Saturday, 27 April 2024

बहू हाथ के पानी ‘ – खुशहाल घर परिवार के प्रतीक आय – पोखनलाल जायसवाल

 बहू हाथ के पानी ‘ – खुशहाल घर परिवार के प्रतीक आय – पोखनलाल जायसवाल


छत्तीसगढ़ी साहित्य दिनोंदिन गद्य साहित्य ले भरत जावत हे। पाछू कुछ बछर ले छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म बढ़िया लेखन होवत हे। पुरखा साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी साहित्य ल बड़ जतन ले सिरजाय हें। आज उँकर दे थरहा ले रोपे सजोर पउधा मन के फरे-फूले के दिन आगे हे। कुछ पुरखा मन सरग ले अशीष देवत हें, त कुछ मन छात-छात हाथ धरा के सिखोवत हें। अपन पुरखौती ल धरवट सहीं सहेज के रखे के लइक बनावत हें। गीत कविता के सकला (संग्रह) बड़ निकलत हे। स्वागत करे के हे, फेर इही मन थोरिक अउ मिहनत करके गद्य साहित्य के रद्दा ल चतवारहीं, त छत्तीसगढ़ी के मान अउ बाढ़े लगही। अभी गद्य साहित्य के धरवट कमती हे। ए कमती ल पूरा करे के जुम्मेदारी तो लिखइया मन के हे। जे लिखत हे, उँकरे ले आशा करे जा सकत हे। गद्य लिखे के उदिम करहीं त खुदे के विश्वास बाढ़ही। आज छपास बीमारी के चलत कुछ मन मिहनत ले बाँचे के उदिम करत हें, एकर ले भागत हें, घलव कहे जा सकत हे। गद्य साहित्य लिखे बर समय जादा चाही। कतकोन मन इही समय के रोना रोथें, अउ अपन क्षमता ल कम आँक लेथें। कुछ मन अपन कमजोरी ल छुपाय बर यहू कहे लग गेहें कि अब लोगन तिर पढ़े बर समय नइ हे। लम्बा-लम्बा कहानी अउ लेख ल पढ़े ले असकटाथें। क्रिकेट के पंडित मन आजो असली खिलाड़ी उही ल मानथें, जेन खिलाड़ी टेस्ट मैच खेल लेथे। वइसने सपूरन साहित्यकार बने बर पद्य के संग गद्य के चेत करे ल परही। कुछ गद्य साहित्य म काम तो होय हे, फेर डायरी ले किताब के शिकल म नइ आ पावत हे, यहू लागथे। छत्तीसगढ़ी पत्र-पत्रिका के कमती घलव ह एक ठन वजह हो सकत हे। साहित्य सिरिफ गीत कविता लिखई ह नोहय। यहू ल सबो लिखइया मन ल समझे ल परहीं। बेरा के संग लेखन के विषय ल बदलत समाज हित म लिखे के जरूरत हे। साहित्य अपन समे के समाज के रपट आय। कोनो समे के साहित्य ओ समे के समाज के बारे म जानबा देथे। अपन समे के समाज के उत्थान अउ समाज म व्याप्त बुराई अउ कुरीति मन के नाश बर लिखई साहित्यकार के धरम आय। पारिवारिक अउ सामाजिक चेतना बर लिखइया ल समाज हाथों-हाथ उठा लेथे। जब-जब कहानी अउ उपन्यास के बात आथे, कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद जी सुरता करे जाथे। मुंशी प्रेमचंद जी के बेरा म समाज म कतकोन समस्या रहिन। जेकर ऊप्पर उन खूब लिखिन। कथा-कहानी अउ उपन्यास के चर्चा प्रेमचंद के बिगन अधूरा माने जाथे। उँकर मुताबिक 'उपन्यास मानव के चरित्र का चित्रण है।' आजो कतकोन समस्या हें, स्वरूप भले बदले हे। किसान के पीड़ा, जात-पात, अमीर-गरीब, जइसे कतको किसम के असमानता अउ भेद समाज ल घुना सहीं खावत हे। बट्टा लगावत हे। आगू बढ़े ले रोकत हे। एकर ऊप्पर लिखे के जरूरत हे। लिखइया के मन हे त विषय के कमती नइ हे। रचनाकार पहिली समाज के इकाई होथे, एकर नाते वो समाज म रहिथ अउ समाज ल देखथे। समाज के जम्मो बात ले वो परिचित होथे। अइसन म अपन चिंतन ले समाज उत्थान बर कुछ सोच सकथे अउ कलम चला के समाज ल दिशा अउ गति दे के बुता कर सकथे।

