Monday, 30 December 2024

 

नवा साल मा का नवा

                   मनखे मन कस समय के उमर घलो बाढ़थे, येदे देखते देखत एक साल अउ बाढ़गे। 2024 ले 2025 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना ।
              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का चौबीस अउ का पच्चीस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।
           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन। वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।
               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। बहर हाल सरी दुनिया मा जनम मरण, दिन तिथि इही अनुसार चलत हे ता, नवा बछर के बधाई बनबेच करथे, सादर सादर बधाई -----जोहार

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Sunday, 15 December 2024

जाड़ा

जाड़ा


 लहर चलत हे ठण्डा के अब, दुबके खटिया राहव जी। 

उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी। 


कथरी कंबल अउर रजाई, ये मउसम के साथी ये। 

सूँड लपेटे पटक दिही गा, जाड़ा नोहय हाथी ये। 

भले सखा फुसमुहा कहाहव, बइठे खटिया खाहव जी। 

उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी।  


घुर-घुरहा तुम भले कहाथव, जब-जब जाड़ा हर आथे। 

पानी छूना अउर नहाना, सोंचत मन हर थर्राथे। 

तेल लगाके कन्घी कर लव, कुछ दिन काम चलाहव जी। 

उठ झन जाहव जल्दी संगी, नइते बड़ पछताहव जी।  


सुरुज देव हर अलसाये हे, आगी तक हर हारे हे। 

काल बरोबर हवा चलत हे, निगले बर मुँह फारे हे। 

कहूँ जोश मा होश गँवाए, फिर तो बच नइ पाहव जी। 

लहर चलत हे ठण्डा के अब, दुबके खटिया राहव जी।  


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदा बाजार

हार्ट अटैक* - विनोद कुमार वर्मा

 .                          *हार्ट अटैक* 


                           - विनोद कुमार वर्मा


                           ( 1 ) 


           दादाजी के उमर सत्तर पार हे। रमशीला बहू ला समझावत दादाजी बोलिस- ' देख बेटी, दिन के बेरा घर मा कोनो नि रहें, सबो काम-बूता मा निकल जाथें......घर मा तंइच् रहिथस। तैं तो जानतेस हस कि मोला ब्लडप्रेशर के शिकायत हे। डाक्टर साहेब दवाई के किट देहे हे, ओला समझ ले। ए दवाई ला मोर पाकिट म रखथों। '

         ' ठीक हे, बाबूजी, बतावा। ' - बहू के मीठ बोली ला सुनके दादाजी के चेहरा म मुस्कुराहट आ गे। छै बरस के सुमीत ओही मेर खड़े दादाजी के बात ला ध्यानपूर्वक सुनत रहिस। 

       ' देख बेटी, अभी पूस के महीना हे अउ कड़ाके के ठंड परत हे। एही ठंडी के मौसम मा कतको सियान मन हार्ट अटैक म मर जाथें! डाक्टर साहेब एक ठिन दवाई के किट देहे हे। ए किट मा तीन प्रकार के नान-नान गोली हे। दवाई हा केवल दस रूपिया के हे फेर छाती पीरा उठे मा ए दवाई हा जान ला बचा देथे। '

     ' ठीक हे बाबूजी दवाई ला कइसे खाना हे तेला बतावा। '- रमशीला बहू बोलिस। 

    ' देख बेटी,कोनो ला भी छाती पीरा जोर से उठही त सबले जरूरी गोली सारबिट्रेट के होथे जेहा दिखब मा पान पत्त्ता जइसन हे। छाती पीरा होय मा एकर एक या दू गोली जीभ के नीचे तुरते रख देना चाही। एहा जीवन-रक्षक गोली ए। जान ला बचा देथे। एकर बाद तुरते अस्पताल ले जाना चाही। '

              ' बाबूजी मैं जादा पढ़े-लिखे तो नि हों फेर दवाई ला चिन दारे हँव। ' 

           ' बेटी, दू ठिन दवाई अउ हे जेला पानी म खवाय के बाद पान पत्ता कस गोली ला जीभ के नीचे रखना चाही। ' 

          ' बाबूजी, खाना पकाय बर जावत हौं। नई तो आप ला जेवन म देरी हो जाही। '- रमशीला बहू बड़ तेजी ले रसोईघर कोती चल दीस। 

        ' सुमीत बेटा, तैं का करत हस? जा होमवर्क पूरा कर। '

          ' मैं खेले जावत हौं बबा। '- दादाजी के कुछु बोले के पहिली सुमीत रफूचक्कर हो गे!


                       ( 2 )


             पुस नहाक गे। माघ के महीना आ गे। इतवार के दिन सुमीत घर मा पढ़ाई करत रहिस। परीक्षा लकठिया गे रहिस। अचानक दादाजी के चिल्लाय के आवाज सुनाई परिस। सुमीत दउड़त गीस त देखथे कि दादाजी  अँगना म गिरे परे हे अउ छटपटावत हे। सुमीत ला ये समझे मा देर नि लगिस कि दादा जी ला हार्ट अटैक आय हे! दादाजी के जेब ले दवाई ला निकाल के सुमीत वोही काम करिस जेन ला आपत स्थिति मा कोनो डाक्टर करतिस। ओ दिन दादाजी जेन दवाई के बारे म रमशीला बहू ला समझावत रहिस ओला ओकर मम्मी ले जादा सुमीत समझे रहिस। ओकर बाद सुमीत अपन पापा अउ 108 एम्बुलेंस ला फोन करिस।..... जेन बेरा ये घटना घटिस ओ समय घर मा कोनो नि रहिन। रमशीला बहू घलो राशन के समान खरीदे बर दुकान गे रहिस।..... थोरकुन देर म 108 एम्बुलेंस आ गे। दादाजी ला अस्पताल लेगिन अउ ए तरा दादाजी के जान बचगे।

         अब दादाजी के जान बचाय के श्रेय कोन ला दिये जाय?- ओ डाक्टर ला जेन हा आपातकालीन दवाई के किट बाँटे रहिस या फेर सुमीत ला जेन हा समे मा दादाजी ला दवाई खिलाके 108 एम्बुलेंस ला बुलाय रहिस या फेर एम्बुलेंस के ड्राइवर ला जेन हर 120 के स्पीड म एम्बुलेंस ला भगा के 40 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल पहुँचाय रहिस या फेर सिस्टर ला जेन हा एम्बुलेंस मा दादाजी ला अपन मुहूँ ले मुहूँ लगाके श्वांस देवत अस्पताल तक जीवित पहुँचाय रहिस  या फेर ओ निगेटिव (O-) रक्त के दान करइया नवयुवक ला दिये जाय जेकर ब्लड ओ समे जान बचाय बर बहुत जरूरी रहिस। दादा जी के ब्लड ग्रुप ओ निगेटिव हे अउ ये ब्लड बहुत कम आदमी के रहिथे।.....  या फेर एकर श्रेय ओ डाक्टर दिये जाय जेन हा अस्पताल मा दादाजी के इलाज करिस।.....एकर श्रेय कोनो ला दिये जाय फेर ओ दिन दादाजी के जान तो बचगे!.... दादाजी के जान बचना कोई संयोग नि रहिस! जइसन हमन आमतौर मा कहि देथन कि भगवान हा मदद करिस हे! ..... वास्तव मा ओमा कतकोन आदमी के अनुभव, सद्भावना, करूणा अउ कोशिश छुपे रहिथे केवल भगवान के ही मदद नि रहे!


