Thursday, 27 March 2025

बेलुज्जर होवत लइकामन*

 कहानी 


–डॉ. पद्‌मा साहू *पर्वणी*


*बेलुज्जर होवत लइकामन*


    एक हाथ मा बड़े जनी लउठी अउ दूसर हाथ मा अपन छोटे टूरा के चूंदी ला धर के खींचत घर के मुहाटी ले बहिरी मा धकेल के खोरबाहरा– “जब देखव तब अपन ले बड़े मन ला मुफट जवाब देबर सीखे हस। ददा–दाई के चिन्हारी नइ हे। का बोलथस तेकर हउस नइ हे, तोर मुँह मा थया नइ हे। चल निकल ये घर ले। बहुत होगे तोर रोज-रोज के तमाशा।” काहत भसरंग ले मुहाटी के कपाट ला लगाके भीतरी कोती आ जथे।


“रोज-रोज बड़े फजर ले राम-राम के बेर कुकुर कटायन,......। ये टूरा के मारे जीना मुस्कुल होगे हे। बाप-महतारी के कमई ल खावत हे तेकर सेती गोल्लर कस भुकरत किंजरत हे भड़ुवा हा। कहाँ ले मोर कोख ले राक्षस पैदा होय हे कोन जनी?”  रंधनीखोली ले रमशिला बड़बड़ावत हे।


येती मुहाटी के संकरी ला बाजत सुनके अपन टूरा ला होही काहिके खोरबाहरा आज तोला घर मा आवन नइ देंव कहिके चिल्लाथे त मैं सावित्री हरों गा सावित्री खोल बेंस ला कहिके सावित्री चिल्लाथे। रमशिला सावित्री ला पीढ़हा ला देवत कहिथे – “बइठ न दीदी। हमन तो न मरत हन न मोटावत हन हमर छोटे टूरा के मारे।”


हव बहिनी रमशिला महूँ देखत हँव तोर छोटे टूरा गोपाल तो लाहोच लेवत हे। दूसर मन के संगति मा कइसन घर के लइका ये अउ कइसन होवत हे। हमर समे मा लइका मन लाहत बिहत राहें अब के मन तो ……..।


मंडल के टूरा रईस के लइका आय जेनला काम-बूता के कोनो चिंता फिकर नइ रहय। वोकर घर नौकर-चाकर हें काम करइया त वो निठल्ला शेखी मारत घुमत रहिथे। अउ हमर घर के लइका वोकर पीछू-पीछू लगवारी करत  रात-दिन घुमत रहिथे दीदी। हमन तो किसनहा आदमी अपन खेती किसानी करबोन तभे तो पेट ला भरबो। फेर हमर लइका ला तो का कहिबे हाय राजा! हाय राजा! काहत दुम हलावत मंडल के टूरा संग लफुट्टी मारत रहिथे। संग मा नाऊ के टूरा, कोतवाल के टूरा अउ गाँव के कतको लइका मन बिगड़त हवैं सावित्री दीदी कइसे करबों तइसे लगथे? रमशिला सावित्री तीर अपन दुख ला गोठियावत हे।


परछी के मुड़की मा ओध के मुड़ी धर के बइठे खोरबाहरा ला सावित्री कहिथे– “ये खोरबाहरा बाबू तैं मुड़ी धर के बइठे झन रहा। तैं नाऊ अउ कोतवाल ला धर के अली मंडल घर जा अउ वोला बता वोकर लइका के सेती दूसरा के लइका मन कइसे बिगड़त तेला।”


खोरबाहरा– “का कहिबे सावित्री भउजी…. दू बेर तो मैं कही डरेंव हँव फेर बड़े मन के बड़े बात। वो खुदे अपन हाथ मा अपन बेटा ल बिगाड़त हे। अउ हमर लइका मन बर काल बनत हे।”


अब तोला का बतावँव अभी तीन महीना पहिली वोकर टूरा संग नाऊ के लइका शक्ति, कोतवाल के लइका भंडारी अउ हमर लइका गोपाल संग मा दूसर गाँव के लइका मन गाँव के आमा बगइचा मा बइठ के दारू मंद पियत रहिन अउ तास सट्टा खेलत रहिन। गाँव डहर ले पुलिस डग्गा आइस अउ वोमन ला पकड़ के लेगे। दू चार झिन एती-ओती भाग गिन।


अली मंडल कर खबर पहुँचिस ता थाना पहुँच के हवलदार ला कहिस – “मैं गाँव के इज्जतदार आदमी हरँव हवलदार साहब मोर लइका ला ये टूरा मन अपन संग मा लेगे रहिन एकर कोनो गलती नइ हे।” 

हवलदार ला पइसा-पानी देके छुड़ा लिस।

सबो दोष हमर लइका मन ऊपर आगे अउ मंडल के टूरा राजा छूट गे। सब झन अपन-अपन लइका ला रीस के मारे नइ छोड़ावन कहिके हफ्ता भर जेल मा रखेन फेर  पइसा-कौड़ी देके छोड़ायेन। घर मा अइन ता का समझायेन गलत संगति ला छोड़ दव रे लइका कहिके फेर काला मानही ये मन ला तो नशा सट्टा के चस्का लग गे हे। 

अतका मा टूरा भंडारी कहै – “तुँहर तो औलाद हरन छोड़ाहू नइ त का करहू।” 

येला सुनके वोकर ददा कोतवाल हा खींच के दूनों गाल ला मारिस झाफड़।

हमर टूरा गोपाल कहिस – “काश ! हमरो ददा राजा के ददा अली मंडल कस होतिस। कोनो रोक-टोक नइ रहितिस हमन अपन मन के मालिक रहितेन अउ फरफट्टी मा घुमतेंन।”

खोरबाहरा कहिथे– “मनगभरी तो हो गे हो रे। उच्च्छंद तो घुमत हो रे तभे तो सकल करम करके थाना कछेरी मा घूमवावत हो।तुमन ला दाई-ददा के मान मर्यादा अपन भविष्य की संसो कहाँ हे ?” 

लइका मन के अइसन बेवहार  ला देख आज दाई-ददा मन दुख के आँसू रोवत हन भउजी। 


एकर पाछू महीना भर पहिली गाँव के सड़क तीर बर पेड़ के खाल्हे मा बइठ के चारों झन फोन मा बेढंगा गाना सुनत फकर-फकर सिगरेट पियत धुँआ उड़ावत रहिन। अउ मँझनी मँझनिया दूसर गाँव के अवैया पढ़इया नोनी मन ला हाथ धर के छेड़त रहिन। में अपन खेत कोती ले आवत इंकर करनी ला देख परेंव। 


भंडारी एक झन नोनी ले काहत रहिस – “तैं हमर राजा के रानी बनबे का?” 

वो नोनी दू थपड़ा मारिस ललियागे टूरा के गाल।

टूरा राजा काहत रहिस – “ बने तो काहत हे आ ना तोला मोर फरफट्टी मा घुमाहूँ।”

दूसरा नोनी कहिस – “येला का घुमाबे रोगहा तोर बहिनी ला घूमा ना।”

टूरा शक्ति काहत रहिस– “टूरी तुमन नइ जानो का हमन कोन हरन तेला?”

फेर आज ये टूरा मन मोर पकड़ मा आगे। गोपाल अउ शक्ति भाग गिन फेर टूरा राजा मोर सपेटा मा आगे वोला बरजेंव – “बड़े घर के मंडल के लइका हरँव कहिथस रे। मंडल घर के लइका हरस त अपन ददा के धन दोगानी ला अइसने सिगरेट के धुँआ मा उड़ाबे का रे। अउ तोर घर मा तोर दाई बहिनी नइ हे का रे, दूसर के बेटी माई ला अइसने समझत हस। आज चलना घर तोर ददा के आगू मा तोला सोटीयाहूँ।”

    अतका ला सुन के टूरा राजा मोला लाल आँखी देखावत हाथ ला झटकारत कहिस– “मैं मंडल के बेटा हरँव अली मंडल के। तैं मोर कुछु नइ बिगाड़ सकस चल हट।”

मोरो एड़ी के रीस तरवा मा चढ़गे टूरा के चेथी ला देंव ता टूरा एकर अंजाम अच्छा नइ होय काहत अपन फरफट्टी मा चढ़के फुर्र होगे।

घर मा पहुँचेंव ता टूरा गोपाल ला बरजत दुलारत कहेंव – “तैं मोर सबर के जादा परीक्षा झन ले बेटा तैं सुधर जा अपन जिनगी ला सँवार ले। घर के काम बूता मा धियान दे। राजा जइसन संगी साथी ला छोड़ दे नइ ते तोर ये घर ले निकाला हो जही।” 

अतकेच मा गोपाल बगियाके कहिस – “तोर पइसा ला उड़ावत हँव का? तोला अतेक पीरा काबर होवत हे। तैं तो मोला एक ठन फोन अउ पिक्चर देखे बर पैसा नइ दे सकस त काबर बोलत हावस?”


