Saturday, 8 March 2025

लोभतंत्र

 *" *लोभतंत्र**"

         लेड़गा चिल्लात राहय लोभतंत्र की जय, लोभतंत्र की जय।तब मे कहेव लेड़गा ल लोभतंत्र नी काहय रे लेड़गा ओला लोकतंत्र कहिथे।लेड़गा पूछथे ये लोकतंत्र काय होथे भईया?तब मे कहेव मनखे (जनता)ल अपन गांव के पंच, सरपंच, विधायक, सांसद,अपन वोट (मत)देके, बिना कोनों लालच के अपन मन ले चुने के हक रहिथे तेला लोकतंत्र कहिथे। लोकतंत्र दू शब्द मिलके बने हे रे लेड़गा। लोक+तंत्र लोक के अरथ (मतलब)जनता अऊ तंत्र के अरथ शासन।ऐमा मनखे मन समाजिक, राजनैतिक, धार्मिक रुप ले उछंद ( स्वतंत्रत)रहिथे। 

             लेड़गा कथे तहू का गोठियाथस भईया बिगर लालच के का होही।"ददा लगे न भईया सबले बड़े रूपईया"। इहां तो हम देखत हन वारड के पंच असन हर हजारों रूपिया उड़ा देवत हे त सरपंच असन के का पूछना। चुनाव जीते बर सब बारा उदिम लगाथे। कोनो लुगरा,कंबल, कोनो पईसा , कोनो टिफिन, कोनो रसगुल्ला, कोनो बिछिया,सांटी,बांटथे।अईसे लागथे जईसे देवारी तिहार आगे।अऊ बोनस मिलत हे।अऊ आने मनखे मन बर आने -आने बेवस्था घलो रहिथे।ये आने आने बेवस्था के का मतलब हे लेड़गा?तहूं ह ग भईया मंद महुआ ताय जी।ऐकरे ले तो चुनाव गदबदाथे।ये चुनाव ल बछराहा (सलाना) तिहार कर देतिस त कतिक मजा आतिस?

कोनो लुगरा बांटत हे

कोनो कंबल बांटत हे 

कोनो   बांटत        हे 

शोले     पारा - पारा,

चखना   बर    हाबे

मिच्चर          खारा।

            ते सही काहत हस रे लेड़गा "ददा लगे न भईया सबले बड़े रूपईया"।आज बड़े -बड़े चुनाव म घलो ऐकरे चलन हे। न तो कोन्हो पारटी (दल) कारखाना खोले के गोठ करथे,न काम बुता, न पढ़ें -लिखे के। सबके ऐके धंधा लालच देके कुरसी पाना (हथियाना)। अभी के चुनाव म बोली पच्चीस पार हो गे। "अब के बार पच्चीस पार "। मनखे मन ल फोकट के बिजली,पानी, चांऊंर, के फिकर हे, देश के नई हे रे लेड़गा।

     अभी छत्तीसगढ़ म एक झन सरपंच के घोषणा पत्र म,बराती गाड़ी फोकट,छठ्ठी म पांच किलो शक्कर आधा किलो चायपत्ती फोकट,दसनाहन म दू कट्टा चांऊर फोकट, धार्मिक कामकारज म माईक टेंट फोकट,

कोन जनी रे लेड़गा ओ गांव के अऊ सरपंच के काय होही? में तो सोचता(गुनत)रहेव मिही हर लेड़गा हंव भईया।वईसे ते नारा सही लगात रहेस रे लेड़गा "लोभतंत्र की जय "।


लालची मतदाता 

ईमानदार नेता के

खोज करही,अऊ

हमर लईका मन इही 

विषे म शोध करही।

        लेड़गा पूछथे भईया ये शिक्षित, कर्मठ, जुझारू, मिलनसार, ईमानदार मन के जनम पांचे साल म कईसे होथे।अऊ घोड़ा हर कांदी संग संगी बदही त खाही काला? ये मन फूटू कस आय रे लेड़गा सबो मेड़ पार म नई फूटे,समे देख के फूटथे। कोनो डोहरु फूटू,कोनो छत्ता, कोनो पेरा फूटू कस फूटथे। फेर सबो हर मिठाथे।

ऐमन दुवारी म हाथ जोड़ के कहिथे देखे रहू भईया त अइसे लागथे जईसे करन सुवा बोलत हे।अब सुन रे लेड़गा एक ठन सुने कहानी सुनात हंव।

        एक झन राजा भेड़ मन ले वादा करिस चुनाव जीतहू ताहने सबो झन ल एक -एक ठन कंबल देहूं। भेड़ के दल खुशी ले झूम उठिस। फेर एक ठन मेमना ह अपन महतारी ल पूछ परिस,राजा हर हमर कंबल बर ऊन कहां ले लाही? भेड़ के दल मन अक बका गे।(सन्नाटा पसरगे)


    *फकीर प्रसाद साहू* 

         *फक्कड़*

          *सुरगी*🙏

मया चन्द्रहास साहू

                                      

मया

                                     चन्द्रहास साहू

                                   मो 8120578897

सिरतोन मया ही तो आवय जौन अजर अमर रहिथे। मया हा जिनगी जीये के उद्देश्य ला बताथे। भलुक मया के आने आने बरन हो सकथे फेर सब बरन मा मयारुक के मान सम्मान अउ विश्वास करे बर सीखोथे। इही मया ले तो सृष्टि बने हाबे...अउ बिन मया के संसार के कल्पना घला नइ करे जा सके। मया मा पाना भी होथे अउ लुटाना घला होथे। मीरा बाई अपन जिनगी ला लुटा दिस अपन आराध्य बर। हीर रांझा लैला मजनूं ला कोन नइ जाने ? सब मया मा देये तो हाबे भलुक पाये कमती होही ! अउ जौन पाये हाबे तौनो हा अमूल्य आवय। 

.....अउ महूं हा आज मया मा कुछु पाये के उदिम करत हॅंव। फेर...? 

जम्मो ला गुणत-गुणत तियार होवत हाबे मोटियारी रुपा हा। टीवी चलत हाबे अउ वहूं मा मया के महत्तम के गोठ-बात होवत हाबे। आज तो मया के रंग मा सब रंग गे हाबे। आज मया के दिन आवय। विशेष दिन आय-वैलैनटाइन डे  चौदह फरवरी। अब्बड़ दिन ले अगोरा करत रिहिस आज के दिन के। ..अउ आज के दिन आइस तब तो बिहनिया ले बाट जोहत हाबे अपन मयारुक राहुल के। घेरी-बेरी मोबाइल ला देखत हाबे तब घेरी-बेरी घर के मोहाटी ले निकल के देखत हाबे वोला।

"हो गेस तियार। कर डारेस जम्मो जोरा-जारी ला।''

टू.... टू.... मोबाइल घरघराइस। मेसेज देखते साठ वहूं मेसेज पठोइस।

"हाॅंव'' 

अउ अब तो पाॅंख लगगे, उड़ाये लागिस। आँखी मा काजर माथा मा टिकुली होंठ मा मुॅंहरंगी,हरियर सलवार सूट पहिर के अपन आप ला दरपन के आगू मा ठाढ़े होके देखिस तब तो मोटियारी रुपा हा लजा गे।

अब अपन आप ला तियार कर डारिस जाये बर। फेर जरुरत के जिनिस ? वोला तो धरेच नइ हाबे। सकेले लागिस।.... फेर अब डर समावत हाबे हलु-हलु। अपन संगी संगवारी मन ला तो अब्बड़ उपदेश देये रिहिन उदाहरण दे देके। मयारुक हा अपन मया ला पाये बर एवरेस्ट फतह कर लेथे। आग के दरिया ला पार पा लेथे। कनाडा के दीवानी टूरी हा सात समुंदर पार करके आगे नेताम टूरा के मया मा। चार झन लइका के महतारी सीमा ला कोन नइ जाने ? भारत अउ पाकिस्तान के सीमा विवाद ले जादा चर्चित रिहिन पाकिस्तानी सीमा हा। भलुक बिचारी सीमा अफगानिस्तान नेपाल के सीमा लांघ के हमर भारत मा खुसरगे अपन मयारुक सचिन बर। ....अउ मेंहा ?  अपन घर के डेरउठी ला लांघ के मोर मयारु राहुल ले मिले बर नइ जा सकत हॅंव।