                        ( 3 )


         गर्मी के छुट्टी रहिस। सुमीत घर ले खेले बर निकलत रहिस त दादाजी के आवाज सुनाई परिस- सुमीत बेटा!

          ' काये बबा? '

       ' कहाँ जावत हस? पढ़ाई नि करना हे का? '

       ' नि करना हे! '

       ' बेटा, पढ़ाई नि करबे त बड़े आदमी कइसे बनबे? '

       ' बबा तैं मोला सीख काबर देवत हस? तोर सीख ले मैं बहुत परेशान हों! जब देखबे तब शुरू हो जाथस! .... अभी तो गर्मी के छुट्टी  हे, छुट्टी मा कोनो पढ़थे का ?....खेले जावत हौं? '

      दादाजी कुछु बोलना चाहत रहिस फेर तब तक सुमीत रफूचक्कर हो गे रहिस। 

          ' नावा पीढ़ी के लइका मन  सबो अइसनेच चतुर हो गिन हें! काकरो बात ला सुनबेच्च नि करें।  सब अपन मन के करथें!.... गधा कहीं के..... '- दादाजी बड़बड़ावत रहे फेर ओकर गोठ ला सुनने वाला ओमेर कोनो नि रहिस! 

           लगभग एक घंटा बाद सुमीत लंगड़ावत-लंगड़ावत घर आइस त घर मा कोहराम मच गे। घुटना मा सुमीत अपन कमीज ला बाँधे रहिस अउ लहू हा तर-तर बोहावत रहे! 

       सुमीत ला पुछिन ता ओहा कहिस - ' मोर माड़ी मा हार्ट अटैक आ गे हे! एक झिन लड़का  क्रिकेट के बैट मा पथरा ला जोर से मारिस त ओहा मोर माड़ी मा लाग दीस! लहू बोहावत रहिस ते पाय के घुटना मा अपन कमीज ला बाँध के घर आय हौं! जल्दी से हार्ट अटैक के दवाई ला देवा,माड़ी मा बहुत जोर के पीरा होवत हे! '

          रमशीला के आँखी मा आँसू आ गे। सुमीत ले बोलिस- ' बेटा बहुत पीरा होवत हे का? '

        ' हाँ मम्मी, बहुत पीरा होवत हे! फेर रोवत एकर बर नि हों कि दादाजी सिखोय हे कि आपत स्थिति में न घबराना चाही न रोना चाही! '

    

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Monday, 9 December 2024

पुस्तक समीक्षा - कृति "सवैया सरोवर"

 पुस्तक समीक्षा - कृति "सवैया सरोवर" 


समुंदर म गोताखोर डूबकी लगाथे मोती खोज लाने बर! कइ बेर वोकर हाँथ खाली रथे माने अतका महिनत के बाद भी कुछ नइ मिलय, वइसने मेहनत एकचित्त एकाग्र  होय म, कोनो तपसी कस तप करे म साहित्यक साधना ले ही सवैया लिखे जा सकथे| अतेक आसान सवैया के सृजन| नइ हे!कोनो पहाड़ म खड़ी चढ़ान चढ़ना हे तव बिना अनुभवी गाइड के पार नइ जा सकन , मार्गदर्शक ,गुरु बिना कोनो छंद नइ सीखे जा सके सवैया तो बिल्कुल भी नहीं|


साहित्यक गोताखोर ल एक कुशल गोताखोर बने ल परे हे,जीवन के ए अनमोल क्षण म साधना के संग, संतुलन स्थापित होय म सवैय सरोवर के नेह धराय रहीन, छंद परिवार के दीवाली मिलन समारोह म छत्तीसगढ़ भर के बहुत से गुणी अउ वरिष्ठ साहित्यकार मनन के  पावन सानिध्य म विमोचन होइस||

           

                   छंद शास्त्र- साहित्यम म  सवैया रच के भाव पिरोना, गण समन्वय- तुकांत के एकरुपता, शब्द मन के सुघड़ गुथान, डाँड़ सजावट, दूल्हन के सिंगार कस फभिन के होना चाही| ए सबो संयोजन सवैया सरोवर म देखे म मिलत हे|

                 सवैया छंद गण आधारित वार्णिक छंद आय समपाद मात्रा, गण के अनुसार व चार तुकांत होना सबले जरुरी | तउन पायके सवैया लिखना आत्मा म जीव भरे कस कठिन माने जाथे| 

          लय, यति, गति, गण विन्यास तुकांत के संग भाव प्रधान, सरल- सहज अउ सुग्म्य बोली- भाखा म पगाय हवय| अलग अलग अतराप मन म नंदावत शब्द मन ल नवा ढंग ले उकेरे के कारज ए कृति म होय हे, शब्द भंडार , शब्द कोश कहिके घलो आत्म साथ कर सकत हन | विषय के चयन और फिर वो विषय म विचार के ताल -मेल, समन्वय ले सवैया के विधानन म बैठाव ले सवैया सरोवर निखर के आय हे| मन अंतस और आत्मा ले उदगरे ध्वनि मन शब्द म माँ वीणा पानी के झंनकार देवत हे| तव शब्द मन के अनुप्रास हर  भोले बाबा के डमरू कस नाँद भरत हे|

               

                       छत्तीसगढ़ी म तुकांत झटकुन नइ मिलय| बड़ महिनत के कारज हे| फेर बहुत अकन शब्द मन चलन म नइ होय, सब समस्या ले उपर निकल के एक शानदार कृति सिरजाना दुर्गम पहॎड़ म रद्दा बनाय जइसे कारज होय हे|  बडे़ बात हे|