गोपाल के अइसन बात ला सुनके मैं वोकर चेथी कोती ला मारेंव। अउ अपन लइका ला अइसन संस्कार तो नइ दे हों भगवान फेर का हाेवत हे कहिके अपन तरवा ला धर के रोय लागेंव। वोकर महतारी रमशिला घलो वोला समझाइस त दू दिन बने रहिस फेर राजा के रंग मा रंग गे।

अपन लइका ला एक झन हरे कहिके जादा मुड़ी मा झन चढ़ा गा नइ ते तोर धन दोगानी ला अपन अय्यासी मा उड़ा दिही। तोर लइका राजा का करत तेला तो तैं जानतेच होबे। तोर लइका के संगति मा हमर लइका मन हमर हाथ ले निकलत हावँय। चिटिक ये बात ला गुनव मंडल जादा के छूट मा लइका मन बेलुज्जर उच्च्छंद हो जथें। कोतवाल अउ नाऊ अली मंडल ला वोकार घर जाके समझा डरिन तभो ले वोकर कान मा जुँआ नइ रेंगिस।

अउ उल्टा वोमन ला कहि दिस– “तुमन मोला सलाह देवत हव तुंँहर सलाह के मोला कोनो जरूरत नइ हे। मोर लइका कुछु करे तुमन ला का करना हे, चलो जाव तुमन।”

कोतवाल अउ नाऊ के बात ला सुन के मंडलिन घलो मंडल ला कहिस – “ये मन हमर अउ हमर लइका के भलई बर काहत हें, तुमन राजा ला थोरिक बरजो जी। हमर नौकर बनिहार मन घलो काना-फूसी करत रहिन राजा के चाल चलन ला लेके।”


खोरबाहरा अपन पड़ोसिन सावित्री ला मंडल के लइका के चालबानी ला बतावत कहिथे – “अभी चारेच दिन पहिली के बात हरे भऊजी वो टूरा राजा अपन मोबाइल मा गेम खेल के 1 लाख पइसा ला हार गे हे। वो पइसा के भरपाई बर गोपाल, शक्ति अउ भंडारी ले पइसा के माँग करिस। त ये तीनों परबुधिया मन राजा हमर संगवारी हरे कहिके वोकर बर मंगलू के दुकान मा चोरी करत पकड़ा गिन। पुलिस केश होगे फेर थानादार के हाथ-पाँव जोड़के 7000–7000 हजार पइसा भरके सब ला फेर छोड़ाय हन। मान सम्मान के संग धन ला घलो खोवत हन।”

रमशिला सावित्री ला कहिथे – “देखना दीदी हमन जेन लइका बर खेती किसानी ला कनिहा के टूटत ले कमावत हन वो हा हमर समाज मा नखमरजी करत हे। हमर मिहनत के कमई हा एकर पुलिस थाना ले छोड़ाइच मा सिरावत हे। 12 वी के बाद एकर पढ़ई लिखई का छूटिस संगति मा चोरी चमारी करे ला धर लिस। बर बिहाव के लइक होगे हे तभो ले अपन काम-बुता, दाई-ददा के कोनो चिंता नइ हे। दिन भर मनमानी करत घूमत हे रातबिकाल के आय के कोनो बेरा नइ हे।”

तोला का बताँव भउजी आज तो बिहनिया टूरा शक्ति हा भांड़ी कोती ले झाँकत तोला राजा बलाय हे काहत गोपाल ला गांजा के थैली ला फेंक के दिस सबो छरिया के गिर गे। गे में देख परेंव मोर तो हाथ-गोड़ काँप गे। टूरा शक्ति मोला देख के भाग गे। अउ टूरा गोपाल ला कहेंव तो मोला "पइसा का होथे तेला तैं का जानबे ददा पइसा बर तो में कुछ भी कर सकत हों ये गांजा का हरे? तुमन ला तो जिनगी जियेच ला नइ आवै।" टूरा के गोठ ला सुने के एक लउठी वोकर गोड़ ला रट ले मारेंव अउ हदास खाके जा मंडल घर राजा संग रहिबे उही मन तोर भार ला उठाही कहिके घर ले निकाल के येदे अपन किस्मत ला कोसत बइठे हों भउजी। साले टूरा मन ला चोरी-छिनारी, गांजा-भांग, दारू-मंद के नशा होगे हे। उच्च्छंद होके मनमानी करत हें, दूसर के बेटी बहिनी ला छेड़े ला धर ले हें।

सावित्री– “का करबे बाबू अब के लइका मन कोन दिशा मा जावत हें। का होही इँकर……?”


