Friday, 25 December 2020

 *हमर जिनगी मा सिनेमा के प्रभाव*-अरुण कुमार निगम


सिनेमा के सुरता करव त अपन शहर अउ तीर-तखार में शहर के टाकीज के सुरता आ जाथे। टिकिट के खिड़की मा लंबा-लंबा लाइन लगे रहाय। पहिली टिकिट पाए बर झूमा-झटकी। टिकिट मिलिस तहाने युद्ध के विजेता असन चेहरा मा मुस्कान धर के सिनेमा हॉल मा खुसरे के लगलगी। सिनेमा हॉल मा लाइट बरे रहाय अउ रिकार्डिंग घलो होवत रहाय। जहाँ हेमन्त कुमार अउ गीता दत्त के गाए आनंद मठ फ़िल्म के आरती गीत "जय जगदीश हरे" या "आरती करो हरिहर की करो नटवर की भोले शंकर की,आरती करो शंकर की" बजिस माने मालूम हो जावय कि अब सिनेमा चालू होने वाला हे। बहुत बाद मा ये आरती के जघा "मैं तो आरती उतारूँ रे, संतोषी माता की" बजे लगिस। बस इही जमाना तक सिनेमा के असली फीलिंग आवत रहिस। अब तो ऑनलाइन टिकिट बुकिंग अउ मल्टीफ्लेक्स के जमाना आगे। अब न सिनेमा देखे बर मन मा इच्छा जागे अउ न पहिली असन फीलिंग आवै। 


मोर उमर के शुरुआती सिनेमा के नाम "कण कण में भगवान", "सम्पूर्ण रामायण", हर हर गंगे जइसन धार्मिक फ़िल्म रहिस जेकर ले पौराणिक ज्ञान मिलिस। फेर मैं चुप रहूंगी, ससुराल, घराना, गृहस्थी जइसे पारिवारिक फ़िल्म देखेंव। एमा सामाजिक समरसता के ज्ञान मिलिस। हातिमताई, पारसमणि जइसे तिलस्मी सिनेमा कल्पना शक्ति के विकास करिस। किशोरावस्था अउ तरुणाई के शुरुआती सिनेमा मिलन, संगम, गीत, आराधना, अमर प्रेम, बॉबी के कारण मन मा श्रृंगार जागिस। तेकर बाद कला फ़िल्म के दौर चलिस ओमपुरी, स्मिता पाटिल, नसरुद्दीन शाह,दीप्ति नवल जइसन कलाकार के फ़िल्म के कारण विसंगति डहर चिंतन होइस। फेर नाना पाटेकर के फ़िल्म मन अलगे प्रभाव डारिन। जुन्ना फ़िल्म देखे के शौक बाढ़िस - राजकपूर के आवारा, आह, अनाड़ी, बरसात, जागते रहो, कन्हैया, छलिया, जिस देश में गंगा बहती है, श्री चार सौ बीस, दिल ही तो है, सुनहरे दिन आदि, गुरुदत्त के चौदहवीं का चाँद, प्यासा, कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम आदि, व्ही शांताराम के फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ, नवरंग, गीत गाया पत्थरों ने, सेहरा आदि, ऐतिहासिक फ़िल्म मुगलेआजम, अनारकली, ताजमहल आदि देख के कला के प्रति रुझान होइस। शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी अउ नीरज जइसे गीतकार म फिल्मी गीत मा साहित्य के ऊँचाई मोर काव्य लेखन ला प्रभावित करिस। 


सिनेमा देखना तो कई बछर पहिली छूटगे फेर तइहा के जमाना के फिल्मी गीत मन आज घलो एक नशा बरोबर तन मन ला अथाह सुख देथे। सहगल, सी एच आत्मा, पंकज मालिक, राजकुमारी, जोहराबाई अम्बालावाली, शमशाद बेगम, हेमन्त कुमार, तलत महमूद, मोहम्मद रफी, सुरैया, चितलकर, लता मंगेशकर, मुकेश, महेंद्र कपूर, आशा भोंसले, सुलोचना कदम, कमल बारोट, किशोर कुमार, यशु दास जइसन अनेक सुरीला गायक-गायिका मन भारतीय सिनेमा मा अइसन अइसन गीत गाइन हें कि सुने बर जिनगी कम पड़ही। अनेक गीत मन जिनगी ले जुड़ गेहें। कभू लड़कपन के सुरता मा लेगथें तो कभू किशोरावस्था के नादानी ला बताथें। कभू ककरो बिहाव के सुरता आथे तो कभू कोनो गुरुजी के सुरता देवाथें। 


भारतीय सिनेमा के कुछ गीत भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन चुके हें। हर बरात मा ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे या नागिन धुन ऊपर नाच बिना बारात आगे नइ बढ़य। बिदाई के बेरा मा बाबुल की दुवाएँ लेती जा गीत, बिदाई ला अउ मार्मिक बना देथे। ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना, चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा, बिछड़े सभी बारी-बारी, दुनिया से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ, जाने कहाँ गए वो दिन जइसे गीत सुनथंव तो बहुत झन दोस्त, रिश्तेदार अउ परिचित के अंतिम विदाई के सुरता आ जाथे। राखी के गीत बिना रक्षा बंधन, होरी के गीत बिना होरी के तिहार सुनसुनहा लागथे। जहाँ डाल डाल पर सोने के चिड़िया करती है बसेरा, ऐ मेरे प्यारे वतन, कर चले हम फिदा जानोतन साथियों, अपनी आजादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं, मेरा रंग दे बसंती चोला जइसन देशप्रेम वाला गीत के बिना हमर राष्ट्रीय पर्व नइ मने। प्रेम मा असफल प्रेमी जीव ला मुकेश के दर्दीला गीत सुहाथे। पहिली के जमाना मा छट्ठी के दिन छानी ऊपर पोंगा मा फ़िल्म के गाना बाजत रहाय। कहे के मतलब कि हमर जिनगी मा सिनेमा के प्रभाव कोनो न कोनो रूप मा दिखबे करथे। 


*अरुण कुमार निगम*

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