Tuesday, 12 November 2024

आज 108 वीं जयंती म विशेष... चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख

 आज 108 वीं जयंती म विशेष...


चंदैनी गोंदा के सर्जक: दाऊ रामचंद्र देशमुख 


जब मोर जनम होइस वोकर ले दू साल पहिली “चन्दैनी गोंदा “के जनम होगे रहिस हे. अउ जब येखर सर्जक श्रद्धेय दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ह जब येला कोनो कारन ले आगू नइ चलइस त मात्र 

आठ साल के रहेंव. मेहा दाउ राम चन्द्र देशमुख जी द्वारा संचालित” चन्दैनी गोंदा “ल कभू नइ देखेंव. दाउ जी ले घलो कभू आमने- सामने भेंट नइ कर पायेंव. मोर अइसन सौभाग्य नइ रीहिस हे. पर 

मोर डायरी म दैनिक सबेरा संकेत 

राजनांदगांव के “आपके पत्र “स्तंभ के पेपर कटिंग हे. वोखर मुताबिक मेहा 21 मार्च 1996 म दूरदर्शन केन्द्र रायपुर के कार्यक्रम “एक मुलाकात “ के तहत जब  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी ले “गोठ बात “करे रीहिस हे वोला मेहा गजब रुचि लेके सुने रेहेंव. काबर कि मेहा कई ठक अखबार म श्रद्धेय दाऊ जी के जीवन परिचय, चन्दैनी गोंदा अउ “कारी” के बारे म पढ़े रेहेंव.  उद्भट विद्वान डॉ. गणेश खरे जी के लेख के सँगे सँग  कुछ अउ विद्वान मन के लेख ल पढ़े रेहेंव. जब दूरदर्शन केन्द्र रायपुर ले ये भेंटवार्ता ह शुरु होइस त मेहा आखिरी होत तक टस से मस नइ होयेंव.  ये भेंटवार्ता ले मोला छत्तीसगढ़ लोक कला मंच के विकास यात्रा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के योगदान के सुग्घर जानकारी मिले रीहिस  राम हृदय तिवारी जी ह दाऊ जी गजब अकन सवाल करिन कि देहाती कला विकास मंडल अउ चन्दैनी गोंदा के गठन अउ कारी के मंचन के का उद्देश्य रीहिस  हे. चन्दैनी गोंदा के पहिली इहां के नाचा अउ लोक कला मंच के कइसन दशा अउ दिशा रीहिस हे .चन्दैनी गोंदा ल आप  विसर्जित करे जइसे कठिन निर्णय काबर लेंव. अइसे का परीस्थिति अइस!  ये सवाल तिवारी जी ह श्रद्धेय दाऊ जी ले करिस त वोहा एकदम भावुक  होगे. वर्तमान म लोक कला मंच के दशा अउ दिशा उपर जब चर्चा चलिस तब दाऊ जी ह गजब उदास होगे अउ कहिस कि हमर छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान ल जगाय बर काम नइ हो पावत हे. लोक कला मंच के नाम म सिनेमा संस्कृति के जोर होगे हे. अइसे कहत -कहत दाउ जी ह एकदम गंभीर होगे. 


  दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के जनम  25 अक्टूबर 1916 म बालोद जिला के डौंडीलोहारा विकासखंड के गाँव पिनकापार म होय रीहिस हे. वोकर पिता गोविंद प्रसाद बड़का किसान रिहिन.  उंकर प्राथमिक शिक्षा गांव म  होइस. फेर नागपुर विश्वविद्यालय ले बीएससी (कृषि) म स्नातक  अउ वकालत के पढ़ाई करिन.  ऊंकर बिहाव छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा खूबचंद बघेल के बेटी राधा बाई ले होइस.बचपना ले वोहा दार्शनिक अउ चिंतक प्रवृत्ति के रिहिन.ननपन ले नाचा अउ नाटक देखे के शउक रिहिन.  शादी के बाद बघेरा म रहिके उन्नत ढंग ले  किसानी करिन. दाऊ जी ह आयुर्वेदिक पद्धति ले अपन गांव बघेरा म लकवा अउ पोलियो मरीज मन के ईलाज करके जन सेवा करिन. 


  शुरु म पिनकापार म राम लीला मंडली के गठन करिन. वोहा खुद नाटक अउ राम लीला म भाग लेय. 


