*डोकरी दाई के कुरिया* (नान्हे छत्तीसगढ़ी कहानी)
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
तइहा के बात हवय। एक राजा रहिस। एक डोकरी दाई रहिस। डोकरी दाई के कुरिया जंगल के बीच मं रहिस। पशु-पक्षी अउ जंगली जानवर- हिरन, कोलिहा, भालू, चितवा, बघवा सबो ओला चिन दारे रहिन काबर कि नानपन ले ओमन डोकरी दाई ला जंगल म देखत रहिन। एकरे सेती ओहूमन डोकरी दाई ले मया करें अउ डोकरी दाई घलो ओमन के संग एक सदस्य के रूप मं रहे। डोकरी दाई रोज बिहनिया जंगल ले फर-फूल इकट्ठा करे अउ तीन मील दूर हाट-बजार मं बेचके दार-चाँउर खरीद के ले आने। फर-फूल बेचके घर आवत ले बेर बुड़ती हो जावय। फेर जेवन बनावय अउ खा-पी के सुग्घर सो जावय। अइसने ओकर दिन बढ़िया बीतत रहिस। अपन नानकुन घास-फूस के कुरिया अउ दुवारी ला डोकरी दाई एकदम सफ्फा रखे।
एक दिन के बात हे कि राजा शिकार करे बर अपन सैनिक मन के संग जंगल आये रहिस अउ हिरन के पाछू घोड़ा दउड़ावत अपन संगी-साथी ले बिछड़ गे। आखिर मं डहर खोजत-खोजत पहिला पहर आ गे अउ प्यासन होवत मूर्छा खा के घोड़ा ले गिर गे। घोड़ा के हिनहिनाय के आवाज सुन के डोकरी दाई घर ले बाहिर निकलिस त देखथे कि कोनो भुइयाँ मं गिरे-परे हे! डोकरी दाई का जाने कि ओहर एही राज के राजा हे! डोकरी दाई दउड़त पानी लाइस अउ चेहरा उपर छिंचिस। मुड़ ला धीरे-धीरे ठोंकिस। मूर्छा टूटिस त ओला पानी पिलाइस अउ पूरा होश मं आये के बाद खाना बनाके ताते-तात खवाइस घलो। थोरकुन बेरा मं मंत्री, संतरी अउ सैनिक मन खोजत आइन अउ राजा ला संहुआत बने-बने देखके बहुत खुश हो गीन। उहाँ ले जाय के पहिली राजा कहिस- डोकरी दाई, तँय मोर संग मं चल। उँहा तोला महल कस घर दे देहूँ अउ तोर रहे-बसे के सुग्घर ठउर दे देहूँ!
प्यासन मरत रइही तेला का चाही? पानी न! डोकरी दाई बरसों ले रोज रात के बेरा भगवान ले माँगे कि कि महूँ ये राज के रानी कस रहिथे भगवान! मोरो घर मं नौकर-चाकर, चौकीदार, माली, रसोइया रहितिस! ......अब डोकरी दाई बड़ खुशी-खुशी राजा के संग चल दीस। भगवान के वरदान आज ओला मिल गे रहिस। राजा ओला महल कस बड़े घर, नौकर-चाकर, माली, रसोइया सबो कुछ दे दीस। रात के सुते के बेरा डोकरी दाई भगवान ला मने-मन धन्यवाद दीस।
दू हप्ता पाछू हालचाल जाने बर राजा स्वयं आइस अउ डोकरी दाई ले पूछिस- ' का हालचाल हे दाई? ..... बने बने? '
डोकरी दाई बड़ दुखी मन ले बोलिस- ' राजा साहेब, मोला जंगल पहुँचा देवा। इहाँ बने नि लागत हवे। मँय उहेंच रहूँ! '
राजन अचंभो रह गीस अउ पूछिस- ' दाई, इहाँ कुछु तकलीफ हे का? '
डोकरी दाई बोलिस- बेटा इहाँ सबो कुछ तो हे, कुछु बात के कमी नि हे! फेर दुख ये बात के हे कि तुँहर गद्दा मं रात के मोला नींद नि आवय त चद्दर बिछा के मँय जमीन मं सुतथँव। फेर मोला जंगल के रंग-रंग के चिरई-चिरगुन मन के सुरता आवत रहिथे जेन मन ला मँय रोज दाना-दुनगा खाय बर देंवव। ओमन तो भूखन मरत होंही अउ मोला खोजत होहीं! मोला जंगल के जनावर अउ रूख-राई मन के घलो सुरता आवत रहिथे जेन मन ला मँय बड़ मया करथँव। कतकोन फूल-पाना अउ रूख-राई ला महींच् लगाय हावँव अउ जेठ-बइसाख के घाम मं पानी दे-दे के बढ़ोय हँव। .....अउ का का ला बताओं बेटा? ..... तोर पाँव परत हँव, मोला जंगल के अपन कुरिया मं जावन दे। मोला तोर नौकर-चाकर, माली, रसोइया कुछु नि चाही! '
एकर बाद डोकरी दाई ला राजा जंगल मं भेज दीस। फेर डोकरी दाई महल कस घर ला छोड़ के अपन घास-फूस के कुरिया मं सुखपूर्वक जीवन-बसर करे लगिस। ओकर घास-फूस के कुरिया ह राजा के देहे महल ले बने रहिस।
*समाप्त*
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