Saturday, 20 May 2023

ब्यंग "" "आम आदमी खास आदमी" ""

 ब्यंग  


  "" "आम आदमी खास आदमी" ""       


             आदमी के फकत आदमी होय ले कोनों बात नइ रतिस। फेर इहाँ तो वर्ण भेद के चिखला मा सबो सनाये हे। जात धरम रंग के भेद। अब एकरे भीतर वर्ग भेद। जिंहा छोटे बड़े आम आदमी अउ खास आदमी के भेद हे। वर्ग भेद के भोंड़ू मा कुछ मन खास होगे अउ कुछ मन आम। खास मन के मुड़ी मा पद पावर पइसा रुतबा ठसन के सिंग रथे। जेला व्ही आई पी दर्जा के घलो कथें। अउ दूसर आम आदमी जेकर खाय बर खपुर्रा ना बजाय बर दफड़ा। ये हाना हर आम आदमी के सबो भूगोल अउ अर्थशास्त्र के परिभाषा ला अवगत कराथे। फेर अटल सत्य ये हे कि इही लँगोटी वाले के बल मा धोती वाले टोपी वाले मन फुदरथें। ये आम आदमी ला आमा के रूप मा समझ सकथन। एला कइसनो सेवन करले सवाद दिही। पना बना ले सिलपट रगड़ले नून चर्रा से लेके अथान डार के मजा ले सकथस। अउ ते अउ गेदराय पाके ला गोही छोड़त ले गुदेल गुदेल के चुचर सकथस। ये आमा रूपी आम आदमी ला कइसनो उपयोग करले सवाद बरोबर मिलही। डर भय देखाके रेवड़ी बतासा के लालच देके वोट डरवा ले। भाषण झाड़ना हे त इही आम आदमी के भीड़ बढ़वा ले। दंगा करवाना हे त लाठी डंडा धरादे। माटी तेल माचिस धराके कोनों न कोनों आम आदमी के घर भुँजवादे।जेकर आँच खास मन के छइँहा नइ खूँदे। जर भुँज के राख हो जही तब मरे लाश अउ जरे घर के आँच मा रोटी सेंके बर आहीं। दरद निवारक औषधि बनके हल्ला मचावत संसद भवन ला हलाहीं। अउ आम आदमी के संताप ला पोष्टर बनाके चौराहा मा टाँगहीं।

          आम आदमी के समझ ये हे कि सबो मनखे अपने जइसे होही। फेर समझ समझ के फेर हे। हमरे बीच के आम हर खास बन जथे तब आमा सही गुदेल के चुचरे के फेरा मा रथे। झूठ फरेब धोखा बइमानी के बजार मा ईमानदारी के पसरा कब के उठ चुके हे। चाँदी के चमचा तो देखे ला नइ मिले। फेर कतको कोचिया किसम के चाँदी खास मन के पाँव धो के पिये ले होवत रथे। खास मन के अँगना मा सुरुज पहिली उथे तब आम जन के कुकरा बासथे।

           पाछू बखत के बात आय। आम आदमी के हैसियत ले गाँव गली के हाल जाने बर अपन दुरदर्शी चश्मा पहिर के चौराहा मा पहुंच गेंव। एक झन आम आदमी खास बने के सपना साधे अखंड भारत के निर्माण बर कसम खाके मोला अवाज देत रहय। देखते देखत मोर ले कका बबा के रिस्ता बना डारिस। फेर अस्सी साल के बहुरुपिया आरो सुन सुनके कान पाक के पीप बोहात रिहिस। तब असली आम आदमी के कला रचत भैरा बनके मौनी ब्रत के रियाज करत सुटुर सुटुर रेंगे लगेंव। मोला अंदाजा हो गेय रिहिस कि ये आदमी खास बने बर ऊँचा दर्जा के भिखारी के भूमिका निभावत हे। कतको दिन के लाँघन भूखन कस आके पाँव पर डारिस। कका बबा फूफा मोसा के रिस्ता बना डारिस। अपन लाम लाहकर एजेंडा के सूचि देखावत वादा वचन निभाय के किरिया कसम तको खा डरिस। अउ लड़हार पुचकार के मोर एक वोट के माँग करत मोरे लइका बनके मोला अपन बाप घलो बना डारिस। अपन अधिकार के सही उपयोग करत हवँ कहिके दया करके दे पारेवँ। ओकर सपना तो पूरा होगे। वोकर बाद कोन कका कोन बबा सब रिस्ता खतम। ओकर वादा वचन के कचरा मा दिंयार चढ़गे। अटके बनिया परे बखत मा काम आना तो दूर पहिचानिस तको निंहीं।