               भारत भूमि म जन्मे संत कवि मन म भक्त गोस्वॎमी तुलसी दास जी मन श्री रामचरित मानस म सवैया छंद के प्रयोग करे हवँय| पर मानस भूमि म सबले जादा सवैया ल प्रसिद्धि दिलाइन तव वोमन हे रसखान| श्री कृष्णा धारावाहिक म रविंद्र जैन जी के मधुर स्वर संगीत म सवैया सुनन, पर सुनन भर? जान नइ पाय. रहेन ~ के लिखथे कइसे| तबो ले इंकर बड़ महत्व हे| 

                       छत्तीसगढ़ म देखथन तव मिलथे कि इहाँ सवैया छंद म जनकवि दादा कोदू राम दलित जी मन के रचना मिलथे| एक नाम और आथे जेमन सवैया के लय म रचना पढ़त रहीन जन कवि लक्ष्मन मस्तुरिहा जी,उँकर रचना मन म सवैया कस बानगी देखे म आथे| अउ जादा कवि मन नी मिले फेर अब छंद के छ परिवार म गुरुदेव श्री अरुण कुमार निगम जी के मार्गदर्शन म 150 ले उपर साधक मन छंद गुरुकुल म सवैया छंद लिखत हें लय म गावत हे, मंच मन म पढ़त हें |                                                  

             इही मन से  सवैया सरोवर लेके आय हवँय इंजिनियर गजानंद पात्रे 'सत्यबोध' जी | श्री गजानंद जी के सवैया सरोवर उँकर पहली कृति आय पर उन छंद परिवार ले 2016 ले जुड़े हवँय | हमर छंद परिवार म अब सरलग गुरु के भूमिका निभावत हें| पेशा म इंजिनियर हें, विज्ञान के विद्यर्थी रहें हवँय तव वो कर प्रभाव वैज्ञानिक दृष्टिकोण उँकर  रचना मन म दिखथें| छत्तीसगढ़ भूमि म जन्मे महान संत बाबा गुरुघासी दास जी के विचार धारा के अनुयायी हवँय, सतनाम पंथ के विचार धारा ले प्रभावित हें, जउन म सबो मनखे ल बरोबर माने जाथे| ये कारन आप मन के कृति म  सर्व समाज बर समता और नीति परक बात बहुत से रचना म आय हे | एकर छाप देख सकथन |                

                 बिलासपुर क्षेत्र  साहित्य बर ऊरवर भूमि आय, साहित्य के समृद्धक्षेत्र आय| तव आप के कृति म साहित्यक भाषा - बोली मन के गहिर प्रभाव हे| आप के सृजनात्मकता म भाषा अउ शिल्प के बड़ सुघ्घर इंजिनियरिंग देखे बर मिलत हे| 

            आप मन के कृति सवैया सरोवर कवि , साहित्यकार पाठक मन ल डहर दिखाही| छत्तीसगढ़ी के कोठी ल भरही, महतारी भाखा ल पोठ करही,ये कर उदीमबर,,योगदान बर जाने जाही| छत्तीसगढ़ी भाषा के समृद्धि बर मील के पथरा बनहीं| इही आशा ,विश्वास के साथ बहुत - बहुत बधाई देवत हवन|

जय जोहार🙏 💐


सवैया सरोवर - इंजिनियर श्री गजानंद सत्यबोथ जी

 छंद साधक सत्र -3

मूल्य 200/-

प्रकाशक-:

बुक क्लिनिक पब्लिकेशन बिलासपुर (छ ग)                  समीक्षक-अश्वनी कोसरे 'प्रेरक' रहँगिया कवर्धा कबीरधाम (छ ग)

कहय बेपारी- 'सूतव ग्राहक सूतव'

 कहय बेपारी- 'सूतव ग्राहक सूतव' 


मनखे के जिनगी म हाट-बजार के बड़ महत्तम हवय।पहिली के बजार म साग-भाजी अउ नून,गुड़-तेल के पसरा मन ह जेन जगा म माढ़े रहय उहिंचे ले अपन जरवत के हिसाब ले मनखे मन लेन-देन कर डरें। धीरे-धीरे बजार ह कई ठन रूप म विस्तार पावत जेन मेर दिखिस उही मेर अपन बर जगा पोगरा लिस। देखते-देखत बजार ह विकेंद्रीकरण के चोला पहिर के  राजनीति कस गांव-गोढ़ा, कस्बा अउ शहर के चौक-चौक म लमिया गे। मनखे ते मनखे पाढ़ू जीव-जंतु मन के जरवत के सबे चीज-बस ह घला बजार म असानी ले मिल जथे। भलुक बजार म का चीज-बस ह नइ मिले।विज्ञान के चमत्कार ले थोरको कम नइहे ये बजार के चमत्कार ह। वइसे ये टॉपिक म विचार गोष्ठी घलव रखे जा सकत हे कि विज्ञान और बजार के चमत्कार म काकर चमत्कार ह जादा चमत्कारिक हे।ननपन म लइका मन विज्ञान के चमत्कार निबंध ल याद करत चमत्कार ल नमस्कार करे बर सीखिन। फेर नासमझ अप्पड़ टाईप के पेलिहा मन विज्ञान के चमत्कार ल मानबे  नइ करँय। अउ चमत्कार ल नमस्कार करे के जगा दूरिहा च ले मुॅंहुॅं-कान ल झटकार देथें। उनकर बर तो ये दुनिया म बइगा-सिरहा के चमत्कार के आगू म सब बेकार हे।

               यहू विज्ञान ह वरदान के संगे-संग अभिशाप ल घलव गमपलास कस अपन चरित्तर म चटका के राखे हे। फेर जेन ला ये दुनिया म विज्ञान के चमत्कार ह नइ दिखे, समझ जा वो मनखे ह ऑंखी होके नंबर एक के अंधवा हे।जिहाँ तक बजार के बात हे ओकर तो जिहाँ नहीं तिहाँ आजकल गजब पूछंता हे। का गांव ल लेबे ते का शहर.., बजार ह सबो डहर गुलजार हे।बजार..,अंग्रेजी म मार्केट.., बजार कहे म बात ह थोकिन लिल्हर कस जनाथे फेर मार्केट शब्द के रूआब ल आप मन खच्चित मार्क कर सकथो। बजार कहव चाहे मार्केट काम तो वोतकिच होही जतिक के जरवत रही। अब तो बजार ह शहर के बीच ले निकल के सड़क तीर में पसरत जात हे। ब्रोकर-कोचिया-दलाल के बिना बजार ल लुलवा-खोड़वा समझ..।जइसे कि नवा घर के सपना ल अपना बनाय बर दलाल के सलामी लेना च पड़थे। नइते कतिक बेर सौदा म दलाल ह अपन कमाल देखावत हलाल कर दीही ते जिनगी भर मलाल रही जही। मने बजार अउ दलाल के बीच म, साग म नून कस गठबंधन हे।