. वोहा 1950  म देहाती कला विकास मंडल के गठन करिन .  येकर माध्यम ले अंचल म प्रचलित नाचा के प्रस्तुति म परिष्कार करिन. दाऊ जी कलाकार मन के खोज म गांव- गांव भटकिन.


. येमा लाला फूलचंद श्रीवास्तव  जी चिकारावाला (रायगढ़), ठाकुर राम जी , भुलवा (रिंगनी साज),  रवेली साज के मदन निषाद जी (गुंगेरी नवागाँव, डोंगरगॉव, राजनांदगांव) जइसे बड़का कलाकार शामिल होगे. दाऊ जी ह ये कलाकार मन ल लेके काली माटी, बंगाल का अकाल, सरग अउ नरक, राय साहब मि. भोंदू खान साहब नालायक अली खां, मिस मैरी का डांस जइसे प्रहसन खेल के मनोरंजन के सँगे सँग जनता ल संदेश घलो दिस.  दाऊ की मंडली ले जुड़े कुछ बड़का कलाकार मन प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीर तनवीर के नया थियेटर दिल्ली म शामिल होगे.  सन् 1954 ले 1969 तक  दाऊ जी ह अपन सबो समय ल जन सेवा अउ समाज सुधार म लगा दिन. कई साल तक

शांत अउ गुमनामी के जिनगी गुजारिस.  फेर अपन माटी के करजा ल छूटे के प्रेरणा ऊंकर अंतस म सदा ले भराय रिहिस.अउ वोहा प्रस्फुटित होइस 20 साल बाद चंदैनी गोंदा के रूप म. 


  अउ 7 नवंबर 1971 म अपन गाँव बघेरा (दुर्ग)  मा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्देश्य लेके लोक सांस्कृतिक संस्था “चन्दैनी गोंदा “के गठन करिस. बघेरा के बाद  येकर प्रस्तुति पैरी, भिलाई, राजनांदगांव,धमधा,नंदिनी, धमतरी,झोला,टेमरी अउ जंजगिरी जइसन जगह म 50-50 हजार दर्शक मन के सामने होइस. चंदैनी गोंदा के प्रदर्शन छत्तीसगढ़‌ के संगे संग उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, दिल्ली अउ मध्य प्रदेश म घलो सफलतापूर्वक होइस. अखिल भारतीय लोक कला महोत्सव यूनेस्को द्वारा आयोजित भोपाल सम्मेलन म कार्यक्रम के गजब प्रशंसा होइस. 


 चंदैनी गोंदा ह हमर छत्तीसगढ के कवि मन के लिखे गीत ले सजगे. दाऊ जी ह चंदैनी गोंदा के बड़का कार्यक्रम म इहां के साहित्यकार मन के सम्मान करके एक नवा उदिम करिन. 



दाउ जी ह चन्दैनी गोंदा, कारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के पीरा ल सामने लाइस. इहां के रहवासी मन के स्वाभिमान ल जगाइस.किसान,मजदूर अउ नारी मन के दयनीय दशा ल सामने लाके शोषक वर्ग मन के बखिया उधेड़िन . चन्दैनी गोंदा के माध्यम ले  लक्ष्मण मस्तुरिया जी,  खुमान साव जी, गिरिजा सिन्हा, महेश ठाकुर,मदन चौहान, संतोष कुमार टांक,रामरतन सारथी, केदार यादव जी, साधना यादव जी, भैया लाल हेड़ाऊ, शेख़ हुसैन,रवि शंकर शुक्ला, संतोष झांझी, मंजूला बनर्जी,शिव कुमार दीपक, जगन्नाथ,राम दयाल, ठाकुर राम, मुकुंदी राम, हीरा सिंह गौतम चित्रकार, बसंत दीवान छायाकार,



कविता हिरकने (वासनिक ), संगीता चौबे, अनुराग ठाकुर,  डा. सुरेश देशमुख प्रथम उद्घोषक, जइसे उम्दा कलाकार सामने आइन. 


  मेहा दाऊ जी द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा ल कभू नइ देखेंव पर 

बाद म लोक संगीत सम्राट श्रद्धेय खुमान साव जी द्वारा संचालित चंदैनी गोंदा ल घलो मात्र दो बार देख पायेंव .पर श्रद्धेय खुमान साव जी ले भेंट नौ बार होइस हे. येखर संस्मरण घलो लिखे हवँ. 