            हमर असन आम जन इँकर रोना धोना लमछोरहा एजेंडा अउ रेवड़ी बतासा के मोंह मा फँसके बाँचे खोंचे एक ठन अधिकार के घलो बली चढ़ा देथन। तब धोखा मा हाथ झर्राना बाँचे रथे। अउ फेर इतिहास गवाही हे आज तक कोन खास अपन जबान मा अटल हे? फेर वाह रे आम आदमी अपन एक वोट के कीमत जान सके न कदर। छोटे बड़े आम अउ खास के बीच के खाई पटबे नइ करे। भरे ला भरे जावत हे अउ जुच्छा के कनोजी खपलावत हे। लोक लुभावन गोठ के सँग धार्मिक आस्था के चारा सान के गरी काँटा मा  गुँथके आम जनता के बीच फेंके के चलन बाढ़ गेहे। इँकरे हाथ मा छूरा अउ मूड़े बर हमरे मुँड़ी। जतके बाल ओतके माल। दिल्ली हीरा ले भरे कोइला के खदान आय। हाथ सनाये के चिन्ता नइये हीरा तो खास मनके हाथ लगत हे। दरी जठइया मन दर दर भटकत हे। जमीन ले जुड़े जमीदार मन सरकारी मुआवजा के अरजी धरके किंजरत हे। मजदूरी करइया रिक्शा ठेला रेहड़ी वाला पाव भर दारू के चक्कर मा खास मनके जनम दिन के पोष्टर टाँगे मा लगे हे।

                आज देश उद्योगपति बैपारीअउ राजपथ वाले मन के ताल मेल ले चलत हे। इही तीनो मन आम के पना बनाके पियत हे। यहू कहि सकथन कि आम आदमी माने हलाल करे के वो कुकरी जेकर प्राण हरे ना सुलिन लगाके जीयन देय। अब तो आम आदमी के भरम हे कि सरकार हम बनाथन कहिके। फेर सच ये हे कि सरकार मशीन बनाथे उद्योगपति बैपारी जेला कार्पोरेट घराना के खास कथन वोमन बनाथे। अपन फायदा के हिसाब ले इही खास मन खास मनके निर्माण करथे। आम आदमी अपन अँगरी मा परे सियाही के निसान देखके खुशी मा तिहार मनावत रथे। कि सरकार हम बनाय हन। मशीनीकरण के तहखाना मा काजर के डबिया हे आँजबे तभो अँधरा नइ आँजबे तभो अँधरा। जेन खास मन खास के चुनाव करथे उँकर लागत अउ लाभ चार गुना का चोबिस गुना होके मिलथे। आम जन के हाथ चरन्नी नइ लगे। हम जब "आप" के कथन तब जुरमी अपराधी करार देय जाथे। "का" के सँग जुड़के रेहे मा देश ला कँगला अउ गरीब बनइया के सूची मा नाम सँघेर देथे। "भा" वाले मन तो भकला भोंदू समझके ठग जग करे मा माहिर दिखथे। ओकर सेती "आ" मे "म" जोड़ के अँगरी मा सियाही के निसान लगाना ला अपन सौभाग्य मानत हे। दानवीर करण कस कवच कुंडल तो का कनिहा के लँगोटी तको उतरगे तभो ले नाती भतीजा मन ला खास बनाके बरेंडी मा टाँगे के धरम निभावत हवन।आम जनता आमा कस गुदेलाय पिचकोलाय चाहे चुहकाय राष्ट हित मा  त्याग करे के कसम खा डरे हे। फेर अपन अधिकार ले अनजान मन आज ले नइ जान पाये हे कि आम कोन हरे अउ खास कोन हे।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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