Thursday, 17 December 2020

मँय काबर लिखथँव* -अश्वनी कोसरे

 *मँय काबर लिखथँव* -अश्वनी कोसरे


सोंचत रहेंव कोनो दिन अइसे भी आही के अपनो राज़ खोले बर पर ही | जेकर ले अपन के भीतर लुकाय गलती अउ अभिमान के सरोकार होही| आज वो दिन आगे फरी- फरी सबो गुनीमानी ,विदुषी अउ विद्वान मन ल अपन छाती ल चीर के देखाय ल परही ,के मोरो हिरदे भीतरी भगवान श्री राम अउ सीता मइया बिराजित हें | फेर मँय हर भक्त श्री हनुमान जी नोहँव| अउ मोर श्री राम- सीता तो ए जुग के ओ बड़ झन नायक - नायिका मन हँरय| जेन खेत म पछिना ओगरइया किसान हरँय , बासी पानी बोहे खेत जवइया वो किसानिन मन हरँ, मजदुरी करत रकत अँउटइया दर - दर भटकत, देश परदेश जवइया मजदूर मन हरँय, उखरा पाँव जंगल, पहार के पथरिला अउ  कँटिला रसदा मं रेंगत महिनत के गंगा बोहइया बनवासी हरँय| तव मुड़ म बोझा बोहे भुतिहारिन हरँय जिकर दुख दरद के कोनो अंत नइ हे|

उँखर जिनगी के दशा देख के मोर जीव रो डरे हे| ओ हर अबला बहिनी मन मोर बर पूजनीय हवँय जिंखर जिनगी संघर्ष ले भरे पड़े हे| ए सबो मोर मन अगास के आदर्श हरँय|  आज के दूसित राजनीत हर मनखे ल जीयत म चोंहकत हे एखर दुष्परिणाम ल रोके बर , जन जागृति लानेबर , भ्रष्ट तंत्र ल चेताय बर , मँहगाई ल निजात पाय बर ,गरीबी अमिरी के खाई ल पाटे बर लिखे के कोशिश करत रहँव अइसे मोर आत्मा कहिथे | छूआ छूत भेद भाव ल खतम करके भाई चारा समता सुमता के भाव बर लिखे के प्रयास हवय|

     पर सबले गरीब तो मय ही हरँव मोर सो दे बर कहीं भारी जिनिस नइ हे| अभी मोर दुध के दाँत घलो बरोबर नइ झरे हे| कोशिश करत हँवव गिर - गिर के उँच के हरु - हरु ठुमुक - ठुमुक त कभू भुदुक- भुदुक रेंगे के| अउ कोनो विशेष गुन ले भरे मनखे भी नोहँव जेकर ले कोनो आने मनखे ल प्रेरणा मिल सकय|  सब ले कुछ सीख सकँव, अउ लिख लेवँव| तव अतके मोर उददेश्य हे लिख - लिख के सीखत रहँव | ते पाय के लिखत हँव| 


       छत्तीसगढ़ म देवी देवता मन के चरन परे हे| छत्तीसगढ़ी भाषा हा देवता मनके ,संत मन के महापुरुष मन के वाणी आए| अपन सुतंत्रता अउ सुराज बर लड़इया बीर सहीदन मन के कथा कहिनी हवय अउ जन मन म रचे बसे  साहित्य इतिहास अउ संस्कृति समाय हे| रिषि मुनी मन के ग्रंथ के अंग हरय तव संत शिरोमणी बाबा गुरु घासी जी के अमर उपदेश ,संदेश वाणी , पबरित गुरुवाणी हे| तव महतारी भाखा के मान बर,समृद्धि बर, संजोय बर लिखे के मोला प्रेरणा मिलिस| तव लिखे के शुरुआत तो कालेज म विद्यर्थी पन ले होइस |फेर वो समे भाषण ,तुक बंदी कविता तक कुछ  लेख बनत रहिस|

      पढ़ई लिखई पुरा होय के बाद बेरोजगारी के दौर आइस तव सोचेंव के कुछु पढ़े लिखे से संबंधित काम काज करे जावय|

तव छोटे कक्षा स्तर के  स्कूल म नौकरी करत बाल कहिनी मन से लिखे के सुरुआत होइस| संगवारी मन संग सहयोगी संग्रह छपे त बड़ खुशी होवय, अपन संतुष्टी बर लिखे के उदिम हर अब नइ  रहि गय | कुछ पारस समान गुरु मन के संगत मं आए ले अब 

पर समय के संगे संग लिखे के उद्देश्य बदलत हवय |संतुष्टि के संग आनंद भी आवत हवय | 

पत्र पत्रिका म खुद अपन लेख ल भेज के छपवान अउ सबो संगवारी मन ल बतावन के आज फलां पेपर म मोर रचना प्रकाशित होय हे| बाद म पता चलय दस लाईन म बीस ठन गलती हवय|आजो गलती रहिथे काबर के जीयत भर सीखना हे|

   गुनीमानी बुधियार सियान मन बताथें के कबीर,तुलसी ,प्रेम ,मीरा मन घलो अइसने अदरा रहिन फेर अपन महिनत लगन ले दुनिया ल मारग बताइन| अपन प्रतिभा ले परिचित करवाइन| कोजनि हमर कलम म ओतका धार बन परही के नही, फेर हिम्मत के डोंगी म सवार होय के चाहत हर आघू धकेलत हे| समस्या ले भरे

बड़ गहिर अउ बड़ दुरिहा ले समुंदर फइले हे ,सुख -दुख के लहरा हिलोरत हे |फेर मन म होवत उथल - पुथल अउ देश - दुनिया, समे - काल ,परिस्थिति हा लिखे बर विवश कर देहे| तव आज उत्सुकता अउ जिज्ञासा हर कलम ल सीखे बर रेंगावत हे| कखरो समस्या ल, वर्तमान ल, समाये पीरा ल लिखत हवँव, बतावत हववँ, कखरो बर ए जुनून हरे तव कखरो बर मनोरंजन फेर मोर बर अस्मिता के बात आए| नइ जानव के ए समस्या मन के  समाधान मिल पाही के नही| फेर उँकर हक बर लिखे के काम नइ रुकय|


अश्वनी कोसरे

कवर्धा कबीरधाम

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