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ये  रखवार  ह 13 जनवरी 1998 म अपन नश्वर शरीर ल छोड़ के स्वर्ग लोक चले गिस. दाऊ जी ह अपन यश रुपी शरीर ले सदैव जीवित रहि.उंकर  भतीजा अउ चंदैनी गोंदा के पहिली उद्घोषक डा. सुरेश देशमुख जी ह  दाऊ रामचंद्र देशमुख के बारे म अपन संपादन म किताब प्रकाशित करवाय हे। ये किताब म दाऊ रामचंद्र देशमुख के जीनन परिचय, देहाती कला विकास मंडल, चंदैनी गोंदा के विकास यात्रा अउ येकर ले जुड़े कलाकार, गीतकार मन के बारे म सुघ्घर जानकारी हे। ये किताब ह हमर छत्तीसगढ के सांस्कृतिक दस्तावेज हरे।

श्रद्धेय दाउ जी ल उंकर 108 वीं जयंती म शत् शत् नमन हे. विनम्र श्रद्धांजलि. 


          ओमप्रकाश साहू “अंकुर” 


      सुरगी, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

थोकिन टेचरही गोठ - " देवारी के रचना "

 थोकिन  टेचरही गोठ -

       " देवारी के रचना  "


इस्कूल बंद होवईया हे l देवारी के छुट्टी हे फेर देवारी के ऊपर नवा रचना लिख के लाये के  'होमवर्क 'मिले हे लइका मन ला l 

होमवर्क घलो रचना लिखे के बूता ए l

           देवारी तिहार

   " देवारी एक अइसे तिहार हे जेला सब मनाथे जबरदस्ती मनाथे l 

देवारी तिहार मनाये के पहिली लछमी जी ला पहिली देखाथे पाछू साल आपके किरपा ले  अतका धन कमाए हन l ओ हिसाब ले ए साल के देवारी ल मनाबो l 

जेखर पास हे  लछमी,ओहा लुका के रखथे l जेखर पास नई हे पटक पटक के देखा देखा के मनाथे l

देवारी  ह दुवारी ला देख के आथे l

एखर सेती दुवारी ला ज्यादा सजा थे l घर के भीतरी ला कोन देखथे? बाहिर  ले बने दिखना चाही l 

 देवारी मनाये के पाछू तीन कारन होथे 

1 कोनो कुछु झन कहय हमला दिवालिया 

2 लछमी ककरो घर झन रहय 

  थिर थार 

3 लछमी सदा रहे सहाय 

देवारी ले लाभ और हानि -

देवारी के दिन शुभ -लाभ लिखे जाथे,बाकी दिन भले कलह झंझट हानि होवत रहय 

उपसँहार - देवारी तिहार ले सीख मिलथे हँसी माढ़े रहय खियाये मत एखर ख़याल रखे जाय l 

देवारी के अंजोर बगरत रहय चोरी झन होय l चोरी होय तो चोर झन पछताय l  

      मातर के मारपीट ला घर तक रखो पुलिस को पता मत चले l 

माते अउ मताये के नाम देवारी l

अइसन देवारी हर बछर आवत रहे  l 

ले जय जोहार l 


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

बदला

 अँगरेजी के ला छत्तीसगढ़ी मा कथा सार कथानक अनुवाद करे छोटकुन कहानी।हाई स्कूल मेट्रिक  19 84 मा पढे कहानी के आय।जेकर सुरता मोर मन मा आज ले हावे। ओइसे भी महूँ मेट्रिक तक ही पढ़े हवँ। जे मन पढ़ पाही ओमन अपन विचार भरोसी ले रखहीं। 

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       बदला


        एक ठन चिरई जेन हर जमीन मा अंडा देथे। इही चिरई हर नदिया तिर के परिया भुँइया मा अंडा पार के सेय बर बइठे रिहिस। एक दिन उही डहर ले हाथी के दल  नदिया मा पानी पिये बर आवत रिहिस। चिरई के मन मा डर समागे, अउ हाथी के मुखिया तिर जाके कथे कि, हाथी जी जेन डहर आपमन जावत हव थोरिक आगू जमीन मा मोर अंडा हे जेमा मोर पिलवा मन के सिरजन होवत हे। इही डहर ले आपके सबो दल आवत हे, वोला कइसनो करके बचा लेतेव ते बहुते किरपा होतिस। हाथी ओकर बिनती ला सुनिस अउ दया, सोग करके अगुवा के चिरई के सँग चल दिस। हाथी अपन चारो पाँव ला चकरा फसकरा के अंडा के छेका करके खड़े होगे। हाथी के दल हर ओकर आजू बाजू ले पार होवत गिन। उही दल मा एक झन अड़ियल खैंटाहा किसम के घमंडी हाथी घलो रिहिस। ओ हर अपन मुखिया ला कथे--तोला नदिया नइ जाना के का? पानी नइ पीना हे का? 

