समझ अपन अपन
एक दिन के बात आय ... एक झन साहेब हा बिहाने बिहाने ले हमर घर अमर गिस अऊ हमर दई ला पूछे लगिस - काकी तुँहर घर बासी हाबे का । हमर महतारी हा जइसे हव किहिस तहन तुरते साहेब हा केहे लगिस – महूँ ला एक कनिक देतेव या काकी .. । मोर महतारी हा हव किहिस अऊ भितरि डहर निंगत अपन बहू ला पताल के चटनी घँसरे बर कहत .... पोता दसा डरिस अऊ हाथ धोके बटकी म बासी हेर डरिस .. मही डार डरिस अऊ साहेब ला भितरि म लाने बर चल दिस ।
साहेब पूछिस – भितरि डहर काये करबो काकी । मोर महतारी किथे – बासी ला भिंयाँ म बइठके खाथे बेटा । भितरि डहर पोता दसा डरे हँव ... उही म बइठके खाबे । साहेब किथे – मोला बासी थोरेन खाना हे काकी । महतारी पूछिस – त काये करबे बेटा । येला काबर मांगे । साहेब किथे – अपन संग लेगहूँ कहिके मांगे हँव काकी । महतारी पूछिस – अपन घर लेजके खाबे तेकर ले हमरे घर नइ खा डरतेच बेटा । तोर भउजी हा पताल के चटनी घँसरत हे । साहेब किथे – मोला थोरेन खाना हे काकी तेमा । दई पूछिस – त बहुरिया खाही का बेटा । साहेब किथे – उहू नी खाय .. ओला तो एक कनिक म जुड़ सर्दी धर लेथे । दई फेर किथे – त काये करबे बेटा । साहेब किथे – रेस्ट हाउस लेगहूँ काकी । उहाँ मोर ले अऊ बड़े बड़े साहेब मन आही । दई किथे – अई बड़े बड़े साहेब मन घला बासी खाथें गा । साहेब बताय लगिस – खाये बर नोहे काकी ... फोटू खिंचवाय बर आय या ... । दई पूछ पारिस – अई .. हमन अभू तक बासी ला फकत खाये के होही कहत रेहे हन .. येहा फोटू खिंचवाय के घला काम आथे तेला नइ जानत रेहे हँव बेटा .. । मोर एक ठन सवाल के अऊ जवाब देतेस का बेटा – येमा फोटू कइसे खिंचवाथव । साहेब कट्ठलगे । हाँस लिस तब बतइस – बासी खाये के नाटक करत फोटू खिंचवाके जगह जगह देखाबो तब .... कर्णधार के नजर म आबो अऊ तभे नौकरी चाकरी म प्रमोशन पाबो या काकी .... ।
मोर दई हा किथे – बासी खावत हमरो मन के फोटू खिंचवा देतेव ... हमू मन ला थोक बहुत फायदा मिल जतिस छोकरा । साहेब किथे – बासी खावत तोर फोटू हा काकरो बैठक खोली म राखे लइक नइ रहय काकी ... तैं जनता अस ... तोर काय प्रमोशन ... । ओतके बेर हाथ म चटनी के थरकुलिया धरे मोर बाई हा पहुँचगे । ओहा केहे लगिस – बासी खावत फोटू के सेती प्रमोशन के बात हा लबारी आय बाबू ... अइसन होतिस त बीते बछर तुँहर साहेब ला सस्पेंड काबर होय ला परिस । साहेब बतइस – ओहा गलत जगा म फोटू डार पारिस भऊजी । ओला देख के सब झन इही समझिन के गरीब के खाना ला नंग़ा के खावत हे तेकर सेती सस्पेंड होगिस । मोरो बाई के याददास्त बहुत तगड़ा रिहिस खास करके अइसन मामला म जेमा ओहा काकरो उपर उपकार करे रिहिस । ओहा साहेब ला फेर पूछिस – बीते बछर हमर घर ले बटकी भर बासी लेगे रिहिस अऊ खाय रिहिस तेला प्रमोशन तो धूर कन्हो पूछे बर तको नी अइन ... बपरा हा पाख भर सर्दी के मारे जपजपागे रिहिस । कोरोना होगे होही कहिके कन्हो ओकर तिर म नी ओधत रिहिन । साहेब किथे – ओमा बासी के कोई दोष निये भऊजी । ओला केवल फोटू भर खिंचवाना रिहिस ... कभू देखे निये तइसे हबर हबर ... पेट के फूटत ले कोट कोट ले खा डरिस । ओतो अच्छा होइस ... येला बड़े साहेब मन नइ जानिन निहिते ... बासी ला बदनाम करे के जुर्म म ओला घला सस्पेंड कर दे रहितिन ।