        तुलसीदास जी मन अपन लिखई ल स्वांतःसुखाय जरूर बताय हें, फेर उँकर लिखना जग बर वरदान बनगे हे। आजो स्वांतःसुखाय लिखे म कोनो आपत्ति नइ हे। फेर स्वांतःसुखाय ले उबर के लिखे के बेरा हे। तुलसीदास जी के स्वांतःसुखाय ल अपनाय के जरूरत हे। आज स्वांतःसुखाय के मायने बदल गे हे या फेर लिखइया मन एकर भाव ल बदल डारे हें।

         जिनगी म मया परेम जरूरी हे। फेर मया-परेम के जउन गीत लिखे जाथे वो मन चरदिनिया आय। मन बहलाव आय। मया-परेम जिनगी म होना जरूरी आय, फेर एकर ले पेट नइ भरय। पेट भरे बर उदिम करना पड़थे। सब जानथें अउ मानथें। अइसन म लेखन निच्चट मया-परेम बस म समटाय-सनाय झन रहय।

        परिवार के जम्मो मनखे के पेट भरे के संसो घर के माई मुड़ी ऊपर रहिथे। पारिवारिक अउ समाजिक जिम्मेदारी घलव उँकरे मुड़ म रहिथे। एक कोति कन्या दान करथे तव दूसर कोति बहू हाथ के पानी पिए के साध घलव मरथे। मनखे के इही सामाजिक अउ पारिवारिक जुम्मेवारी के निर्वाह करत मनखे के मनोभाव ल उकेरे के बेरा हे। काबर कि आज घर-परिवार बिखरत जावत हे। समाज म बड़े दरार आगे हे। ए दरार दिनोंदिन परिवार ल सुरसा बरोबर लीले बर तियार हे। अइसने म रचनाकार अपन सामाजिक सरोकार निभावय त साहित्य सिरतोन म समाज के दशा अउ दिशा ल बदल सबके हित कर पाही।

      ‘बहू हाथ के पानी’ श्री दुर्गा प्रसाद पारकर के लिखे एक उपन्यास आय। जेकर कथानक अउ घटनाक्रम छत्तीसगढ़ के आरो देथे। इहाँ के सामाजिक तानाबाना अउ आर्थिक पहलू ल अपन भीतर समेटे हवय। अइसे भी उपन्यास ऐतिहासिक घटना नइ ते सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषय अउ विसंगति के संग साँस्कृतिक मूल्य मन ल समोखे रहिथे।