रुपा गुणत-गुणत  अपन मन ला पोठ करिस अउ जम्मो जरुरत के समान ला जोरत हाबे। सुटकेस मा क्रीम पाउडर अउ मेकअप के जिनिस संग चार जोड़ी सलवार सूट जींस टाप मफलर ला जोर डारिस। मन मा अब्बड़ उछाह रिहिस रुपा के। ये बेरा ला अब्बड़ जोहत रिहिन।.. फेर अब जाये के बेरा दाई-ददा के सुरता आवत हाबे। अब मन दूमना होये लागिस राहुल के संग जावंव कि नहीं ....? अब्बड़ गरेरा चलत हाबे रुपा के अंतस मा। उम्मर होये के पाछू जम्मो टूरी ला एक दिन बिहाव करे ला लागथे। मेंहा अपन मन ले टूरा संग बिहाव कर लुहूं तब का अनित हो जाही ? दाई ला तो अब्बड़ मनाये रेहेंव फेर ददा ला समझा नइ सकिस दाई हा। उल्टा अब्बड़ गारी बखाना करिस ददा हा। 

"अनजतिया टूरा राहुल ले मिलबे-जुलबे ते गोड़ हाथ ला टोर के खोरी बइठार दुहूं रूपा!'' 

अइसना तो गरजे रिहिन ददा हा। ...अउ दाई हा घला टेड़वाये रिहिन। सब के दाई ददा अपन लइका के जम्मो साध ला पूरा करथे फेर मोर दाई-ददा हा तो कसाई बनगे हाबे। मोर जम्मो उछाह के बलि लेवत हाबे।

                 टीवी मा विद्वान मन के डिबेट चलत हे। एक्सपर्ट मन के तर्क-वितर्क होवत हाबे वेलेंटाइन डे अउ लव जेहाद ऊपर। पंडित, मौलवी,पादरी सब अपन-अपन धर्म ला श्रेष्ठ बतावत हाबे। दुनिया भर ला शांत रहे बर सिखोइया जम्मो विद्वान मन अब एक दूसर बर अगिया बेताल होवत हाबे। कुकुर कटायेन बरोबर झगरा होवत हाबे। रुपा अब चैनल बदलिस। ....जी धक्क ले लागिस। मुॅंहू उघरा रहिगे। आँखी हा टीवी मा चिपकगे बिन मिलखी मारे।

ब्रेकिंग न्यूज चलत रिहिस। 

"फेसबुक का प्यार पड़ा भारी। ईज्जत के साथ पैसा भी गवाई उस लड़की ने। ...और अंत मे जान से हाथ धोना भी पड़ा।''

समाचार प्रस्तोता हा मिरचा मसाला लगाके समाचार ला देखावत हाबे। सनसनी तो अब्बड़ हाबे फेर संवेदना नइ दिखत हाबे एंकर मे।

" ...अंधे कत्ल का मिला सुराग। प्रेमी ही निकला मास्टरमाइंड। प्रेमिका के पैतिस टूकड़े करके लाश फ्रीज मे छुपाया था।''

समाचार बोलइया हा अब लाश के पोटली ला देखावत हाबे। फ्रीज अउ टूरी के रोवत बिलखत दाई-ददा ला घला घेरी-बेरी देखावत हाबे। बड़का स्क्रीन मा सरकार के योजना के विज्ञापन घला चलत हाबे। 

"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।''

"बेटी पढ़ेगी, विकास गढ़ेगी।''

"बेटियो की सुरक्षा के लिये बजट मे पंद्रा सौ करोड़ रुपया से बढ़ाकर पच्चीस सौ कर दी गई है।.... अउ छत्तीसगढ़ ला सुशासन बर दिल्ली मे देये जाही बड़का ईनाम।''

रुपा ला झिमझिमासी लागिस। नस-नस मा‌ लहू के संचार बाढ़गे। हाथ गोड़ काॅंपे लागिस। माथ मा पसीना चिकचिकाये लागिस। मुॅंहू चपियागे। ..अउ रंधनी कुरिया मा जाके गड़गड़-गड़गड़ पानी पी डारिस मोटियारी रुपा हा। मन मा गरेरा चले लागिस। मोरो मया तो फेसबुक के मया आवय। मोरो मयारुक राहुल हा अइसने कर दिही का....? जी काॅंपगे एक बेरा अउ। ...न ...न नही। मोर राहुल तो अब्बड़ मया करथे...अपन जान ले घला जादा। तभे तो एक बेरा अपन हाथ के नस ला काॅंट के लव लेटर लिखे रिहिन। पीरा मा काहरत रिहिस फेर होंठ मा स्वीट स्माइल घला रिहिस। पिज्जा के साध पूरा करे बर भोंभरा जरत रोड मा जुच्छा गोड़ गेये रिहिन।....मोर... मोर राहुल तो हजारों नही लाखो करोड़ो मा एक हाबे। ... अब्बड़ मया करथे। अपन मल्टी नेशनल कंपनी मा अब्बड़ मान पाथे। साफ्टवेयर इंजीनियर हाबे पड़पीड़-पड़पीड़ अंग्रेजी बोलथे।..... सुघ्घर हाईट ....सुघ्घर परसानिलिटी। राहुल के सुघरई मा समाये लागिस रुपा हा। 

"...टू...टू.. ।''

मोबाइल मा मेसेज आइस तब धियान टूटिस।

"अभिन तुंहर घर कोती नइ आ सकत हॅंव। अब्बड़ पुलिस चेकिंग चलत हाबे तही बस स्टैंड मा आ जा मोर स्वीट हार्ट रुपा !''

राहुल के मेसेज रिहिस। मेसेज के पाछू हार्ट के संग स्माइली के सुघ्घर इमोजी बने हाबे।

टू...टू....  फेर दुसरइया मेसेज आइस।

"गाहना जेवर अउ रुपिया पैसा धर लेबे। मोर हालत ला जानत हस।''

"ओके''

रुपा घला स्माइली के संग किसिंग इमोजी बनाके मसेज रिसेंड करिस अउ अपन पर्स ला देखे लागिस। पर्स मा एक सौ इक्यावन रूपिया भर हाबे। दाई हा पर्स ला बर्थ डे गिफ्ट देये रिहिस। जुच्छा पर्स दाई ? रुपा के गोठ सुनते साठ ददा हा देये रिहिस एक सौ इक्यावन रूपिया ला । अतका पइसा कहाॅं ले पुरही ? रुपा फुसफुसावत किहिस अउ आलमारी मा खोजे लागिस संग मा गाहना जेवर ला घला खोजत हाबे। ...कोन जन कहाॅं लुका देये हाबे ते मम्मी हा ? संदुक पेटी आलमारी दीवान जम्मो ला देख डारिस फेर नइ मिलिस। मन बियाकुल होगे। .....अउ मिलिस तब जुन्ना संदुक मा, जौन हा रुपा के दाई के जोरन संदुक आवय। माला-मुंदरी,ककनी-बनुरिया, अइठी, रुपिया माला,बिछिया.... सब गाहना ला ससन भर देखिस। दाई हा पहिरे आगू ये जम्मो ला। फेर अब कभु परब तिहार मा पहिर लेथे। कभु-कभु तो रुपा हा घला पहिर के इतरा लेथे। फेर रुपा बर आने जेवर मन हा हाबे दुसर पोटली मा। मांग मोरी, पायल, मंगल सूत्र, रानी हार करधनी,बाजूबंद अउ जम्मो ..... जेवर, दाई हा हियाव करके बिहाव के जोरा जारी करत हाबे। 

                        सिरतोन बेटी हा ठुबुक-ठाबक रेंगे ला धरथे अउ बिहाव के जोरा-जारी करे ला धर लेथे दाई ददा मन हा। रुपा के बिहाव बर जेवर के संगे संग सील बिसा डारे हाबे भांवर किंजरे बर। पंचरतन के बरतन चरण पखारे बर अउ धौरी बछिया ला घला अलगा डारे हाबे टीकावन बर। जम्मो ला गुणत-गुणत सोना  के जेवर मन ला अपन पर्स मा जोरे लागिस रुपा हा। ....अउ पइसा ?  रंधनी कुरिया के कोनो फुला-पठेरा मा मिल जाही। भलुक दाई हा मास्टरीन हाबे फेर हे तो देहाती। 

अब थरथरासी लागत हाबे। जी घुरघुरावत हाबे। जौन दाई ददा हा जनम देये हाबे। पाल पोसके बड़े करे हाबे तौन  ला तियाग के कइसे जावंव। घर के चौखट ला नाहकना जम्मो मरजाद ला टोरना आवय। नत्ता-गोत्ता ला छोड़ना आवय।

रुपा फेर सोच के भंवरी मा अरझे लागिस।

"तिही मोर जम्मो जिनगी आवस। तोर बिना मेंहा मर जाहूं रुपा ! आज वैलेंटाइन डे के दिन कही दुरिहां जाके हमर प्यार के घरौंदा बनाबो, जिहाॅं उछाह अउ अगाध मया रही। आ जा मोर जान ! मोर स्वीट हार्ट कम वेरी फास्ट आई एम वेटिंग हियर।''

राहुल फोन मा फेर समझाये लागिस। .....अउ जब मयारुक के मया के पूरा बोहाथे तब दाई-ददा के गोठ ला बिसरा देथे। रुपा हा अब्बड़ बताये चेताये रिहिस अपन दाई-ददा ला राहुल के बारे मा। एक बेरा तो दाई-ददा ले मिलाये घला रिहिन फेर ददा के खोधा निपोरी।

"का जात आवय तोर राहुल ? का गोत्र हरे ? के झन कका, फूफा, फूफी हाबे। ममा-मामी मन के कतका झन लइका हाबे अउ तुमन के भाई बहिनी होथो ?''

                राहुल एको ठन के उत्तर नइ दे सकिस। भलुक शहर के रहवइया मन हा अइसन ला का जानही। ...अउ‌ ये मन तो हायर एजुकेटेड फैमिली हरे- साफ्टवेयर इंजीनियर। डैड के नाव मा आईल मिल, टेक्सटाइल मिल्स हाबे। सबके दाई-ददा उछाह होथे अइसन अरबपति घर संग नत्ता जुरत हाबे फेर मोर भोकवा ददा ला..... ?  आपत्ति होगे। 

अपन बरोबर के संग नत्ता जुरही रुपा। धन-दोगानी के अंधरा मन ला अपन गोत्र, अपन कका फूफा के नाव नइ जानबा होवय। अइसन घर मा मोर एकलौती बेटी के कन्यादान नइ कर सकंव। रुपा के ददा सोज्झे सुना दे रिहिन।

                        रुपा जम्मो ला गुणत-गुणत अब घर के डेरउठी ला नाहक डारिस। मुड़ी कान ला अइसे बांधिस कि कोनो नइ चिन्ह सके। मेन रोड मा आके राहुल के अगोरा करत हाबे। .... ...जोजन होगे अगोरा करत। ...अउ अइसन मा नानकुन बेरा हा घला अब्बड़ जनाथे। उप्पर ले दाई ददा के डर उदुप ले रद्दा मा ओरभेट्टा झन हो जावय। दुनो कोई आज मातृ-पितृ दिवस मनाये बर पुरखा गाॅंव गेये हाबे।

           ‌ सब्बो ऑटो भीड़ चलत रिहिस। न कोनो  लिफ्ट बर दिखत हाबे न कोनो जुच्छा ऑटो । तभे दूरिहा ले एक झन ऑटो आइस। रुपा हाथ देखाइस।

"बस स्टैंड जाना हे।''

रुपा अब ऑटो मा बइठके बस स्टैंड कोती जाये लागिस। मन के गरेरा अभिन शांत नइ होये हाबे। राहुल ला अब फोन करिस रुपा हा।

"दस मिनट मे अमर जाहूं बस स्टैंड। कोन जगा मिलबे ?''

"अरे, कुछ काम के सेती रेलवे स्टेशन आगे हॅंव। इहीन्चे आ जा।''

ओती ले राहुल के आरो आइस। अब ऑटो हा रेलवे स्टेशन कोती दउड़त हाबे। रुपा के चेहरा अब कुमलाये लागिस। ऑटो वाली दीदी हा जम्मो ला देखत गुणत हाबे। तभो ले काकरो लाटा-फांदा मा काबर पड़ही ? 

"रेलवे स्टेशन अमर जाहूं अब। कोन मेर मिलबे ?''

"वेटिंग हाॅल मा अगोरा करबे रुपा ! माई स्वीट हार्ट! ओनली टू मिनिट देन आई विल मिट इन्फ्रंट आफ यू !'' 

राहुल के गुरतुर गोठ रिहिस।

रुपा ऑटो वाली दीदी ला हिसाब करके पइसा दिस अउ स्टेशन टिकट कटा के वेटिंग हाॅल मा अगोरा करे लागिस।

"कोन शहर जाना हे ? टिकट कटवा लेथो बता ?''

"बस दू मिनट मा आवत हॅंव। आन लाइन साढ़े चार हजार रुपिया ट्रान्सफर कर दे रुपा।''

राहुल के फोन रिहिस।

"हाॅंव !''

रुपा पइसा ट्रान्सफर करिस अउ अगोरा करे लागिस। दू मिनट हा .... पंद्रा मिनट ...आधा घंटा...एक घंटा..... एक ले दू घंटा होगे फेर राहुल नइ आइस। अब्बड़ बेरा फोन करिस तभो ले न कोनो जवाब आइस अउ न कोनो मेसेज पठोइस। 

"कब आबे राहुल ! एक-एक छण अब अब्बड़ पहाड़ लागत हाबे।''

मोबाइल के काॅलिंग बटन ला मसकिस।

"वोह ... सोरी बेबी ! बस टू मिनिट।''

राहुल के गोठ सुनके रुपा अगियावत हाबे। काया मा रगरगी समागे हे। 

"...अउ कतका ? तोर दू मिनट कतका बेरा होथे। एक अकेली लड़की जम्मो घर बार छोड़ के तोर बर आवत हाबे अउ तेहां दू मिनट कहिके मटकावत हावस।''

रुपा अब फट पड़िस। आँखी मा असवन बोहाये लागिस।

"अपन घर ले जाहूं बेबी ! माॅम डैड को भी मनाना पड़ता है।  पच्चीस हजार एकाउंट में ट्रांसफर कर दे। अब ट्रेन ले नइ जावन भलुक प्लेन ले जाबो। उही जावत हॅंव आ जा!''

राहुल अब हवाईअड्डा बलाये लागिस। रुपा खिसियावत हाबे। तभो ले राहुल के मंदरस बोली ले फेर मोहागे। 

                   अब रेलवे स्टेशन के बाहिर फेर ऑटो के अगोरा करे लागिस रुपा हा। ऑटो वाली दीदी फेर मिलगे। सवारी खोजत रिहिस। मोल भाव करिस अउ बइठके अब हवाईअड्डा जावत हे।

"कहाॅं जावत हस बहिनी ! बस स्टैंड ले रेलवे स्टेशन, रेलवे ले हवाई अड्डा ?''

ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके रुपा हा अकबकागे। का बताही ? 

"घर ले भाग के जावत हस न ? अउ वहूं ला गैर जिम्मेदार टूरा संग।''

ऑटो वाली दीदी किहिस। रुपा अकचकागे। 

"न .... नही । हम वइसन घराना के नइ हरन वो दीदी !''

रुपा गला खखारत किहिस।

"भले घर के हरस, सुघ्घर दाई ददा के बेटी आवस तभे तो तोर आँखी मा पट्टी बंधाये हाबे। लबरा टूरा ला नइ जान सकत हस। कहाॅं जाना हे, कइसे जाना हाबे .. बस टूरी ला किंजारत हाबे। कतका दिन के हरे तुंहर मया हा ? कब ले जान पहिचान होये हाबे ? अपन समझके पुछत हावंव। बताबे ते कुछू मदद करहूं अउ नइ बताबे तभो हमर का हे ? दसो झन मनखे ले ओरभेट्टा होथन कोनो ला अपन दुख ला बताथन तब काकरो दुख मा पंदोली देथन।''

रुपा अब्बड़ गुणे लागिस ऑटो वाली दीदी के गोठ ला सुनके। बताओ कि नइ बताओ मन दू मना रिहिस तभो ले बताइस।

"छे महिना आगू जान पहिचान होये हाबे। दू चार बेर सौंहत मिले हावंव। सबले पहिली फेसबुक में मिले रेहेंन। पहिली दोस्ती होइस ताहन मया बाढ़िस अउ अब किरिया खा डारे हावन एक दूसर के साथ निभाबो अइसे।''

ऑटो वाली दीदी ला बताइस रुपा हा।

ट्रिन ट्रिन फोन के घंटी फेर बाजिस।

"पइसा ट्रान्सफर कर मोर स्वीट हार्ट ! टिकट कटाना हाबे।''

टूरा राहुल के फेर फोन आगे।

"कहाॅं हस घेरी-बेरी नचावत हावस।''

"कही नही..! पगली बस दू मिनट.....! पइसा ट्रान्सफर कर। प्लेन के टिकट....!'' 

फोन कटगे। रुपा अब मोबाइल के गुगल पे मा सर्च करे लागिस फेर ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके अतरगे।

"बहिनी !  तोर जिनगी ला कइसे जीबे तौन ला तिही हा बने सुघ्घर जानबे फेर मोर गोठ ला मानबे तब पइसा के ट्रान्सफर झन कर। टूरा ला एक बेर अउ परख ले।''

ऑटो वाली दीदी के गोठ सुनके सिरतोन रुपा हा गुणे लागिस। का सिरतोन ठगावत हावंव मेंहा..?

ट्रिन ट्रिन.......।

फेर फोन आगे अब राहुल के। रुपा फोन उठाइस।

"पइसा ट्रान्सफर कर दे मोर स्वीट हार्ट !''

"कोन जगा हावस तेन ला बता। सौंहत मिलके दुहूं पइसा।''

रुपा के गोठ सुनके राहुल अकचकागे। हड़बड़ावत किहिस "गाॅंधी चौक कोती आबे।''

अब तो रुपा के गाड़ी गाॅंधी चौक कोती दउड़े लागिस।

"नारी के जिनगी मा अब्बड़ बीख रहिथे बहिनी। भोलेनाथ बनके रोज बीख ला पीये ला परथे। ...अउ भरोसा घला अब्बड़ जांच परख के करे ला पड़थे। मोरो जिनगी मा अइसन गरेरा आये रिहिस बहिनी ! दाई-ददा, घर-दुवार ला छोड़ के महूं हा सोहेल संग भागेंव फेर टूरा हा भरोसा के लइक नइ रिहिस कोनो आने के चक्कर मा रिहिस।... मिही हा वोला छोड़ देंव। ......अउ माई-माइके के मोहाटी बंद हो जाथे एक बेरा बेटी के गोड़ बाहिर निकलथे ते। मोरो माइके के मोहाटी बंद होगे। तब ले इही ऑटो हा मोर जम्मो नत्ता-गोत्ता होगे हे।''

ऑटो वाली दीदी किहिस। 

                  अब गाॅंधी चौक मा अमरिस तब तो रुपा के जी धक्क ले लागिस। ठाड़ सुखागे राहुल ला देखिस तब। रोड के वो पार ठाड़े रिहिस राहुल हा। दू झन पुलिस वाला मन धरे रिहिस वोला अउ पुलिस वाला के दल रिहिस हवलदार, इंस्पेक्टर,थानादार अउ एस पी। गांजा तस्कर करत सपड़ाये हाबे राहुल अउ वोकर चार झन संगवारी मन। बस दू मिनट होये हाबे । अभिन-अभिन धराये हे। हाथ मा हथकड़ी पहिरे राहुल हा रुपा ले बांचे के उदिम करत हाबे । फेर कहाॅं लुकाही...? अब तो सब उघरगे। रुपा के आँखी घला।  

ऑटो वाली दीदी अब समझाये लागिस रुपा ला बड़े बहिनी बन के। पोटार लिस।  

अब लहुटत हाबे अपन घर कोती, जम्मो छोटका-बड़का गोठ मा हियाव करइया दाई ददा के अंगना मा। अब दुनिया के सबले सुघ्घर लागत हाबे रुपा ला अपन दाई-ददा हा। संकल्प लेवत जावत हाबे आज अपन दाई-ददा के  जम्मो गोठ ला माने बर। ....पूजा करके आसीस पाये बर।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

भगवताचार्य अउ संत साहित्यकार पवन दीवान

 2 मार्च - पवन दीवान के 9 वीं पुण्यतिथि म विशेष


भगवताचार्य अउ संत साहित्यकार पवन दीवान


– ओमप्रकाश साहू ‘ अंकुर ‘


जउन मन मा हा छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाय के गजब उदिम करिस वोमन मन मा पं. सुंदर लाल शर्मा, ठाकुर प्यारेलाल सिंह,खूबचंद बघेल , कृष्णा रंजन , दाऊ रामचंद्र देशमुख,हरि ठाकुर ,लक्ष्मण मस्तुरिया , अउ संत कवि, भगवताचार्य पवन दीवान  के नांव अव्वल हवय । दीवान जी हा बाहरी मनखे मन के द्वारा जउन शोषण करे जात रिहिस वोकर अब्बड़ विरोध करिन. लाल किला ले काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ के मान बढाइन.


दीवान जी के जनम किरवई गांव मा 1 जनवरी 1945 मा होय रिहिन हे । वोकर कर्मभूमि राजिम के संगे- संग पूरा छत्तीसगढ़ रिहिन ।


दीवान जी एक भगवताचार्य के संगे -संग बड़का साहित्यकार अउ राजनीतिज्ञ रिहिन। विधायक, सांसद अउ अविभाजित मध्य प्रदेश के मंत्री घलो बनिस । गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बनाय गिस । माता कौशल्या शोध पीठ के अगुवा रिहिन। माता कौशल्या के स्मारक बनाय बर अब्बड़ उदिम करिन। छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय बर सुघ्घर कारज करिन।


दीवान जी के भागवत प्रवचन मेहा पहिली बार राजनांदगांव जिला के गांव भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । ये भर्रेगांव ह  चंदूलाल चंद्राकर के जनम भूमि हरे। जब दीवान जी के भर्रेगांव म भागवत -प्रवचन होइस वो समय मेहा मीडिल स्कूल मा पढ़त रेहेंव ।वो समय वोहा जवान रिहिन हे । वोकर भागवत -प्रवचन सुने बर अपार जन समूह उमड़ पड़े । वोकर जोरदार ठहाका ला भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । जब वोहा हंसय ता सब ला हंसा के छोड़य । अइसने बुचीभरदा (सुरगी) मा घलो वोकर प्रवचन के लाभ उठाय रेहेंव ।बीच बीच मा अपन कविता सुना के मनोरंजन करे के संगे संग लोगन मन मा जागरुकता लाय । अपन हक बर आगू आके लड़े के प्रेरणा देवय ।


सन् 2001 मा कन्हारपुरी, राजनांदगांव मा छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति द्वारा आयोजित राज्यस्तरीय छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन मा दीवान जी के काव्य पाठ सुने के अवसर मिलिस. येकर बाद छत्तीसगढ़ राज

भाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन मा उंकर सुग्घर विचार सुने ला मिलिस.


सौभाग्य से हमू मन ला माई पहुना के रुप मा दीवान जी के दर्शन होइस वोकर सुग्घर बिचार


सुने के संगे संग हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके धन्य होगेन ।


जब साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा 10 जून 2007 मा होवइया आठवां वार्षिक सम्मान समारोह बर निमंत्रण छपवायेन ता सुरगी के संगे- संग आस पास के गांव के लोगन मन ला एको कनक बिश्वास नइ होय कि पवन दीवान जी हा इंकर कार्यक्रम मा आही!


ये सब संभव हो पाय रिहिस डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी के कारण । मूलत : भाटापारा (बलौदाबाजार) निवासी वर्मा जी वो समय दिग्विजय कालेज राजनांदगांव मा हिन्दी के प्रोफेसर रिहिन । ।वर्मा जी अउ हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के कुबेर सिंह साहू जी , वरिष्ठ कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी से बढ़िया संबंध बन गे रिहिस । एकर से पहिली डॉ. वर्मा जी हाै हमर वार्षिक समारोह मा दो तीन बार पहुना के रूप मा पहुंच चुके रिहिन ।ये प्रकार ले साकेत परिषद् ले सुग्घर संबंध बन गे रिहिन ।डॉ. परदेशी राम वर्मा जी कृपा ले पवन दीवान जी के सुरगी आगमन होइस ।संगे संग  छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी हा घलो पहुना बन के आय रिहिन । वो समय बघेल जी हा विपक्ष मा दमदार नेता रिहिन ।


ये कार्यक्रम मा दीवान जी के हाथ ले छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति राजनांदगांव के अध्यक्ष आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ साकेत के तत्कालीन सचिव अउ वर्तमान अध्यक्ष भाई लखन लाल साहू लहर जी ला साकेत सम्मान 2007 प्रदान करिन ।


इहाँ दीवान जी हा अपन विचार राखिस तेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ला राजभाषा बनाय के मांग करे गिस । येमा पारित प्रस्ताव ला राज्य शासन के पास भेजे गिस.येकर बर डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ मिलके अभियान घलो चलाइस ।अपन उद्बोधन के माध्यम से छत्तीसगढ़िया मन ला जागरुक करिन।बीच बीच मा अपन जोरदार ठहाका ले लोगन मन ला गजब हंसाइस ।दीवान जी हा किहिस – “हमर छत्तीसगढ़ हा माता कौशल्या के मइके हरय तेकर सेति भगवान राम हा इहां के भांचा कहलाथे ।तेकरे सेति हमर छत्तीसगढ़ मा भांचा भांची ला गजब सम्मान देय जाथे । आगे किहिस कइसे सुग्घर ढंग ले कहिथन – कइसे भांचा राम । सब बने बने भांचा राम । कोनो हा कैसे भांचा कृष्ण नइ काहय ।अउ कहइया हा अइसने कहि दिस ता वोहा का कहाही ।"अइसन कहिके फेर जमगरहा ठहाका लगाइस अउ उपस्थित लोगन मन जोरदार ताली बजा के सभा ला गुंजायमान करिन ।ये कार्यक्रम हा


सुरगी के शनिचर बाजार चौक के मुख्य मंच मा होइस ।दीवान जी हा किहिस कि मेहा पहिली बार कोनो साहित्यिक कार्यक्रम ला खुला मंच मा होवत देखत हंव।”अइसे कहिके परिषद् के लोगन मन के उछाह बढ़ाइस।


साथ मा हमर गांव ” सुरगी ”


के सुग्घर व्याख्या घलो कर दिस ” सुर ” माने देवता अउ “गी ” माने गांव ।


एकर बाद दीवान जी हा” राख ,” “चन्दा ” अउ “तोर धरती तोर माटी रे भइया “कविता सुनाके काव्यप्रेमी मन ला आनंदित करिन.


तो ये किसम ले संत कवि पवन दीवान जी के कार्यक्रम हा यादगार बनिस ।हमर साकेत के कार्यक्रम मा पहुंच के परिषद् ला गौरवान्वित करिन । 10 जून 2007 हा हमर परिषद् अउ गांव बर ऐतिहासिक तिथि के रुप मा अंकित रही । जब दीवान जी ह मध्यप्रदेश म जेल मंत्री रिहिन त अपन पीरा ल व्यक्त करिन-"

मोर कर तो कोनो काम नइ रहि गे जी। अब तुही मन बताव ग मंय ह तुमन ल कोन कोन ल जेल म डालंव।"अइसे कहिके जोरदार ठहाका लगाय अउ लोगन मन ल घलो हंसा दय।"


2 मार्च 2016 मा दीवान जी हा स्वर्ग लोक चले गिस । आज  उंकर 9 वीं पुण्यतिथि मा शत् शत् नमन हे।

5 मार्च - 115 वीं जयंती म विशेष जन कवि- कोदू राम दलित

 5 मार्च - 115 वीं जयंती म विशेष


  जन कवि- कोदू राम दलित 




जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो बेरा म हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करय । हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे- संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिस ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नांव कमाइन। छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण वोला छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे।


जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिन । उंकर ददा के नांव राम भरोसा रिहिस। उंकर सुरुआती शिक्षा अर्जुन्दा म होइस। वोकर बाद नार्मल स्कूल रायपुर अउ नार्मल स्कूल बिलासपुर म पढ़ाई करिन।

पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी ह  प्राथमिक शाला दुर्ग म मास्टर बनिस । फेर बाद म उहां के प्रधान पाठक के दायित्व ल सुघ्घर ढंग ले निभाइस।1931 ले 1967 तक शिक्षा विभाग म सेवा दिस।


बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर राहय। 1926 ले लेखन कारज के सुरुआत करिस।  ग्राम अर्जुन्दा के आशु कवि पिला राम चिनोरिया ह वोकर कविता लेखन के प्रेरणा स्त्रोत रिहिन। 


दलित जी ह अपन परिचय ल सुघर ढंग ले कुंडलियां म दे हावय-


लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।

कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।

मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।

जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।

शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।

करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।


दलित जी  ह हास्य- व्यंग्य के हिट कवि रिहिन हे ।  वोकर समकालीन मंचीय कवि मन म विप्र जी, पतिराम साव,शिशु पाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त,दानेश्वर शर्मा रिहिन।


उंकर कविता के उदाहरण आजो छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के सुरुआत म दे जाथे -


जइसे मुसवा निकलथे बिल ले।

वइसने कविता निकलथे दिल ले।।


शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव –


ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।

हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।

खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।

खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।

नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।

जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।

खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।


ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताय गेहे । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिन कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।


दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे –


भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,

नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।

केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया,

मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।

मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन,

तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,

ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के ।।


दलित जी गांधीवादी विचारधारा के साहित्यकार रिहिन।गांधी जी के गुनगान करत उंकर रचना देखव -

सबो धरम अउ सबो जात ला,एक कड़ी म जोड़े।

अंगरेजी कानून मनन ला, पापड़ सही तोड़े।।

चरखा-तकली चला -चला के, खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गांधी,सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


