तुलेश्वर कुमार सेन जी के आलेख
*होरी तिहार मा का कराथन थोरकिन सोचव जी*
हमर देश के संस्कृति भाखा ,बोली, पहनावा, तीज तिहार,सगा सोदर माने के बेवहारिक बातचीत,हंसी ठिठोली करत हन फेर मर्यादित ढंग ले, छोटे लइका अउ बड़े सियान से कइसे बातचीत करना हे , दाई ददा के आगु मा का ,कब अउ कइसे रहना हे, सबला हमन भूलावत जावत हन, भारतीय संस्कृति देश दुनियाँ मा हजारों साल ले नाम कामावत रीहिस, कतको झन अपन _अपन ढंग ले येला मिटाए के कोशिश करिन ओमन ख़ुदेच ले मिटगे फेर नइ मिटा सकिन काबर सुने अउ देखे हवन मराइया ले बड़े बचाइया होथे ।पश्चिमी सभ्यता के रोग अब हमु मन ला लगे के शुरू होगे हे तेखर सेती आज हमन पढ़े लिखे अउ शिक्षित होय के घमंड करत हर बात ला तर्क वितर्क अउ वैज्ञानिक होय के बात कहि थन हमर पुरखा मन के आगू उखर एड़ी के धोवन बराबर घलो नइ हवन, फेर वा रे मनखे थोथा चना बाजे घना, दिखे मा श्याम सुंदर पादे मा ढमका, जाने कुछ नहीं फेर अपन आप ला बड़का ज्ञानी बतावत हे, जबकि हमर इही भारतीय संस्कृति तीज तिहार मन ला अपना के ओकर वैज्ञानिक सोच अउ शोध करके विदेशी मनखे मन आज चाँद सूरज मा पहुंचगे। हमर लइका मन ला हमर सियान मन के सब बात हा ढपोसला अउ मूर्खता पूर्ण लागे लगत हे,अनपढ़ गंवार कहत हे। उखर दूरदर्शी बात ला हम कभू नइ देख अउ सोच सकेन जबकि हमर ले ज्यादा वैज्ञानिक ओमन रिहिन उखर बात मा शोध करे के जरूरत हे।
बात होली तिहार के करत हन ता पहली के सियान मन पौराणिक हिरणाकश्यप,होलिका अउ भक्त प्रहलाद के कथा अउ राधा कृष्ण संग गोप गोपाल के कथा ला मान के होली मनवात रिहिन अउ प्राकृतिक रंग ले होली खेले परसा के फूल, हल्दी, चंदन, प्राकृतिक रंग गुलाल आदि ला लगा के ओखर बाद रिश्ता अनुसार पांव पायलगी करे। नगाड़ा बजावत हंसी ठिठोली संग फाग गीत गाए अउ झूम झूम के नाचे,घर घर गुझिया, सोहारी, ठेठरी,खुरमी,अरसा, बरा अउ नमकीन आदि बनाए परिवार सहित संग मा बइठ के खाए मिलके तिहार मनाए एक दुसर ले सुख दुख बांटे अउ खुश रहे। कोनो काम बुता मा बाहर जाए तहुमन लहुट के अपन छइंया भुईयां वापस आ जाए। जियत मरत के होली तिहार कहाए।
बात करथन परिवार के आज के होली तिहार के ता आज के तिहार मनाए के तौर तरीका रंग ढंग ककहरो समझ नइ आवत हे आदमी मन परिवार सहित तिहार मनाए बर जोरियाथे जरूर फेर शरीर भर घर आथे मन हा दुसर जगह मा रहिथे ।आज सब झन पइसा के पीछे पागल होगे हावे पिता पुत्र,सास बहु,ननद भाभी ,बच्चे सब झन अलग _अलग रहिथे सबके सोच अलग_ अलग हो थे। अचानक सकला थे थोड़कन मा ऊपर नीचे हो जा थे तहान पारिवारिक माहौल नइ रहे काबर सबके अपन अपन स्वतंत्र विचार हो थे कोई ककरो सुने बर तैयार नइ राहें। कोनो कोनो जगह मा बने झगड़ा लड़ाई घलों हो जा थे।
