Thursday, 27 March 2025

उवत सुरुज के अगोरा अउ सरकारी तंत्र के ढिंढोरा*’ –डॉ. पद्‌मा साहू “पर्वणी”

 उपन्यास के समीक्षा 

*उवत सुरुज के अगोरा अउ सरकारी तंत्र के ढिंढोरा*’


        –डॉ. पद्‌मा साहू  “पर्वणी” 


एक साहित्यकार उही ला लिखथे  जउन ला वो अपन देशकाल वातावरण, घर-परिवार, समाज, प्रकृति मा देखथे। अइसने छत्तीसगढ़ के नक्सलवाद के विकट स्थिति ला कहानीकार, व्याकरणविद बड़े भैया डॉ. विनोद कुमार वर्मा हा जीवंत घटना ला अपन उपन्यास *उवत सुरुज के अगोरा* के माध्यम ले पाठक व जन मानस के बीच रखे के प्रयास करे हें। येमा बस्तर, केशकाल  घाटी ले होवत रतिहा के बेरा निर्मला के बस मा चढ़के झींटूराम ला खोजे बर निकलना सरल काम नइ हे फेर निर्मला के हिम्मत ला देखव कामरेड बालेंदु के संग वोकर फार्म हाउस तक के सफर डरावना रहिस तभो हार नइ  मानिस। उपन्यास मा बस्तर, दंडकारण्य दंतेवाड़ा के नक्सली समस्या अउ भोला-भाला आदिवासी मन के सरकारी तंत्र अउ नक्सलवाद के बीच पीसत दुखद जीवन के दुर्दांत घटना ला उजागर करे हें।  दूसर कोती  झींटूराम के बहादुरी, चतुरई अउ वोकर हिम्मत के जतके बड़ई करबे वोतके कम हे। वो अपन बचपन के सपना अउ अपन धरती दाई बर अपन प्राण ला त्याग दिस। नक्सलवाद मन ला लोहा मनावत शहीद होगे। 

   *उवत सुरुज के अगोरा* मा उपन्यासकार निर्मला अउ झींटूराम के निश्छल प्रेम, त्याग अउ समर्पण के भाव ला उकेरे हे। जउन आज के नौजवान मन बर एक सीख हे कि प्रेम आकर्षण नहीं मर्यादा अउ त्याग सीखाथे। ये उपन्यास मा राक्षस जइसन नक्सली शुभगन के अमर्यादित बोली-भाखा, क्रूरता के सीमा ला टोरत समाज के दानव के वास्तविक रूप ला समाज के बीच मा लाय हें। सुभगन जइसन कतको दानव आज घलो निर्दोष जनता, आदिवासी अउ पुलिस के सिपाही जवान मन ला अपन शिकार बनावत हें फेर कोन जनी एकर खातमा कब होही ते? ये उपन्यास ला पढ़ के बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, झीरम घाटी, विजयवाड़ा मा होय नक्सली हमला हा नजर मा झूल जाथे अउ डर के मारे रोंगटा खड़ा हो जाथे। तन-मन काँप उठथे।

     *उवत सुरुज के अगोरा* मा कामरेड बालेंदु ला महाभारत के युद्ध मा कौरव-पांडव के बीच मध्यस्थता करत कृष्ण के जइसन नक्सलवादी अउ सरकारी तंत्र पुलिस जवान मन के बीच मध्यस्थता करत वोकर सहृदयता अउ मानवता के चित्रण करे हे। आदिवासी मन बर कामरेड बालेंदु भगवान कस उनकर अधिकार बर डटे रहिस।  कामरेड बालेंदु के नक्सली मन के बीच नइ झुके के खातिर परिवार के  नक्सली मन के द्वारा अग्निस्नान के मार्मिक चित्रण हा पाठकमन के आँखी मा आँसू भर  दिस त दूसर कोती अंकुश के महतारी जइसन निर्मला पालन पोषण करत वोला संरक्षण देवत हे (जइसन कामरेड बालेंदु निर्मला ला अपन बेटी जइसन दिस।) एमा निर्मला के ममता के भाव चरित्र चित्रण ला उजागर करे हे। ये घटना प्रधान उपन्यास मा बहुत अकन हिंदी, उर्दू भाषा के घलो  प्रयोग होय हे। फेर सबो नजर ले देखे जाय ता सबो पात्र के चरित्र चित्रण, देशकाल वातावरण  समसामयिक स्थिति अउ कथानक संग संवाद सुग्घर हे।  उपन्यास के विषयवस्तु हा दुखद हे फेर एकर अंत हा निर्मला अउ डॉ अंशुमन के भाव ला देख के सुखद लागत हे। अइसने सरकार के सरकारी तंत्र हा घलो छत्तीसगढ़ अउ देश के नक्सलवादी समस्या बर जमगढ़हा आगू आके हमर छत्तीसगढ़ राज ले नक्सलवाद ला समूल मेटा देही ता सिरतोन मा उवत सुरुज के अगोरा हा अउ सार्थक हो जही।

      मोर कलम मा वो ताकत नइ हे कि में अतका वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा भइया के उपन्यास मा गलती निकालँव फेर मोर सौभाग्य हे कि भइया मोला छोटे बहिनी समझ के सुधार अउ समीक्षा करे बर कहिस तब मैं पूरा उपन्यास ला रोज पढ़ के  जउन मोर से बनिस सुधार करके सहयोग प्रदान करेंव। शीर्षक ला सार्थक करत *"उवत सुरुज के अगोरा"* उपन्यास बर बड़े भइया डॉ. विनोद कुमार वर्मा ला गाड़ा-गाड़ा बधाई हे। 


डॉ पद्‌मा साहू पर्वणी खैरागढ़

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