भाव पल्लवन--
बैरी बर ऊँच पिढ़वा
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आगी ल आगी नइ बुझा सकय वोला तो पानीच ह बुझा सकथे।ओइसनहे क्रोध ह क्रोध करे ले शांत नइ होवय वोकर बर सहनशीलता चाही।जुबान म लगाम चाही।अइसनेच बैर के भाव ह तको होथे।वोला हवा देये ले अउ मनमाड़े भभक जथे।
कोनो ह कोनो ल अपमानित करदिच,कुछ अइसे बात कहि दिच जेन ह हिरदे म बान असन गड़के घाव करदिच तहाँ ले दूनों म दुश्मनी पैदा हो जथे। दूनों झन एक-दूसर ल झुकाये बर ,चोंट पहुँचाये बर मौका के तलाश म लगे रहिथें।कइसनों करके बैर ल भुनावत रहिथें।एतरा ले उँकर दुश्मनी गढ़ावत जाथे।
बैर करना अच्छा नइ माने जाय फेर स्वाभिमान अउ देश के रक्षा खातिर जूझना ह मान तको पाथे।
अधिकांश दुश्मनी ह छोटे-मोटे कारण ले पैदा होके विकराल रूप ले लेथे अउ दूनों दुश्मन ला भारी नुकसान पहुँचाथे। झगड़ा-लड़ाई ,मारपीट युद्ध ले ककरो भला नइ होवय।
बैरी ल जीतना तब सहज हो जथे जब वोकर दिल ला जीत ले जाथे। कोनो कुछु भी कारण ले बैरी होगे हे त वोला अपन कोती ले सम्मान देके ये बैर ला खतम करे जा सकथे। बैरी ल ऊँच पिढ़वा देके बइठाना अच्छा होथे।अइसन करे म खाँटी दुश्मन ला दोस्त बनत देरी नइ लागय।
चोवाराम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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