बात करथन समाज के समाज मा आज सीखे के लायक कुछु नइ दिखे सबके सब अपन आप मा मस्त हावे हम हवन मस्ती मा आग लगे चाहे बस्ती मा ये कहावत चरितार्थ दिखथे।आज के तारीख मा कोनो ला कुछु नइ बोल सकस। घर, परिवार,पास पड़ोस ओखर बाद गांव समाज बन थे कोनो ला ककरो चिंता नइ हे सब अपन सोच विचार मा स्वतंत्र हे अगर उखर सुधार बर ते कुछु बोल दे बे ता तोरे बर जुरिया जाहि।सच सुने बर कोनो तैयार नइ हावे ।सबला अपन मनोरंजन अउ टाइम पास के फिकर हे, काली ला कोन देखे हे, काली जिन्दा रहिबो ता काली देखे जाहि।आज के युवा मन बीड़ी, सिगरेट, शराब, गांजा, तम्बाकू गुटखा,चरस,भांग जइसन नशा के पाछु पागल हे ।पता नहीं काकर कृपा हो जा थे गांव गांव मा आसानी ले कइसे पहुंच जा थे संविधान अउ शासन प्रशासन वाले मन ला इकहर खबर कइसे नइ लागे जबकि छोटे छोटे बात हा तुरते पहुंच जा थे ।पढ़ाई लिखाई से कोनो मतलब नइ हे ,अपन उज्ज्वल भविष्य के कोनो चिन्ता नइ हे ,स्कूल कालेज टाइम पास के अड्डा बनत जावत हे।सोशल मीडिया टीवी, सिनेमा, फेस बुक, मोबाइल, इंस्ट्राग्राम, रील लाइफ ला देखत रहिथे अउ बनावत रहिथे आनी बानी के फैशन के पीछे पागल होगे हे उखर चुन्दी मुड़ी कटई अउ कोरई मा ओमन ला देख आज ते नइ पहिचान सकस कोन टूरी हरे कोन टूरा हरे। बर बिहाव, छट्टी बरही,छोटे मोटे कार्यक्रम मा कान फोड़वा डीजे मा आज फूहड़ फूहड़ गाना मा महिला, पुरुष, लोग लइका ज़ुरमिल मटक मटक दारू गांजा पीके नाचत रहिथे।खाए बर खपरा नइ बजाय बर दफड़ा वाले बात आम होगे हे। एक ठन बात मोला आज अउ ज्यादा दुखी करत रहिथे कि मनखे के भीतर आज संवेदना नाव के कोनो भाव बात नइ रहिंगे हे। जेन ला देखबे तेने हा कोनो भी नानमुन गांव गली खोर मा घलो अंडा रोल अउ कुकरी कांटे के दुकान लगावत रहिथे जानवर मन ले जादा मनखे मन मांस खवइया होगे।हमर नान नान लइका मन ओला देखत हे ता उखर बाल मन का असर पड़त होही ये मा चिंतन जरूर होना चाही।गांव गांव में आसानी ले नशापानी के सामन गांव मा कइसे पहुंच जावत हे।गांव मा आसानी ले मिलही ता लइका मन सीखबे करही।अपन स्वार्थ बर सियान मन खुदेच बेचाइया मन ला प्रोत्साहित कर थे ये रुकना चाही।
होली तिहार मा प्राकृतिक रंग गुलाल अउ होली तिहार के प्रमुख संदेश ला सबो मनखे भुलावत जावत हे।रंग गुलाल ला छोड़ के चिखला,गोबर,पेंट, आइल ला लगावत रहिथे ।रंग रंग खोपड़ी,रंग रंग के आवाज के भोपू बाजावत रहिथे। गांजा, दारू, भांग के जादा कोनो नशा करिन तहान गाड़ी मोटर मा जपावत रहिथे। कभू कभू बने मनखे मन इकहर चपेट आ जा थे ।बुराई मा सच्चाई के जीत अब कोनो जगह देखे बर नइ मिले।सब जगह मा मुंह मंगा घोटाला होवत हे।होली तिहार मा नशा करिन तहान लड़ाई झगड़ा होवत रहिथे।कोनो भी तिहार के पाछु के संदेश ला नइ जानबो तब तक वो तिहार ला वो भाव के संग नइ मना सकन न हमन ला वो आनंद के प्राप्ति हो सके।आज दिखावा अउ फिजुल खर्ची घर घर ला बर्बाद करत हे।होली तिहार ला तो जम्मो अमीर _गरीब,ऊंच _नीच,छोटे_ बड़े,दोस्त _दुश्मन के भेदभाव ला भुलाके सबके साथ मनाए जाथे।बदलाव जरूरी हे फेर अतका झन बदलव की खुदेच ले दूरिहा जाव।होली के दिन न जाने अपन स्वार्थ बर कतका कन कुकरी, बोकरा, मछरी,सुरा ,अंडा भीतरी खुसरे पिला ला मारे जाहि भगवान उखर आत्मा ला शांति देवय अउ ख़वइयाँ मन सद्बुद्धि ।कोनो भी नशा आपके जीवन मा आगे हो ही उहू ला छोड़व जी ।होली हे बुरा झन मानव जी।ये होली आपके घर परिवार मा सुख शांति लावे। जतेक भी बुराई हे सबो होलिका संग जल के राख हो जाए।
तुलेश्वर कुमार सेन
सलोनी राजनांदगांव
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