उपन्यास समीक्षा
*नक्सल समस्या के फोरा*
*अउ*
*उवत सुरुज के अगोरा* '
- डॉ. पीसी लाल यादव
साहित्यकार साहित्य ला रचथे। उही साहित्य सारथक होथे, जऊन अपन समय ला लिखथे, समाज अउ समाज के समस्या ल लिखथे। समय, समाज अउ समस्या के पढ़इया अउ ओला लिखइया साहित्यकार समाज ला नवा रद्दा देखाथे , समस्या ले उबरे बर। तब समय अउ समाज ह घलो अइसने साहित्यकार के गोठ गोठियाथे, ओखर चरचा करथे। अभीन के बेरा में अइसने साहित्यकार हें छत्तीसगढ़ी व्याकरणविद, कृषि वैज्ञानिक अउ उपन्यासकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा जी। छत्तीसगढ़ तईहा बछर ले नक्सलवाद के समस्या ले जूझत हे। बस्तर के आदिवासी पूछत हें कि एखर अंत कब होही? नक्सलवाद जइसन ये घाव जेमा सरन बोहावत हे, समाज ल, संस्कृति ल नष्ट करत हे। नक्सलवाद ले काखर भला हे? कखरो नहीं! मरथे तेनो आदिवासी हे, मारत हे तेनो आदिवासी। मजा करत हे ते बस ओ नक्सलवादी लीडर मन, जेन बाहिर ले आके छत्तीसगढ़ के धरती ल अशांत करत हें।
इही ज्वलंत समस्या के साखी देवत हे- ‘ उवत सुरुज के अगोरा ’ । नक्सलवाद के जबर समस्या ऊपर आधारित हवय ‘ उवत सुरुज के अगोरा ‘ अउ सवाल करत हे सरकार ले, नक्सलवादी अउ हम सब ले के कइसे म फूटहि ये नक्सली समस्या के फोरा ह। मोला अइसे लगथे के छत्तीसगढ़ म नक्सल समस्या ऊपर लिखे ये छत्तीसगढ़ी म पहिली उपन्यास होही, जेन ला सोसल मीडिया के माध्यम ले सैकड़ों साहित्यकार अउ सैकड़ों पाठक मन पढ़ के अपन राय जाहिर करे हें। सिरजन काल म ही छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर पटल के माध्यम ले, प्रकाशन के पहिलीच चरचा में आ जाना, ये उपन्यास, अउ उपन्यासकार बर बड़ गरब के बात आय। महू पढ़ेंवे, उसर-पुसर के दू घांव पढ़ेंव, त महू ल लगिस के अपन गोठ ल गोठियाना चाही।
नक्सली घटना ला ले के ताना-बाना म गंथाय कहानी म बड़ कसावट हे। जइसे भरताही गाड़ा के भारा मन डोर म कसाय रथे, जइसे बरदखिया खटिया के गंथना चमचम ले गंथाय रहिथे। नवोदय विद्यालय म पढ़त निर्मला अउ झिंटूराम के मन म एक-दूसर बर मया पिकियाथे, ओ मया के पीका बाढ़ तो जथे फेर फूल- फर नई लग पाय। आठ अध्याय म लिखाय ये उपन्यास के पहिली अध्याय ले ही कथावस्तु पाठक के मन में कौतुहल पैदा कर देथे। बस के बिगड़ना बीच रद्दा म, अंधियारी रात में दू झन के उतरना, दू झन के चढऩा फेर ऊँखर गोठ-बात। निर्मला संग कामरेड बालेन्दु अधिकारी के भेंट। ए घटना कथानक ल पोठ करथे। कोनो मेरे झोल नहीं, न घटना म ना कथानक म। सँकरी बरोबर एक-दूसर ले गुंथाय हवय। शुरु ले आखिर तक पाठक ल चैतन्य बनाये राखे में सफल हे कथानक ह। मोर हिसाब ले ये उपन्यास के सब ले बड़े सफलता ये। ये उपन्यास म अउ छोटे-छोटे कई ठन कथानक हे, जउन मूल कथा के पूरक के रुप म जुरे हवय । कोनों मेर बिलग नई लगे। नक्सलवादी मन के अतियाचार, जोर-जुलूम, झिंटूराम जइसे वीर सिपाही जवान मन के बहादुरी के वर्णन म सजीवता हे। चूंकि ये घटना मन सब घटे हुए हें, त अइसे लगथे जइसे सरी घटना हमर आँखी के आगू म घटत हे। डॉ अंशुमन अउ निर्मला के प्रसंग ले उपन्यास सुखान्त बने हे। तेन हा अउ पाठक ल प्रभावित करथे। दुख-सुख सबो के जोरा हे येमा।
