Thursday, 17 December 2020

मैं काबर लिखथँव?-चोवाराम वर्मा बादल

 *मैं काबर लिखथँव?-चोवाराम वर्मा बादल


नानकुन प्रश्न फेर उत्तर अतका कठिन के सोचत-सोचत चोबीस घंटा पहागे। सबसे पहिली प्रश्न ल पढ़े के बाद अइसे लागिस कि कोनो मनखे ल पूछे जाय कि तैं साँस काबर लेथस?  

   वो मनखे साँस लेथे तेनो अर्धसत्य हे काबर कि साँस ह बिन लेये तको अपने आप चलत रहिथे। वोइसने मोर लेखन तको हे। बचपना म साँस्कृतिक कार्यक्रम ,रामायण ,लीला ,नाचा-पेखन मन मा भाग लेवत गीत,कविता कब अउ कइसे लिखे ल धर लेंव पता नइ चलिस।

      रुचिपूर्वक अउ सोंच विचार के गद्य लिखे के प्रयास आज ले तीस पैंतीस साल पहिली छत्तीसगढ़ी भाखा म प्रहसन (मूल अधार जुन्ना लोक कथा) प्रस्तुत करे बर हम कुछ ग्रामीण नवयुवक मन द्वारा गठित " कलजुग के गोठ" नाटक संस्था ले होइस । मोर लेखन म पहिली बार देखे 'चँदैनी गोंदा' के अमिट छाप अउ अमृत संदेश म पहिली बार छपे 'परिवार' लेख के प्रेरणा ,प्रोत्साहन समाये हे।

     मैं काबर लिखथँव  ये बात ल सोंचेंव त मन म इहू बात आइस कि पहिली के साहित्यकार मन काबर लिखिन होही या आज के लेखक कवि मन काबर लिखत होंही ? कुछ न कुछ तो कारण जरूर होही? बिना कारण के कार्य नइ होवय। कोनो मन स्वांतः सुखाय बर लिखत हन कहिथें त कोनो मन अउ कुछु कारण ले------आज के युग म स्वांत सुखाय बर के झन लिखत  हे तेला भगवान जानय -----फेर हम तो जेन विचार उमड़थे तेला लिखथन ताकि अवइया पीढ़ी बर वो ह सुरक्षित हो जवय, कभू पुस्तक छप जवय,  पइसा -वइसा एको कनी भले मत मिलय फेर थोक बहुत नाम हो जवय। हमू ल लेखक कवि के रूप म दुनिया जानय। हम तो लोकेषणा के सेती लिखथन भइया, दीदी हो,सँगवारी हो।मैं काबर लिखथँव तेमा आधा आठ आना कारण इही हे। बाँचे खोंचे आठ आना म चार आना कारण रूचि या बचपना ले मिले स्वभाव अउ संगति हे त चार आना गुरुदेव श्री निगम जी अउ अन्य मूर्धन्य चिंतक, साहित्यकार मन ले मिले सद प्रेरणा कि ज्ञान ल बाँटना चाही--ज्ञान दान बड़ पुण्य के काम आय-- ज्ञान ह बाँटे म कम नइ होवय उल्टा बाढ़त जाथे-- --  अब लागथे इही कारण ले मैं लिखथँव ।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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