निकाल दे हे त छोटे भाई बहिनी ल धर के रसमड़ा मा रहिथे अउ रोजी मंजूरी करथे। मोला आजीघर छोड़ दे हे।”

साहू बहिनजी कहिथे –“अब तोर ददा तोला लेगे बर आही न त पहिली मोर तीर भेजबे, बहिनजी स्कूल मा बुलाय हे कहिके। तें वोकर संग झन जाबे। ठीक हे। जा कक्षा मा बइठ रो झन बेटी अउ रोज स्कूल आबे। पढ़बे लिखबे तभे तो पायलट बनबे। तें पायलट बनहूँ कहिथस न।” अतका ल सुनके बिंदा थोरिक सहारा पाय बरोबर अपन आप ल सम्हालथे। फेर कब मोर ददा आ जही अउ कब मोला फिर से ले जही कहिके सोचत कक्षा मा चल देथे। 

       बिंदा दू दिन सरलग स्कूल आइस तीसर दिन वोकर ददा रवि वोला लेगे बर आगे, वहू स्कूल मा  अउ बहिनजी ल बिना बताय चोरी छुपे बिंदा ल लेगत रहिस। त लइकामन बहिनजी ल बतइन। बहिनजी बिंदा के मर्जी के बिना वोला वोकर ददासन नइ जावन दीस अउ रवि ल धमका-चमका के भगा दीस। बहिनजी बिंदा के आजीदाई ल बुला के बिंदा ल अब वोकर ददासन झन जावन देबे कहिके समझाइस।

बहिनजी ल बिंदा के आजीदाई कहिथे –“अमीर के सब होथे बहिनजी गरीब के कोनों नइ होवय। फेर तें बिंदा के ददा ल बरजे हस अब वो हा थोर बहुत डर्राही। हमन कतको काहन तभो ले बरपेली आके ले जावय। कोनों बरजइईया घलो नइ राहय। तें अतका कहे हस वोतका गजब हे दाई दूधे खा दूधे अंँचो वो।"


साहू बहिनजी कहिथे –"स्कूल के लइका हमर लइका हरे त अतका तो हमर फरज हे दाई।"


बिंदा के आजीदाई बहिनजी ल कहिथे–"चंडालीन येकर दाई येला देखे बर घलो नइ आवय। का करही वहू बपरी दुखियारीन येकर ददा के मारे दू झन लइका ल धर के पापी पेट बर एती ओती भटकत फिरथे। बिंदा ल बने पढ़ाबे बहिनजी में वोला रोज स्कूल भेजहूँ।" अतका कहिके बिंदा के आजीदाई घर चल देथे।

       बहिनजी के आसरा पाके अब बिंदा बने सरलग स्कूल आवय पढ़े लिखे। फेर थोरिक दिन के पाछू वो लइका के स्कूल अवई कम होगे अउ जब स्कूल आवय त गुमखाय रेहे रहय अउ पढ़ई मा मन नइ राहय। वोकर हाथ गोड़ मन छोलाय कस त जरेकस लाल-लाल दिखय। बहिनजी बिंदा ल पूछ परिस–“बिंदा तोर हाथ गोड़ लाल-लाल छोलाय-असन घाव कस काबर दिखत हे?” बिंदा के तन के घाव ले जादा मन के घाव हे जेन ल कोनों नइ जानत रहिन। बिंदा के मन भारी होगे फेर वो कुछु नइ कहिस। साहू बहिनजी बालमन के दुख ल समझ गीस अउ छुट्टी ले घर गीस तभो बिंदा बर संसो करे लगीस।  

         दूसर दिन बहिनजी कक्षा मा जाथे त देखथे बिंदा स्कूल नइ आय हे। अइसने-अइसने अब दू दिन, चार दिन हफ्ता भर होगे बिंदा स्कूल आबे नइ करत हे। अब बहिनजी ल संसो होगे अउ वो आज बिंदा घर चल दीस। गीस त देखथे नानचून झोपड़ी मा बिंदा के आजीदाई खटिया मा परे हे बोलत गोठियावत भर हावय। लोकवा मार दे हे त हाथ गोड़ चलत नइ हे। उही कर बिंदा के छोटे भाई बहिनी माछी झूमत चोरो-बोरो खेलत खात परे रहिन। फेर बिंदा कोनो डाहर नइ दिखय त बहिनजी पूछीस –“बिंदा कहाँ चल देहे दाई। स्कूल काबर नइ आवय?” 

