Friday, 12 May 2023

कुटनी चाल महेंद्र बघेल

 कुटनी चाल 

                  महेंद्र बघेल 


ननपन म हमर परोस म एक झन होनहार कका रहय।ओला कई ठन कथा-कहानी ह मुअखरा याद रहय।जब कभू किस्सा -कंथली सुने के मन होय मॅंय कका कथा दास के आरो लेवत ओकर तपोभूमि म पहुॅंच जाॅंव।उपन्यास कस बड़े ले बड़े, लघुकथा कस नान्हे ले नान्हे अउ कहानी कस मॅंझोलन टाइप के कथा-कहानी सुनाय म एक नंबर के उस्ताज रहिस कका कथा दास ह।कथा दास ह कतको कथा- कहानी ल जाने फेर ओकर जिनगी म कथा- कहानी सीखे के कोई विशेष कथा- कहानी नइ रहिस।

          कभू-कभार बबा (कका के ददा) ल पूछन त ओहा बताय - "हमन कथा दास ल बड़ मुशकुल म पाय हन बेटा.., कई साल ले इहाॅं -उहाॅं जा-जाके मूड़ी नवायेन, मनौती माॅंगेन.., घर-दुवार अउ डिही-डोंगर म बड़े-बड़े कथाकार मन ले कथा कहवायेन।त ले देके ऊपरवाला के हेड आफिस म हमर मनौती के बनौती बनिस। कथा दास ह जब लघु कथा कस नान्हे रहिस तभे कथा-कंथली कहवइय्या सियान मन ल सुन-सुन के कथा कहे बर सीखगे रहिस।"        

          जातक कथा, लोक कथा, परी कथा, जोक्कड़ कथा, एकम कथा ,दूज कथा, एकादशी कथा.., पुन्नी कथा, अमौसी कथा, राजा रानी के कथा, माल मवेशी के कथा अउ किस्सा-कंथली..,जेन कथा के फरमाइश कर दे उही कथा ल सुनाय बर एक गोड़ म खड़े रहय कका कथा दास ह..। तुम नइ पतियहू फेर कथा दास के अवाज ह अमीन सयानी के अवाज कस बड़ गुरतुर रहिस। सुनत-सुनत पेट ह लाॅंघन पर जतिस फेर सुने बर मन ह नइ अघाय।

                 जेठ के गरमी म घर के सबो परानी मन खा-पीके मंझन कुन ढार परत रहेन। हमन मंझनिया ल अभी ढारतेच रहेन कि सबरदिन कस आजो बिजली माता ह खुद मंझनिया ढार परे बर नौ दो ग्यारा होगे। बिजली आफिस के सम्मान करे बर हमर कर करेंट वाले एको ठन शब्द नइहे फेर बिजली बाबू-साहेब मन कर कतको शिकायत करले, उद नइ जले..।एकरे ओधा म उनकर भरे मंझनिया ढार परे के प्रोग्राम ह पहिली ले सेट रथे। एती बिजली माता के किरपा ल देखके घर के जम्मो पंखा,कुलर मन घलव ढार परगें। इनकर ढार परई ल देखत हमर ढार परई के पसीना छूटगे । शिवनाथ खारून के धारा कस तरतर-तरतर बोहावत पसीना के डीओ टाइप नेचरल खुशबू ले जीव ह हलाकान होय लगिस। तुरते एक ठन गमछा ल धरके बिजना कस धूॅंकत अउ एसी के अनुभो करत बेरा पहाय के उदीम म अपन गोड़ के दिशा ल कका कथा दास के तपोभूमि के दरबार हाल डहर जाय बर मोड़ देंव।

   कहाॅं जी कका..,का करत हस मॅंय हूॅंत करायेंव। कका कहिस-" घर के भीतरी म हॅंव जी..,माछी खेदारत हॅंव। बिजली गोल होय के खुशी म माछी मन आजादी के तिहार मनावत मुॅंहुॅं-कान म भरतनाट्यम करत हें,उही मन ल खेदत अपन राष्ट्रीय धरम निभावत हॅंव।चल बता कइसे आना होइस।