              जन-जन के अंतस म एकता ,समता अउ भाईचारा के भाव ह जीयत-जागत रहय कहिके अजादी के बाद देश के संविधान ल लिखे गीस।त का ये संवेधानिक बेवस्था के चारो खंभा ह बजार के चमत्कार के आगू म तन के खड़े हे ते नतमस्तक हो गेहे। ये बात ल तो विशेषज्ञे मन ह फरी-फरी कर सकथे। बजार म बेपारी के करेंसी के आगू म बड़े-बड़े के नीयत ह डोल जथे। ये खंभा के सलामती बर खंभादार मन कतिक दमदम ले खड़े हे तेहा उनकर दमदारी के बैलेंस शीट उपर निर्भर करथे। अइसे भी बजार के सांघर-मोंघर बेपारी मन अपन बेपार बर खंभा ल हलाय-डोलाय के का बारा-बिटोना उदीम नइ करें।तीन ठन खंभा ल थोरिक -थोरिक लपकत देखके अनुभवी मन बताथें कि ये तीनों खंभा के नेंव म दिंयार मन सपड़ गेहे तइसे लगथे। मने खंभादार के दाढ़ी म तिनका ह खच्चित लटक गे होही। चौथा नंबर के खंभा के बाते झन पूछव उनला तो बेपारी के पॅंवरी म लामी-लामा होवत अपन ओरिजनल ऑंखी म तॅंय खुद देख सकथस।

                 जियो के फिरीवाले सीम के जियो-मरो विज्ञापन ल कते भुगतमानी मन ह भुलाय होहीं। दू-तीन महिना बर फिरीवाले सीम ल बाँट के येमन आज ले बटोरत हें। बड़े-बड़े नेता के साक्षात फोटो सम्मेत पोस्टर ल देखके जनता मन खुदे भोरहा म पड़ गे रहिन.., कते ह मंत्री आय अउ कते ह बेपारी..। फेर  जेती बम ओती हम वाले खुलेआम विज्ञापन के सेती बेपारी मन तो सकेल डरिन न..। एती बजार के फिरीवाद के फिरकी म उपभोक्ता मन आज ले ताता-थैया करत हे। ये प्रसंग म कते खंभा के नेव ह हालिस होही तेला तँय खुदे अजम सकथस। कभू-कभू तो अइसे लगथे कि कुछ दिन म मार्केट म 'जागो ग्राहक जागो' के जगा म जबरदस्ती 'सूतव ग्राहक सूतव' वाले ऐप ह घलव लॉन्च हो जही। काबर कि जागो ग्राहक जागो ले भलुक तुमन के झन ग्राहक ल जागत देखे हव। सब ल मालूम हे विज्ञापन ह बजार म समान बेचे बर माहौल बनाय के काम करथे अउ एती जनता के वोट पाके नेता मन प्राभेट कंपनी के प्रचार म लगे रहिथें। कन्हो भी ऑफिस म जाके देख ले चहा-पानी के बिना फाईल ह आगू डहर खसकबे नइ करे। खाखीवान (पुलिस) मन के वसूली के अलिखित सूची ह वाचिक परंपरा ले खोखी ( अवैध कारोबारी) के खोपड़ी में टंगाय रहिथे। ओकरे हिसाब ले खाखी अउ खोखी के मझ म भुगतान संतुलन के सदाचार  ह तय होथे। अब तही बता येमन खंभा ल गड़ावत हें कि उखानत हें..।

            फिल्मी दुनिया के हीरो हीरवइन मन बैगपाइपर, आरो, जरदा गुटका, बनफूल तेल, लक्स, लिरिल, निरमा अउ टूथपेस्ट जइसे कतको समान ल बेचे बर घनघोर विज्ञापन करत हें। बजार म का-का नइ बेचावत हे। सरहा-घुनहा अउ टूटहा-परेटहा समान ल बेचे बर हीरवइन मन के डुठरी कपड़ा म कनिहा मटकई ह अब तो आम बात होगे हे। अवइया समय ह घोर बजारवाद के समय रही तब कोन जनी विज्ञापन वाले हीरवइन के कंचन काया म डुठरी कपड़ा ह रही पाही ते अपन इज्जत बचाय बर डुठरी कपड़ा ल खुदे खून के ऑंसू रोना पड़ जाही।बजारवाद के प्रवर्तक ह अइसन दिन आ जही कहिके सपना म घलव नइ सोचे रहिस होही कि बीच बजार म नदी, जंगल,पहाड़ ल बेचत कुरसी म सटके बर येमन फिरी के चँउर, चना, बिजली,पानी संग जनता  के वंदन करत चंदन लगा दिही।

               कुरसी म दास रहय चाहे प्रसाद छे-सात साल म कलारी धंधा म नोट पीटे के कला म उस्ताज सरकार ह बाजारवाद के पीठ म सवार होके झन्नाटा  के विकेंद्रीकरण करत ओला भट्ठी ले निकाल के होटल-बासा म फेमस करे बर अपन कनिहा टाइट करे म मगन हे। बने घला हे मंदहा मन ल ओन्हा-कोन्हा म झिम-झाम चुपरे के जगा अब खुलेआम सिप-सिप करत चुपरे म जादा मजा आही।जेकर विरोध करत येमन सत्ता के सड़क डहर ले सिंहासन तक पहुंच बनाइन,अब उकरे डहर ले येला बउरे बर जनता ले कलौली करई ह घला एक ठन अद्भुत कलाकारी आय।कंगाली के दुख पीरा म कल्हरत सरकारी क्षेत्र के बड़े-बड़े प्रतिष्ठान मन ल बीच बजार म बेपारी मन के कोंवर-कोंवर प्राभेट हाथ म बेचा-बेचा के तुरते पिकियावत फुन्नावत देखे जा सकथे। वो अलग बात आय कि सरकारी हाथ म ये जम्मो प्रतिष्ठान मन ल लकवा मार देथे। फेर एकर ले उलट बेपार के हाईटेक बजार म एकमात्र प्राभेट प्रतिष्ठान ले सरकारी होवइया झन्नाटा दुकान के अपन अलगे कहानी हे। भारतीय लोकतंत्र म घटे ये बजरहा घटना ल इतिहासकार मन सोन के ढेबर्रा अक्षर म कलमबद्ध करत झन्नाटा सन खच्चित नियाव करही अइसे हमला पक्का भरोसा हे।