मुखिया हाथी कथे - - पानी तो पीना हे जी, फेर येदे चिरई बिचारी के अंडा के बचाव बर छेका करत ये जगा मा खड़े हवँ। 

    तब वो अड़ियल चिरकुटहा हाथी कथे---हम अतका बड़े देंहे पाँव वाला हाथी जात अउ नानकुन चिरई के चिन्ता करबो। अउ तहूँ ला चिरई अंडा के चिन्ता धरे हे। अतका कहिके मुखिया हाथी ला जोरलगहा ढकेल दिस, अउ अंडा ला अपन पाँव मा रमँज के मुखिया हाथी ला धकियावत चल दिस। 

      पेड़वा के डारा ले बइठ के चिरई सबो करम दसा ला देखत रिहिस। अपन आँखी मा सबो तहस नहस होवत देखके रोये लागिस। अबड़ बेरा ले सुचकत रहिगे। आखिर मा चिरई ठान लिस कि ये घमंडी हाथी ले मोला कइसनो करके बदला लेना हे कहिके। 

        दुसरइया दिन चिरई हर कउँवा ले मितानी करिस अउ अपन सबो बिथा ला सुनाइस। सँगे सँग बदला लेय बर साथ देय के सहमति माँगिस। कउँवा घलो हामी भरिस अउ तुरते घमंडी हाथी के पीठ मा जाके बइठगे। किरनी गोचरनी ला खाय असन करत करत ओकर आँखी मन ला लहू के आवत ले ठोनक दिस अउ उड़ाके आगे। 

     चिरई हर जंगल के भुसड़ी घुनघुट्टी माँछी मन ले मितानी करिस अउ अपन उपर परे बिपत के किस्सा सुनाके बदला बर मदद के बिनती करिस। यहू बताइस कि कउँवा हर अपन काम ला कर डारे हे। आपमन ला ठोनकाय आँखी मा झूमते रहना हे अउ मल मूत्र करते रहना हे। सबो झन राजी होके हाथी के ठोनकाय आँखी मा भिनभिन भिनभिन झूम झूम के मल मूत्र करत गिन जेकर ले आँखी के घाव बाढ़त गिस जेकर ले घाव मा पीप भरगे दरद पीरा बाढ़गे। अउ दूनो आँखी मूँदागे। तभो ले माछी घुनघुट्टी भुसड़ी मन वोला हलाकान करे बर नइ छोड़य। 

     हाथी पानी मा बूड़ के बाँचे बर गूनत रहय। तब चिरई हर मेंचका ले मितानी करके अपन उपर आय बिपत ला सुनाइस अउ बदला लेय बर राजी करिस। तब मेंचका कथे--तँय चिंता झन कर मँय आजे हाथी के सबो घमंड ला निकाल देथवँ। ये कहिके मेंचका हर हाथी के सुनउ पथरा मा जाके बइठके  टर्र टर्र नरियाय के शुरू कर दिस। हाथी मन मा सोचिस कि मेंचका नरियावत हे माने तिर तखार मा पानी तो होहिच। ओकर आरो ला ओरखत हाथी रेंगे लगिस। मेंचका आगू आगू फूदक पूदक के टर्र टर्र नरियावय अउ पहाड़ी डहर चढ़त जावै। हाथी घलो पानी के आस मा उपर कोती चढ़त गिस। आखिर मा पहाड़ी के टीप मा चल दिस, अउ बड़का असन पहाड़ी चटर्रा मा झपाके गहिर खाई मा गिरके मरगे। 

    ये किसम ले छोटकुन चिरई अपन बदला पूरा करिस अउ सबो सँग देवइया सँगवारी मन के अभार मानिस। 

कहानी सार अनुवाद 

राजकुमार चौधरी "रौना" 

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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   लघु कथा बाल कहानी रूप मा प्रेरक मोला बने लगिस। एकर सेती भेज पारे हवँ।

