*मॅंय काबर लिखथॅंव* -महेंद्र बघेल
जब उमर हा छे- सात साल के होइस तब स्कूल मा भर्ती होयेंव। आधा-गोल, पूरा -गोल, आड़ी -लकीर, खड़ी -लकीर ले पढ़ई लिखई के नेंव धरइस। लकीर ला खींचत खींचत थोर-थोर जाने समझे के लइक होयेंव।
फेर *बड़े सबेरे मुर्गा बोला, चिड़ियों ने अपना मुंह खोला* जइसन भाव प्रवण जागरण गीत ले हमर जीवन के शुरूआत होइस।तब हम खुदे नइ जानत रहेन अइसन कविता मन ला हमरे जइसे कोई मनखे हर लिखत होही।
पहली कक्षा मा पढ़त-पढ़त भूल अउ प्रयास के मानसिक द्वन्द्व के बीच *उठो लाल अब ऑंखें खोलो, पानी लाई यूॅं मुॅंह धो लो।* जइसन गीत ला पढ़े,सुने अउ समझे बर मिलिस।
प्राथमिक स्कूल मा पढ़ें गय वो गद्य पद्य हर हमर मन मस्तिष्क मा अइसन घुल मिल गे कि समय हा पता च नइ चल पाइस अउ पाॅंच साल गुजर गय।
फेर पेपर मा छपे कहानी कंथली ला पढ़े के अवसर मिलिस, उमर हर बाढ़त गिस पत्रिका मन ले वास्ता होइस जिहाॅं ले नाटक,सत्य कथा, बाल कथा पढ़ पायेन,काबर ओ समय तो रंगमंच अउ प्रिंट मिडिया के उत्पाद हर बस मनोरंजन के प्रमुख साधन रहिस।
धीरे-धीरे दिन दुनिया मा का सही आय अउ का गलत आय तेकर जानकारी होवत गिस। जब मॅंय हाईस्कूल डोंगरगांव मा पढ़त रहेंव ता प्रार्थना के बाद पाॅंच ले दस मिनट तक विद्यार्थी मन ला अभिव्यक्ति बर मौका देंवय।उहाॅं सहपाठी मन के एक ले बढ़के एक प्रस्तुति ला देखके महूं हर अन्दर अंदर जोशिया जाॅंव,मोर रूॅंवा ठाढ़ हो जाय फेर हिम्मत नइ जुटा सकेंव।
जगा जगा कवि सम्मेलन होय तब उॅंकर कविता के पंक्ति सहित पेपर मा रिपोर्टिंग छपय। ओला पढ़ के अइसे लगे कि महूॅं ला लिखना चाही, तभे अंतस के भावना ला लिखे के मन मा इच्छा जागिस। फेर का पूछना हे तुकबंदी वाले दू चार लाइन कविता लिख के मित्र मंडली ला सुनाय बर लग जाॅंव। संगवारी मन तारीफ करे तब अउ लिखे के इच्छा जागय। कभू कभू तो अइसे लगे कि मॅंय का लिखो , सोचत-सोचत सोचते च रहि जाॅंव फेर लिख नइ पाॅंव।
उही समय छत्तीसगढ़ मा चुटीली कविता के चलन बढ़त रहिस।ओकर असर मोरों मन-मस्तिष्क उपर गजब होइस। महूं हर ताली के आस मा अलवा- जलवा चुटीली हास्य कविता के रचना करें लगेंव, दू चार झन मन तारीफ करॅंय अउ ताली पिटॅंय तब लगे ,मॅंय तो एवरेस्ट फतह कर डरेंव।
कालेज मा उमर के अनुसार एकाद कनी मया पिरीत के गोल भाॅंवर कलम चलिस।
धीरे-धीरे साहित्यिक गोष्ठी मा आना जाना होइस तब विद्वान विचारक मन ला सुन सुन के समझ मा आवत गिस,हमला का लिखना चाही।
अनगिनत बुधियार लिखइया मन के बीच मा मन हर कहिथे समाज के समस्या हर बड़ विकराल हे, अभी बहुत कुछ लिखना बाकी हे।
आज लगथे मॅंय बचपन मा जेन रचना ला विद्यालय मा पढ़ के कुछ नैतिक बात ला सिखे हॅंव ओकर ले तो कभू उऋण नइ हो सकॅंव फेर समाज मा अपन हिस्सा के योगदान निभाय च ला परही।
हम सब अपन परिवेश मा रहिके जो देखथन , समाचार ला सुनथन तब जेन विसंगति हर दिखथे, समाज के उही विसंगति ला दूर करे के कोशिश मा मोरो नानमुन योगदान हो जाय बस इही उदीम मा कलम चलत हे।
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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