Thursday, 27 March 2025

मया के तिहार : होरी* //

 *आलेख        // मया के तिहार : होरी* //

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                 भारतीय पंचांग के काल गणना के मुताबिक बछर के आखरी महीना फागुन अऊ आखरी तिहार होरी हावे।ए तिहार ल हर बछर फागुन पून्नी के दिन होलिका दहन अऊ चइत के पहिली दिन पूरा गाँव अऊ शहर म रंग गुलाल अउ ढोल नगारा म गावत बजावत बड़का उछाव ले तिहार ल मनाये जाथे।होरी तिहार मया के संगे-संग रंग के तिहार घलो कहे जाथे।

                होरी के तिहार ल वेद -पुरान के कथा ले घलो जोर के देखे गे हावे।पौराणिक कथा के मुताबिक प्रहलाद ह भगवान के भगत होय के सेथी ओकर ददा हिरण्यकश्यप ओला बैरी समझथे।ओला मारे के कतको अकन उदीम करथे कभू पहार ले ढकेलवा देथे,कभू हाथी करा रउंदवाथे फेर प्रहलाद कइसनहों करके बांचिच जाथे।आखिर म प्रहलाद ल मारे बर अपन बहिनी होलिका ल जोंगथे होलिका अपन के कोरा म प्रहलाद ल बइठार के लकरी के कुढ़ा म बइठ जाबे अऊ आगी म लेस देबे कहिथे।होलिका ल ब्रम्हाजी ले बरदान मिले रहिथे कि तैं आगी म नि लेसावस।हिरण्यकश्यप के कहे के मुताबिक होलिका प्रहलाद ल अपन कोरा म बइठार के लकरी के कुढ़ा म बइठ जाथे।फेर आगी म होलिका भंग-भंग ले जर-भुंजा जाथे अऊ प्रहलाद बांच जाथे।ओही दिन ले बुराई के नाश अऊ अच्छाई के जीत के चिन्हारी होरी के तिहार मनावत आवत हावें।

                वइसे तो होरी के शुरुआत बसंत पंचमी के दिन हो जाथे।ओ दिन अंडी के झाड़ी ल काट के गाँव बाहिर म एक जघा गड़िया के पूजा करे जाथे।तंह फेर ओ दिन ले लेके फागुन पून्नी के आत ले ओकर बढ़ोवन बढ़ावत रहिथें।कोनों मेर के सुक्खा रुख-राई ल काट के लइका मन होरी डांड़ ल बढ़ावत रहिथे।छेना लकरी पैरा,राहेर कांड़ी,अरसी ढेंटा अऊ काकरो घर के टूटहा रांचर,फइरका कुर्सी टेबल घलो ल होरी म बढ़ोवन बढ़ावत रहिथें।

                  फागुन महीना के लगती बेरा ले गाँव-बस्ती म नंगारा अऊ मांदर के धून म फाग गीत जघा-जघा सबो जुरमिल के गोल जुरिया के गावत बजावत अऊ नाचत खुशी मनावत रहिथें।एहर सरलग फागुन पून्नी के आवत ले चलत रहिथे।फेर पून्नी के रतिहा बेरा म गाँव के बइगा,पंच सरपंच अऊ लोग-लइका सियान सबो जूरमिल के होली के पूजा करके चकमक पखरा नइ तो अगरीसा के आगी ले होलिका ल जरो देथें।होरी के राख ल अपन माथा म टीका घलो लगाथें।होरी राख जबर गुनकारी होथे।एकर राख ल देहें म चुपरे ले रोग निरोधक के काम करथे।कतको अकन घाव-गोंदर,खजरी,फोरा,फुंसी सबो ठीकेच हो जाथे।

                  इही दिन मनखे ह अपन जम्मो किसीम के बुराई कस आदत अउ घमण्ड ल होरी के आगी म भूरभेटे के बेरा घलो रहिथे।होली के चारो कोती किंजरत सबो सुघराई के कामना घलो करथें।हितवा अउ मितवा मन के संगे-संग पारा-परोस के मनखे मन अपन ले बड़े मन ल रंग-गुलाल लगाके आशीष अउ मया पाथें।कतको झन होरी तिहार के बहाना करके नशा घलो करथें अउ अपन चेत सुरता भुला जाथें।

