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*कका- काकी के मया बगरात एकठन छत्तीसगढ़ी लघुकथा-*
*पुतरी के पुतरी*
वोकर नाव तो सत्यभामा रहिस, फेर सुंदरई के चलते घर- परिवार के मन वोला पुतरी कहें।
पुतरी आज शहर के बड़खा खिलौना दुकान म टँगाय वो पुतरी ल मन भर के देखे रहिस। वो पुतरी हर वोकर नज़र म बस गय रहिस ।रात के सुतिस, तब सपना म घलव वोहर वो पुतरी संग गोठ- बात करत रहिस । फेर जगिस तव जुच्छा के जुच्छा ...!
पुतरी वो पुतरी ल नइ भुलाइस फेर वोला दुकान जाके खरीदे बर नइ कहे सकिस ।फेर वो पुतरी हर तो वोकर उपर म जादू कर देय रहिस।चौबीस घण्टा के भीतर म वोला बड़ तेज बुखार आ गय। देखा ..ताका हो गय ।
दाई मोर पुतरी..! जर के जोर म मुँहू ल निकलत हे।
" हाँ..बेटी, तंय मोर पुतरी।"
"दाई तो...र पुत..री ..मो ..र पु..तरी ।"पुतरी के मुख ल बिना परच्छर फूटे अस्फुट ध्वनि निकलत हे। महतारी ल समझ नइ आइस...!लइका हर का पुतरी च पुतरी लगाय हे।
काकी तीर म आइस ।जर म तवा कस तीपत देहें ल पहिली सरसों के तेल म जम के मालिश करिस। पसीना नइ... फुट ही तब जर कइसन उतरही छोटकी ?नहीं... तेल परही तब अपने आप जर के जोर थोरकुन कम हो जाही। काकी हर तरी- तरपंवरी मन म तेल ल मलत कहिस ।
अउ सिरतोन देखते -देखत पुतरी के जर हर कम हो गय।अउ वोहर निरभुल सुते लागिस फेर एक दु पइत मो..र ..पु ..तरी..वोकर मुख ल जरूर निकलिस ।
पुतरी हर पुतरीच ..पुतरी कहत हे..।पुतरीच... पुतरी कहत हे।कुटम्ब -परिवार भर म ये बात हर बगर गय। जउन लइका करा जउन भी पुतरी असन खेल - खिलौना रहिन ,तेमन ला लान के पुतरी के बिस्तर तीर म राख दिन। पुतरी के तीर म रंग -बिरंगी पुतरी मन के ढेरी लग गय ।
पुतरी आंखी खोलिस।तीर के पुतरी मन ल देख के एक पइत वोकर आंखी म चमक आ गइस।फेर वो तो चिन्ह डारिस..ये पुतरी तो काजल के ये।येहर माला के ये।येहर पूनम के ये । थोरकुन फीकी हाँसी.. हाँसिस वोहर अउ फेर सुते कस करिस।
कका हर थोर -मोर कलाकार रहिस। हैंडीक्राफ्ट असन जिनिस के जानकार ।काकी हर तो सिलाई - कढ़ाई के उस्तादीन रहिस ।कका अउ काकी बनेच रात ल जागिन अउ एकठन पुतरी असन जिनिस बना के पुतरी के तकिया ..तीर म राख दीन ।
बिहनिया वोती सुरुज नरायन अपन आंखी ल खोलिन अउ येती पुतरी हर अपन ल खोलिस। येहर काकर ये..!नावा पुतरी ल छुवत पुतरी हर थोरकुन अचम्भा म दिखत रहय ।
पुतरी के जर उतर गय हे।पुतरी अपन नावा पुतरी म मात गय हे खेले बर। दुनों देरानी अउ जेठानी..पुतरी के काकी अउ महतारी मुचमुचात वोला देखत हें ।
ये घटना के कतेक बच्छर गय ल आज कका अउ काकी ,पुतरी ल स्नातकोत्तर कक्षा म जाय बर अपन बचत पइसा ले नावा स्कूटी खरीद के दिन हें। अउ आज तक वोला का ..का दिन हें,तउन ल पुतरी हर बरोबर जानथे।
पुतरी कहत रहिस हे कि जउन पुतरी के अइसन कका- काकी रहहीं, वोहर तो सब दिन पुतरी च रहही ।
*रामनाथ साहू*
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