मोर बई फेर पूछिस – तहूँ मन तो बीते बछर खाय रेहेव ... फेर जे तिर रेहेव तिही तिर ले एक इंच आगू नी बढ़ेव ... ये बछर काय तीर मार लेहू तेमा ... । बासी के जुगाड़ तूमन करथव अऊ प्रमोशन दूसर के खाता म चघ जथे । साहेब किथे – सब अपन अपन नसीब आय भउजी । वास्तव म बासी हा केवल प्रतीक आय ... खाना कुछ अऊ हे । मोर दई के मुहुँ फरागे । ओहा केहे लगिस – अबड़ धँवाय छोकरा ... । बासी हा खाय के नोहे ... प्रतीक आय कहिके हमला काबर भरमावत हस । येहा केवल छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़िया के प्रतीक आय । साहेब किथे – इहीच तिर फरक पर जथे काकी । बासी खाय के असली मतलब कुछ अऊ आय जेला समझइया मन समझ जथे अऊ नइ समझइया मन बटकी म हाथ डारके फोटू खिंचावत बासी ला प्रमोट करे के उदिम करत खुद के प्रमोशन के सपना देखथें । साहेब बहुत गम्भीर होके बात बताए लगिस – बासी खवई ला समझना बड़ कठिन बुता आय । एक तो बपरा कर्णधार मन .... अतेक बछर पाछू कुर्सी अमराये हे तेकर सेती दूध म जरे कस मही ला फूँक फूँक के पियत हे । ओमन पहिली कस बदनामी नइ चाहय तेकर सेती बासी खाये के अलग अलग तरीका अऊ मतलब अलग अलग मनखे बर बना देहे । छोटे मन बर भात के जुगाड़ नइ हो सकत हे .. त ओमन ला कलेचुप बासी खाके रहना हे । बड़े साहेब मन बर बासी खाये के मतलब ये आय काकी के .... अभी येती ओती के न कमावव ... न अइसन कमई बर ध्यान देवव ... हमर आय के पहिली जतका कमाके राखे हाबो तिही ला उपभोग करव । इँकर मन बर बासी हा जुन्ना कर्णधार के समे के कमई आय । उही बासी ला जतका पाय ततका झड़कव ।
मोरो बई हा खुबेस के पुछइया ताय । ओहा पूछे लगिस – ओतो समझ आगे बाबू ... फेर कर्णधार मन .. अपन मनखे ला घला बासी खाये के हिदायत देवत हाबे । इँकर तिर बासी लइक का होही ... इन तो अभी अइन हे ... इनला कमाये के मौका तो मिलबेच नइ करे हाबे । साहेब किथे – इँकर बासी के बात हा गूढ़ रहस्य आय । इही मन देश ला आजाद करइया के चेला चंगुरिया आवन कहिके ... अपन डिही डोंगर म सकलाये उही कमई ला खाना हे अइसे सीधा सीधा नइ कहिके ... बासी खाव बासी खाव ... कहत रहिथे । तैं हम अइसन बात ला आसानी से काय जानबो । ये बात ला फोर के केहे नइ जा सकय .. जेन भी संगवारी इही गूढ़ रहस्य ला समझ जथे ... तेहा उही ला बासी के रूप म खावत हमर उपर राज करे के उदिम जुगाड़त हे ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन . छुरा
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