छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण; काबर, कइसे, कतका अउ काखर बर ?
डॉ० पीसी लाल यादव
छत्तीसगढ़ी हमर माई भाखा ये । ये हमर लोक भाषा ले भाषा अउ भाषा ले राज-भाषा के आसन म बिराजमान हे। ये बात के हमला बड़ गरब हे । हर भाषा- भाषी ल अपन माई भाखा ऊपर गरब होना चाही। जेन अपन माइ भाखा के मान नई करे, सनमान नई करे ओखर मान-सम्मान नई होय ,ओखर चिन्हारी नई बनय । कोनों ल काखरो भाखा के हिनमान नई करना चाही, ना अपन भाखा के हिनमान करना चाही । भलुक येखर बढ़ोत्तरी के बुता करना चाही ।छत्तीसगढ़ी भाषा के बढ़ोत्तरी बर चिंता जाहिर करत हमर पुरखा साहित्यकार स्व० हरिठाकुर जी मन लिखे हें " हमला ये बात के गरब हे कि हमर पास हमार लोक भाखा हे, लोक साहित्य हे अउ लोक संस्कृति हे। वो मन अभागा हे, जिनकर पास अपन लोक भाषा नई हे, लोक साहित्य नई हे । लेकिन अभागा तो वोहु मन हे जउन मन अपने लोक भाषा, लोक साहित्य अउ लोक संस्कृति के आदर नई करें, ओखर संरक्षण अउ संवर्धन बर संघर्ष नई करें | अगर हमर लोकभाषा, लोक साहित्य अउ लोक संस्कृति नष्ट हो जाही त छत्तीसगढ़ी के पहिचान घलो नष्ट हो जाही ।" आज घलो ये चिंता जस के तस माढ़े हे। अउ का उदिम करे जाय के छत्तीसगढ़ी सरकारी कामकाज के भाषा बने। राजकाज के भाषा बनाय बर छत्तीसगढ़ी के मानकी करण जरूरी हे। मानकीकरण काबर कइसे, कतका अउ काबर बर ? येखर ऊपर पोठ बिचार होना चाही ।
छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के गोठ करत काफी लम्बा समय होगे, फेर विद्वान मन के एक मत, एक राय नई हो पात हे। कोनों भी भाषा होय ओखर मानक रूप उही कहाथे जेन रूप हा सब बर सहज, सुग्घर अउ बियाकरण के कसोटी म सही रहिथे । ओहा बोलइया, पढइया, लिखइया बर सर्वग्राही और सर्वव्यापी होथे । अभी हमन देखथन के हिन्दी भाषा में अनेक मानकीकरण के उदिम के बाद भी कमी देखऊल देथे । मोला लगथे के येला जाने-समझे बर एके ठन उदाहरण बहुत हे । संबंध, सम्बंध, सम्बन्ध, संमन्ध । जबकि हिन्दी में अब अइसन गलती नई होना चाहिए । तभो ले होथे त का करबे ? छत्तीसगढ़ी म त जइसन पावथे तइसन लिखत हें । ये संबंध म लिखइया मन के अपन-अपन तर्क हे । कतको विद्वान मन के कहना हे के हिन्दी के जम्मो स्वर अउ व्यंजन के उपयोग लेखन में करना चाही त कतको विद्वान मन के कहना हे के छतीसगढ़ी में ‘श’ और ‘ष’ दूनों के जरुरत नई हे । काबर के छत्तीसगढ़ी बोलइया ह ‘स’ के उच्चारण करथे ‘अनुशासन’ ल ‘अनुसासन’ पढ़थे । अइसन में हमर असन नवा लिखइया मन के मति चकराथे । काखर ल मानी काखर ल नई मानी । येहू बात सही आय के गाँव के रहवइया भाई-बहिनी ,मन ‘स’ के उच्चारण करथे ‘श’ अउ ‘ष’ के नही । अब एखर दूसर पक्ष ला घलो देखन । पहिली शिक्षा के प्रचार प्रसार नई रिहिस त लोगन पढ़-लिख नई पाईन । फेर अब गाँव-गाँव में स्कूल होय ले लोगन सब पढत-लिखत हें, हिंदी ला बोलचाल में बउरत हे त सहज रूप से ‘श’ , ‘ष’ अउ स के अंतर समझत हें । पढ़े – लिखे ले भाषा के घलो विकास होथे त इंखर ले का अंतर आही ? का आसा ल आशा पढ़े ले या आशा ल आसा केहे ले शब्द के अर्थ या भाव
