मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अउ भगवान श्री कृष्ण
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परमपिता परमेश्वर--सर्व शक्तिमान ईश्वर ह ए सृष्टि म नाना रूप म अवतार लेथे। वेद -पुराण म,हमर संत महात्मा, रिसि मुनि मन के मुखार बिंद ले ,अवतार लेये के अनेक कारण बताये गेहे। वो परमेश्वर ह जब -जब जेन प्रकार के जरूरत परथे उही प्रकार ले जन्म ले लेथे। इहाँ तक कि वो ह कछुवा, मछरी ,सूकर आदि के रूप घलो धर लेथे।वोकर नजर म कोनो जीव- जन्तु हिने के लइक नइये। तभे कहे गे हे कि--तुझमें राम मुझमें राम, सब में राम समाया है----। गोस्वामी तुलसीदास जी ह हाथ जोड़ के बंदना करे हे-
सिया राम मैं सब जग जानी।करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी।
भगवान के अनेक अवतार हे जेमा दस ठन मुख्य हे तेन म ओकर सातवाँ राम अउ आठवाँ कृष्ण के रूप म नरावतार हमर देवभूमि भारत के कन-कन अउ जन-जन के हिरदे म रचे बसे हे।
वर्तमान संदर्भ म ए दूनो अवतार के नर तन धरे के कारण अउ पावन चरित्र ल, देये शिक्षा ल जानना समझना बहुत जरूरी हे।
श्रीराम जन्म के कारण-----
गोस्वामी तुलसीदास जी ह राम जन्म के कारण ल बतावत लिखे हे कि -
जब जब होई धरम की हानि। बाढहिं असुर अधम अभिमानी ।।
तब-तब प्रभु धरि विविध सरीरा। हरई कृपा निधि सज्जन पीरा।।
विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गोपार।।
श्रीकृष्ण जन्म के कारण--
महाभारत के सिरजइया भगवान वेदव्यास जी ह लिखे हे-
भगवान कृष्ण ह अपन अवतार के कारण बतावत कहे हे कि--
यदा यदा धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम् धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।
ए दूनो अवतार के जन्म लेये के मुख्य कारण चरम रूप म नष्ट भ्रष्ट होये धर्म के रक्षा करके वोकर पुनः स्थापना करना अउ धर्म ल नष्ट करइया पापी, अत्याचारी मन ल मृत्युदंड देके ,खासकर नारी ,साधु, सज्जन ,दीन हीन मन के उपर अत्याचार करइया मन ल मारके , साधु संत ,सज्जन , विप्र ( पवित्र जीवन जियइया ज्ञानी मनखे), धेनु ( गउ माता जेन हमला अमरित के समान दूध अउ खेती किसानी बर बइला देथे,गोबर देथे), के रक्षा करके सुग्घर मानवता ल बँचाना आय।
श्री राम अउ श्री कृष्ण ल जाने बर उकर देये शिक्षा ल अपनाये बर--- *धर्म* ल जानना जरूरी हे। इहाँ धर्म के मतलब हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख, ईसाई, बौद्ध ,जैन , फारसी,यहूदी ---आदि नोहय। कोनो भगवान ह ए तथाकथित कलजुगिहा मनखे मन के बनाये धर्म के नाम नइ ले हें।
ऊँकर *धर्म*के मतलब तो मनुष्य के आदर्श आचरण जेला हमन "मानवता" कहिथन आय। दया -मया,क्षमा, करुणा, सत्य ,अहिंसा, पवित्रता, जियव अउ जियन दव के भावना , ककरो संग भेदभाव नइ करना ,न्याय ,सबके सम्मान करना, माता पिता के सेवा करना उँकर आज्ञा के पालन करना , गुरु भक्ति ,रिश्ता नाता ल यथायोग्य निभाना, ककरो हक ल नइ मारना, अपन होके जबर्दस्ती लड़ाई झगरा नइ करना फेर कोनो अतलंग करत हे त ओला नइ सहना भले प्रान रहे चाहे जाय, सत्य,न्याय के संग देना, अन्यायी मन के साथ नइ देना , सत्य , न्याय अउ नारी के अस्मिता के रक्षा बर हिंसा करे ल परय त पिछू नइ हटना ,भाई भतीजावाद नइ करना ,साफ, सुंदर स्वस्थ रहना , जंगल झाड़ी , नदी ,पहाड़ मतलब प्रकृति के रक्षा करना------- आदि जतका अच्छा मानवीय गुन हे , मनुष्य के चरित्र के जतका उज्जर पहलू हे, कर्तव्य कर्म हे इही मन असली धर्म आय। इही असली धरम ह मनखे ल अउ समाज ल सुख,शांति देथे। तभे *राम राज आथे।*
भगवान राम अउ कृष्ण ह एकरे स्थापना बर जनम धरे रहिन।इही उँकर नरलीला के शिक्षा आय।
आज के समे म श्रीराम अउ श्रीकृष्ण के शिक्षा,नरलीला के महत्व ---
वर्तमान समय म चारों कोती देख लव अधर्म के बोल बाला हे। हाँ अतका बात जरूर हे कि पाँचो अँगरी अभी एके बरोबर नइ होये हे।कभू-कभू, कोनो-कोनो मेर मानवता के ,धर्म के दिव्य दर्शन होवत रहिथे ।फेर अधर्म अउ अत्याचार बाढ़ गेहे। हत्या ,लूट ,डकैती ,बलत्कार सरे आम होवत हे ,राजनीति छल-प्रपंच ले भर गेहे, जात पाँत के भेदभाव खतम होबे नइ करत हे,नारी अउ गउ माता उपर रात-दिन अत्याचार होवत हे । हम सब ल दूध चाही फेर गाय ल पाले पोंसे बर जाँगर नइ चलत हे। पर्यावरण प्रदूषण बेतहाशा बाढ़ गेहे। बादर धूँगिया म भर गे हे।अत्याचारी असुर, निसाचर मन अँधेरा कायम रहे के नारा लगावत गली-गली ढिंढोरा पीटत हें।
तेकरे सेती पूरा मानव जाति अउ समाज दुख के सागर म बूड़त जावत हे।
अगर हम ला आज सुख शांति चाही त भगवान राम अउ श्रीकृष्ण के चरित्र ले शिक्षा लेके ,असली धरम ल अपना के जिये ल लागही। यदि हम अइसन कर लेन त निश्चित रूप ले राम राज आही, श्री कृष्ण के बँसुरी के मधुर तान चारों मुँड़ा सुनाही।आसा अउ बिंसवास म दुनिया टिके हे-----।
जय जोहार ।
चोवा राम वर्मा'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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