          बिजली महतारी के किरपा ले खटिया मा ढलंगे कथा दास ह गरमी म खुदे तालाबेली होके छटपटावत मोबाइल ल कोचक- कोचक के ओकर प्राण पुदक डरे रहय। अउ नब्बे परसेंट बतावत डाटा ह लसियाके टाटा करे बर उल्टी गिनती गिनत रहय।

         कथा दास के कथात्मक गोठ ल सुनके सबले पहिली बिजली विभाग ल श्रद्धा सुमन अर्पित करेंव अउ गरमी के मारे चोपियाय अपन बक्का ल खोलेंव -" बड़ दिन ले तोर कन आय बर योजना बनात रहेंव कका..,फेर नइ उसरत रहिस,आज धन्य मनावत हॅंव बिजली महतारी के जेकर परसादे कथा-कहानी सुने के मौका मिलही।" 

        कका कथा दास ह बड़ बेर ले मनेमन म गुनिस अउ कथा सुनाय के बोहनी करिस -" तोर आय के पहली एक ठन समाचार ल पढ़त रहेंव बाबू रे.., रातकुन बीच सड़क म बइठे कारी गाय म झपाके होंडा सवार बाप-बेटा के अस्पताल म मौत।एक तो पक्की सड़क उपर ले कारी गाय,अइसन अलहन ले भगवान बचाय।चल आज मॅंय तोला इही मवेशी समाज के किस्सा सुनावत हॅंव।चातर राज म माल-मवेशी मन के भरोसा म किसान मन अपन खेती-बाड़ी करत सुख-दुख म जिनगी पहावत रहिन। ओ राज के किसान के बेटा मन बड़ हुसियार रहॅंय,ओमन खेती-किसानी ल सरल बनाय बर खोज-खोज के नवा-नवा मशीन बनाना शुरू करिन। मोटर पंप बनाय ले किसान के चेहरा म खुशियाली छागे। फेर उड़ावनी पंखा, थ्रेसर अउ हार्वेस्टर जइसे किसानी के जम्मों औजार बना-बनाके किसान मन के काम ल सुभित्ता करत गिन। होनहार पुत्तर मन के नवा-नवा खोज के सेती किसानी काम-काज म माल-मवेशी के पूछ -परख कम होगे। पूरा मवेशी समाज मन अकाल बेरोजगारी के शिकार होगें, समाज के समरसता छिदिर-बिदिर होय लगिस। बिना काम-धाम के बैठांगुर गाय-भैंस परिवार के बछवा, पड़वा मन के आदत एकदम बिगड़गे।सड़क होय चाहे बरदी येमन खुलेआम छेड़छाड़ अउ नान्हे नीयत रखना शुरू कर दिन। मने येमन टपोरी,सड़क छाप होगें अउ अपन खानदानी संस्कार ल भुलाय लगिन। मवेशी समाज म असहिष्णुता के बोलबाला होगे। समाज म समरसता के भाव ल छर्री-दर्री होवत देखके चारा,आवास अउ रोजगार के फिकर करत एक दिन मवेशी समाज के जम्मो सियान मन आम सभा बलाइन। एमा गधा-घोड़ा, उॅंट, छेरी-भेड़ी गाय अउ भइस समाज के सियान मन अपन अपन बात ल लइन से रखिन अउ सबके सहमति ले गाय समाज ले गबरू गोल्लर अउ भइस समाज ले भुसुंड भैसासुर ल अपन महासभा के सियान मनोनीत कर दिन। फेर बारी-बारी ले अपन- अपन समाज के समस्या अउ सुझाव ल बइसका म सुनाय बर कहिन।