                  देश ले लेके विश्व के बड़े बजार म बड़े-बड़े बेपारी मन के एकतरफा धाक हे। नानमुन बेपारी मन के गोठ करबे तब पेट बिकाली बर मनिहारी दुकान में कंघी बेचत चंदवा चाचा के दर्शन लाभ लिए जा सकथे। ओती फुटपाथ के रेहड़ी म भोभला भैया ल दंत मंजन धरे गृहस्थी के गाड़ी ल रेक-टेक के खींचत खच्चित देख पाहू।जगा-जगा म खुले मार्ट म स्मार्ट बनत कारोबारी मन के आर्ट के करिया पार्ट ल जानन पाबे ते तोर काया के पार्ट-पार्ट म पीरा भर जही। एक्सपायरी डेट वाले समान के रेपर अउ डब्बा ल बदल-बदल के ऑफर म समान बेचे के धंधा पानी म मार्ट के बेपारी मन कइसे भोगावत हें,येहा आये दिन सोशल मीडिया म वायरल होतेच रहिथे। अइसन म मनखे के हार्ट के उमर ह शार्ट नइ होही ते अउ का होही।बजार म बेपारी मन के डिस्काउंट अउ आफर के टुहू देखई वाले उदीम ह आम उपभोक्ता मन के सोच-समझ अउ बुध-विवेक ल बजरहा बना डरे हे। सबले जादा निम्न मध्यम वर्ग के नकलची अउ पुचपुचहा टाइप के मनखे मन ह ये ज्वाला म झपा-झपा के खुँवार होवत जात हे। येमन ल तो झपाय अउ ठगाय च म आत्मिक शांति प्राप्त होथे तब कोन ह का कर सकथे..। येमन ल कोचक-कोचक के कतको जगाय के उदीम करलव तभो ले ये जेदर्रा मन थोरको कसमसाय के नाम नइ लेवँय। तेपाय के इनकर मन बर 'सूतव ग्राहक सूतव' स्लोगन ह जादा सार्थक घलव लगथे।

                 विकास के नाम म बड़े-बड़े पहाड़ ल ओदारे अउ जंगल ल उजाड़े के काम तो चलतेच हे।येमन ल कहुँ मैकल पर्वत श्रेणी म यूरेनियम, सोना, चांदी जइसे कीमती धातु के भंडार मिले के खबर लग जही तब हाईटेक बेपारी मन यहू ल बेचे बर मिनट भर के सुस्ती नइ करही। भला पर्यावरण ह जाय चूल्हा म..।एती हसदेव जंगल के बेंदरा विनाश तो होतेच हे, जब सतपुड़ा जंगल के इही हाल हो डही तब साँस म नाक डहर ले काला खींचबे, तोर थोथना ल..। एक दिन अइसन आही कि साँस खातिर हवा ल पाउच म बिसाना पड़ही। आफत म अवसर के तलाश करत साँस बर हवा बेचे के ठेकेदारी ह फेर साँघर- मोंघर उही बेपारी के फाईल म आके गिर जही। आखिर म यूनिवर्सल ग्राहक बने जनता मन ल तो दूनों डहर ले पेराना च पेराना हे न..।

            बजार म जेन समान ह सस्ता-सुकाल म मिलथे ग्राहक-मन ओकरे पीछू-पीछू म दौड़-भाग करथें। चीन के सस्ता कपड़ा के आगू म हमर देश म हथकरघा ले बने खादी के परेटहा परे के इही कारण रहिस। आज घरोघर म पहुँचे चाइना आइटम के विरोध म राष्ट्रवादी नारा लगइया मन खुदे चाइना मोबाइल जइसे इलेक्ट्रॉनिक आइटम के दिवाना हें। उनकर माई-खोली अउ परछी- दुवार म चीन के झालर ल बुगुर-बुगुर बरत साक्षात देख सकथो।वैश्विक बजार म न तो लाल ऑंखी वाले बड़े भैया के चले अउ न कन्हो गुरुघंटाल के.., चलही ते सिरिफ साँघर-मोंघर बेपारी अउ दल्ला-दलाल के..।चाइना आइटम ल बिसाय बर ग्राहक-मन ल कोनो बीजिंग-सीजिंग म जाय बर नइ लगे। उनला तो सरी समान ह पड़ोस के दुकान म मिल जथे। हमर देश म चाइना के समान ह दूनो देश के बीच म समझौता के जरिए आवत होही.., फूँक मारे अउ मंतर जाप करे ले चाइना समान ह इहाँ के बजार म झरझर ले गिरत तो नइ होही। कहुँ अइसन होवत होही ते फूँक अउ मंतर जाप के रहस्य ल हमूँ ल बता देतेव ते तुँहर परसादे हमरो माटी के काया ह धन्य हो जतीस। देशहा ग्राहक-मन के तो एके इच्छा हे.., ये चीन के बजरहा आइटम ल चुक्ता निपटाय बर हमरो देश म सस्ता-सुकाल म गजब के टिकाऊ माल बनाय के काम ल शुरू करना चाही । तभे चीन के बउरो-फेंको दुकान म देखते-देखत गोदरेज के तारा ठोंका पाही।

             वैश्विक बजार म बड़े-बड़े संपन्न देश-मन गरीब अउ विकासशील देश मन ल रात-दिन डरवात रहिथें। येमन तोप, बम,गोला,बारूद, मिसाइल अउ युद्धक विमान बेचे बर दू पड़ोसी देश-मन ल आपस म लड़वाय-भिड़वाय के कूटनी चाल म लगे रहिथे। एती पड़ोसी देश चीन ह अपन विस्तारवादी सोच के दादागिरी चलात रहिथे। ओती अमेरिका ह नाटो के भरोसा म नाचो-नाचो करत रहिथे अउ रूस ह वारसा पैक्ट ल गुरमेट के हरदम हुसियारी झाड़त रहिथे। ये सब संपन्न देश मन अपन बजार के हर माल ल दूसर देश म खफाय के जुगाड़ में लगे रहिथें। यूक्रेन म मचे तबाही ह एकर ताजा उदाहरण आय। विश्व के स्वंभू व्यापारी अउ दलाल मन अपन नफा-नुकसान के आकलन करत यूक्रेन, फिलिस्तीन अउ इजरायल के जीलेवा युद्ध म बस अपन समान बेचे म लगे हें। इनकर बजरहा सोच के सेती खून म लथपथ मानवता ह तार-तार होवत हे।

