Thursday, 27 March 2025

पुतरी के पुतरी*

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      *कका- काकी के मया बगरात एकठन छत्तीसगढ़ी लघुकथा-*


                   *पुतरी के पुतरी*


      वोकर नाव तो सत्यभामा रहिस, फेर सुंदरई के चलते घर- परिवार के मन वोला पुतरी  कहें।


           पुतरी आज शहर के बड़खा  खिलौना दुकान म  टँगाय वो पुतरी ल मन  भर  के देखे रहिस।  वो  पुतरी हर वोकर नज़र म बस गय रहिस ।रात के सुतिस, तब सपना म घलव वोहर वो पुतरी संग गोठ- बात करत रहिस । फेर जगिस तव जुच्छा के जुच्छा ...!


       पुतरी  वो  पुतरी ल नइ भुलाइस फेर  वोला दुकान जाके खरीदे बर नइ कहे सकिस ।फेर   वो पुतरी  हर तो वोकर उपर म जादू कर देय रहिस।चौबीस  घण्टा के भीतर म वोला बड़ तेज बुखार आ गय। देखा ..ताका हो गय ।  

दाई  मोर पुतरी..! जर के जोर म मुँहू ल निकलत हे।

" हाँ..बेटी, तंय मोर पुतरी।"

"दाई तो...र पुत..री ..मो ..र  पु..तरी ।"पुतरी के मुख ल बिना परच्छर फूटे अस्फुट ध्वनि निकलत हे। महतारी ल समझ नइ आइस...!लइका हर का पुतरी च पुतरी लगाय हे।


    काकी तीर म आइस ।जर म तवा कस तीपत देहें ल पहिली सरसों के तेल म जम के मालिश करिस। पसीना नइ... फुट ही तब जर कइसन उतरही छोटकी ?नहीं... तेल परही तब अपने आप जर के जोर थोरकुन कम हो जाही। काकी हर तरी- तरपंवरी मन म तेल  ल मलत कहिस ।


        अउ सिरतोन देखते -देखत पुतरी के जर हर कम हो गय।अउ वोहर निरभुल सुते लागिस फेर एक दु पइत मो..र ..पु ..तरी..वोकर मुख ल जरूर निकलिस ।


          पुतरी हर पुतरीच  ..पुतरी कहत हे..।पुतरीच...  पुतरी कहत हे।कुटम्ब -परिवार भर म ये बात हर बगर गय। जउन लइका करा जउन भी पुतरी असन खेल - खिलौना रहिन ,तेमन ला लान  के पुतरी के बिस्तर तीर म  राख दिन। पुतरी के तीर म रंग -बिरंगी पुतरी मन के ढेरी लग गय ।


         पुतरी आंखी खोलिस।तीर के पुतरी मन ल देख के एक पइत वोकर आंखी म चमक आ गइस।फेर वो तो चिन्ह डारिस..ये पुतरी तो काजल के ये।येहर माला के ये।येहर पूनम के ये । थोरकुन फीकी हाँसी.. हाँसिस वोहर अउ फेर सुते कस करिस।


         कका हर थोर -मोर कलाकार रहिस। हैंडीक्राफ्ट असन जिनिस के जानकार ।काकी हर तो सिलाई - कढ़ाई के उस्तादीन रहिस ।कका अउ काकी बनेच रात ल जागिन अउ एकठन पुतरी असन जिनिस बना के पुतरी के  तकिया  ..तीर म राख दीन ।


       बिहनिया वोती सुरुज नरायन अपन आंखी ल खोलिन अउ येती पुतरी हर  अपन ल खोलिस। येहर काकर ये..!नावा पुतरी ल छुवत पुतरी हर थोरकुन अचम्भा म दिखत रहय ।


         पुतरी के जर उतर गय हे।पुतरी अपन नावा पुतरी म मात गय हे खेले बर। दुनों देरानी अउ जेठानी..पुतरी के काकी अउ महतारी मुचमुचात वोला देखत हें ।


          ये घटना के कतेक बच्छर गय ल आज कका अउ काकी ,पुतरी ल स्नातकोत्तर कक्षा म जाय बर  अपन बचत पइसा ले नावा स्कूटी खरीद के दिन हें। अउ आज तक वोला का ..का दिन हें,तउन  ल पुतरी हर बरोबर जानथे।

   

         पुतरी कहत रहिस हे कि जउन पुतरी के अइसन कका-  काकी रहहीं, वोहर तो सब दिन पुतरी च रहही ।



*रामनाथ साहू*



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