       छत्तीसगढ़िया के भलमनसाहत हे, दूसर के दुख पीरा ल अपन मान सहारा दे के ठगाय के चित्रण हे, त परदेशिया मन के चतुरई अउ ठगफुसारी ल वर्णन कर उँकर ले सावचेत रहे के संदेश हे। छत्तीसगढ़ ल चरागाह समझत इहाँ कतको चिटफंड कंपनी आइन अउ सब ल लूट भगागें। बाँचे रहिगे त पछतावा अउ नता-गोत्ता म अनबनता। अपने ले विश्वास टूटगे। पढ़ई-लिखई ले जिनगी कइसे सुधरथे एकर साखी हे ए उपन्यास। छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अउ बर-बिहाव ल लेके इहाँ के परम्परा अउ लोक मानता देखे बर मिलथे। देशभक्ति के भाव हे त लइकई मति म लइका मन ले होवय गलती, गँवई-गाँव म नशाखोरी, अंधविश्वास, रोग-राई के डक्टरी इलाज छोड़ बइगा-गुनिया के चक्कर, शहरी वातावरण के नकल करत खेती-खार ल बिगाड़ भेड़ चाल चलत कंगाल होवत छत्तीसगढ़िया के दुर्दशा के संग घर बँटवारा के पीरा अउ नता-गोत्ता सुवारथ के भेंट कइसे चढ़थे, ए सबो वर्णन मन ‘बहू हाथ के पानी’ ल अपन समे के चर्चित उपन्यास के श्रेणी म खड़ा करथे। बहू हाथ के पानी सुनतेच मन म एक साध अउ अभिलाषा जागथे। इही साध ल सँजोए दुर्गा प्रसाद पारकर जी के लिखे ए पारिवारिक उपन्यास के भाषा शैली म कथानक के हिसाब ले प्रवाह दिखथे। उपन्यास म आय जगहा के नाँव अउ गायत्री परिवार के संग पंथ छत्तीसगढ़ के परिवेश ल बतावत हे। छत्तीसगढ़ी के संग अँग्रेजी के शब्द मन के बढ़िया प्रयोग होय हे। मुहावरा अउ हाना मन के सुग्घर प्रयोग मिलथे। पात्र मन संग होय मुँहाचाही म व्यंग्य के सुर घलव दिखथे। संवाद मन म बढ़िया गढ़ाय हे। चरित्र मन के भाव बढ़िया ढंग ले उभरे हे। ए उपन्यास म नारी पात्र मन अतेक जादा उभरे हें, कि ‘बहू हाथ के पानी’ ल नारी-विमर्श के उपन्यास कहे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के नारी के सबो रूप के दर्शन पाठक ल ए उपन्यास म होही।

       सरला ए उपन्यास के मुख्य किरदार आय। जउन सुशील, सुसंस्कारित, समर्पण के मूर्ति, सुशिक्षित आधुनिक नारी के अगुवाई करथे। उहें निरुपमा बहू के जम्मो भलमनसई ल ताक म रख के अंधविश्वासी अउ अप्पढ़ सास के पात्र संग नियाव करत दिखथे।

       दुलारी धर्मपरायण, सास ससुराल के हितैषी, पतिव्रता, जमाना के संग चलइया विचारवान अउ साहसी नारी ए। हंसा घर के लाज ल सम्हाल करइया अउ सहनशील नारी के संग बड़ मिहनती अउ अपन परन पूरा करइया। बैसाखिन जइसन ललचहिन अउ स्वार्थी बहू के आय ले घर परिवार के सुमता सुलाव ल गरहन धर लेथे, घर के बिगाड़ तय हो जथे। त सरला जइसे सरल सुभावी नारी के रहिते घर सरग जनाथे अउ नता गोत्ता म मया-परेम के संग विश्वास घलव अपन जरी खोभे रहिथे। तब जाके कहूँ सियान मन कहिथे- ‘बहू हाथ के पानी’ पिए के साध अब पूरा होवत हे।

        कोनो सगा पहुना के आय ले जेन घर म स्वागत म ‘बहू हाथ के पानी’ मिलगे त समझव के वो घर खुशहाल हे अउ वो परिवार समृद्ध अउ संस्कारित परिवार आय। तभे तो बर-बिहाव म नइ आ पाय नता गोत्ता अउ परोसी मन कहिथे- ‘बहू हाथ के पानी’ पिए के आस म डहरचलती आय हन।

       छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के भूलभूलैया म छत्तीसगढ़िया कइसे भुलाय रहिथें, एकर घलव ए उपन्यास म बढ़िया चित्रण मिलथे। मुश्किल घरी म परदेसिया ल छइहाँ देवइया गउटिया कइसे अपने घर ले बेघर होगे अउ परदेसिया बलदाऊ कइसे चतुरई ले घर मालिक बन गे। 