                सबले पहिली छेरी-भेड़ी समाज डहर ले डड़िहारा बोकरा ह में-में-में.. राग धरत बुलंद अवाज म मेमियावत चार समाज म अपन बात ल रखिस -" में -में.., मॅंय का बोलव में-में..हमर तो अवाजे थोरको नइ सुने सरकार ह.., कुछु कहिबे ते चुप रे छेरी कहिके हमर बोलती बंद कर देथें।हमर चारा के चरागन- ये भाठा,पाई -परिया ह डिस्पोजल कप ,पतरी-पलेट, गिलास, झिल्ली, सनपना के मारे पटा गेहे,चतुरा किसान मन मेड़ -पार म सफाया छिंच -छिंच के चारा के भ्रूण हत्या करे म लगे हें।मनखे समाज के दाढ़ी वाले मन अपन तिहार म हमर सामूहिक कतल करत जशन मनाथें अउ मनौती माॅंगे बर चोटइय्या वाले मन हमर बली दे-देके घंटी बजावत नोट गिनत हें। सुवारथी मनखे के धरम -करम ह हमर प्राण ले जादा किमती हे का..। मनखे के चोला म येमन शेर-भालू ले जादा हिंसक नइ होगे हें..।

ये आमसभा म हमला इही कहना हे कि झिल्ली डिस्पोजल के बउरई अउ सफाया छिंचई उपर तत्काल बेन लगाय जाय अउ हमर बर कोंवर-कोंवर, हरियर-हरियर हाइजीनिक चारा के व्यवस्था करे जाय। नइते ठगेश्वर बाबा सही हमन ला तांत्रिक विद्या सिखोय बर ठगानंद विद्यालय खोले जाय।जेकर ले हम अपन सिंग म तंत्र विद्या सकेल सकन,समाज म एकता ला सकन अउ हमर छेरी समाज के हत्यारा बैरी मन ले हुमेल-हुमेल के ऐतिहासिक बदला ले सकन।

      दूसरइय्या नंबर म ऊंट अउ घोड़ा समाज मन अपन अल्पसंख्यक होय के रोना रोइन अउ खेत-खार, परिया-कछार जिहां तक हरिहर-हरियर दिख जाय उहाॅं तक चरे बर विशेष सुविधा देय बर आवेदन लगाइन।एक ठन सुधवी बपरी सही दिखत धौरी घोड़ी ह समाज के दुख म अपन दुख ल मिंझारके हिनहिनावत कहिस-" विकास बाबू के राज म हमन तो अल्पसंख्यक होगेन जी, राजा-महाराजा के समे म हमर अलगे धाक रहय, हमर बिना एक ठो पत्ता नइ डोले। आजकल तो हमर कोई पूछन्त्ता नइहे। बिहाव सीजन म एकाद कनी रोजगार मिल जथे फेर यहू डहर कभू-कभू जात-पात म बुड़े दबंग समाज के ॲंखफुट्टा मनखे मन मोर उपर बइठे दूल्हा मन ल जबरन खींचके उतार देथें।मनखे डहर ले मनखे के अतिक हिनमान होवत देखके पोटा अइॅंठ जथे।दबंग समाज के मनखे मन अतिक देखमरा होथे,हम बता नइ सकन..,फेर हम ये ॲंखफुट्टा मन ल छटारा (दुलत्ती) मारके अपन बेइज्जती घलव नइ करा सकन, घोड़ा समाज के अपन इज्जत के सवाल रहिथे। आखिर म हमर एके ठो डिमांड हे हमर पुरखा.., घोड़ा शिरोमणी खूर-वंदनीय एक हजार एक घोड़ेश्वर चेतक महराज के जन्म जयंती अउ पुण्य तिथि बर शासकीय अवकाश के घोषणा करे जाय।