गोपाल ला वोकर ददा घर ले निकाल देथे ता भंडारी अउ शक्ति ला धर के राजा तीर जाथे। अली मंडल ओमन ला देख के “आओ रे आओ तुँहरे कमी रहिस।” कहिके दमकाथे। 

गोपाल अली मंडल ला कहिथे – “राजा कहाँ हे मंडल वोकर ले काम हे ता मिलना हे।”

अली मंडल – का काम हे रे तुमन ला?  ओ राजा हरे राजा मंडल के लइका, अभी सो के नइ उठे हे। 10 बजे उठही।”

उँकर बात ला सुन के राजा उठ जथे। बिहनिया ले गोपाल, भंडारी अउ शक्ति ला देख के अकचकागे। 

राजा ला देख के अली मंडल कहिथे – “ले जाओ वो दे तुँहर राजा आगे।”

गोपाल राजा संग परछी तीर जाके अपन ददा के सबो बात ला बताथे। राजा ला गोपाल के बात के कोनो फरक नइ पड़े उल्टा फिलिम देखे के उदिम जोख लेथे।

राजा के महतारी उँकर बात ला सुन डरथे ओला राजा के बिगड़े अउ वोकर उच्च्छंद होके घुमई ला देख के फिकर करथे।

 

मंडलिन राजा ला बरज के कहिथे – “राजा अब तोला कहींचो नइ जाना हे बहुत होगे तोर।” 


राजा – “चुप न वो दाई बात-बात मा टोकत रहिथस।”

मंडलिन राजा ला कहिथे – “राजा मैं तोर महतारी हरों। तोला कइसे गोठियाना हे लिहाज नइ हे का?”


राजा छोड़ न यार इँकर तो अइसनेच हरे कहिके 

12:00 बजे खा पी के अपन ददा के कार मा फिलिम देखे बर सहर चल देथे। अपन ददा ला पूछे बिना। फिलिम देख के लहुटत खानी सँझा बेरा सब झन ढाबा मा बइठ के शराब पीके नशा मा गाड़ी मा चढ़थे।


शक्ति अउ भंडारी कहिथे – “आज के दिन बहुतेच बढ़िया राजा मजा आगे भाई फिलिम के फिलिम अउ चखना संग मा ये दा……….।”

फेर गोपाल अपन ददा के बात ला सुरता करत संसो मा पड़गे रहिथे।

अब राजा कार मा चढ़ के “हमर बाप के सड़क हरे बे। कोन का करही?” कहिके 100 के स्पीड मा कार ला चलाथे।

गोपाल कहिथे – “देख भाई राजा देख के चला कोनो एक्सीडेंट झन हो जाय। कुछु होथे ता तो तोला तोर दादा  बचा लेथे फेर हमन ला कोन बचाही?” 

अतकेच मा बीच सड़क मा एक ठन गाँव के आखिरी छोर मा मोटरसाइकिल वाले सियान सन झपा के एक्सीडेंट हो जथे। मोटरसाइकिल वाले ला बनेचपन लग जथे वो मूर्छा हो जथे वोला छोड़ के येमन डर के मारे उदत तपत घर आ जथें। मंडल अपन कार के क्षति गति ला देख के समझ जथे फेर राजा ला कुछु नइ बोले। शक्ति अउ भंडारी मंडल ला तिरछा-तिरछा देखत अपन घर कोती निकल जथे।

घर मा पहुँच के भंडारी कोतवाल के गारी खाथे अपन ददा संग मुँहजोरी करत सो जाथे। गोपाल जाके अपन परसार मा सो जथे। संग मा शक्ति घलो।

एक्सीडेंट मंडल के तीर वाले के गाँव मा होय रहिस ता येती मंडल मंडलिन ला उँकर चिन पहिचान वाले मन राजा ले होय एक्सीडेंट के बात ला बता डरे रहिन अउ मोटर साइकिल वाले ला अस्पताल मा भरती करा डरिन। सियनहा के इलाज मा अवैया खर्चा के भरताना ला भरे बर वोकर घर वाले संग राजी होके फोन मा मामला ला रफा-दफा करे बर कही देथे। राजा के डर ते बबा के डर मंडल के बात ला मान के सियनहा के घर वाला मन पुलिस केस घलो नइ करें। 

