*शहीद वीर नारायण सिंह*-चोवाराम वर्मा बादल
छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाँ जेला तइहा के जुग मा दक्षिण कौशल घलो काहयँ, बड़े-बड़े संत, गुरु, ज्ञानी अउ वीर सपूत मन ला अपन गोदी में खेलइया महतारी आय । ए महतारी के अँचरा मा घन जंगल घटते हे त हीरा, सोना ,चाँदी के खदान घलो हाबय । इहाँ के नदिया मन मीठ पानी ले भरे कुलकत- गावत रहीथें ।किसान के कोठी ह अन्न मा भरे छलकत रहिथे ।भगवान राम के महतारी माता कौशिल्या के मइके ए भुइयाँ मा सदा धरम-करम के अलख जागे रहिथे। इहाँ के रहवासी मेहनती, सरु किसान मन ला देख के कतको झन काहत रहिथें-- छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।
जुन्ना जुग ले ए भुइयाँ मा देशभक्ति के पुरवइया तको फुरुर-फुरुर चलत हे।अन्याय, अत्याचार के विरोध करें मा छत्तीसगढ़िया कभू पिछू नइ राहयँ। भारत के पहली स्वतंत्रता संग्राम ले घलो पहिली इहाँ के सपूत मन अंग्रेज मन के मुकाबला करे हें।उही कड़ी मा सोनाखान के वीर सपूत नारायण सिंह अउ ओकर पूर्वज मन ला भुलाये नइ जा सकय।
वर्तमान मा बलौदाबाजार जिला मुख्यालय ले लगभग 70 किलोमीटर दूरिहा मा डोंगरी पहाड़ के बीच, घन जंगल मा सोनाखान नाम के गाँव, जेला सिंघगढ़ घलो काहयँ, हाबय। जेन हा 17 वीं शताब्दी मा सारंगढ़ के राजा के वंशज मन के जमीदारी के राजधानी बने रहिसे। इहें के परजा हितैषी वीर जमीदार रामराय के धर्मपत्नी रानी रामकुँवर देवी के कोंख ले सन 1795 मा महान प्रतापी बालक नारायण सिंह के जनम होइच।
कहे गे हे--होनहार बिरवान के होत चिकने पात। सोला आना सहीं बात आय। बालक नारायण सिंह ला खून मा दाई के धार्मिक संस्कार और पिता के दयालु पन ,वीरता के गुण मिले रहिसे। जमीदार रामराय परजा के हित करे बर कई बेर अंग्रेज मन ले झगरा लड़ाई करिच ।अपन बिंझवार आदिवासी सेना के संग मा सन 1818- 19 म अंग्रेज अउ भोंसले राजा के विरोध मा तलवार उठाइच। तेकर सेती कैप्टन मैक्सन हा ओला अपन बड़े दुश्मन मानय।
परोपकारी जमीदार राम राय के सन 1830 मा इंतकाल होये के बाद 35 साल के उमर मा युवराज नारायण सिंह हा सोनाखान के जमीदार बनिच अउ अपन जिनगी ला परजा मन के सेवा मा खपाये ल धरलिच । ओकर निस्वार्थ सेवा अउ राजकाज ला देख के जम्मों परजा अब्बड़ खुश राहयँ ।
जमीदार नारायण सिंह ह अपन दुलरुवा घोड़ा म बइठ के, कनिहा मा तलवार खोंचे, घूम-घूम के अपन परजा के सुख-दुख के सोर -सन्देशा लेवत राहय। एक दिन एक झन आदिवासी हा गोहराइच-- जमीदार महराज, रक्षा करव। एक ठन बघवा हा अबड़ेच उतपित करत हे। हमर पाले-पोंसे गाय-गरुवा, छेरी-बोकरा मन ला हबक-हबक के खावत हे।अतका ला सुन के वीर नारायण हा अपन जान के बाजी लगाके तुरते बघवा ला खोज के मार देइच ।चारों मुड़ा जय जयकार होगे। बताये जाथे उही दिन ले वोला चालबाज अंग्रेज मन वीर के उपाधि देये रहिन।