        बिंदा के आजीदाई अपन करम ल दोष देवत कहिथे – “हम गरीब मन का करम करे रेहेन ते फूटहा भाग धर के जनम ले हन बहिनजी।  दुबर ल दू अषाढ़ होगे हे। ये नान्हे-नान्हे लइकामन ल देखत हस येकर दाई संसो के बीमारी अउ भूख के आगी मा जर के दुनिया ल छोड़ दीस। लइका मन तीड़ी–बीड़ी होगे हे। घर मा कोनों कमइया नइ हे त बिंदा अपन बुढ़वा आजाबबा सन ठेला पेले बर, ईंटा भट्ठी मा काम करे बर जाथे। पढ़ई ले जादा पेट के भूख मिटाना जरूरी हे बहिनजी। सरकारी चाउर मा पेट नइ भरय नून मिरचा बर तो काम करे बर परही। बिंदा के ददा ल तो जानतेच हस वोकर ले अब कोनो रिश्ता नइ हे। अब नानचून बिंदा ल हमर गरीबी बड़े बना दीस बहिनजी। अपन छोटे भाई बहिनी अउ मोर महतारी बनके सेवा जतन करथे। अपन कुंँअर–कुंँअर हाथ मा गरम-गरम ईंटा पथरा ल उठा के मजदूरी करथे त हमर मन के जिनगी चलाय बर दू पइसा हाथ मा आथे। अइसन गरीबी के दुःख भगवान कोनो ल झन देखावय दाई।”

          वोतकेच बेर बिंदा अपन आजाबबा सन घर मा पहुँचथे। वो बहिनजी ल देखके रो डरथे। बहिनजी बिंदा के फूल असन हाथ मा बड़का-बड़का फोरा ल देखत कहिथे तोर हाथ गोड़ इही कमई के सेती लाल-लाल दिखय बिंदा फेर तें नइ बतावत रेहेस। बिंदा के जब्बर दुःख अउ बचपना के अर्थी मा समय ले पहिली जिम्मेवारी के जवानी ल देख के बहिनजी के आँखी ले झरझर-झरझर आँसू बोहाय ल लगथे। काँपत स्वर मा बिंदा कहिथे –“हमन गरीब काबर हन मैडम? मोर दाई जल्दी काबर मरगे ? अब में पढहूँ कइसे ? में तो पायलट बनहूँ कहिके सोचंँव।” गरीबी के दंश ल देखत बिंदा के गोठ ल सुनके बहिनजी कुछु उत्तर नइ दे सकीस फेर कहिथे – “येकर उत्तर तोला खुद पढ़ लिख के खोजे ल परही बिंदा। बिंदा तें रोज स्कूल भले झन आबे फेर पढ़ई ल कभू झन छोड़बे। तें घर मा पढ़बे में तोला परीक्षा मा बइठाहूँ। जब तक हो सकही में तोर मदद करहूँ तें संसो झन करबे। तें अपन सोच ल मरन  झन देबे।” बहिनजी के बात ल सुन के नानचून समझदार बिंदा वोकर तीर मा जाके अंँचरा ल धर लेथे अउ बड़ रोथे। बहिनजी वोकर मुड़ी मा हाथ ल फेरत अपन घर चल देथे। 

          साहू बहिनजी बीच-बीच मा बिंदा के सोर खबर लेवत वोला कपड़ा लत्ता, कापी,पेन देवत रहिथे अउ परीक्षा के समय आथे त वोला परीक्षा मा बइठाथे, बिंदा पाँचवी पास हो जथे। कहिथे न गरीब घर के लइकामन लघियांँत बाड़ जथें अउ सुख सुबिधा के कमी मा परिवार के जिम्मेवारी ल समझ जथें। धीरे-धीरे बिंदा सुजानिक हो जथे। रोजी मजदूरी करके आगू बढ़थे। महतारी बनके छोटे भाई बहिनी के पालन-पोषन करथे। इही बीच वाेकर आजीदाई घलो भगवान घर चल देथे। त वोकर भार ह थोरीक कमतिया जथे। फेर बुढ़वा आजाबबा के कोरा मा रहिके वोकर संग मा काम करथे। फेर छाँव के जिनगी पाय बर तरस जथे। कभू परिवार के मन एकातकनी दया करके मदद कर देवँय। फेर बिंदा बेरा-बेरा मा साहू बहिनजी के पलोंदी पाके प्राइवेट मा पढ़ई करके बारहवीं तक के अपन पढ़ई ल पूरा करथे अउ हिम्मत रख के जिनगी के रद्दा मा पायलट बने के सपना ल धरे आगू बढ़थे।


कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

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