*छत्तीसगढ़ी कहानी*
*नित्या के चिट्ठी*
बरखू हर नित्या ल ,अपन घर ले निकल के जात देखत रहिस बड़ बेर ल।नित्या हर तो वोकर करा भेंट होय बर आय रहिस। वो कहत रहिस कि वोहर अब मन लागही ते कोती चल दिही। ये पाय के वो, वोकर ले एक पइत मिल भेंट कर लंव कहके आय रहिस। अउ आतिस घलव काबर नहीं,वो दुनों तो एके कक्षा म पढ़त हांवे शहर म। दशहरा- दीवाली के छुट्टी म वो दुनों अपन गांव- घर आय रहिन। वोमन तो बने छुट्टी मनाबो कहके आय रहिन अउ ये दशा हो गय नित्या के संग...
नित्या के बाप पहारसिंग गांव सरपंच ल , पुलिस के भेदिया होय के शंका म, जंगल राज करईया मन ,अपन मनमर्जी जन अदालत लगाके,वोला दोषीदार मानत, रुख म बांध दिन अउ गन के सात गोली एके जगहा म उतार देय रहिन।
नित्या के बाप पहारसिंग सरपंच ल, जब वोमन खड़ा करिन,तभे येमन के मनसुभा ल जान के महतारी घलव अपन गोंसान के तीर म आ गय। तब वोमन ल अलगिया के अलग- अलग रुख म बांध दिन।तब तक महतारी हर किल्लाये के शुरु कर देय रहिस कि झन मारव...झन मारव अउ मारिहा तब महुँ ल घलव मार डालव। तब वोमन कहे रहिन कि गोली कमती हे ये पाय के मारे तो एके झन ल जाही अउ दूसर हर वोला बरोबर देखिही। तब फिर सात पइत धमाका होय रहिस वोकर महतारी के आगु म ही । ये नित्या हर तो ,वोतका बेरा वोकरा नई रहिस। अब येकर महतारी घलव पन्दरा च दिन म ही, ये सब होय के सेती येकर बाप के ठउर पहुँच गय। अउ ये नित्या हर अकेल्ला हो गय। कका काकी मन हें।येहर जेवन -पानी उहें करथे अभी।
नित्या कहथे कइसे वोकर महतारी हर देखिस होही एके जगहा म एक के बाद सात गोली ल घुसरत वोकर गोंसान के शरीर म। वो तो अतकिच म अभी अपन मन ल बोधत हे कि वो दिरिस ल वोहर देख नई पाइस।एईच हर बड़ बड़े बात आय। फेर वोला महतारी -बाप के छेवर होय ल जादा दुख,ये बात के हे कि गोली मारने वाला हाथ हर ,कनहुँ आन हाथ नोंहे। वो हाथ हर तो वोइच मन कस,सगा समाज वाला आदिवासी हाथ आय। वो मनखे मन के चिन्हारी हो गय हे। वोमन तो एईच तीर- तखार के मनखे आंय,जउन मन अभी वो जंगल राज वाला मन के मनखे बन गंय हें।
एक आदिवासी दूसर आदिवासी के कईसन अतेक बड़े दुश्मन हो गय। वोमन ल अइसन दुश्मन कोन अउ कब बनाइस?बस भाई बरखू एईच हर मोर दुख के सबले बड़े कारण आय...नित्या हर तो वो दिन कहत कहत फफक उठे रहिस।
अब ये घटना होय के बाद,ये जगहा हर फेर शांत हावे। फेर कतेक दिन ल शांत रहही,तेकर ठिकाना तो घलव नइये ?
* * * *
बरखू अपन दसना म केरोंटी बलदत हे फिर आँखी म नींद कहाँ है?देखते देखत का ले का हो गय। अब कइसे जीवन हर कटही नित्या के?वोकर पढ़ई हर तो भईच गय,हो गय अब पूरा वोहर?नित्या के ही काबर मोर अपन पढ़ई के का होही? नींद हर तो परबेच नई करत ये।आँखी म टकटकी बंधा गय हे...