नान्हें कहिनी // *हिजगा* //

 नान्हें कहिनी              // *हिजगा* //

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                *हिजगा* कहे ले अलकरहा लागथे,फेर हिजगा म जिनगी के बड़का-बड़का कारज संवर जाथे नइ तो दांवा धरे कस भंग-भंग ले बर जाथे।कभू-कभू हिजगा म गोटी ले गौंटिया बन जाथे नी तो गौंटिया ले गोटी घलो हो जाय ल परथे। हिजगा म कतको नकसान अऊ कभू-कभू नफा घलो हो जाथे। देखे म मिलथे कोनों बढ़िया कारज के हिजगा करे म नफा मिल जाथे शिक्षा,संस्कृति,संस्कार अऊ पुरखा मन के सुग्घर कारज के *हिजगा* करही त नफेच-नफा अऊ कतको झन सहंराथे।चारी-चुगली,चोरी-हारी,लरई-झगरा,काकरो कमाई,चीज-बस,मार-पीट अऊ काम-बुता के कोढ़रई के हिजगा करही त जिनगी भर धारे-धार बोहावत नकसान हो जाथे,कभू "*बंड़ोरा*" असन उड़ा घलो जाथे।

                 *"ईरखा के भाव रखइया मनखे सबो सुख पाके कभू मन म शांति नी पा सके।"* पाछू ओकर भुगतना ल भोगे बर परथे।हिजगा के अइसे कतको मनखे के सुवारथ लगे रहिथे जेन ओकर कारज ह "*पुन्नी के अँजोर* " कस फक-फक ले ओग्गर दिख जाथे।मनखे ल काकरो जिनगी सुधर जावय वइसन हिजगा करना चाही। आजकल तो हिजगा के खातिर घर के रिश्ता-नाता "*दरगार चरके*" बरोबर हो जावत हे अऊ संगे-संग *बैरी के डांड़* घलो खिंचाथे।हिजगा ले थोरिक संभल के रहे ल परही। *"मन के घाट आजकल जादा खिसलउ हे।"*

         गाँव के मंझोत बस्ती म मिलौतिन जबर कमैलिन रहय।कचरा भिर के सबो काम-बूता एकेझन कर दारे।मिलौतिन के फदालू नांव के एकझन बेटा रहय।मिलौतिन के गोसईंया फउत होगे रहय।मिलौतिन अऊ फदालू दनोझन रहय।खेत डोली जादा नी रहिस बनी-भूती करके ओमन के जिनगी चलत रहय।फदालू गूने समझे के लाइक होगे,नानमून कुछू काम-बूता करे के लायक होगे रहय।' कुछू काम-बूता करे बर दूरिहा शहर कोती जातेंव '..फदालू के मन म बात आइस.।फदालू अपन दाई ल एक दिन कहिथे...!' एकेझन तो मोर आँखी के पुतरी बरोबर हावस बेटा तोला दूरिहा नी जावन देवौं ' मिलौतिन फदालू ल कहिथे.. ! ' तही मोला बता मैं काय बूता करंव जेकर ले हमर घर के हालत सुधर जावय '...फदालू अपन दाई ल कहिस ! ' गाँव के रेलवे टेशन म चहा दूकान खोल ले बने चलही ' दाई अपन बेटा ल कहिस... ! ' फदालू के मन आइस त मुड़ी हलावत हव कहिस '..।

                     दूसरवान दिन बजार ले चहा दूकान के जोखा मढ़ाय बर समान बिसाय चल दिस।चहा-शक्कर,चहा बनाय के गंजी,केटली अऊ दू-चार दरजन कांच के गिलास लेके आइस।टेशन के बाहिर म दूकान लगाय के टपरा बनाइस। तिसरावन दिन चहा दूकान खोले के शुरू करिस। *" मनखे के सोच ओला आघू बढ़ाथे ।"* बिहनिया के पाँच बज्जी गाड़ी चढ़ोइया मन जावंय कोनों उतरइया मन आवंय।बिहनिया बेरा सबो ल चहा के चुलूक रहिथे, फेर का फदालू के चहा दूकान बिहनिया के शुरू होये-होय रात के दस बजे बंद करय।चहा अतका बढ़िया बनावय.... अदरक,लइची अऊ गोरस के गाढ़ा चहा रहय।पिवइया मन फदालू के चहा ल जबर सहरावंय।नी पिवइया मनखे घलो पीवंय।चहा के चलन बाढ़गे, रोज के बने आमद आय के शुरू होगे।चहा संग धीरे-धीरे अऊ खई-खजाना राखे के शुरू करिस।चहा के संगे-सबो खई-खजाना के चलन बाढ़गे।

