Thursday, 17 December 2020

मँय काबर लिखथँव*-पोखन जायसवाल

 *मँय काबर लिखथँव*-पोखन जायसवाल

       संसार म कोनो भी घटना अउ कारज के पिछू कोनो-न-कोनो कारण होबे करथे। जेन कारण होथे, उही ओकर मतलब ल पूरा करथे, ओला अर्थ देथे। बिन मतलब के कोनो कारज सधै नहीं। लेखन ह घलो एक ठन बड़का कारज आय, जउन सबो ले नि सधै। आज लेखन म दायित्व ह बाढ़ गे हवै। लेखन के तइहा ले कोनो उद्देश्य रहिबे करे हे। मोर समझ म अतका आय हे, कि साहित्य लेखन समाज जागरण बर लिखे जात रहिस हे, अउ अभियो लिखे जात हे। ए जागरण परतंत्रता के बेड़ी तोड़े बर, शोषण के विरुद्ध खड़े होय बर, अंधविश्वास अउ ढोंग पाखंड ले उबरे बर, अपन अधिकार बर सजग होय जइसे अउ कोनो बात के हो सकत हें।

       जब कोनो भी बुता करइया ल पूछे जाथे-'तें ए बुता ल काबर करथस?' त मनखे हड़बड़ा जथे। समझ नि पाय कि ओ का बतावँय? जब बइठ के गुने लगथे त पाथे घलो मँय ए सवाल कोति कभू काबर चेत नि करेंव? भेड़िया धसान का महूँ हर कुआँ म कूद परे हँव? जब सवाल आ जथे त जुवाब तो खोजबे करथे। अइसे कोनो सवाल नि हे जेकर जुवाब नि हे। बस सवाल के तिर म गुनान करे के जरूरत हे। महूँ ह ए सवाल ल पढ़-सुन के सन्न खा गेंव। ए सवाल मोर ले बहुत पहिली अउ पूछे जा चुके हे, तब मँय फट ले कहि दे रेहेंव *मन के संतुष्टि बर* लिखथँव। तब पूछइया साहित्यकार अउ बुधियार मनखे नइ रहिस। आज ए सवाल बिहारी के दोहा बरोबर हे। *सतसइया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर।

देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।* मँय ए प्रश्न बर अनुत्तरित हँव।

      वो समय मँय कविता लिखना शुरू करे रहेंव। कोनो विषय ऊपर विचार आय त लिखे बिना नींद नइ आवत रहिस। सूते दसना ले उठ के लिखे के बादेच नींद बरोबर पड़य।

          मोर लिखना रेडियो कार्यक्रम सुन के चिट्ठी लिखे के रूप ले शुरू होय हे। तब मोर मन म इही बात रहिस कि मँय रेडियो सुनथँव कहिके, सरी दुनिया जानँय। इही बात ल लेके चना चबेना बर मिले पइसा के पोस्टकार्ड लेके चिठ्ठी लिखँव। मोर संग मोर गाँव के नाँव होवय यहू मन म रहिस। तब मँय दसवीं पास करे रहेंव। रेडियो म गाँव के संग अपन नाँव सुन के बड़ खुश होवँव। दू चार झन मन घलो मोला सहराय लगिन। धीर लगाके चिट्ठी लिखई मोर नशा होगे। उही चिट्ठी म तुकबंदी करत कविता लिखे लग गेंव। तब एके धुन सवार रहिस मोला-  लिखना हे ...अउ सिरिफ लिखना हे। कार्यक्रम के समीक्षा लिखत जाँव।

        आज जब गुनथौं त बस इही लागथे कि मोला लिखना हे अउ बस लिखना च हे। जेन भी लेखन बड़का साहित्यकार मन करे हें अउ करत हें उन काबर लिखथें, उँखर जुवाब हमर/मोर सीखे के लइक रही। जब कोनो घटना या विषय ऊपर कोनो विचार मन म उठे लगथे त अपन विचार ल लिखना हे कहिके ही आज घलो लिखथँव। मोर विचार ल सबो ल बतावँव इही मोर मन म रहिथे। अइसे करे ले एक संतुष्टि घलो मिलथे। अभियो अइसन करे म न चार आना मिले हे, अउ न चार आना मिले के आशा हे, अउ न आशा रखँव। ए बात जम्मो लिखइया मन जानथे। आज के भाग दउड़ म जेन थकान हे, उहाँ ले बाँचे बर थोकन बइठ के लिखे म जेन आनंद हे, उही सुख आनंद बर सरी दुनिया तरसथे। 

       गुरु बिन ज्ञान अधूरा माने गे हे। छंद के छ आनलाइन कक्षा म शामिल होय ले प्रणम्य गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम के कृपा दृष्टि ले लेखन के मरम सीखे मिले हे अउ मोर लेखन ल दिशा घलो।

        एक ठन बात घलो गुनथँव, आज सोशल मीडिया के जमाना ए। जिहाँ कोनो भी रचना करत हें, अउ लाइक के चक्कर म अपन समय बरबाद करत हें। इहाँ कतको कोनो सही रस्ता बतइया हवै फेर इगो के चक्कर म सबो फँसे हन। अइसन म अपन मन के संतुष्टि बर लिखना हे अउ लिखना हे कहिके लिखत जावत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार

No comments:

Post a Comment