        अपन पारी म गधा ह रूतबा देखाय के चक्कर म अपन अवाज ल बदलके कोयली कस मीठ अवाज म बोले के कोशिश करिस फेर बिचारा गरीब ह रेक डरिस अउ आखिर म होची- होची करत अपन बात ल रखिस-" हमर दुख ल हम का बतान सियान बबा हो, दुनिया म जब तक हुशियार मन ह रहीं तब तक हमरो नाम ह अमर रही। हमर तो नामे ह हुशियार लइका अउ सरकारी स्कूल के भरोसा म जिंदा हे।कते दिन सरकार ह यहू ल बेच भाॅंज के प्राभेट कर दिही ते हमर नाम के अर्थी निकल जही। सरकारी स्कूल के मास्टर मन कमजोरहा लइका ल बात-बात म अरे गधा हो कहि कहिके हमर समाज के नाम ल अमर कर देहें।प्राभेट स्कूल के सूट-बूट पहिरे लइका ल भला गधा कहिके तो देख।  मनखे समाज मन कूद-कूद के कतको चिल्लावत हें, हमर जनगणना करो कहिके फेर कुर्सी म बइठे हमर टाइप के सगा मन कहाॅं मानत हें।अउ हमर ल देख लेबे कइसे फटाफट जनगणना हो जही तेला।अब चार समाज मन खुदे समझ सकथो जनगणना के मामला म मनखे अउ हमर म काकर रूतबा ह जादा हे।एती मिक्सी ग्राइंडर के जलवा सेती जाॅंता अउ सील -लोढ़ा म वाट लगगे हे।एकर साइड इफेक्ट अइसे कि बेल्दार भैया मन हमला लात मार के भगा दिन।वांशिग मशीन के सेती बरेठ भाई मन लचार हें त हमर हाल ल समझ सकथो बबा हो..। हमरो समाज के रोजी-रोजगार बर कुछ योजना बना देतेव ते गधा समाज ह ये महासभा के जीयत भर आभारी रही बबा हो.., होची..होची।

              जब भैंइस समाज के पारी अइस तब सियान भैंसासुर ह समाज के समस्या ल बताय बर मुर्री भैइॅंसी ल नेम दिस।मुर्री भैइॅंसी ओंय..,ओंय.. नरियावत कहिस -" हम हमर दुख ल का गोहरावन जी हमर बर तो हमर कायाच ह ॲंधियार हे,एक कन घाम म जाथन त चट ले जरथे..,जीव अगिया जथे।फेर का करबे जीयत हन,लद्दी म घोलन्डबे त मालिक ह धो देथे।इही लद्दी ह हमर बर एसी के काम करथे फेर वाह रे सुवारथी मानुष चोला, धो-धो के हमला गरमी के मुंहुं म ढकेल देथें..। हमर भैइस समाज के दूध एकदम गाढ़ा रहिथे तभो हमर ले दुवा-भाव, मनखे मन अपन देवता-धामी म नइ चढ़ाॅंय।बेचे बर,इस्पेशल चहा बनाय बर, लस्सी बनाय बर हमरे दूध एक नंबर माने जाथे। फेर हड़ही गाय जेकर कोई औकात नइहे.., निच्चट पनीयर दूध देवइय्या ल मुड़ी म चढ़ाय रहिथें। ओकरे दूध ल देवता म चढ़ाथें, घीव के दीया जलाथें। हमर तो पूछन्त्ता नइहे।

           गाय समाज के निंदा ल सुनके उनकर युवा वाहिनी के नेता गबरू गोल्लर ह बगियागे फेर सियान होय के नाते मन मसोस के रहिगे। येकर जगा कन्हो मनखे समाज के नेता रहितिस ते ओकर भावना ह खच्चित आहत हो जाय रहितिस। अब आखिरी वक्ता के रूप म गाय समाज ल बोले के मौका देय गीस त गाय समाज के चतुरा सियान मन मुर्री भैइॅंसी ल धवाॅंय बर हरही-चोट्टी टाइप के मुहुबाड़िन गाय ल बोले बर उठईन । ठड़सिंगी चोरही गाय ह उनिस न गुनिस सोज-सोज शुरू होगे अउ भैइसी समाज के सात पुरखा म पानी रितो दिस-" हाव रे.., बिलवी भैइसी.., भदही.., भाॅंठा के चारा ल सफाचट कर देथस, हमर बाटा के काॅंदी -पैरा ल मनमौजी खाथस ,कोटना के दाना-पानी ल दमोर के झड़कथस तब तो तोला कुछु नइ लागिस,आज भरे मिटिंग म ओंय-ओंय करत हस खबड़ी.., पेटमाॅंहदूर..। गऊ माता कहि-कहिके हमला कट्टीपार भेजत हें,रात-दिन सड़क म रउॅंदा -रउॅंदा के मरत हन, तेकर कुछ हिसाब हे..।