पात्र अऊ चरित्र-चित्रण ला गढ़े में उपन्यासकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा के सूझ-बूझ सहराय के लइक हे। जइसे-जइसे पात्र तइसे- तइसे चरित्र अउ ऊँखर चित्रण। निर्मला, झिंटूराम, कामरेड बालेन्दु बाबू, अंकुश, नक्सली शुभगन, ज्ञानू सर, डोकरी दाई, डॉ. अंशुमन, राम प्रसाद, मंगतू चोर, फरसोनहिन, रमाकांत मिश्र अउ अनाम पात्र मन के चरित्र समोखाय हे। निर्मला के चरित्र म मया, सेवा अउ संयम के परछो मिलथे त कामरेड बालेन्दु अधिकारी नक्सली समर्थक कम्युनिस्ट लीडर होके घलो गरीब आदिवासी मन के सहायता करथे अउ नक्सली मन के जोर-जुलुम के विरोध करथे।
झिंटूराम के अदम्य साहस, दस बछर के लइका अंकुश के सूझबूझ ले नक्सली मन के अंतिम क्रिया, लेनिन के लाल क्रांति अउ गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के तुलना। अंकुश के चरित्र मोला लगथे पाठक ल सबले जादा प्रभावित करथे। नक्सली नेता शुभगन के चरित्र ओखरे मुँह ले उजागर होथे, जब ओहा बालेन्दु बाबू ले शराब अउ लडकी के छूट मांगथे। तब कइसे कोनों नक्सली ल गरीब के हितवा मानही? दरअसल आज नक्सलवाद के इही चरित्र ये। ये तो एक बानगी ये। ‘ उवत सुरुज के अगोरा ’ छोटे कलेवर के बड़े उपन्यास आय।
कोनो भी उपन्यास होय, कथा कहानी होय, लेखक ल जेन बोलना रहिथे, ओला पात्र मन से बोलवाथे। जेन ला कथोपकथन या संवाद कहे जाथे। सहज, सरल संवाद, अर्थपूर्ण संवाद उपन्यास के विशेषता होथे। संवाद ले पात्र अउ पात्र ले संवाद प्रभाव पूर्ण बनथे। संवाद के दृष्टि ले देखे जाय त ‘ उवत सुरुज के अगोरा ’ म लेखक ह पहिली उपन्यास होय के बाद घलो सुफल देखऊल देथे। नई पतियाव त पढ़ के देखव, बालेन्दु बाबू अउ निर्मला के संवाद ल।
कामरेड निर्मला ला किहिस- ' बेटी, हमन दूनो ला काहीं हो जही त दूनो लइका के देखरेख तोला करे बर परही। '
निर्मला खिसिया के बोलिस- ' अंकल आय-जाय के बेरा अइसन काबर बोलत हव। आप मन ला कुछ नई होवय। महूँ तो आप मन के बेटी अँव, हँव कि नहीं? '
' हमन ला कुछ हो जही त दूनो लइका अनाथ हो जाहीं! '
‘ का अंकल अइसन मत बोलव। ' अब निर्मला के आँसू टप-टप टपके लगिस। निर्मला के चेहरा ला देख के कामरेड ला हाँसी आगे।
‘बेटी तोर आँखी के इलाज करवाय ला परही। जब-तब आँसू टपके लगथे! '
उपन्यास ल पढ़त-पढ़त पाठक के आँखी के आगू म देशकाल अउ वातावरण तो अपने आप जग-जग ले देखऊल देथे। बस्तर के घनघोर जंगल, साल- सरई के ऊँच-ऊँच रूख, नदिया-नरवा, दुर्गम पैडगरी इही ताय बस्तर के चिन्हारी। केशकाल के घाटी, नक्सली मन के जोर-जुलुम, निर्दोस मनखे मन के लहू ले सनाय माटी। न चिरई बोले न चिरगुन बोले, न रूख-राई के डारा पाना डोले, न हवा बोले न पानी बोले..... अजीब सन्नाटा । बोलथे त बस बंदूक के गोली। येहू डहर ले, उहूू डहर ले। ढोल-मांदर, टिमकी सबो चुप हें।
