Thursday, 17 December 2020

मँय काबर लिखथंव*-आशा देशमुख

 *मँय काबर लिखथंव*-आशा देशमुख


येहा सहीच में यक्ष प्रश्न हे, गलत उत्तर दे से अपन सत्य रूपी प्राण नइ बाँचे। जतका नानुक ये प्रश्न हे ,वतका ही बड़े येखर विस्तार हे।शुरू शुरू में जब लिखत रहेंव तब तो कोनो भी प्रकार के मन में ये सवाल ही नइ रहिस अउ अभी तक घलो नइ रहिस,पर अचानक से ये प्रश्न आगे तब जिनगी के सबो क्रियाकलाप के डहर मन रिवर्स होके देखे लागिस ,तब उँहा से कुछ कुछ टुकड़ा उठावत हँव।


पहिली स्कूल के जमाना मा चिठ्ठी लिखँव तब मोर सहेली मन कहँय,तेँ हमर मन ले बढिया लिखथस अउ अपन पारिवारिक चिठ्ठी ल घलो मोर कर लिखवाँय।

महुँ ला लागय में बढिया लिख लेथंव, पर ओइसने ही जइसे मेचका ल कुआँ से बढ़के अउ कुछु बड़े नइ दिखे ,एक दिन इही मेचका अचानक से समुन्दर में पहुँच गे तिहाँ देखिस तब लागिस हाय ददा अतिक बड़े समुन्दर अउ में नानुक जीव,तब अहसास होय लागिस कि नही मोला बहुत तैरना हे।

तभे छंद के छ कक्षा में प्रवेश मिलगे तब जाने हन कि लिखाई का होथे।

अपन आप में लाज घलो बड़ आवय कि काय लिखत रहेंव अउ कैसे मुड़ उचाके रेंगत रहेंव।

एको ठन दाना नइहे अउ बदरा धरके बोहे रहेंव।

अब मोला लिखे के उद्देश्य पता चलिस ,

मँय सबसे पहिली अपन मन बर लिखथंव, कोनो जीवन के दुखद पहलू ल लिखथंव।

पहिली लगय कि पेपर में छप जातिस ,कोनो गोष्ठी में जातेंव, मोला लोगन बुलातीस ।

पर अब ये पानी के बुलबुला लागे धरलिस।

मँय अपन साथ साथ संसार बर लिखथंव।

ये मोर विचार आय ,पर जगत ला मोर रचना के जरूरत रहही या नइ रहय मैं नइ जानंव।

पर अब में जनहित बर लिखथंव।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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