       गउटनिन ल अइसन अलहन के डर सतात रहिस हे, तभे तो उन सावचेत करत कहे रहिन--परदेसिया मन ऊपर जादा भरोसा झन कर दाऊजी! फेर नइ माने। उहें कपटी परदेसिया बलदाऊ के अंतस् के गोठ ल देखव-

      'छत्तीसगढ़िया मन परबुधिया होथे, अपन दिमाक तो कभू लगाबे नइ करय। दूसर ऊपर झटकुन भरोसा कर लेथें।'

      आज देश भर छत्तीसगढ़ के नवा पहिचान बनत हे जउन गरब करे के लइक नइ हे। वो पहिचान बर कतको शर्मिंदा होवत हे। मंद महुआ पिये बर अव्वल बनत हें छत्तीसगढ़िया मन। अउ सरी गाँव के हाल बेहाल होवत हे। नान्हे लइका मन घलव एकर जाल म फँसत हें। यहू कोति उपन्यासकार के कलम चलना सराहनीय आय, बस समाज एकर ले मुक्त हो जय।

        इही मंद महुआ अउ बड़का घर दुआर के चक्कर म लोगन अपन पुरखौती चिह्नारी खेती बिगाड़े म तुले हें। करमइता जीव अलाल होवत हे ए संसो के संग चिट फंड के जाल म फँसे मनखे ल सावचेत करे के दिशा म 'बहू हाथ के पानी' नवा पीढ़ी ल उबारही कहे जा सकत हे।

        आज जब नवा पीढ़ी जेन ३५-४० बछर के हे वो नशा के दलदल म फँसे हे, उँकर लइका शिक्षा ले दुरिहावत हे। जबकि उन ल अनिवार्य शिक्षा के रूप म मुफ्त म किताब अउ स्कूल ड्रेस मिलत हे। उन तक शिक्षा के महत्तम अउ जरुरत ल बढ़िया ढंग ले रखे म ए उपन्यास के बड़ भूमिका रही। उँकर मुँदाय आँखी ल खोलही अइसे आशा करे जा सकत हे।

        ए किताब अपन उद्देश्य ल पूरा करे म सक्षम हे। उपन्यास के गोठ बात अउ मुँहाचाही ल पढ़के अइसे लगथे कि ए तो हमरे तिर तखार के किस्सा आय। बस प्रूफ़ रीडिंग के कमी के चलत ल पाठक के मजा किरकिरा हो जवत हे। ए बात ल अनदेखा कर दिए जाय त उपन्यास पारिवारिक अउ सामाजिक उत्थान बर मील के पत्थर साबित होही। प्रसंग अउ पात्र के मुताबिक संवाद गढ़ना अउ ओमा वो भाव उकेर लेना उपन्यासकार के लम्बा लेखकीय अनुभव के कमाल आय।

         ए उपन्यास ले धन-धान्य ले भले पूरे धरती के धनवान मनखे मन शहरी चकाचौंध म चौंधियाए अपन पाॅंव म कइसे घाव करथें? पुरखौती जमीन बेच भूमिहीन होय के रद्दा म बढ़थें। समझे जा सकथे। नशा के फेर म फॅंसे मन के लड्डू खाथें। हवा म उड़े लगथें। उनकर बर चेतवना हे। सांस्कृतिक अउ सामाजिक परंपरा के संग जमीन ले जुरे रहे के संदेश घलव ए उपन्यास म हावय। शिक्षा ले तरक्की मिले के गारंटी हे। नवा सोंच पैदा करे अउ विपत म घलव आशा के जोत बारे (जलाए) रखे के सकारात्मक संदेश हावय।


रचना- बहू हाथ के पानी

रचनाकार- दुर्गा प्रसाद पारकर

प्रकाशक- आशु प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष- 2022

पृष्ठ सं. 213

मूल्य- 250/-

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पोखन लाल जायसवाल पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग. 

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