             मटरु ह फदालू मन के चहा दूकान कोती जावय त देखथे दूकान म चहा पिअइया मन के भीड़ थिरकबे नी करय।फदालू के चहा दूकान के अतका चलन होवत हे अजम दारिस।चहा दूकान म मटरु के आँखी गड़े रहिस।ओमन के कमइ ल देख के मटरु घलो *हिजगा* म उहीच जघा म चहा के दूकान खोल दारिस।फदालू के माढ़े-मउरे दूकान रहिस तेकर ले ओकर गहकी मन ओकरेच करा आवंय।फेर *मउंहा कस थिपइ* थोरिक कम होय के शुरू होगिस,काबर के दूठिन दूकान होगिस।बपरा के धंधा कम होय लगिस।गरीब मनखे के कमई ल नी देख सकें,ओतका दिन ले तो कोनों दूकान नी खोलिन फेर फदालू के खोले के पाछू *हिजगा* म कतको दूकान खुलगे।बपरा के आवक कमतिया गीस *अलराय मखना नार बरोबर हो गीस।* मनखे ल हिजगा ह खा दारिस।

✍️डोरेलाल कैवर्त " *हरसिंगार "*

     तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)

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लघु कथा - " आ सगा गोठिया सगा "

 लघु कथा -


      " आ सगा गोठिया सगा "


 "  जइसे मईया लिये दिये 

तइसे देबो असीसे 

     अन्न धन ले तुंहर घर भरे 

जुग जिओ लाख बरिसे    "

 

"देवारी आवत हे "ले सुन ले l इहाँ मुश्किल होवत हे जीना, दू चार साल का, दू दिन भारी लगत हे l जीवराखन अपन पीरा ल मनराखन करा बतावत रहिसl मनराखन  पूछिस  -"काबर अतेक हताश होवत हस?"

" जुग बदल गेहे, दूर के ढ़ोल सुहावन हे तीर ले सुन कान बोजा जाही  l "

" ले बता त फेर मोर कान म "

जीवराखन बताइस -"नोनी बर सगा आथे देखे बर l पत्रिका ल देख के पता पूछत आयेन हन कइथे l बात चित होथे l पूछा पाछी होथे l ले बतावत हन कहिके चल देथे l नई जमींस रिस्ता ह l" 

मनराखन पूछिस कारन का हे? बताइस होही l"

"दस कारन  गिना देथे l काला बताबे? सगा मन के बात निराला l " लड़की वाले अन सुन लेथन l सगा मन के मेछा नई हे फेर ऐंठत रहिथे l काला देख थे ते? समझ ले बाहिर जी l 

" अपन भासा म नई कहेस? "

" पत्रिका ल धरे धरे किंजरत हे समझ ला  पुतकी म राखे हे l"

रिस्ता कभू नई जुड़य अइसन म l लड़का के उमर लड़की के उमर अइसने बढ़त जाही l रंग रूप कद काठी, गौत्र सोत्र लिखई पढ़ाई, काम काज, घर दुवार,खान पान, आँखी कान, मुड़ गोड़ सब ला देखे जाने सुने के बाद गुन आचरण म अटक जथे l लकठा धुरिया के नता गोता उहू मिल जाथे तभो ले l 

'नई जमत सगा " कहिथे इही म बात खटक जाथे l 

मन राखन कइथे -" लड़का लड़की के आपस म बात चीत नई होइस l "

 "उहू होइस l नोनी ल पूछेन कइसे ठीक हे? उहू गुनमूना दीस l लड़का ल पूछेन  चेथी ला खजवा दीस पूछ के बताहूँ l

अपन बर देखत हे अउ काला पूछही ते l " 

करन तो करन का जबरदस्ती  के काम नोहय l दिन निकलत हे देवारी आवत हे जावत हे फेर आगे देवारी l नोनी बर फेर सगा आही रद्दा ला देखत हन l

फेर पूछही नोनी तोर उमर कतका हे? बिहाव होये  के बाद का करबे? संग में रहू कि अलग अलग? अउ कोनो तोर यार दोस्त तो नइये हे? जइसन रहिथन ओइसने रहे ला पड़ही l

नोनी के उमर अब चालीस होगे l ले अब का करबे?