बदल जही ? एखर निरवार वो भाषा विद मन ही करही। अतका जरूर हे के व्यक्तिवाचक नाम जइसे ‘शंकर’ ल ‘संकर’ , शारदा ल सारदा, केशव ल केसव लिखे ले सरकारी कागजात या प्रमाण पत्र म लिखे ले अड़चन पैदा होही ।
अइसने अड़चन ‘ण’ के प्रयोग के संबंध म होथे । ‘ण’ के प्रयोग करे ले छत्तीसगढ़ी के सुधरई खतम हो जथे । प्राण ल परान, गुण ल गुन, कारण ल कारन लिखबो तभे छत्तीसगढ़ी के रूप ला पाबो । व अऊ ‘ब' के प्रयोग बर घलो दिक्कत पैदा होथे। कतको झन कहिथे के छत्तीसगढ़ी में व के जगहा ब के प्रयोग करव । कहूँ किताब ल किताव कहिबो त कइसे फबही । छत्तीसगढ़ी में बिनती तो बिनती ये येला कहु विनती लिखेन त फेर ये तो हिन्दीच होगे । परिवार ह परिबार लिखा जही त अनफबन लगही । विकास ह विकास रहे त भाषा के विकास होही । के हे के मतलब ये हे के जन-मन के जऊन उच्चारन हे ,उही ह लिखाय । बेसभूसा ह बेसभूसा ही लिखाय न कि वेशभूसा ।
अइसने दुविधा हमला संयुक्ताक्षर क्ष, त्र ज्ञ बर घलो होथे । कक्षा लिखाय हे तभो कक्छा, क्षत्री ल छत्री शिक्षा ल सिक्छा पढ़थन । पढे-लिखे के बात हे, त त्रिशूल ह तिरसुल । जइसन बोलथन तइसने लिखाथे त का दुख हे । ज्ञान ह गियान अउ यज्ञ ह जग्य हो जथे तभो कोनो प्रकार के भेद नई आय । हिन्दी के अइसन अपभ्रंश शब्द ले बऊरे में खराबी नई हे ।
अब कुछ शब्द मन ऊपर घलो बिचार करी । जइसे संस्कृति ह संसकिरती, प्रकृति ह पर किरति ,प्रगति ह परगति, प्रभाव ह परभाव लिखा के छत्तीसगढ़ी के प्रभाव ल कम करथे । हिन्दी शब्द के अइसन छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश लिख के हम छत्तीसगढ़ी के का भला कर सकबो ? येखर ऊपर हमला जरूर विचार करना चाही । हिन्दी भाषा के शब्द के कहूँ ओइसने अर्थ वाला छत्तीसगढ़ी शब्द नई ह त हमला ओ शब्द ल बउरे में संकोच नई करना चाही। छत्तीसगढ़ी में तो मराठी, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी के कतको शब्द ल आजो जस के तस बउरत हन । इनाम, किस्सा, टेबल ,ऐना डाक्टर, दरोगा, मोटर, कार हमर ले अलग कहाँ हे ? अभी अंग्रेजी के चलन बाढ़गे हे । मोबाइल आय हे तब ले अंग्रेजी के शब्द मन डोकरी-डोकरा के मुंह म खेलत हे । एक दिन बैंक ले निकलत डोकरी ल पूछ परेंव कइसे पइसा मिलगे दाई ? दाई कइथे – “ सरवर डाऊन हे कहिथे बेटा । जेन हिन्दी नई बोलय, पढ़े-लिखे नई हे तेनो हा अंग्रेजी के शब्द ल बउरत हे। काबर के ओ प्रचलन मे हे । जेन हा सब ला अपन म समो लेथे उही ह मया ले सबके अंतस ल पलो लेथे । जेन भाषा ह उदार होथे, तेने भाषा ह गुदार होथे । ये उदारता के गुन छतीसगढ़ी म हे।
