Saturday, 8 March 2025

एक टोकरी भर मिट्टी-माधवराव सप्रे* अनुवाद

 *छत्तीसगढ़ी अनुवाद*


*एक टोकरी भर मिट्टी-माधवराव सप्रे* 


*एक टुकनी-भर माटी*


कोनो बड़का गौंटिया के महल के तीर एकठन गरीब अनाथ डोकरी के कुंदरा रिहिस। गौंटिया ला अपन महल के ओरवाती ला वो कुंदरा तक बढ़ाय के इच्छा होइस, डोकरी ले कहिस के तँय अपन ये कुंदरा ला हटा ले, फेर वो तो कई जमाना ले उहँचे बसे हे; ओकर मयारूक गोसइया अउ इक्केझन बेटा घलो उही कुंदरा मा रहिते मरिस। बहू घलो एक पाँच बछर के नोनी ला छोंड़के चल बसिस । अब इही ओकर नतनीन ये बुढ़तकाल मा एक्केचठन सहारा रिहिस। जब ओला अपन गुजरे दिन के सुरता आ जथे तब दुख के मारे गोहार पार के रोवन लग जावत रिहिस अउ जबले ओहर अपन परोसी गौंटिया के इच्छा के हाल सुनिस, तबले वो मरे असन होगे रिहिस। ओ कुंदरा मा ओकर मन लगगे रिहिस। बिना मरे उहाँ ले वो नइ निकलना चाहत रिहिस। गौंंटिया के सबो प्रयास असफल होगे, तब वो अपन गौंटियई चाल चले लगिस। बाल के खाल निकलइया वकील मन के थैली गरम करके वोहर अदालत ले कुंदरा ऊपर अपन कब्ज़ा करा डरिस अउ डोकरी ला उहाँ ले निकाल दिस। बिचारी अनाथ तो रहिबे करिस, पास-परोस मा कहूँ जा के रहे ला लगिस।


एक दिन गौंटिया वो कुंदरा के तीर मा टहलत रिहिस अउ मनखे मन ला काम बतावत रहिस के वो डोकरी हाथ मा एकठन टुकनी लेके उहाँ पहुँचिस। गौंटिया हा वोला देखतेसाठ अपन नौकर ले कहिस कि येला इहाँ ले हटा दव। फेर वोहा गिड़गिड़ावत बोलिस, ''महाराज, अब तो ये कुंदरा  तुंहरे होगे हे। मैं येला ले बर नइ आय हँव। महाराज क्षमा करहू ता एक विनती हे।'' गौंटिया हा मूड़ी हलाइस त वो कहिस, ''जब ले ये कुंदरा छूटे हे, तब ले मोर नतनीन हा खाय-पीये ला छोंड़ दे हे। मैं ओला बहुत समझाय हँव फेर वो एक नइ मानत हे। इही काहत रहिथे कि अपन घर चल। उँहचे रोटी खाहूँ कहिथे। अब मैं ये सोचेंव कि ये कुंदरा ले एक टुकनी-भर माटी लेके ओकर एकठन चूल्हा बनाके वोमा रोटी बनाहूँ। मोला भरोसा हे कि वो रोटी खाय बर धर लेही। महाराज कृपा करके आज्ञा दे दव ता ये टुकनी मा माटी ले जाहूँ!'' गौटिया हा आज्ञा दे दिस।

डोकरी हर कुंदरा के भीतरी गिस। उहाँ जातेसाठ वोला जुन्ना गोठ के सुरता आगे अउ ओकर आँखी ले आँसू के धार बोहाय लगिस। अपन अंतस के दुख ल कइसनो करके सँभाल के वोहा अपन टुकनी मा माटी भरिस अउ हाथ मा उठाके बाहिर ले आइस। फेर हाथ जोड़के गौंटिया ले विनती करे लगिस, ''महाराज, कृपा करके ये टुकनी ला थोरकिन हाथ लगाहू जेकर ले मैं येला अपन मूड़ मा बोह सकँव।'' गौंटिया हा पहली तो बहुत नाराज होइस। फेर जब वो बार-बार हाथ जोड़े लगिस अउ ओकर पाँव परे लगिस ता ओकर मन मा थोरिक दया आगे। कोनों नौकर ले नइ कहिके खुदे टुकनी उठाय बर आगू बढ़िस। जइसे ही टुकनी ला हाथ लगाके ऊपर उठाय बर लगिस तब वो देखिस कि ये काम उंकर शक्ति के बाहिर हे। फेर तो वोहा अपन पूरा ताकत लगाके टुकनी ला उठाय बर चाहिस, फेर जेन जघा मा टुकनी रखाय रिहिस, उहाँ ले वो एक हाथ घलो ऊँचा नइ होइस। वोहा शर्मिंदा होके कहे लगिस, ''नइ, ये टुकनी मोर ले नइ उठत हे।''


ये सुनके डोकरी हा कहिस, ''महाराज, नाराज झन होवव, तुँहर ले एक टुकनी-भर माटी नइ उठत हे अउ ये कुंदरा मा तो हजारों टुकनी माटी परे हे। ओकर भार आप जनम-भर का अउ उठा सकत हव? आप खुदे ये बात मा विचार करहू।

गौंटिया हा धन दौलत के नशा मा चूर होके अपन कर्तव्य ला भूलागे रिहिस फेर डोकरी के सिरतोन‌ गोठ ला सुन के ओकर आँखी खुल गे। अपन करनी के पश्चा्ताप करके ओहर डोकरी ले क्षमा माँगिस अउ ओकर कुंदरा ला वापिस दे दिस।


*अनुवादक*

*राजकुमार निषाद'राज'*

*छात्र-एम ए छत्तीसगढ़ी (चौथा सेमेस्टर)*

*बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग*

*7898837338*

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