 नइ जानस तेला आज जान ले। मनखे समाज कस जानवर समाज म कन्हों पोथी-पत्तर होतिस ते हमर गाय समाज ल सबले ऊंचा जात के पदवी मिलके रहितिस समझे। हमर मान गौन ह मनखे समाज ले कौन मार से कम हे। दंगा म लिल्हर मनखे ह मर जही ते दबंग समाज मन ल कोई फरक नइ परे फेर हाॅं दूसरा धरम वाले ह हमर समाज के लेवई तक ल छू दिही ते इनकर भावना ह खट ले आहत हो जथे अउ लड़ई-गुंडई के कोशिश म लग जथें। अब समझेस कि अउ समझाॅंव.., गाय के आगू म लिल्हर मनखे के का औकात हे..‌। मनखे समाज म हमर तो अइसे-अइसे ऑंखी वाले भगत हें..,जेन सु-सु ते सु-सु गोबर ल घलव गापा मार देथें त हमर का दोष..।

              जानवर समाज के महासभा म अपन दबंगई दिखाय के गाय समाज के कुटनी चाल ल समझत मुर्री भैइॅंसी ल देरी नइ लगिस। ओ मने मन म गुनान करे लगिस -" लफर- लफर डिंग मारके जानवर समाज ल कइसे भोंदू बनाना हे, इही मन ल आथे। हत रे कपटी हो दिखत के सुधवा-सुधवी फेर दिल- दिमाग म जहर भरे हे रे बैरी हो। एक्के घाॅंव पखुरा ल हुदेनहू ते तुॅंहर बुता बन जही फेर ठउॅंका समय म मोरे समाज के डरपोकना मन संग दिही कि नइ दिही तेकर का भरोसा, कतिक बेर पाछू घूॅंच दिही..,जानवर समाज के बाते झन पूछ..।"  इही सोचत मुर्री भैइॅंसी ह अपमान के घूॅंट ल गटागट पीगे..। अउ चार समाज के हित के बारे म सोचत अपन बात ल महासभा के बीच म फेर रखिस -" टार बहिनी तुमन फोकट के झगरा मतावत हो,आज ले गाय समाज के एको मेंमर ह हमर समाज के नानचुन लेवई तक ल बिलवी भैइसी नइ कहे रहिन। अउ तुमन भरे आमसभा म नसल भेद के बात करत हो। जानवर ते जानवर मनखे समाज ह घलव अइस ठोसरा नइ मारे रहिन।" 

       भैइसी ह जानत रहिस अपन समाज के कमजोरी ल.., कइसे भुसुंड भैसासुर ह गाय समाज अउ गोल्लर के घपघप (बहकावा) म आ जथे अउ सबो जगा म गबरू गोल्लरे के कूटना चाल अउ दबंगई ह चल जथे। मनखे वाले लोकतंत्र सही अपनो लोकतंत्र ल दबंग मन के कठपुतली बनत देख.., मवेशी समाज म समरसता ल सदा कायम रखे बर मुर्री भैइॅंसी ह अपन अंतस के आक्रोश ल चुमुक ले दबा दिस।तहाॅं अवइय्या विश्व जानवर दिवस बर अइसनेच बइसका के घोषणा करत गोल्लर ह भूॅंकर -भूॅंकर के सभा समापन के घोषणा कर दिस..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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