सन 1856 के बात आय। भारी दुकाल परगे।लोगन दाना-दाना बर मोहताज होके भूँख मा मरे ल धरलिन। वीर नारायण सिंह ले उँकर दुख देखे नइ जाय। अपन कोठी के जम्मों धान कोदो ला बाँट दिच फेर कतका झन ला पुरतिच भला ? वोहा बड़े-बड़े सेठ साहूकार मन सो हाथ पसार के अन्न माँगय।जेन मिलय तेला बाँट दय।सहीं बात ये - पाँचों अँगुरी एके बरोबर नइ होवय। कतको के हिरदे पथरा कस निष्ठुर होथे।ओइसने काइयाँ कसडोल के सेठ माखन रहिसे। वीर नारायण सिंह ह उहू ला गोहरावत कहिच-- सेठ जी! लोगन भूख मा मरत हें। तोर गोदाम मा अबड़े धान-चाउँर भरे हे। किरपा करके ओला बाँट दे ।आगू बछर धान- पान होगी तहाँ ले तोला लहुटा देबो।ओतका ला सुन के माखन भन्नागे अउ इंकार करत हाथ हलादिच । तब तो वीर नारायण सिंह हा आव देखिच न ताव , गोदाम के तारा ल टोर के धान -चाउँर ला बाँट दिच।वोती माखन ह रायपुर जाके अंग्रेज कैप्टन इलियट करा शिकायत कर दिच। अंग्रेज मन तो ओखी खोजत राहयँ। चोरी अउ डकैती के आरोप मा 24 अक्टूबर 1856 के संबलपुर मा वीर नारायण ला पकड़ के रायपुर के जेल मा डारदिन।
फेर शेर हा पिंजरा मा कतका दिन ले धँधाये रतिच ? 28 अगस्त 1857 ई. मा वीर नारायण सिंह हा अपन तीन झन साथी मन संग जेल ले फरार होके सीधा सोनाखान पहुँच गिच। वो हा अंग्रेज मन ले निपटे बर तीर-कमान वाले सेना के संग 500 बंदूकधारी सेना के गठन करिच ।एति एलियट हा कैप्टन स्मिथ ला आदेश देवत कहिच--जा नारायण ला जिंदा या मुर्दा लाके देखा।आदेश पाके कैप्टन स्मिथ हा भारी सेना लेके सोनाखान ला चारों मुड़ा ले घेरलिच।वीर नारायण सिंह हा कुर्रूपाट के डोंगरी ऊपर मोर्चा संभाले राहय।भारी लड़ाई होइच। स्मिथ अउ ओकर सेना के पाँव उखड़े ल धरलिच। बहुँते सैनिक मरगें।उही समय देवरी के गद्दार जमीदार हा आके स्मिथ सँग मिलगे। भारी मारकाट मातगे।फेर वीर नारायण हाथ आबे नइ करत रहिच। तब अंगेज मन गाँव मन मा आगी लगाये ल धरलिन। निहत्था परजा मन ला मारे काटे ल धरलिन।जेला देख के अपन परजा ला बँचाये खातिर वीर नारायण हा आत्म समर्पण कर दिच।
कैप्टन स्मिथ ला ओला पकड़ के रायपुर के जेल मा ओलिहा दिच। अंग्रेज मन ओकर उपर चोरी अउ डकैती के देखवटी मुकदमा चलाके, मौत के सजा सुनाके 10 दिसम्बर 1857 के दिन आज के रायपुर मा जेन जगा जयस्तम्भ चौंक हे उही जगा तोप मा बाँध के उड़ा दिन।
अपन परजा अउ महतारी भुइयाँ खातिर जान गवाँके वीर नारायण सिंह हा अमर होगे। जब ले ए धरती रइही, जब ले सुरुज- चन्दा रइही ,तब ले वीर नरायन सिंह के नाम अम्मर रइही।
छत्तीसगढ़ महतारी के वीर सपूत , प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी ला कोटि कोटि प्रणाम हे।
चोवा राम 'बादल '
हथबन्द (छत्तीसगढ़)
वीर नरायण कस कहाँ, बलिदानी हें आज।
ReplyDeleteपल पल स्वारथ मा सने, दिखथे सकल समाज।।
हमर आदरणीय चोवा भैया के छत्तीसगढ़ माटी के
वीर सपूत के सुरता म अनुपम भावांजलि अर्पित करे
बर बहुत बहुत बधाई भैया....सादर प्रणाम
🌹🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
वीर नरायण कस कहाँ, बलिदानी हें आज।
ReplyDeleteपल पल स्वारथ मा सने, दिखथे सकल समाज।।
हमर आदरणीय चोवा भैया के छत्तीसगढ़ माटी के
वीर सपूत के सुरता म अनुपम भावांजलि अर्पित करे
बर बहुत बहुत बधाई भैया....सादर प्रणाम
🌹🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹
सादर नमन
ReplyDeleteसादर नमन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर सादर नमन
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