अब आधा ‘र’ के गोठ ला घलो गोठियालन । जइसे धर्म, कर्म, मर्म गर्म, गर्भ, कर्ण अइसन शब्द के उच्चारन में छत्तीसगढ़ी बोलइया ल थोरकुन जियाने कस लगथे | तब आधा ‘र’ ह पूरा ‘र’ के उच्चरण मा सुख देथे | नई पतियाव त बोल के देखव – धर्म – धरम, कर्म – करम , मर्म – मरम , गर्म - गरम , कर्ण – करन | अइसन सुख देवइया अउ भाषा के
सुघरई बढ़इया अपभ्रंश ला बऊरे म फायदा ही फायदा हे | भाव अउ अरथ जस के तस | न कोनो नफा न कोनो नुकसान ।
जब छत्तीसगढ़ राज्य बनिस त नवाँ उमेंद जागिस । छतीसगढ़ी साहित्य सिरजन बर जइसे लिखइया मन एक मन के आगर उम्हियइन, फेर भाषा के मानकीकरण या मानक रूप नई होय के सेती लिखई ह जतर-कतर जनाथे । लेखन में एक रूपता देखऊल नई दय । ए स्थिति ह अभो हे। मैं ल कोनो मंय, त को में लिखथे । अइसने तैं ल कोनो तंय तें, तू लिखथे । जइसे हिंदी में मैं मै लिखाथे ओइसने छत्तीसगढ़ी म घलो ओखर रुप मानक होना चाही। ओइसने क्रिया म घलो कोनो जाथौं, कोनो जावत हंव, कोनो जाथंव, कोनो जाथों लिखथें | त एक रूपता कहाँ होइस ? ये हा तो उदाहरण भर आय । कोनो ओकर लिखथे त कोनो ओखर । आकाश शब्द ह छत्तीसगढी अकास अउ अगास दूनों लिखाथे काबर ? अइसने में मानकीकरण बर रद्दा देखइया अगास दिया कोन बनही ? अउ, अऊ आउ में कोन बने हे
कोस-कोस म पानी बदले, चार कोस म बानी। ये तो जगजाहिर बात ये। गाँव के गाँव म घलो बोल चाल अउ भाषा म बदलाव देखऊल देथे। हमर गंडई क्षेत्र में मरार जाति होथे, ओमन हमरे कस छत्तीसगढ़ी बोलथें | फेर ‘छाता’ ल साता कइथें । 'छ' के ठऊर म ‘स' उच्चारण करथे । चौरा ल माटी म साबत रेहेंव । अइसन भिन्नता बर घलो बिचार करे ल परही तब भाषा के मानक रूप तियार होही | फेर जुन्ना पीढ़ी मन छाता ल छाता बोल पाही विसवास नई होय । पढ़े-लिखे लइका मन सुधार पाही त भाग लगे । लोक भाषा म ‘य’ ह ज हो जथे । यशोदा-जसोदा, यश-जस | अइसने ‘र’ ह ल, ‘ल’ ह र हो जथे । छत्तीसगढ़ी के तरुवा ह अइसने मा तलुवा हो जथे । त कहाँ मुड़ी अउ कहाँ गोड़ ?,अर्थ के अनर्थ हो जथे ।
छत्तीसगढ़ी के कतकोन शब्द हे तेन संस्कृत शब्द मन के बहुत तीर हे । ओखर तत्भव रूप ये । मूषक-मुसवा, मातृ-महतारी ,घृणा-घिन, अमृत-अमरीत, पुण्य-पुन, यज्ञ – जग्य , आकाश-अगास, ऋण-रिन, शर्म-सरम, भाषा-भाखा । ये तो हमर बर गरब के बात ये । कालीच के बात ये पारा के बिहतरा घर में परोसी ह कइथे के चुनाव के सेती ये साल सगा-सोदर कम अइन गुरु जी । मोर धियान सगा-सोदर शब्द ऊपर गिस । सगा तो समझ अइस सोदर बर सोंचे ल परगे । गजब बेर म समझ अइस सोदर ह संस्कृत के सहोदर ये । जेन छतीसगढ़ी में सोदर बनगे। अइसन विशेषता हे छत्तीसगढ़ी म। ये तो बने बात ये ।
अब येहू बात ऊपर विचार करन के छतीसगढ़ी के मानकीकरण काखर बर ? छत्तीसगढ़ में लगभग 2 करोड अबादी ह छत्तीसगढ़ी बोलत होही । अनपढ़ होय के पढे-लिखे । क्षेत्र के हिसाब से भिन्नता हे। इही भिन्नता म एकरूपता लाना ही मानकीकरण ये । येहू बात सही ये के मानकीकरण भाषा के उच्चारण ले जादा लेखन बर जरूरी होथे। कोनों समाज, क्षेत्र या मनखे के उच्चारण या बोली के ढंग ल नई बदले जा सकय, त ऊँखर बर मानकीकरण के कोनो मतलब नई होय । उन तो जइसे बोलत हें, ओइसने च बोलहीं। मानकीकरण जरुरी हे शासन, प्रशासन के सरकारी काम काज बर । मानकीकरण जरुरी हे साहित्य लेखन बर ताकि छत्तीसगढ़ी के लेखन,
वर्तनी, शब्द प्रयोग, वाक्य प्रयोग सब म एक रूपता रहे । जेखर ले हमर छत्तीसगढ़ी प्रमाणिक समर्थ, सक्षम अउ सार्थक स्वरूप म आय । यहू बात सिरतोन आय के कोनो भी भाषा होय लिखे भर ल पोठ, नई होय । भाषा ल जादा से जादा बऊरे म पोठ होथे। जेन भाषा ला जतके जादा लोगन बऊरही, ओमा बोलही गोठियाही ओहा ओतके पोठ होही । जेन जतके पोठ होही तेखर ततके गोठ होही ।
एक बात तो पक्का हे के कोनों भी भाषा होय, ओखर मानकीकरण के बुता ह एक दिन, एक महिना या एक बछर म नई होय । मानकीकरण के बुता सरलग चलत रहिथे, चलत रहिथे, तब ठिहा मिलथे । जब ले छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग बने हे, तब ले आयोग डहर ले ये दिशा म काम जारी हे । छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य के बढ़ोतरी बर लगातार आयोजन के संगे-संग प्रशिक्षण अउ किताब मन के प्रकाशन होत ये। येहा हमर बर सहंराय के लइक बात ये। प्रशासनिक शब्द कोष, हिन्दी से छत्तीसगढ़ी, अंग्रेजी से छत्तीसगढ़ी भाग । अउ 2, लोक व्यवहार और कार्यालयीन छत्तीसगढ़ी मानकीकरण के दिशा में एखर पहिली भी हमर छत्तीसगढ़ी भाषा विद अउ सियान विद्वान मन के कारज हमर मार्ग दर्शन करत हे । जेमा प्रमुख डॉ.रमेश चंद्र मेहरोत्रा, नंद किशोर तिवारी जी, डॉ.चितरंजन कर जी, पालेश्वर प्रसाद शर्मा जी,डॉ.विनय पाठक जी, डॉ.सुधीर शर्मा जी । छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व सचिव डॉ.सुरेन्द्र दुबे जी ह अपन कार्यकाल म छत्तीसगढ़ी भाषा के बढोतरी बर ओला आंठवीं अनुसूची म शामिल करे बर खूब महिनत करिन। छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर अभी घलो बहुत झन साहित्यकार मन बड उदिम करत हे । ओमा डॉ. विनाद वर्मा जी के नांव उल्लेखनीय हे । छत्तीसगढ़ी का संपूर्ण व्याकरण के तीसरा संस्करण के संग संग इंखर "छत्तीसगढ़ी का मानकीकरण मार्गदर्शिका” अउ “विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी" पठनीय किताब हे । डॉ.गीतेश अमरोहित के संगे-संग ये दिशा म अउ कतकोन साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी भाषा अउ सहित्य के बढ़ोत्तरी बर नवा-नवा सिरजन करत हें । ओ सबो साहित्यकार मन ल मोर पैलगी जोहार । अउ आखिर म-
अंधियार हे त का होगे ? तैंहा डर्रा झन,
,दिया ल बार, अंधियार के नाँव बुता जही।
अंधियार ह घपटेच रहि असन नई होय ग ,
सुरुज उही तहाँ ले बिहनिया तो होई जही ।।
सुरुज के अगोरा म.....