               दुनिया म सामरिक रूप ले पोठ हठेलहा देश मन के चाल-चरित्तर के कोनो ठिकाना नइहे। इनकर धूर्तता के सेती विकासशील देश मन ल अपन शिक्षा, स्वास्थ्य के बजट ल काट के सुरक्षा बजट के संशो करना पड़ जथे। मुद्रा अउ वर्चस्व के खातिर उद्योग अउ बजार के गठजोड़ ल शांति अउ मानवता ले कन्हो लेना-देना नइहे। एती पाकिस्तान अउ बंगलादेश जइसन कट्टर देश -मन ल चुलका-चुलका के हथियार बेचई बूता ह अमेरिका अउ चीन के जइसे मुख्य धंधा-पानी आय। सरी दुनिया म सबले जादा इही मन अतलंग नापत हें। इनकर साम्राज्यवाद के गरभ ले निकले बाजारवादी सोच ह दुनिया ल कहुँ तीसर महायुद्ध डहर झन ढकेल दे..।ईंखरे आशीर्वाद ले ये पेटपोसवा पाकिस्तान ह हमर हाजमा खराब करे बर समुंदर डहर ले बंगलादेश म हथियार भेजे अउ बेचे के नंगई म उतर गेहे। वो अलग बात आय कि हमन अपन चेत-बुध ल बरो के किसम-किसम के नारा लगावत अपन हाजमा ठीक करे म मस्त हन।

              एती साँघर-मोंघर बेपारी और उद्योगपति मन बर हमरो घर ह चरागन तो बनी गेहे। इनला कौड़ी के भाव म जमीन अउ बजार भाव ले कतको सस्ता म रगड़ के कमइया मजदूर जो इहाँ मिल जथे। तेकरे सेती आजकल ईंखर मुँहुँ ले तरतर-तरतर लार ह टपकत हे अउ हाथ ल का कहिबे येमन कूद-कूद के दूनो गोड़ म थपटी पीटत हें। मस्का मारत एलन मस्क ह इहाँ आय चाहे अडानी ह दू हजार करोड़ के नगदउ चटावत अमेरिका जाय,  फिरीवाले हितग्राही मन ल अउ मोबाइल कोचकइया दीदी-भैया मन ल का फरक पड़ने वाला हे। बजार म आफर,डिस्काउंट अउ विज्ञापन वाले बेपार जगत ह खुदे चाहथे कि उनकर मनमानी ले आम आदमी मन कभूच झन जागय। उनकर अंतस म एकेच इच्छा तो जागत रहिथे कि ग्राहक मन हमेशा लात तान के सूते रहँय। मतलब एकदम साफ हे, कहय बेपारी-"सूतव ग्राहक सूतव"..।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

कहिनी // *गोदरी* //

 कहिनी                   // *गोदरी* //

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         गाँव के छेदहा म एकठन नानचूक माटी के घर जेमा एकझन झिंगरी नांव के सियानिन डोकरी दाई रहय। जेकर कनिहा कुबर धनुस कस नेंव गे रहिस अऊ लवठी टेकत रेंगे।देहें ल देखे म निचट पोनी बरोबर थुलथुल,*मोंगरा फूल असन* पाके चूंदी सादा दिखय...।फकफक गोरी,आँखी बने दूरिहा के मनखे ल टप ले चिन्हारी कर डारे।ओहर *पातर कान* के घलो रहिस दूरिहा ले कुछू *टुड़ू-फुसू गोठ* ल टप्पा सुन दारे।दांत घलो एकोठन नइ  टूटे रहिस *कोहंड़ा बीज बरोबर* रग-रग ले उज्जर दिखे ।सबो ओला झिंगरी दाई के नांव ले जानय।

                बपरी घर म एकेझन रहे,ओकर कोनों नता-गोता ओकर नइ रहिस।" जेकर कोनों नइ हे तेकर भगवान हे " कइसनहो करके एक बित्ता पेट भरे बर कुछू जोखा मढ़ाय बर परबेच करे।ओहर भीख मांग-मांग के अपन के *जिनगी के गाड़ी* चलावत रहिस।एकठन बाल्टी,माटी के मरकी,सिल्वर के छोटकुन गंजी,गिलास अऊ दू-चार ठन कटोरी खाय-पीये बर घलो रहिस।भुइयाँ म सुते,दसना करे बर एकठन *चिरहा गोदरी* अऊ ओढ़े बर जून्ना कम्बल रहिस।घर के तीरेच म एकठन ढोंढ़ी जेमा फिटिंग पानी बारो महीना भरे रहे,अउ धार बोहावत रहे।उही ढोंढ़ी के पानी ले झिंगरी अपन के सगरो गुंजास करे।

              झिंगरी बिहनिया ले असनान करके उवत सुरुज ल अपन मुड़ी नवाके,दूनों हाथ जोर लेवय अऊ भगवान ल गोहार करे।पता नइ हे ओहर भगवान करा काय गोहार करय ओला ओही जानही।"*काकरो मन के बात ल कोन जान सकत हे*"।तेकर पाछू झोला धरके बस्ती कोती निकल जावे।घरो-घर झिंगरी दाई झोला फइलावत भीख दीहा दाई ओ..दाई !भीख दीहा.. दाई ...! कहत घर के मुहांटी म बइठे कभू खड़े रहे।कोनों चाउंर,कोनों रुपिया पइसा दे अऊ कोनों खाय पीये बर दे देवंय,काकरो घर चहा-पानी मिल जाय।मंझनिया बेरा कोनों खाय बर भात-बासी दे देवंय।उही भात-बासी ल खावय अऊ मंझनिया काकरो आंट-परछी म ढलंग जाय, झिंगरी थके रहे त आँखी घलो उहीच मेर मुंदा जावे,थोरिक थिरावय तंह फेर उठ के एको दू घर जातीस नइ तो अपन घर कोती लहुट जावे।ओतका ले बरदी के लहुटती बेरा घलो हो जावे।

                झिंगरी कभू एकोदिन भीख मांगे नइ जातीस त गाँव के सबो पूछे बर धर लेतिन के आज झिंगरी कइसे नइ दिखत हे।काबर के सबो के मया दुलार *तुमा नार बरोबर* झिंगरी ऊपर लगे रहे,लोग लइका अऊ सियान-सियानिन मन सबो झिंगरी के संसो-फिकीर करंय।झिंगरी बर सबो के *मया के पीकी* फुटे रहे। *मया के दहरा अऊ पिरीत के बाहरा* अगम अऊ अपार होथे।ओकर लवठी टेकई के ठुक-ठुक अऊ *पांव के आरो* ल सुन के सबोझन चिन्हारी कर डारंय के झिंगरी दाई आवत हे।