                   होरी के तिहार ल लइकामन म जादा उछाव देखे बर मिलथे।पिचकारी अउ रंग म सनाय सराबोर हो जाथे।घरो-घर किसीम-किसीम के रोटी-पीठा खाई-खजेना बनाथें अउ एक-दूसर संग बांट-बिराज के खाथें।कहे गे हावे कि होरी के दिन सबोझन बैरवासी के भाव ल भुलाके एक-दूसर के मया म *नार असन लपटा* जाथें।जेकर ले सबो के मन म *मया के पीकी* उलहोथे।ए होरी तिहार म ईरखा-दुवेस म आस्था अउ विश्वास के जीत के चिन्हारी के रुप म घलो मनाथें।

               रुख-राई के कोंवर-कोंवर उलुहा-उलुहा पाना,परसा अऊ सेमर के लाली-लाली फूल जेहर आगी कस अंगरा दिखथे।आमा के मउर म अमरइया ममहावत,मउहा फूल सबो ल मतावत हे,खेत म सेरसों के पीवंर-पीवंर फूल अऊ गहूं के अटियावत बाली मुसकावत फागुआ के संदेशा देवत अगोरा म ठाढ़े हावे।आमा रुख ले पाना के ओधा म लुका के कोयली फगुआ के राग सुनावत सबो के मन मोहत रहिथे।

              फगुआ तिहार ल हमर देश के सबो राज म अलगेच-अलग नांव ले मनाए जाथे।ब्रज म होली ल देखे के लाईक रहिथे त बरसानों के लठमार होली ल देखे बर दुरिहा-दुरिहा ले मनखे मन आथें।मथुरा अऊ वृन्दावन म चउदा दिन ले होली मनाए जाथे।बिहार म फगुआ, छत्तीसगढ़ म होरी बड़का उछाव ले मनाथे।पंजाब म होला मोहल्ला,महाराष्ट्र म रंग पंचमी,हरियाणा म धुलंडी अलग-अलग नावं ले तिहार ल बड़का उछाव ले मनावत आवत हावें।

                   तइहा समे म होरी चंदन अऊ गुलाल ले खेले जावत रहिस।परसा के फूल अउ पाना पतई के सुग्घर रंग बनाके होरी खेले जावत रहिस।फेर समे के संगे-संग बदलाव आवत जावत हे।अब तो प्राकृतिक रंग ल छोड़ के बनावटी रंग जेहर देंहें अउ आंखी ल नुकसान कर देथे उही ल सबोझन बउरे ल धर ले हांवें।अब तो कतको अकन रिंगचिंगी रंग उतरे हावे जेन ह देंहें ल जबर नुकसान करथे। 

            आवौ सबोझन अपन के भीतर म माढ़े कुसंस्कार ल होरी के आगी म स्वाहा करके अपन जिनगी ल नवा रंग म रंग के शुरुआत करबो।भाईचारा के परसाद बांटत अपन जिनगी ल तिहार असन मनाबो।एक-दूसर संग जूरमिल के सुमता के डाहर ल चतवारत आघू कोती बढ़त जाय ल परही।

                  फगुआ तिहार के अलग-अलग रंग होथे जेकर महत्तम घलो अलगेच अलग हावे।जइसे लाली रंग-गुस्सा,हरियर-ईरखा,पींवरा-खुशी,गुलाबी-मया,मसरइल-बड़े,सादा-शान्ति,संतरा रंग-त्याग अउ भांटा रंग-ज्ञान के चिन्हारी हावे।इही ल जिनगी के सार जान लेवौ अऊ होरी तिहार म जून्ना ईरखा दुवेस ल भुलावत मया-दुलार बांटत बड़का उछाव ले मनाय बर परही तभे होरी के परब हम सबोझन ल एकठन भाईचारा के संदेशा देवत बछर के छेवर करत नवा बछर चइत ल सउपत नवा अँजोर बगरावत जाही।

✍️ *डोरेलाल कैवर्त  " हरसिंगार "*

         *तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)*

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