जय छत्तीसगढ़ी, जय छत्तीसगढ़, जय छत्तीसगढ़िया
डॉ.पीसी लाल यादव
मो० 9424113122
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बने चिंतन हे। मानकीकरण वो भाषा के होथे, जउन उच्चारण म सरल,सीधा अउ सहज होथे। कोनो घुमावदार शब्द नई होना चाहि। राजधानी के तीर तखार म जउन भाखा बोले जाथे उहि ल राजभाषा के दर्जा मिलथे। छत्तीसगढ़ी के जतका उप बोली हाबय,ओमा रायपुर के चारो मुड़ा के भाखा ह मानक भाखा बनही।
बिलासपुर, सरगुजा,बस्तर कोती के छत्तीसगढ़ी मानक नई बन सकय।ये बोली मन लेखन बर तो हो सकथे, फेर राजकाज बर ,सरल,,सहज नई हो सकय। साहित्य रचना हो सकथे, फेर राजकाज बर रायपुर के छत्तीसगढ़ी ह मानक बनही। जउन राजकाज बर मानक होहि, उहि रूप ह,प्राथमिक शिक्षा बर मान्य होहि।
पी,सी,लाल भाई ह चिंतन करके समस्या ल बतइस कि,
एक शब्द के कई रूप हाबय ,तेला तय करेबर पड़ही, कि कोन रूप ल मानक बनाना हे? इही बात म मतभेद हाबय,जेखर ऊपर व्याकरण वाले मन एक मत होके विचार नई करत हें। 24 साल बीत गे, हम जिहां खड़े हैं ,उंहा ले एक कदम आगू नई बढ़े हन-बड़ दुख के बात हे।देवनागरी के 52 अक्षर ल तो लेना ही हे। हम अवधी के समीप हन ,पर कुछ तो अलग होबे करहि। गणेश ल गनेस नई बोलन। छत्तीसगढ़ी ल परिष्कृत करके मानक बनाबो।छरिया के शब्द मन ल नई लिखव। काबर कि अब सब पढ़े लिखे हन, उच्चारण सही होथे। पहिली शिक्षा के अभाव के कारण उच्चारण नई कर पावत रहिंन।अब स्थिति बदल गेय हे, तब ठेठ छत्तीसगढ़ी के रूप ल परिष्कृत करेबर लागहि।
मानक बनाय बर बहुत सोच समझ के काम करे ले लागहि।
हमन ये बात ल हल्का म लेबो कि "लिखत लिखत एक दिन मानक रूप बन जाहि"--ये गलत सोच हे।हमला बईठ के निर्णय करे ले लागहि।अपन आप मानक नई बनय कोनो भाखा ह। हमन अपन अपन क्षेत्रीय अहंकार ल दबा के राजभाषा बर सोचना।🙏
---डॉ, सत्यभामा आडिल
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