               झिंगरी लइका मन संग लइका बन जावे अऊ सियान मन संग सियान हो जावे।' वइसे सियान होइंन तहां ले लइकेच बरोबर हो जाथें '।सियान-सियानिन मन संग बने गोठियावय बतरावय,सबो ओला बने मया दुलार करंय। *"मया करे नइ जावे ,मया हो जाथे।"* झिंगरी ल भीख के संगे-संग भात साग घलो मिल जावे त ओला राधें के संसो नइ रहे।भीख म मिले रुपिया पइसा ल अपन के चिरहा गोदरी भीतरी खुसेर देवै।गोदरी भितरी कतका रुपिया पइसा सकलाय रहिस झिंगरी घलो नइ अजम पाय काबर के जतका मिले रहे ओला नइ गिने रहे बस ओला चिरहा गोदरी म खुसेरत जावै उहीच गोदरी ल दसा के ओकरेच ऊपर सुत जावय।

               घाम,बरसा अऊ जाड़ा के समे नाहकत बछर बुलकत गिस येती झिंगरी के उमर समे के संगे-संग *बुढ़वा रुख के पाना असन* खसलत पहावत हे। *जिनगी के बेर बुड़ती* बेरा होवत हे।जांगर के थकती होगीस,'बुढ़वा देहें म बीमारी घलो *गुड़ म चांटा* जइसन गरास दारथे।' झिंगरी ल बीमारी घलो गरासत गिस।जांगर के थकती म जादा रेंगे बुले नइ सके तेकर सेथी भीख मांगे जवई घलो कमतिया गे।आजकाल झिंगरी कइसे नइ दिखत हे अपन परोसिन मेंघई ल मोहरहीन ह पूछिस..। मैं तो नइ जानत हौं दीदी झिंगरी कइसे नइ दिखत हे मेंघई कहिस..।आजकल झिंगरी के कुछू पता नइ चलत हे..गंवतरिहा घलो पंचू करा गोठियावत रहिस..।सिरतोन कहत हावस गंवतरिहा आजकल झिंगरी के कुछू आरो नइ मिलत हे पंचू कहिस...।येती झिंगरी ल गोड़-हाथ के पीरा अऊ जर-बुखार के जोलहन चढ़ा लेहे मंगलू अपन गोसाईंन ल गोठियावत रहे।

                  गाँव के मनखे मन जान डारिन के झिंगरी के तबियत बिगड़ गे हावे।ओला देखे बर जावेंय कुछू खाय पीये के धर के ले जावें,कोनों चहा-पानी पीयावंय त कोनों खिचरी खवांय।देखते-देखत ओकर बीमारी गढ़ावत जावत हावे। *बेरा के धार म उमर घलो बोहा जाथे*। ' नदिया खंड़ के रुख के कोनों भरोसा नइ रहे कतका बेर ढलंग जाही।' देख-रेख बिना झिंगरी के जीनगी के *बेर बुड़ती बेरा* के समे होगे।ओकर खाय-पीये अऊ गोठ-बात घलो बंद होगे।झिंगरी के *सांसा के तार* कतका बेरा टूट जाही तेकर ठिकाना नइ हे।ओकर सांस जोहउ होगे,हाथ के नारी घलो खखोरी तीर चढ़़े लागिस अऊ देखते-देखत हाथ-नारी जुड़ाय धर लीस।बपरी झिंगरी के परान *पिंजरा के चिरई कस* उड़िया गिस।

                गाँव म सोर होगिस झिंगरी अब ये दुनिया ल छोड़ के सरग सिधार गिस कहिके।गाँव के माईलोगन अऊ लइका मन झिंगरी ल ये दुनिया ले जाय के बड़ दुख होईस।ओकर क्रिया-करम करे बर चैतू,बैसाखु,जेठू,पंचू अऊ गवतरिहा सबो सकलाईन।कहे गे हावे *जेकर कोनों नइ हे तेकर भगवान हे*।मियाना म बोहके अमरइया के मरघटिया लेगिन।ओकर जतका जिनीस घर म रहिस जुन्ना ओंढा,कम्बल के संगे-संग चिरहा गोदरी सब ल सकेल के बोरी भितरी भर के मरघटिया लेगिन।झिंगरी के लहास ल खंचवा खनके माटी देईन। *माटी के काया माटी म मिलगे*।मरघटिया म पंचू बोरी ले चिरहा गोदरी ल निकाल के फेकिस त चिल्हर पइसा गिरे के अवाज सुनाइस।जेठू देखिस त सहिच म सिक्का अऊ चिल्हर पइसा फेंकाय रहिस।

                 पंचू गोदरी ल अऊ बने हलाइस त जमे चिल्हर ह खल-खल ले गिरगे,चिरहा म अपन अँगरी ल खुसेरिस त भितरी म एक,दू,पाँच अऊ दस-बीस रुपिया के कतका अकन नोट घलो खुसरे रहिस।जमो नोट,सिक्का अऊ चिल्हर पइसा ल सकेल के गिनती करिन त पाँच हजार दू सौ पच्चीस रुपिया होईस।अपन के क्रिया-करम करे के पुरती झिंगरी सकेल दारे रहिस,ओहा काकरो बोझा नइ बनना चाहत रहिस।उहीच रुपिया-पइसा के ढोंढ़ी तीरेच म झिंगरी दाई के गोदरी के चिन्हा सबो जुरमिल के एकठन नानचूक चंवरा बनवाईन।जेहर *झिंगरी चंवरा* नांव ले गाँव भर उजागर होगिस।

✍️डोरेलाल कैवर्त "*हरसिंगार*"

      तिलकेजा, कोरबा (छ.ग.)

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अगोरा हे राजभाषा के सियान के-*

 *अगोरा हे राजभाषा के सियान के-*


        नवम्बर महीना छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के सुरता देवाथे। अभी समाचार पत्र, सोसल मीडिया के माध्यम मन ले चारों मुड़ा ले राजभाषा दिवस मनाये के शोर देखे सुने ल मिलत हे। छत्तीसगढ़ी भाखा के प्रेमी चेतलग रखवार मन के ये उदीम ह सहुंराय के लाइक हे। अउ अइसन करना घलो जरूरी हे।

        हमर छत्तीसगढ़ राज ल बने 24 बछर पूरा होगे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बनगे हे। येकर बर 28 नवम्बर 2007 के विधेयक पास होगे हे। अउ 11 जुलाई 2008 के राजपत्र म प्रकाशन घलो होगे। तब ले हमन हर साल 28 नवम्बर ला छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मनात आवत हन। हमर छत्तीसगढ़ी भाखा हा लगभग दू करोड़ मन के महतारी भाखा आय।