अब मंडल अउ मंडलिन दूनों झन राजा के बढ़त नशाखोरी, गलत काम अउ मनमानी ला देख के वोला सबक सिखाय बर सोचथें।

दूसर दिन होत बिहनिया कोतवाल, नाऊ अउ खोरबाहरा मंडल घर जाथें। मंडल वो मन ला में जानत हँव तुमन काबर आय हव तेला फेर अपन-अपन घर जावव अब सब ठीक हो जही कहिके घर भेज देथे।


अब मंडल  राजा ला बड़े फजर ले चिल्ला के उठाथे अउ कहिथे – “मैं तोला मोर एक झन लइका हरे कहिके बहुत सह दे हों बेटा। तोर गलती ला जाने के बाद घलो कुछ नइ बोले हों फेर अब तोर नशाखोरी, अय्याशी, बेहूदगी चोरी-चमारी बहुतेच बाढ़ गेहे। अइसने मा तो तैं मोर पूरा धन-दोगानी अउ इज्जत ला बेंच खाबे। सिरतोनेच कहत रहिस खोरबाहरा हा। बेटा तैं B.A. तो पास नइ हो सकेस बर बिहाव के उमर होगे फेर अइसने मा तो तोर बिहाव घलो नइ हो सकही।”


राजा– “का होगे ददा?”


अली मंडल– “का होगे कहिथस। तैं खुद अपन आप ला देख। तोला अभी तक मुड़ मा चढ़ा के मैं बहुत बड़े गलती करे हों बेटा। तैं काली कोनो आदमी ला बीच सड़क एक्सीडेंट कर के मरत छोड़ के आय हस। कखरो प्रान ले देके बाँचे हे। मोला नइ जानही कहिथस का?  अब बहुत होगे तोर। तैं घर ले 100000 के चोरी करे, दूसर के नोनी मन ला छेड़ेस, जुँआ, शराब, गांजा के धंधा मा घलो चल दे फेर मोर आँखी मा तोर मया के पट्टी बंधाय रहिस में तोला कुछु नइ बोले हों। अब तोर सिंग जादा बाढ़ गे बेटा आज ले तैं घर के नौकर-चाकर संग मिलके खेती किसानी के काम ला देखबे। मोला पूछे बिना तोला घर से नइ निकलना हे। अब तोर गोपाल, शक्ति, भंडारी ले कोनों दोस्ती नइ होना चाही। तैं सुधर जा एक बेर मउका देवत हों। नइ ते ये एक्सीडेंट के केस मा जेल के चक्की पीसाहूँ। अब मोर ले बुरा कोनो नइ होही कान खोल के सुन ले।”


अली मंडल अपन नौकर बनिहार संग राजा ला रगड़ के खेती किसानी के काम मा लगा देथे। वोकर बहिरी आना-जाना बंद कर देथे। अपन खुद रोज-रोज वोकर परछो लेवत रहिथे। हफ्ता चार दिन राजा छटपटाथे फेर पसीना गारथे ता मिहनत के मतलब ला समझथे। अउ अपन जिनगी मा सुधार लाथे। 

      येती गोपाल राजा संग लगवारी ला छोड़के अपन ददा-दाई ला हाथ-पाँव जोड़ के माफी माँगत कहिथे– “ददा-दाई हो मैं अब गलत लगवारी संग गलत रद्दा मा कभू नइ जाँव। मोर गलती ला माफी दे दव। अब मैं तुँहर हिनमान नइ करँव।” खोरबाहरा अउ रमशिला हा गोपाल बर घर के मुहाटी ला खोल देथे। गोपाल घलो अपन ददा भाई संग चना गहूँ के ओनारी करत खेती किसानी मा लग जथे अउ पढ़ई-लिखई घलो करथे।

शक्ति अपन ददा के ठकुरइ काम मा साथ देथे अउ भंडारी अपन ददा के कोतवाली काम करथे। 


अली मंडल खोरबाहरा, कोतवाल अउ नाऊ ले कहिथे – “ तुमन मोला माफी दव जी मैं लइका के मोह अउ धन के गरब मा तुँहर बात ला नइ सुनत रहेंव फेर अब मोर आँखी उघर गे हे। मोर लइका के बिगड़े मा मोर हाथ रहिस फेर अब मोर राजा बेलुज्जर नइ हे वो सहीच मा सुधर गेहे।”

खोरबाहरा, कोतवाल अउ नाऊ कहिथें – “तोर लइका के सुधरे ले हमरो बेलुज्जर लइका सुधरगे जी मंडल।”


कहानीकार 

डॉ. पद्‌मा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

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