भाव पल्लवन--
झन खेल जुआँ,झन झाँक कुआँ
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जुआँ नइ खेलना चाही चाहे वो ह पासा ,काट पत्ती,रमी,सट्टा,लाटरी ,घुड़दौड़ आदि कोनो रूप म होवय काबर के एकर ले जिंदगी बरबाद हो जथे।
जुआँ ह एक प्रकार ले भयानक नशा आय। नशा चाहे कोनो होवय वो नुकसान तो करबेच करही। जुआँ ह अइसन लालच के बुराई आय जेन ह आदत परिच तहाँ ले छोड़े म छूटे ल नइ धरय । ये हा धीरे-धीरे जिनगी के आनंद ल चुहक के सेटराहा कर देथे।
जुआँ खेले के अतका जादा नुकसान हे के गिने नइ जा सकय।रुपिया पइसा, धन-दौलत अइसे बरबाद होथे के राजा ल रंक बनत देरी नइ लागय। जुआरी के बाई,लोग-लइका रिबी-रिबी बर तरस जाथें। घर-परिवार म दुख के बासा हो जथे।जुआरी ल उदासी अउ क्रोध ह हरदम घेरे रइथे।जिनगी के किमती समे अइसे नष्ट होथे के झन पूछ? समाज म इज्जत घट जथे।
कर्जा म बूड़े हारे जुआरी के हालत बइहाय कुकर या फेर मनमाड़े घायल शेर कस हो जथे ।वो कुछ भी कर देही। जुआरी के पाप करम शराब खोरी,व्यभिचार,चोरी, डकैती आदि म डूब के मरे के पूरा संभावना रहिथे।
ओइसनहे कोनो गहिरा कुआँ ल निहरके नइ झाँकना चाही काबर के थोरको बेलेंस बिगड़ीच ,चिटको असावधानी होइस तहाँ ले मुड़भसरा गिरके पानी म बूड़के मरना हो जथे। कुआँ कहूँ सुक्खा हे त तो मूँड़-कान फूटहीच, हाड़ा-गोड़ा टूटहीच अउ प्रान निकलहीच।
चोवाराम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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