देस के अजादी बर सहीद होवइया सपूत मन बर लिखे हावय -


फांसी म झूलिस भगत सिंह,

होमिस परान नेता सुभाष।

अउ गांधी बबा अघात कष्ट,

सहि -सहि के पाइस सरगवास।

कतको बहादुर मरिन- मिटिन,

तब ये सुराज ल सकिन लाय।

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय...।।


अजादी के समय के नेता अउ आज के नेता के तुलना करत उंकर रचना म व्यंग्य के धार देखव -


तब के नेता काटे जेल ।

अब के नेता चौथी फेल।।

तब के नेता गिट्टी फोड़े।

अब के नेता कुर्सी तोड़े।।

तब के नेता लिये सुराज।

अब के पूरा भोगैं राज।।


दलित जी ह हमर छत्तीसगढ के दसा पर कलम चलाके पीरा ल व्यक्त करे के संगे- संग बताय हावय कि काबर पिछड़े हे-

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अब्बड़ चांउर

दार।

हवयं लोग मन इहां,सिधवा अउ उदार।।

सिधवा अउ उदार हवयं,दिन -रात कमावयं।

दे दूसर ल मान,अपन मन बासी खावयं।।

ठगथयं ये बपुरा मन ला बंचक मन अब्बड़।

पिछड़े हवय अतेक,इही कारण छत्तीसगढ़।।


दलित जी खादी कुर्ता,पायजामा अउ गांधी टोपी पहनय।हाथ म छाता पकड़े राहय। साहित्य साधना म अत्तिक रम जाय कि खाना- पीना अउ सोवई के ठिकाना नइ राहय। साहित्य साधना म एक मजदूर जइसे पसीना बहाय।उंकर रचना आठ सौ के लगभग हे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म बरोबर ढंग ले लिखिस। पद्म के संगे -संग गद्य म कलम चला के अपन एक अलग पहिचान बनाइस। हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के मंत्री पति राम साव के सहयोग ले 1967 म उंकर रचना "सियानी गोठ" प्रकाशित होइस।येमा उंकर 76 हास्य व्यंग के कुंडलियां सामिल हावय। स्थिति अइसन नइ रिहिन कि अपन सबो रचना ल किताब के रूप म प्रकाशित करवा सकय। जीते जियत एके किताब छप पाइस।

बाद म सन् 2000 म "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" फेर "छनन छनन पैरी बाजे " ह प्रकाशित होइस।

दलित जी के आने रचना म कनवा समधी,अलहन,दू मितान,हमर देस, कृष्ण जन्म,बाल निबंध,कथा- कहानी,

छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति

सामिल हावय।उंकर रचना कई ठन अखबार  म प्रकाशित होइस। आकाशवाणी भोपाल, इंदौर, नागपुर अउ रायपुर ले उंकर कविता अउ लोक कथा के प्रसारण होइस। दलित जी ह उज्जैन म आयोजित सिंहस्थ मेला म कविता पाठ करिन। वोहा कवि सम्मेलन के अब्बड़ मयारू कवि रिहिन। हमर छत्तीसगढ म कवि सम्मेलन म जब हिंदी कवि मन के दबदबा रिहिस वो बेरा म घलो दलित जइसे कुछ कवि मन छत्तीसगढ़ी के धाक जमाइस अउ श्रोता वर्ग ले अब्बड़ तारीफ पाइस। उंकर रचना म ग्रामीण जन जीवन के सुघ्घर चित्रण ,

  देसभक्ति , गांधीवादी विचारधारा के दरसन  होय। शिष्ट हास्य - व्यंग ले भरपूर रचना के कारण कवि सम्मेलन म छा जाय।














दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के सरगवासी होगे ।


दलित जी के सपूत अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के रद्दा ल सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हावय । संगे संग” छंद के छंद “जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हावय त दूसर कोति" छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप" के माध्यम ले ग्रुप एडमिन के भूमिका ल सुघ्घर ढंग ले निभावत छत्तीसगढ़ी के गद्य विधा ल पोठ करे बर साहित्यकार मन ल प्रेरित करत हावय। उंकर ब्लाग "छंद के छ पद्य खजाना "अउ "छंद के छ गद्य खजाना" के माध्यम ले सुघ्घर ढंग ले रचना मन संरक्षित होवत हे जेला आने देस के लोग मन घलो पढ़त हावय। येहर एक एक पुत्र द्वारा अपन साहित्यकार पिताजी ल सच्चा श्रद्धांजलि हरय। 

जन कवि, गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा दलित जी के दमाद रिहिन हे जउन ह अपन गीत के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय के अब्बड़ उदिम करिन ।

आज दलित जी ला उंकर 115 वीं जयंती मा शत् शत् नमन हे.


       सुरगी, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़,)

सरला के सरलता,,,,

 सरला के सरलता,,,,



60 के दशक मा जब बालिका शिक्षा (नोनी मन के शिक्षा) ला लोगन जरूरी  नइ समझत रहिन तउन समे मा बीए बी एड तक पढ़ई करइया गुणवनतीन सरला शर्मा बेटी मन के पढ़ई के विरोध करइया  समाज  के लोगन मन के ताना सुनके अपन पढ़ई ला पूरा करिन। अपन दाई काकी के, कका-ददा के दुलौरिन बेटी बनके रहवैया सरला शर्मा जी ला साहित्य के क्षेत्र मा बचपना ले लगाव रहिस हे। जांजगीर मा जनम लेवैया दीदी के  लेखन बचपना मा उभरे लगे रहिस फेर दाम्पत्य जीवन मा पाँव रखे के बाद घर-परिवार, लोग-लइका के  जिम्मेवारी निभावत अपन कलम ला संदूक मा धर के रख दिस। एक दिन अचानक जीवन मा अइसे आँधी आइस कि जीवन साथी के गुजरे ले जिनगी मा  भूचाल आगे।  जिनगी के परिभाषा बदलगे फेर कुछ समे बीते  के पाछू  लइका मन  पढ़ लिख के नौकरी मा लग गे। तब उनकर दूनों बेटा मन हा विदेश चल दिन फेर जाय के पहिली  लइका मन उनला हाथ मा कलम थमा के दुबारा लिखे बर प्रेरित करिन तब मुरचा खावत संदुक मा रखे कलम ला धर के अपन आँसू के धार ला दवात बनाके जिनगी के पन्ना मा नवा अध्याय लिखे के चालू करिन। अपन नवा जिनगी मा साहित्य के सिरजन ले एक्के बछर मा तीन ठन किताब लिख डारिन । जेमा "वनमाला" हिंदी कविता संग्रह,  अउ छतीसगढ़ी मा "सुरता के बादल" संस्मरण के संग हिंदी मा बहुरंगी निबंध संग्रह  "बुरहरी" ला पाठक मन के बीच मा रखिन।      

        सरला शर्मा जी साहित्यिक यात्रा मा अपन लेखनी ला धार करत आगू बढ़त गिन। उनकर साहित्य मा सबले जादा स्त्री विमर्श के प्रधानता हे। उनकर उपन्यास "माटी के मितान" ला आज विद्यार्धी मन पंडित रविशंकर शुक्ल के एम० ए० हिन्दी कोर्स मा पढ़त हें।  निबंध संग्रह ला कर्नाटक के स्नातक कोर्स मा रखे गे हे। इनकर तीजन बाई  उपर लिखे "पण्डवानी अउ तीजन बाई" हा  एक नवा पहिचान दिस । इंकर बंगला भाषा उपर घलो अधिकार हे तभे बगला भाखा मा एक ठन किताब घलो प्रकाशित होय हे।


    मोर सौभाग्य हे कि मोला  सरला दीदी के मया दुलार के  अमरित वचन पाय के मउका मिलिस। मैं इनला छन्द के छ राज्य स्तरीय सम्मेलन 2021, 19 नवंबर के कार्यक्रम मा पहिली बेर सुनेंव। दूसर बेर रायपुर के वृंदावन हॉल मा जब हमर पुस्तक संपूर्ण छत्तीसगढ़ दर्शन के विमोचन मा हमर पहुना बनके गे रहिन तब आशीर्वाद  मिले रहिस। इनला तीसर बेर 21वी सदी की महिला कथाकारों की मानवीय दृष्टि कार्यक्रम इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी मा सुनेंव। इहाँ में मालती जोशी की कहानियों में स्त्री विमर्श बर अपन शोध वाचन करेंव अउ दीदी के हाथ ले सम्मानित होय के शुभ अवसर मिलिस।  

       में सरला शर्मा दीदी ले मिले अउ उनला सुने तो रहेंव  फेर बात कभू नइ करे रहेंव। मोला डर लागय काबर के अपन ले कोनो वरिष्ठ साहित्यकार हे तेकर ले कइसे गोठियाबो, हमर संग गोठियाही  कि नइ,  गोठियाय मा कोनो गलती तो नइ हो जाही कही के डर बने रहिथे। मन मा झिझक घलो रहिथे अउ सनमान मर्यादा के बात रहिथे। तीन-चार दिन ले सोचे बिचारे के बाद एक दिन में फोन लगायेंव मँझनिया बेरा। फोन के घंटी गिस दीदी फोन ला उठाइन। में झिझक के संग डर्रावत मैडम प्रणाम में खैरागढ़ ले पद्‌मा बोलत हँव कहेंव। दीदी खुश रहो कहिस असीस दिस। फेर में कहेंव  मोर एक ठन पुस्तक प्रकाशित होवइया हे तेकर बर अपन आशीष दे देतेव दीदी। एक्के बेर मा दीदी काबर नइ लिखिहँव , जरूर लिखिहँव कहिन। मोर मन गदगद होगे इनकर सरल सुभाव गोठ-बात ला सुन के। बसंत के गोठ-बात संग अपन परिचय बताके प्रणाम दीदी कहत में फोन ला रखेंव । खुश रहा बेटा कहत दीदी घलो फोन ला रखिन।

दू दिन बाद मोला दीदी के शुभकामना संदेश मिलगे।  शुभकामना संदेश लिख के अइसन अपन असीस  देवइया सहज-सहज सरला दीदी सिरतोन मा मोला सरल लागिस।  एक दिन धन्यवाद देबर दीदी ला फोन लगायेंव। दीदी  राज भाषा आयोग के काम मा व्यसत रहिन तभो ले मोर संग गोठियइन गोठ-बात मा अपन बालपन के पढ़ई अउ घर मा काकी-मउसी के दुलौरिन, मयारुक गोठ-बात करत अपन बचपना मा चल दिन जउन हा मोर बर सपना बरोबर लागत रहिस कि सिरतोन मा में सरला दीदी संग गोठियावत हों।

सरला दीदी मोर लोग-लइका के हाल-चाल पूछिन।  घर परिवार के बारे मा पूछिन त वो मोला महतारी बरोबर लागिस।

येकर बाद 1 मार्च 2025 के राजभाषा आयोग के आठवाँ प्रांतीय सम्मेलन में दीदी ले मोर भेंट मुहाँटिच मा होगे। दीदी में पद्‌मा काहत में दीदी के पाँव ला छुयेंव दीदी ले असीस मिलिस।

सरला दीदी के सरलता अउ सहजता के जतके गुन गाबे वोतके कम हे। जइसन नाम तइसन गुन ला चरितार्थ करत साहित्य के क्षेत्र मा सरलग अवदान देवइया दीदी हा हमर जइसन नवोदित कलम धरैया मन बर एक आदर्श हें। अइसन सहज सरल सुभाव के धनी सरला दीदी ला में प्रणाम करत हँव ।


           डॉ पद्‌मा साहू "पर्वणी" 

              खैरागढ़ छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी साहित्य बनाम् नक्सलवाद





 

.     *छत्तीसगढ़ी साहित्य बनाम् नक्सलवाद* 

  

                             - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


         छत्तीसगढ के सुदूर दक्षिण म फैले घना पेड़-पौधा अउ वन्य पशु-पक्षी के शरणस्थली अउ सबले बड़े आदिवासी जनजीवन लोक संस्कृति के ध्वजवाहक ' बस्तर के पठार ' आज विकास के नाम म अंधाधुंध पेड़ मन के कटाई अउ नक्सलवादी मन के कहर ले कराहत हे। हिन्दी साहित्य म बस्तर उपर कहानी, उपन्यास अउ कविता ढेर सारा लिखे गे हे। अब छत्तीसगढ़ी साहित्य म घलो बस्तर के उपर साहित्यकार मन के कलम बेबाक होके चलत हे अउ नवा-नवा कहानी, कविता आवत हे। अभी हाल-फिलहाल म छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म *चंद्रहास साहू* के कहानी ' *सरई*, '  *कमलेश प्रसाद शर्मा बाबू* के कहानी ', *मास्टर झड़ीराम* 'अउ *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* के दू ठिन कहानी ' *अग्नि संस्कार* ' अउ ' *डोकरी दाई मर गे* ' नक्सलवाद समस्या के जड़ से पड़ताल करत हे अउ नक्सलवाद के उपर प्रहार घलो करत हे। *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* के छत्तीसगढ़ी उपन्यास ' *उवत सुरुज के अगोरा* ' नक्सलवाद ले जूझत आम आदमी के संघर्ष के कहानी हवय।

         ठीक वइसने *वसन्ती वर्मा* के प्रलंब काव्य ' *बस्तर* ' घलो नक्सलवाद के जड़ से पड़ताल करत हे। -


इहाँ जंगल म अब,

बम बारूद के जोर हे। 

कोनो डहर,

बारूद के कचरा, 

कोनो डहर,

कचरा म बारूद के ढेर हे!

बस्तरिहा मरे, 

या नक्सली, 

या पुलिस अउ सेना के जवान, 

होही कोनो विधवा, 

फेर होही कोनो अनाथ!


        छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार  *मुरारीलाल साव* के प्रलंब काव्य ' *हम चुप काबर रहिबो*' म  नक्सली उपर प्रहार करे के अपील करत हे-


चुप रहे म बनय नहीं,

चिल्लाये बर परही। 

सिधवा रहे म बनय नहीं, 

अटियाये बर परही। 

बस्तर म घात लगाके, 

खेलत हें खून के होली। 

कतका बहिनी के माँग उझारिस,

गिन के उंकर गोली। 

रार मचावत हें कइसे सहिबो, 

 *ठाढ़े-ठाढ़े भूंजे ला परही!* 


कवि *राजकुमार चौधरी* नक्सलवादी मन के द्वारा बस्तर के सांस्कृतिक वैभव ला लगातार नष्ट करे के उदिम अउ विनाश ला रेखाँकित करत लिखे हें-


कायर मन छिप-छिप के, घात करत रहिथें। 

फौजी निर्दोष मन हा, रोज भरत रहिथें। 

कोरी-कोरी रोज गिनके, लाश उठाव हन। 

हरियर बस्तर हा नरक भुँई पलाल होगे। 

रोज हमर धरती हर,लाले-लाल होवत हे। 


कवि अउ समीक्षक *पोखन लाल जायसवाल* अपन कविता ' *नवा बघवा*'  म नक्सलवाद के दुःखद अउ घृणित कारनामा के भर्त्सना करत कहत हें-


मशाल धर के 

जब ले आय हे नवा बघवा 

सरी जंगल ल दंदोरत हे!

.............................

लहुलुहान हे 

इंद्रावती के निर्मल धार

छाती म रोज लदावत हे 

दुःख के पहार।


        एक तरह से देखे जाय त बस्तर म वन के विनाश अउ नक्सली आतंक नासूर  बन चुके हे। छत्तीसगढ़ी के सुप्रसिद्ध कवि *बुधराम यादव* के गीत ' *अखमुंदा भागत हे* ' म नक्सलवाद के समस्या ला  संजीदगी से रेखाँकित करे हे-


बघवा भलुवा चितवा तेंदुआ, 

सांभर अउ बनभैसा!

रात दिन बिचरंय जंगल मं,

बिन डरभय दू पैसा।

 नक्सलवादी अब इंकर बीच,

डारत हाँवय डेरा। 

गरीब दुबर के घर उजागर के, 

अपने करंय बसेरा।

 तीर चलइया ल गोली बारूद  

भाखा ओरखावत हें!

...........................

बेटा बेटी अगवा करके, 

सौंपय फौजी बाना। 

हमर घर भीतर घुसरके, 

हमरे मुड़ ल फाँकय!

कांकेर,बस्तर,जगदलपुर का  

सरगुजा दहलावत हें।


 एती *जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया*

 नक्सलवाद के उपर प्रहार करत लिखत हाँवय-


बंदूक गईंज चलायेस,

कभू राज चला के देख !

मारे हस जेखर गोंसईंया,बेटा ल,

ओखरो घर आके देख,!.

मनखे होके मनखे ल ,                                                                                                                                                         खावत हस नोंच नोंच !

फिलगे हे अचरा आंसू म,

अब ताे दाई के आंसू पोंछ !

छेदा छेदा के बम बारूद म,

दाई के छाती चानी हाेगे हे !

तरिया ढोंड़गा नरवा के पानी,

ललहुं  बानी होगे हे  !

कोन देखाथे ऑखी तोला,

बता!! का बात ल पेलथस .?

अउ तो रंग बहुत हे, लालेच म,

काबर खेलथस???


.        *सचमुच आज छत्तीसगढ़ महतारी के अँचरा बस्तर के पठार म जलत हे। बस्तर म पर्यावरण के बिनाश अउ नक्सलवादी आतंक थमही कि निहीं? आज साहित्यकार कवि अउ लेखक मन के चिन्ता एही हे कि समस्या के समाधान हिंसा से तो हो नि सकय, फेर समस्या के समाधान कइसे होही- ये सतत् चिन्तन अउ चिन्ता के विषय हे।* 🙏🌹


                   - विनोद कुमार वर्मा

 

एक टोकरी भर मिट्टी-माधवराव सप्रे* अनुवाद

 *छत्तीसगढ़ी अनुवाद*


*एक टोकरी भर मिट्टी-माधवराव सप्रे* 


*एक टुकनी-भर माटी*


कोनो बड़का गौंटिया के महल के तीर एकठन गरीब अनाथ डोकरी के कुंदरा रिहिस। गौंटिया ला अपन महल के ओरवाती ला वो कुंदरा तक बढ़ाय के इच्छा होइस, डोकरी ले कहिस के तँय अपन ये कुंदरा ला हटा ले, फेर वो तो कई जमाना ले उहँचे बसे हे; ओकर मयारूक गोसइया अउ इक्केझन बेटा घलो उही कुंदरा मा रहिते मरिस। बहू घलो एक पाँच बछर के नोनी ला छोंड़के चल बसिस । अब इही ओकर नतनीन ये बुढ़तकाल मा एक्केचठन सहारा रिहिस। जब ओला अपन गुजरे दिन के सुरता आ जथे तब दुख के मारे गोहार पार के रोवन लग जावत रिहिस अउ जबले ओहर अपन परोसी गौंटिया के इच्छा के हाल सुनिस, तबले वो मरे असन होगे रिहिस। ओ कुंदरा मा ओकर मन लगगे रिहिस। बिना मरे उहाँ ले वो नइ निकलना चाहत रिहिस। गौंंटिया के सबो प्रयास असफल होगे, तब वो अपन गौंटियई चाल चले लगिस। बाल के खाल निकलइया वकील मन के थैली गरम करके वोहर अदालत ले कुंदरा ऊपर अपन कब्ज़ा करा डरिस अउ डोकरी ला उहाँ ले निकाल दिस। बिचारी अनाथ तो रहिबे करिस, पास-परोस मा कहूँ जा के रहे ला लगिस।


एक दिन गौंटिया वो कुंदरा के तीर मा टहलत रिहिस अउ मनखे मन ला काम बतावत रहिस के वो डोकरी हाथ मा एकठन टुकनी लेके उहाँ पहुँचिस। गौंटिया हा वोला देखतेसाठ अपन नौकर ले कहिस कि येला इहाँ ले हटा दव। फेर वोहा गिड़गिड़ावत बोलिस, ''महाराज, अब तो ये कुंदरा  तुंहरे होगे हे। मैं येला ले बर नइ आय हँव। महाराज क्षमा करहू ता एक विनती हे।'' गौंटिया हा मूड़ी हलाइस त वो कहिस, ''जब ले ये कुंदरा छूटे हे, तब ले मोर नतनीन हा खाय-पीये ला छोंड़ दे हे। मैं ओला बहुत समझाय हँव फेर वो एक नइ मानत हे। इही काहत रहिथे कि अपन घर चल। उँहचे रोटी खाहूँ कहिथे। अब मैं ये सोचेंव कि ये कुंदरा ले एक टुकनी-भर माटी लेके ओकर एकठन चूल्हा बनाके वोमा रोटी बनाहूँ। मोला भरोसा हे कि वो रोटी खाय बर धर लेही। महाराज कृपा करके आज्ञा दे दव ता ये टुकनी मा माटी ले जाहूँ!'' गौटिया हा आज्ञा दे दिस।

डोकरी हर कुंदरा के भीतरी गिस। उहाँ जातेसाठ वोला जुन्ना गोठ के सुरता आगे अउ ओकर आँखी ले आँसू के धार बोहाय लगिस। अपन अंतस के दुख ल कइसनो करके सँभाल के वोहा अपन टुकनी मा माटी भरिस अउ हाथ मा उठाके बाहिर ले आइस। फेर हाथ जोड़के गौंटिया ले विनती करे लगिस, ''महाराज, कृपा करके ये टुकनी ला थोरकिन हाथ लगाहू जेकर ले मैं येला अपन मूड़ मा बोह सकँव।'' गौंटिया हा पहली तो बहुत नाराज होइस। फेर जब वो बार-बार हाथ जोड़े लगिस अउ ओकर पाँव परे लगिस ता ओकर मन मा थोरिक दया आगे। कोनों नौकर ले नइ कहिके खुदे टुकनी उठाय बर आगू बढ़िस। जइसे ही टुकनी ला हाथ लगाके ऊपर उठाय बर लगिस तब वो देखिस कि ये काम उंकर शक्ति के बाहिर हे। फेर तो वोहा अपन पूरा ताकत लगाके टुकनी ला उठाय बर चाहिस, फेर जेन जघा मा टुकनी रखाय रिहिस, उहाँ ले वो एक हाथ घलो ऊँचा नइ होइस। वोहा शर्मिंदा होके कहे लगिस, ''नइ, ये टुकनी मोर ले नइ उठत हे।''


ये सुनके डोकरी हा कहिस, ''महाराज, नाराज झन होवव, तुँहर ले एक टुकनी-भर माटी नइ उठत हे अउ ये कुंदरा मा तो हजारों टुकनी माटी परे हे। ओकर भार आप जनम-भर का अउ उठा सकत हव? आप खुदे ये बात मा विचार करहू।

गौंटिया हा धन दौलत के नशा मा चूर होके अपन कर्तव्य ला भूलागे रिहिस फेर डोकरी के सिरतोन‌ गोठ ला सुन के ओकर आँखी खुल गे। अपन करनी के पश्चा्ताप करके ओहर डोकरी ले क्षमा माँगिस अउ ओकर कुंदरा ला वापिस दे दिस।


*अनुवादक*

*राजकुमार निषाद'राज'*

*छात्र-एम ए छत्तीसगढ़ी (चौथा सेमेस्टर)*

*बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग*

*7898837338*