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

मितानी (नान्हे कहिनी)

 मितानी (नान्हे कहिनी)

सोमनी गाँव म एक बर के रुख रहिस हे। बर रुख के तरी म बने छइहाँ राहय। येखर छइहाँ म लइकामन खेलत राहँय। राम अउ कमल नाँव के लइका के बीच म बने मितानी रहिस हे। कमल ह बहुत उतयइल रहिस हे। एती ओती कूदत फाँदत राहय। कई बेर रुख ले गिरे भी रहिस हे। डर्रा डर्रा के रूख म चघय। 


एक दिन बर के रुख ऊपर चढ़गे।  जेन डारा म चढ़े रहिस हे तेन ह बहुत पातर रहिस हे। डारा ह नवगे। कमल ह डररागे अउ चिचयाये ले लगगे "बचा ले राम मैं ह गिरत हावंव। " 

राम ह जेन मेर खड़े रहिस हे तेने मेर बर के एक जटा ह झूलत रहिस हे। राम ह जटा ल झुला के कमल डाहर फेकिस अउ कमल ल कहिस "येला पकड़ ले अउ झूल के नीचे आ जा।" कमल ह तीन बेर कोशिश करिस फेर जटा ह पकड़ म नइ अइस। राम जटा ल घेरी बेरी कमल डाहर फेकय फेर ओ ह खाली वापस आ जाय।


बहुत कोशिश के बाद आखिर म जटा पकड़ा गे। कमल ह जटा ल पकड़ के झूलगे। झूलत राम डाहर अइस त राम ह जटा ल पकड़ लिस अउ कमल ल उतार लिस। राम के बुद्धिमानी ले कमल ह बांचगे। ऊंखर मितानी के गठान ह अउ मजबूत होगे। अइसने सबके मदद करना चाही। 

सुधा वर्मा, 31/8/2024,,,

मनोवैज्ञानिक व्यंग्य लघु कथा तुतारी

 मनोवैज्ञानिक व्यंग्य लघु कथा 

          तुतारी 

 मेंटल हॉस्पिटल कहत दीमाग अइसने हे सोजिया जाथे l अभी के समय म सबला जरुरी हे एक बार उठ बइठ करके आये के l जेने ल देखबे तेने सब इही कइथे -"मोर दीमाग काम नई करत हे? "

"मोर डिमाग ख़राब होगे l"

"मोर डिमाग ला खा दीस पूछ पूछ के l"

   फेर मेन्टल तो बिगड़े हे सब के l लोग लइका के बिहाव नई हो पावत हे ए अउ बड़े टेंसन l

भगत के इही हाल l जगत के इही हाल l 

मेंटल डॉक्टर पूछत रहिस -

"तोर का नाँव हे "

"सुशील "

"तोर बाप के.. I"

" येदे बइठे हे "

"तै बताना?"

"नई...?"

"तोर बिहाव होगे हे "

"होय रहितिस त थोड़े आतेव l" 

"काबर नई होइस? "

"एखरे सेती ?अपन बाप कोती देखत l"

"कोनो लड़की पसंद के हे?

"कोनो पसंद के नई हे l"

"काला पसंद करबे?"

"बने अस मिलही तब ना!"

डॉक्टर के अरई तुतारी चलते रहिस -"कोन तोला देखाइस बताइस? "

" भांटो देखाइस  तेन तो गोलाइन्दा भाँटा अस l"

अउ 

"फूफा देखाइस तेन राहेर काड़ी अस फांफा l"

अउ 

"झन पूछ सब मोर बर 

छूटे छाँटे निमारे l "

अच्छा!!!

एक काम कर तै खुदे देख ले बात कर के जमा के आव,नई ते मेंटल हॉस्पिटल ए तोर बर जमा दिही,  बने अस टुरी l इहे हे तोरे लाइक l ठीक हे l  

इहै भर्ती कर के रखहूँ l"


अतका सुनत सुशील के होश आगे l हींग लगे ना फिटकिरी 

रंग चोखा l सूजी काम नई आइस तुतारी ले भेद खुलगे l 

महीना दिन के भीतर सगाई के नेवता कार्ड ला धरके  सुशील जाथे l 

"जम गे डॉक्टर साहब मिलगे पसंद के लड़की l" 

हमूँ कहिथन मेंटल म बने इलाज होथे l


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी