मँय काबर लिखथंव ?-अरूण कुमार निगम
जब अपनआप ला पूछथंव -"मँय काबर लिखथंव" ? तब मोर मन कहिथे कि ये सवाल के उत्तर, उमर अउ अनुभव के संग मा बदलत रहिथे। उमर के संग-संग अनुभव घलो चलथे। सोच बदलत रहिथे। शुरुआती उमर मा धूम-धड़ाम वाला नवा-नवा गाना बने लगत रहिस। अब तइहा के जमाना के गाना मन सुहाथें।
बस वइसने नवा-नवा उमर मा अपनआप ला जताए खातिर कविता लिखई चलत रहिस। घर मा साहित्यिक वातावरण रहे के कारण साहित्य के रुझान होना स्वाभाविक रहिस। वो उमर मा प्यार, मोहब्बत, सुन्दरता, कोनो ला एक झलक देखई, रंग रंग के सपना, मिलन, जुदाई ….अइसने विषय मा तुकबन्दी चलत रहिस। नौकरी लगे अउ बिहाव होए के कुछ समय बाद दुनियादारी समझ मा आइस तब प्यार, मोहब्बत, सुन्दरता जइसन विषय-वस्तु बकवास लगे लगिस।
जउन दौर मा मोर जनम होइस वो समय संयुक्त परिवार, मोर-तोर ले अनजान मया, नाता, रिश्ता, मोहल्ला-संस्कृति के समय रहिस। मोर पीढ़ी समय के बदलाव ला देखिस हे। संयुक्त परिवार ला टूट के छोटे परिवार ला बनत देखिस हे। धुर्रा-माटी मा सनाय बचपन ला टिपटॉप सजे-सँवरे सूटेड-बूटेड बचपन मा बदलत देखिस हे। सरकारी स्कूल के झोला, पट्टी, हाफ-पेंट अउ सामूहिक पहाड़ा रटई ला नर्सरी, केजी वन, केजी टू, पीठ मा लटके वजनदार सुग्घर बस्ता, टिफिन बॉक्स, वाटर बॉटल, जॉनी जॉनी यस पापा अउ होमवर्क मा बदलत देखिस हे। ममा गाँव मा देवारी अउ गरमी के छुट्टी ला वीडियो गेम अउ मोबाइल गेम मा बदलत देखिस हे। खपरैल वाले छोटे से घर मा जउन सगा मन हफ्ता-हफ्ता रुकत रहंय वो घर पक्का अउ दुमंजिला होगे फेर सगा मन बर जघा के भारी कमी होगे। मन के मोल खतम होगे अउ धन के मोल होगे।
अइसन बदलाव मा संस्कृति, परम्परा के गिरावट, रिश्ता-नाता के टूटन, विकास के नाम मा विनाश देख देख के कलम के सुर बदलगे। अब कोइली के कुहुक के जघा रांय-रांय रेंगत कार, बाइक अउ प्रदूषित धुंगियाँ मा रंग-बिरंगा सपना मन कब अउ कहाँ गँवा गिन, पताच नइ चलिस। कलम विद्रोही होगे। जउन कलम सुराहीदार गर्दन, नागिन कस बेनी, चन्दा कस मुखड़ा, लचकदार कनिहा, चूरी के खनक अउ पैरी के झनक के चित्र खींचत रहाय, तउन कलम बागी होगे। कभू सुते मनखे ला जगाए बर चलत हे, त कभू अपन अनमोल संस्कृति अउ परम्परा के सुरता देवावत चलत हे।
मँय काबर लिखथंव ? एकर उत्तर नइ जान पायेंव फेर जब जब समाज कब विद्रूपता दिखथे, अन्याय दिखथे, कलम ऊपर हाथ के पकड़ मजबूत हो जाथे फेर कागज मा जउन बात उपक के आथे वोला कलम लिखवाथे, मँय कुछु नइ लिखँव। मोर जिनगी बर ये प्रश्न - मँय काबर लिखथंव ? अनुत्तरित रहिगे।
*अरुण कुमार निगम*
No comments:
Post a Comment