मैं काबर लिखथंव -सरला शर्मा
किताब उताब तो लिखा गे तभो लिखत चलत हंव काबर ? उमर बाढ़त जाथे त मनसे घर , दुआर के संसो ले उबरत जाथे ...त खाए - पहिरे , घूमे - फिरे के सौख मं भी कमी हो जाथे इही मेरन मनसे संसार के आने प्राणी मन ले अलग समझे गए हे । देश राज समाज संसार के संसो अपने अपन मन मं समाए लगथे जेला सियान मन वानप्रस्थ आश्रम कहिथें माने घर परिवार मं रहिके भी नइ रहना , सन्यास एकर ले अउ आघू के अवस्था होथे जेमा मनसे सिर्फ आत्मा परमात्मा के संसो करथे ।
एकरे बर आजकल वर्तमान सन्दर्भ , प्रसंग उपर लिखे मं मन लगथे ...जइसे अभी चलत किसान आंदोलन , कोरोना काल के नफा नुकसान , सोशल मीडिया मं बगरत साहित्य , सोशल मीडिया मं बनत , बिगड़त आभासी रिश्ता , सुरसा कस बाढ़त महंगाई , लइकन के बेरोजगारी अउ बहुत अकन विषय हे लिखे बर । मोर विचार मं सोशल मीडिया के प्लेटफार्म आज मोर बर , मोर लेखन बर बने ठौर हे त लिखथंव घलाय । बने बने साहित्यिक ग्रुप मं , ब्लॉग मं त पोगरी लिखथंव फेस बुक मं ...। मोर फेसबुक वॉल ल कोन देखिस , कोन पढ़ के टिप्पणी दिहिस कोन नइ दिहिस तेला नइ गुनवं ...मोर मन मं उपजे विचार ल लिख के निश्चिंत होके बइठ जाए मं हरु लागथे ।
कोन सोशल मीडिया के उपयोग कोन तरह से करथे तेकर उपर ध्यान नइ दे के अपन लिखथंव बड़ संतोष मिलथे ।
सरला शर्मा
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