ग्रामपंचायत चुनाव के समय आ गय रहिस।ये छोटे बड़े गांव के सरपंची बर कनहुँ चिभिक नई लेवत रहिन।तब नित्या के सियान पहार सिंग ,वोकर बाप मानुलाल करा आय रहिस,ये कहत कि मानुलाल भई तँय बन जा सरपंच । कतेक न कतेक गोठ चलिस वोमन के तीर म।एक दु पइत तो गरमा गरमी आ गय रहिस।वो दिन खुद वोला, अपन बाप मानुलाल अउ बाप के भई बरोबर मीत मितान पहारसिंग कका के बीच होवत गोठ बात म, ये अचंभा लागत रहय कि वोकर गांव म सरपंची बर जोजियाय बर लागत हे;जबकि सुनई परथे आन देश राज म अइसन सरपंच बने बर मनखे मन साम दाम दण्ड भेद का नई का कर दारत रहिथें। खैर गोठ हर छेवर होइस अउ जउन हर प्रस्ताव लेके आय रहिस,उल्टा वोकरेच गला म ये सरपंची हर आ लटकिस। पहार सिंग कका नित्या के ददा हर सरपंच बन गिस। वोहर एक पन्ना के फार्म म दस्तखत भर करे रहिस बस...!
अउ अउ सरपंची हर तो सरकारी आय।तब सरकार दुआर जाना आना हर कइसे छुटतिस।
ले दे के डंगचेघा लइका के डोर म रेंगई असन संतुलन बनात जिनगी कटत रहिस हे।पढ़ई के नांव म नित्या अउ खुद वोला तीर के शहर म टांग देय गय रहिस।असल गोठ तो आने रहिस। कनहुँ ये लइका मन ऊपर नजर झन पर जाय वो जंगलराज वाला मन के समझत। फेर लइका मन तो सार चेत सुरक्षित बाँच गेन अउ वोती नित्या के पूरा घर हर उजड़ गय।
सरकार कोती ले, ये उत्ती कोती के जउन झोरखी हांवे,तेकर ऊपर म पुल बनाय के हुकुम आइस। बुड़ती कोती के झोरखी ऊपर म तो पहिली के बन गेय रहिस। रुपया पइसा घलव आइस। ये पुल हर तो अच्छा जिनिस रहिस।येकर वोमन ल जरूरत घलव रहिस। गांव के सबो झन भिड़ के ये कच्चा- पक्का पुल ल बना लिन।अउ येकर उद्घाटन बर आन कनहुँ ल नई अगोरिन।खुद सरपंच पहारसिंग करा ले गांव वाला मन उद्घाटन करा के वोला उपयोग म लाने के शुरू कर दिन। अउ सरपंच हर कइसे उद्घाटन करे रहिस...भावना म भर के एकठन नरिहर, जल देवती के नांव म फोर देय रहिन। हो गय उद्घाटन, अउ का...? फेर वोती ल हुकुम आय के शुरू हो गय।टोरो रे ये पुल ल...!! अब अपनेच हाथ म बनाय सिरझाय जिनिस ल कइसे टोरे जाय। एक दु दिन के गय ले दु पइत जंगल हर दलक उठिस अउ दुनों कोती के पुल स्वाहा !
किस्सा अतकिच म खतम नई हो गिस।पुल हर उड़े के बाद,तीर के थाना ल पुलिस मन आइन अउ का हे ?वोमन गांव के दस पन्दरा मनखे मन ल धर के थाना म ले गिन अउ बइठार दिन।
अब तो वो मनखे मन इहाँ नित्या के सियान पहारसिंग सरपंच के घर आके बइठ गिन।जा...तँय सरपंच अस।अब हमर मनखे मन ल , थाना ले छोड़ा के लान।
पहारसिंग सरपंच अपन मुखिया होय के धरम ल निभाईस। वो थाना गिस। अपन संग म चले बर एक दु आदमी मन ल कहिस ,फेर वोमन साफ मना दिन थाना जाय बर।अब तो वो अकेल्ला गिस थाना अउ थाना म वोकर असन बनगिहाँ आदिवासी सरपंच के तो स्वागत -आरती तो होना नई रहिस। हाँ,फेर पोठ सुद्धा भर के गारी खाय बर जरूर मिलिस। नांव तो रहिस पहारसिंग फेर तरी मुड़ करके पुलिसिया गारी के नरवा ल मुड़ ऊपर ल जान दिस। पुलिस वाला मन वो नौ - दस मनखे मन ल का करथिन। वोहू मन येमन के खोझ खोझारी लेवईया मन के जइसन डहर देखत रहिन।दु पद अउ सुना के सबो झन ल पहारसिंग सरपंच संग वापिस भेज दिन।
बस वोइच दिन ले,पहारसिंग के नांव अउ छप्पा हर ,वोमन के सूची म आ गय। अउ छेवर हर अइसन होय रहिस।पुलिस के आदमी ठहरा के वोला, इनाम के रूप म ये सातों गोली हर मिले रहिस...
