Thursday, 17 December 2020

मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा

 मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा

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        हे भगवान यक्ष प्रश्न असन लागत हे ....गुने बर पर गे ....काबर लिखथंव ???????

 सिरतो बात तो आय ...मोर ले पहिली कतको झन साहित्यकार , कवि , कहानीकार , उपन्यासकार मन तो तैहा दिन ले लिखत आवत हें ,  उनमन के लिखे ल थोर बहुत तो पढ़े च हंव।  साहित्य मं कविता लिखे के बेर दसे ठन तो रस होथे त कविमन समय सुजोग पाके दसो रस के कविता लिखे हें । कहानीकार , उपन्यासकार मन घलाय तो मन मं उपजत दसो भाव के अनुसार ही पात्र के चरित्र चित्रण करे हें त अइसने आने आने विधा मं भी लिखे हवयं त बांचिस का ? त फेर मैं नवा काय लिखत हंव , काबर लिखत हंव , मोर नइ लिखे ले साहित्य भंडार मं कोन तरह के कमी बेशी हो जाही ? 

   अलग अलग समय मं कलम चलाये के कारण आनी बानी के ओढ़र मिल जाथे जी । तभो मोर लेखन के दू ठन जरूरी बात रहिस हे पहिली के कविता लिखाई छूट गिस सिर्फ गद्य उपर ध्यान जम गिस , दूसर बात के अनुवाद डहर ध्यान नइ देहे पाएंव ओकर कारण मोर मन मं ए रहिस के गद्य हर भाषा के परिष्कृत रूप होथे , गहन विचार मंथन गद्य मं जादा अच्छा से करे जा सकथे । समसामयिक प्रसंग , सन्दर्भ मन ल उद्घाटित , विश्लेषित करे मं गद्य हर जादा सक्षम होथे । कविता ल हर आदमी आत्मसात नइ कर पावय त रस , छ्न्द , अलंकार से सजे कविता के रसबोध आम पाठक बर सहज नइ होवय ओकर बर मर्मज्ञ पाठक चाही जबकि गद्य हर बोलचाल के भाषा मं लिखे जाथे ते पाय के पाठक जल्दी समझ जाथे । तेकरे बर मैं सहज , सरल गद्य लिखे के कोशिश करथंव । सबले बड़े बात के गद्य मं विषय के कमी नइये सामाजिक , सांस्कृतिक , ऐतिहासिक , राजनैतिक , शैक्षणिक , वर्तमान सन्दर्भ - प्रसंग अउ बहुत अकन विषय वस्तु चारों मुड़ा बगरे परे हवय । 

   सबले पहिली जे दिन कागज कलम के शरण धरेवं ओहर लइकाई उमर के देखा - सीखी के सौख रहिस काबर के तब तो मैं हाई स्कूल मं पढ़त रहेंव , कहानी हर " कल्पना " पत्रिका मं छप घलाय गिस ...चार दिन मं भुला घलाय गयेंव । तभो कोनो दिन कोनो रिस , दुख , हांसी खुशी के बात होवय तेला एक ठन छोटकुन डायरी मं लिख लेवत रहेंव ....ओ कुछु नहीं ...लइका खेलवारी रहिस त कभू चार लाइन कविता असन कुछु लिख लेत रहेंव फेर छपास रोग नइ धरे रहिस । ओ डायरी कब , कहां गंवा गे सुरता नइये , तैहा के बात बैहा ले गे । 

     मोर लइका मन स्कूल जाए लगिन त ओमन बर भाषण , कविता , निबंन्ध लिख देवत रहेंव त मोर स्कूल के वार्षिक पत्रिका " रश्मि " के सम्पादन कर देवत रहेंव । अपन बर अलग से कुछु लिखे के तो सोचबे नइ करेंव फेर पढ़त रहेंव ..हिंदी , छत्तीसगढ़ी , बंगला , अंग्रेजी पत्र पत्रिका के संग प्रसिद्ध साहित्यकार मन के लिखे आनी बानी के किताब ..। 

   सन 2003 मं छोटे लइका मास्टर डिग्री लेहे बर इंग्लैंड जात रहिस त दू ठन बड़का कॉपी दे के कहिस " आप लिखती तो रही हैं अब अपने लिए फिर से लिखना शुरू कीजिये । "  पहिली तो समझ मं आबे नइ करिस का लिखना चाही तभो कविता लिखा गिस जे कविता मन " वनमाला " कविता संग्रह के नांव से छपे हे । मन नइ भरिस ...छत्तीसगढ़ी मं लखन लाल जी के संस्मरण तो पढ़े च रहेंव त मन मं आइस के मोर जीवन मं जेनमन के विचार , आचरण के प्रभाव परिस जेला कभू भुलाए नइ सकंव तेमन के सुरता ल लिख देहंव त लोगन ल प्रेरणा मिलही । 

..." सुरता के बादर " संस्मरण एतरह लिखा गिस । स्कूल के लइका मन बर " बहुरंगी " निबंन्ध संग्रह हिंदी मं लिखेंव । कलम चले लगिस ...नवा बने छत्तीसगढ़ के किसान , संस्कृति , पुरातत्व ,समाज मं होवत विकास ल " माटी के मितान " उपन्यास मं लिखेंव । 

    हिंदी , बंगला भाषा मं भी सामयिक प्रसंग उपर लिखना शुरू होगिस त छपास रोग धर लिस  .....छत्तीसगढ़ी मं लिखेंव " सुन संगवारी " गद्य के नवा जुन्ना विधा के 15 ठन लेख संग्रहित हे " आखर के अरघ " किताब मं । हिंदी मं स्त्री विमर्श के उपन्यास " कुसुम कथा " , प्रसिद्ध पंडवानी गायिका जियत किंवदन्ती बर  " पंडवानी और तीजन बाई " , कहानी संग्रह " सत्यं वद " मनसे के मनोभाव के प्रतिनिधि कहानी संग्रह लिखा गिस । 

  बंगला भाषा मं लइका मन बर बाल साहित्य " छड़ा " लिख तो डारेंव फेर अभियो प्रकाशित नइ करवा पाये हंव । 

 शील जी कहत रहिन " भगवान के कृपा से , पढ़ सुन के जौन थोर बहुत ज्ञान मिल गए हे तेला लिख के बांटना जरूरी हे , नहीं त गड़ियाए धन दोगानी के रखवार धनबोड़ा सांप बने बर पर जाही । " 

   मैं धनबोड़ा सांप बने नइ चाहवं जी ! तेकर ले लिखत रहिथवं उही मध्यम के संग पंचम असन उदिम तो आय । लिख लेथंव त हरु लागथे । संसो अतके हे के उमर के संगे संग छपास रोग घलाय बाढ़त जावत हे , मरन होगे हे के कैंसर रोग घलाय धर लेहे हे उही " मैं " रोग ...अउ का बांचिस ?? 

   लिखइया 

सरला शर्मा

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