शब्द साधक डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा
1 मई मजदूर दिवस तो आय फेर एकझन लिखइया डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा के जन्मदिन घलाय तो आय । उन कलम हांथ मं ले के साहित्य के मजदूरी च तो करत रहिन । छत्तीसगढ़ी , हिंदी गद्य के मुसाफिर पाठक मन ल सुसक झन कुररी सुरता ले , तिरिया जनम झनि देय , गुड़ी के गोठ , सुरुज साखी हे , नमोस्तुते महामाये , छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक इतिहास , छत्तीसगढ़ के खेती किसानी , छत्तीसगढ़ के लोकोक्ति , मुहावरे आदि कृति भेंट करिन ।
उन लगभग पचास साल तक छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास ल लोककथा , जनश्रुति , लोकपरम्परा , लोकगीत , लोकगाथा , लोकोक्ति मन ल निरख परख के अपन रचना मन के माध्यम से सम्प्रेषित करे के उदिम करत रहिन । उंकर शब्द साधना के बानगी इही कृति मन तो आंय फेर ध्वन्यात्मक शब्द मन के प्रयोग , ललित निबंध के रवानगी सराहनीय , अनुकरणीय हे । शोध प्रबंध मं तीन हजार दू सौ छप्पन छत्तीसगढ़ी शब्द मन के संकलन हे , तीन सौ हाना ल जघा मिले हे त छतीसगढ़ के बावन हजार वर्गमील के भुइयां मं रहइया , बसइया मनसे मन के जीवन संग खेती बारी करइया किसान मन के कृषि संस्कृति के लेखा जोखा घलाय तो शामिल हे ।
उंकर कहानी के पात्र के मंनोभाव सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होवत चलथे त पाठक पड़थे मनोविश्लेषण जेहर असाधारण मन के असाधारण अंतः वृत्ति मन ल विश्लेषित करथे । रहिस बात नारी पात्र मन के त कोनो मेर उंकर नायिका अबला , बिचारी के रूप मं नइ दीखय । प्रेम मं जीवन निछावर करथे फेर अन्यायी के हाथ अपन गरब गुमान ल बेचय नहीं । अइसे लागथे के बिधाता हर डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा के पुरुष देंह मं हृदय तो नारी के देहे रहिस । हिंदी छत्तीसगढ़ी दूनों भाषा मं बरोबर अधिकार रहिस तभो कहे च बर परही के उन छत्तीसगढ़ी साहित्य के घन छांव वाला बर पेड़ रहिन । आधुनिक छत्तीसगढ़ी के पहिली कहानी" नांव के नेंह मं "ल माने जाथे ...जेहर बिलासपुर शब्द के एक एक अक्षर ल लेके एक एक अंश मं लिखाए हे ।
छत्तीसगढ़ी भाषा ल समृद्ध बनाये बर उंकर योगदान ल कभू भुलाए नइ जा सकय ।
आज उनला मन प्राण ले प्रणाम करत हंव ।
सरला शर्मा
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