कहिनी- किसान के पीरा
राजा जय पाल के राज म चारो कोती हरियर -हरियर खेत-खार,धान-पान ले सम्पन्न अउ खुसहाली रहिस।चारो दिसा म राजा जयपाल के जै -जैकारा होवत रहिस।
एक घाव राजा जयपाल हर सादा भेस म अपन राज के राज काज ल देखे बर अउ लोगनमन के सुख-दुख ल जाने बर अपन घोड़ा म बइठ के राज के भीतर रेंग दिस। बड़ दूरिहा रद्दा म रेंगत बिहिनिया ले मंझनिया होगे।जम्मो मनखे मन म खुसहाली रिहिस। जेठ के महिना तपत घाम चलत लू लपेट म अंगारा कस जनात घाम म, राजा बड़ दूरिहा निकलगे। रद्दा के गम नई पाइस अउ रद्दा ल भुलागे।त एकोठन कोनो ठउर देखे लगिस, जेमा एको घरी सुरतातिस।
त एकठन झोपरी ल देख परिस। उही झोपरी म आसरा ले बर गइस। फरिका ल खट-खटाईस त एक झिन डोकरा बने ओनहा ल पहिरे धोती कुरता म मुंडी म फेटा बांधे निकलिस। अउ कहिस-"आपमन कोन हवव? इहां कइसे आये हवव? कोनो काम हवय का? "सादा भेस म ओहर राजा ल नइ चिन्हिस। राजा हर किहिस-"मेंहर राहगीर हवव।रद्दा ल भुलागे हवव। राजमहल के रद्दा कोन हरे आपमन बता देव।" डोकरा हर किहिस-"आपमन थोरकुन बइठव ,मेंहर रद्दा ल बता दुंहु, फेर अतका मंझनिया घाम के बेर कहां जाहुं, थोरकुन थिरा लव, सुरता लव, फेर जाहुं।" अइसना कहिके डोकरा हर अपन झोपरी के भीतरी अंग नींगगे। राजा हर झांक के भीतरी देखिस त झोपरी भीतरी अंग अंगना डहार म कुसियार के बड़का खेत ल देखिस। देखते रहिगे, चारो कोती हरियर-हरियर लांबा-लांबा कुसियार लह लहावत रिहिस। उही बेरा देखथे ,के डोकरा हर एक ठन लांबा कुसियार ल तोर के पानी म धोके अपन हाथ म चपक के कुसियार ले रस निकाल के एक ठन माटी के कुंड़ी म लान के राजा करा लानिस।
राजा हर कुसियार के रस ल पीके तृप्त होगे। कुसियार म अब्बड़ मिठास रिहिस। ऐकेठन कुसियार म कुंडी भर रस, घाम के तपन हर जुड़ागे-ठंड़ागे। राजा हर कुसियार के रस ल पीके मन म गुने लगिस-मोर राज के जम्मो किसान मन अब्बड़ पोठ हवय अउ मेंहर त राज के चुंगी-कर ल बढ़ा सकत हव, त राज कोस म हमर राज के पइसा बाढ़ जाही। अइसना मन म गुनत राजा हर, डोकरा बबा ले राजमहल के रद्दा ल जान के राजभुवन कोती रेंग दिस।
राजा राजभुवन म पहुंच के दूसर दिन सब्बो मंत्री मन ल बला के अपन राज के चुंगी-कर ल बढ़ाय बर अपन राय दिस। कहिस-"हमर राज के जम्मो किसान मन अब्बड़ पोठ हवय उंखर चुंगी-कर ल दुगुना कर देवव।"
राजा के आदेस ले जम्मो राज म किसान मन के चुंगी-कर म बढ़ौतरी होगे। किसान मन म उदासी छागे। त ले अपन मेहनत -मंजूरी करत किसान मन, अपन करम करत कभू पाछू नइ हटिन।
दु बछर बीतगे। राजा फेर भेस ल बदल के उही दिन बादर म उही डोकरा के झोपरी म गिस। झोपरी हर टुटहा-फुटहा होगे रिहिस। तिपत घाम म राजा हर फरिका ल खट-खटाइस। डोकरा हर फरिका ल खोलिस अउ कहिस-"कोन हवव बाबू ।" राजा हर डोकरा बबा ल देखत रहिगे, पहिले कस नइ रिहिस। ओखर ओनहा म जघा-जघा थिगड़ा हर लगे रिहिस। मुंहु म उदासी छाये रिहिस। राजा हर किहिस -"मेंहर राहगीर हवव बबा, थोरकुन सुरताय बर इहां आय हवव।" डोकरा कहिस-"आवव बाबू थोरकुन सुसताय लेवव।" अइसना कहिके डोकरा हर अंगना के फरिका ल खोल दिस अउ अपन कुसियार के खेत ले चार ठन कुसियार ल काट के ले आनिस। अपन बेटा ल मसीन ले रस निकाले बर कहिस। चार ठन कुसियार ले निकले रस ल माटी के कुंड़ी म धर के ओखर बेटा हर राजा ल लान के दिस। राजा हर देखथे के कुंड़ी हर रस ले आधा भरे रिहिस। त ले कुसियार के रस ल पीइस। त ओखर स्वाद म मिठास तको नइ रिहिस। राजा ल बड़ चकित लागिस।
राजा हर डोकरा ले पूछिस-"बबा मेंहर तुंहर इहां इही दिन बादर म ,दु बछर पहिले आय रेहेव।त आपमन अपन हाथ ले एके ठन कुसियार ल चपक के रस ल माटी केे कुंड़ी भर मोला पिये बर दे रेहेव अउ ओहर अब्बड़ मीठ रिहिस अउ कुंड़ी भर रिहिस। फेर इही दु बछर म का होगे? जेखर सेती तुंहर कुसियार के रस हर कमती होगे अउ मिठास तको कमती होगे। डोकरा हर सादा भेस म राजा नइ चिन्हिस अउ राजा ले किहिस -"का बताबे बाबू हमर राजा हर अब्बड़ लालची होगे हवय। अब्बड़ धन ल राज कोस म राखे के लालच म, वोहर हमर किसान मन के चुंगी कर ल बढ़ा के दुगुना कर दे हवय। हमन संझा -बिहिनिया खेती म बूता करथन फेर का करबे। इही हाना हर सिरतोन हवय 'बोकरा के जीव जाय, खवईया ल अलोना ,राजा के इही सब्बो करनी हर हमर खेत-खार म अनाज म दिखत हवय। हमन मेहनत त करत हवन ,फेर राजा के मन म जनता मन बर खोट आगे हवय। तेखर सेती इही दु बछर ले हमर राज म अकाल जइसे हालत होगे हवय।
राजा हर डोकरा के गोठ ल सुन के दंग रहिगे। मन म गुने लगिस अउ पछतावा घलो करे लगिस, के मोर करनी अउ मोर लालची बिचार ले, मोर राज के किसान अउ धरती माता तको अब्बड़ दुख पावथे। मेंहर राजा हरव मोला जम्मो किसान अउ लोगनमन के बर बने बिचार उखर बढ़ोतरी के बिचार रखना चाही। उखर खुसहाली म खुस होना चाही। आज मोर प्रजा मोर करनी के दुख ल भोगत हवय।
दूसरे दिन राजा अपन मंत्री मन ल बुलाइस अउ किसान मन के करजा ल माफ कर के राज म लगे चुंगी कर ल कमती कर दिस अउ अपन मन म संतोस पाइस।
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लेखिका
डॉ. जयभारती चंद्राकर
सहायक प्राध्यापक,छत्तीसगढ़
Mobile N. 9424234098
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