बरखू के आँखी हर लटपट मुँदाय रहिस।
* * * *
नित्या हर चल देय रहिस। बहुत बहुत दिन हो गय, वोकर शोर पता नई मिलय। फेर आज बड़ दिन के गय ल डख़ार हर आज ये दे अभी वोकर चिट्ठी ल बरखू ल दे के गिस हे।
बरखू थरथरात हाथ ले वोकर वो चिट्ठी ल खोलिस।चिट्ठी म नित्या लिखे रहिस -बरखू भई !मंय अभी मरे तो नई अंव।फेर मंय कुछु भी समझ नई पात अंव कि मर के मंय,अपन महतारी- बाप के तीर चल दंव, कि वोमन ल मारने वाला ल खोझ के मारे के उदिम करंव।दुनिया मोला कायर कहही।फेर मंय कायर नई होंव। अगर मंय बदला के भावना ले भर के,वोमन ल मारे बर सेना साज लिंहा अउ पांच दस सौ पचास झन ल मार डारहां। तब ये बता , मंय कोन ल मारहां?मंय मोरेच असन दूसर आदिवासी ल ही मारहां।क़ाबर कि जउन भी तरी लाइन म गोला- बारूद वाला हांवे, वोमन तो हमरेच मनखे आंय।वोमन के पांव हर थोरकुन लोभ म थोरकुन खेलवारी बर अउ बनेच अकन डर म बंधाय हे। वोमन परगट अपराध ल करत हें तब सरकार वोमन ल अपराधी कहत हे। वोमन ल मारे के छूट देय हे अउ मारत भी हे, फेर वोमन के ऊपर म शहर के आलीशान कोठी मन म बइठे ,वोमन के मास्टर माइंड जउन भी हें;वोमन तो सादा कपड़ा पहिन के किंजरत हें। खून के होली खेलईया ये मनखे मन के कपड़ा म खून के एको दाग नइये...
बरखू भई ! वोकर ले ऊपर बोले- विचारे- गोठियाय के आजादी के नांव म जउन भी दु - चार विचारक नामधारी मनखे मन ,जउन विष बेल ल ,विष के विरिछ ल जगा देंय हें।आज सरकार -समाज कुछु भी कह ले, मोर दई- ददा अउ मरईया हजारों -हजार दई- ददा के असली हत्यारा तो वोइच नांव के विचारक मन आंय।
बरखू ! बरखू मोर भई !!मोर सबो रिस हर वोई नांव के विचारक मन ऊपर हे। जउन मन ये जंगल संगठन खड़ा करें हें अउ वोमन ल तरिच- तरी चलात हें ,वोमन के ऊपर हे।अउ जउन मनखे मन परगट म गोली चलात हें,वोमन तो खुद नई जानत यें कि वोमन काकर ऊपर गोली चलात हें। वोमन तो खुद नई जानत यें कि वोमन जिंदा हें कि मर गय हें।
जीयत रहां, तब तोर से जरूर भेंट करहाँ,चाहे मोर चिट्ठी पाबे।
तोर संगवारी नित्या !
बरखू चिट्ठी ल धर के घर बाहिर निकलिस।तभे वोकर कान म गोली- बारूद के धमाका हर फिर गूंजे लागिस।
*रामनाथ साहू*
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