लगथे लेखक घटना स्थल के ओनहा-कोनहा ल छिहीं-छिहीं घूमे हे। तभे तो लिखे हे- "दण्डकारण्य के मध्य पश्चिम भाग मा अबूझमाड़ के पहाड़ी, त उत्तर मा केशकाल घाटी ले दक्षिण म बस्तर जिला तक उत्तर-पूर्वी पठार लामे हे। उत्तर म तेलीन घाटी अउ उत्तर-पश्चिम में मतला घाटी के प्रपाती ढलान ले होवत कोटरी-महानदी के मैदान ले ये पठार ऊपर उठथे। फेर दक्षिण मा तुलसी डोंगर दक्षिण-पश्चिम मा टंगरी डोंगर के प्रपाती ढाल के द्वारा ये हा नीचे होवत जाथे। तुलसी डोंगर ला ही दरभाघाटी अउ टंगरी डोंगर ला बस्तानार घाटी कहिथे।"
नक्सली घटना जऊन छत्तीसगढ़ ल अशांत करके राखे हे, कतको बछर ले हमला दुख- पीरा पहुँचावत हे। येखर समूल बिनास कब होही? ये सेवाल अभो खड़े है। लेखक ह ' उवत सुरुज के अगोरा ' म छत्तीसगढ़ के ज्वलंत समस्या नक्सलवाद के बदरंग चरित्र के संग जोर-जुलुम ल उकेरे हे। जऊन वर्तमान म दिखत हे, जेन ला गरीब आदिवासी भोगत हें।
भाषा शैली के दृष्टि ले देखे जाय त कोनो-कोनो मेरे लेखक हा थोरकिन चूक गे हे। लेकिन ये चूक ला सुधारे जा सकत हे। वइसे देखे जाय त लेखक डॉ. विनोद कुमार वर्मा छत्तीसगढ़ी के बड़का जानकार अउ बडक़ा साहित्यकार आये। उमन छत्तीसगढ़ी म आन भाषा विशेषकर अंग्रेजी अउ क्लीष्ट हिन्दी के प्रयोग के पक्षधर नोंहय । तेखरे सेती कतको पाठक मन एखर ले असहम्मत होहीं। चूंकि उपन्यास लेखन म लेखक के येहा पहिली उदिम ये, त हम ये आसा करन के आगू चलके अइसन छोटे-मोटे कमजोरी ह अपने आप दूर हो जही। हम ये मान के चलन के जइसे जेवन करत कभू-कभू नानमुन गोटी जेवन के सेवाद ल किरकिरा कर देथे। त अच्छा होही के गोंटी-माटी ल बिन के छांट - निमार के जेवन पकाय जाय। कुल मिलाके लेखन के भाषा शैली पात्रानुकुल सहज, सरल, सरस अउ प्रभावी हे।
साहित्य के कोनो भी विधा होय, चाहे गीत-कविता होय के कथा- कहानी, उपन्यास के, नाटक के,सबके मूल उद्देश्य होथे मानवीय मूल्य के संरक्षण अउ संवर्धन। मानवीय मूल्य जइसे दया, प्रेम, करूणा समता, सद्भाव, भाइचारा हर ही मनखे ला मनखे बनाथे । जोर-जुलुम के बिनास बर लोगन ला जागरूक करना, चैतलग करना। अपन अधिकार बर लड़ना अउ गरीब-गुरबा ला सजोर करना, भटने ला रद्दा देखाना अउ नवा दिसा देना। ये जम्मो के जिम्मेदारी समाज के, साहित्य अउ साहित्यकार के होथे। ‘ उवत सुरुज के अगोरा ’ म लेखक डॉ. विनोद कुमार वर्मा ह नक्सलवाद जइसन विषय ऊपर कलम चला के, जोर-जुलुम के प्रतिकार, मया-पिरीत के बढ़वार, सेवा-सहयोग, कर्तव्यनिष्ठ के सुग्घर प्रतिमान गढ़े हें ,अउ उपन्यास अपन उद्देश्य में सोलह आना सुफल हे। येखर बर उपन्यासकार डॉ. विनोद कुमार वर्मा ल गाड़ा-गाड़ा बधई अउ शुभकामना। आगू चलके के हमला अउ अइसने प्रभावी लेखन पढ़े बर मिलही अइसने आसा हे। आखिर म अतका अउ-
नक्सल समस्या के फोरा,
दुख-सुख के आय जोरा।
जिनगी बर जुड़ मलहम हे,
‘ उवत सुरुज के अगोरा। ’
16 मार्च 2025 डाॅ पीसी लाल यादव
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