        छत्तीसगढ़ी जइसे समृद्ध भाखा बर ये चिंता के बात आय कि पिछले छः बछर ले हमर राजभाषा आयोग ला सियान नइ मिल पाना। इहाँ राजभाषा आयोग के लाइक कतको गुणी छत्तीसगढ़ी भाखा के पोठ साहित्यकार, कवि  लेखक मन हवे। जेमन आयोग के मुखिया बनके भाषा के बढ़वार बर ठोसहा बुता कर सकत हे। ऐमे कोई शंका के बात नइ हे। अब 66 प्रतिशत ले ज्यादा छत्तीसगढ़ी बोलइया, समझइया मन ला नवा सरकार डहन ले आस हे। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा आयोग के अध्यक्ष के चयन कर जनमन के कामना ल पूरा करँय। का ये बखत राजभाषा आयोग के सियान मिलही? 28 नवम्बर के नवा सियान के अगोरा रही।


  

                  हेमलाल सहारे

        मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगाँव

झझक

 झझक


झझक कोई बीमारी नोहे। फेर जेन मनखे ल झझक धर लेथे वोकर जिनगी हर बिमरहा ले कम नइ होवय। मनखे जेन ल देख के झझके होथे, उही नजरे नजर मा झूले लगथे। बिमरहा मनखे के बीमारी डॉक्टरी इलाज ले ठीक होये के सम्भावना होथे,फेर झिझके मनखे बर कोई दवा नइ होवय। ओकर एके इलाज हे, ओकर  हिरदे ले झिझक ल दूर करना। काम बहुत कठिन होथे फेर मुश्किल नइ केहे जा सके।

          जुन्ना समय मा मनखे मन कम पढ़े-लिखे के कारण भूतप्रेत मा गजब बिंसवास करे। तेकरे सेती कतको मनखे के मन मा बिना देखे के देखे झझक समाये रहय अउ कभू-कभू झझक परगट घलो होवय। तब सियान मन झझक दूर करे खातिर झझके मनखे के चेथी कोती ल अगरबत्ती मा आंके घलो। 

एक समय के बात हरे। सरजू के छोटकुन परिवार जेमा सरजू ओकर गोसाइन सेवती,बेटा सुदामा अउ बेटी अनुसुइया चार माई पिल्ला रहय। सरजू  दू एकड़ जमीन के मालिक घलो रिहिस। घर-परिवार के खाये-पीये बर अनाज हो जाय। बढ़िया सुखी जिनगी जियत रिहिन। सरजू अपन दुनो परानी खेती-किसानी ले उबरे तब दूसर घर के रोजी- मजदूरी घलो करे बर जाय। अउ अपन दुनों लइका मन ल पढ़ाये लिखाये। सरजू मा कोनों बीमारी नइ रिहिस। बीमारी रिहिस त बस झझके के। 

       सरजू के घर खपरा छानी रहय। बेंदरा कूदे के कारण खपरा फुटगे रहय। बरसात लगइया रिहिस। कुछ रुपिया रिहिस तेकर बिजहा धान बिसाये के कारण घर मा ये बखत आर्थिक कमी होगे रिहिस। तब सरजू टिन टप्पर कहाँ ले मंगातिस। अपन गोसाइन संग जंगल ले छिंद के पाना ला के। छानी के मरम्मत शुरू करिस। छानी छाये के समय कुछु चाबे कस जनाइस। सरजू झझके लागिस। फेर सोचिस कि छिंद के सूचका पत्ता ले गोड़ गोभइस होही। ओहर शांत होगे। छानी छाये के एक हप्ता बाद के बात आये। गर्मी मूड़ चढ़के बोलत रहय। बिजली घलो घेरी-बेरी बंद-चालू होवत रहय। गाँव देहात मा बिजली के बंद-चालू कोई नवा बात नोहे। सरजू गर्मी ले राहत पाये बर छिंद छाये परछी मा सुते सुते देखत रहय। गर्मी के कारण नींद नइ परत रिहिस। हुरहा ऊपर कोती देख परिस त ओकर नजर एक ठन मरे साँप मा परगे। सरजू सोचे लगिस कि हो न हो एक हप्ता पहिली इही साँप हर वोला चाबिस होही जेन ल वो छिंद के काँटा समझ ले रिहिस। अब सरजू मा झझक हमागे। हाथ-गोड़ काँपे लागिस। सेवती पारा पड़ोस के मन ल बुलाइस। पूछे मा सरजू इशारा करके ऊपर कोती के मरे साँप ल देखाइस। गुमान किहिस- अरे भई सरजू, वो तो मरगे हे। तैं फोकट झझकत हस। झन डर्रा। फेर सरजू के दिमाग मा तो झझक हमागे रहय। भुलातीस कइसे। तब सबो मन अपन-अपन राय देइन। कोई कहय अस्पताल ले जाओ। कोई कहय फूँक झार करवावो। घटना ल हप्ता गुजरगे रिहिस फेर कुछु नइ होये रिहिस। आज हुरहा मरे साँप ल देखिस अउ मन मा बात बइठगे कि वोला साँप चाबिस होही। बस इही सोचत-सोचत ओकर धड़कन अइसे बाढ़िस कि सरजू परलोक सिधारगे। सबो के एकेच कहना होइस कि सरजू हर साँप के चाबे  ले नहीं, बल्कि झझक मा परान तियाग दिस।


             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

              जिला-राजनांदगाँव

कुकुर के दुरगति "

 "कुकुर के दुरगति "

         कुकुर के वफादारी में शक  नी करे जा सके। कुकुर के दू परकार (किसम)के होथे ।लावारिस कुकर पालतू कुकुर ।ये दूनों ले सावधान रहना चाहि। दूनों कांटे भूंके में जब्बर रहिथे। लावारिस जेन गली गली में घूम-घूम के झूठा खाथे अऊ रतिहा म अवईया जवाईया ल भूकथे कुदाथे ।कोनो सीधवा मनखे  मिलगे त चाब घलो देथे ।कोनो इंकरे असन घेख्खर मिल जथे त इंकर दादागिरी घुसड़ जथे। कहींथे न सब जम्मो कुकुर अपन गली म शेर कस रहिथे ।कहूं ये बात सही घलो हो। 

    पालतू कुकुर मनके बाते अलग रहिथे। रोज सेम्पू में नहाथे टोस, बिस्किट ,दूध ,मलाई खाथे। ऐला प्यार ले राकी ,विक्की, शेरु कई नाम ले पुकारथे । फोकट के खवई म इंकर चरबी बढ़ जथे। तेकरे सेती ये मन मन अपन आपल बढ़ ताकतवर समझथे ।संकरी म बांधय तलवा चटईया कुकर ।अईसन कुकुर इशारा मात्र ले मरे मारे बर उतारू हो जथे ।फेर इही कुकुर जब मरथे त इंकर बसवना शरीर ला कोनो देख घलो नही। अईसन कुकर के मरे म ना अरथी निकले ना कोनो रोए गाय। वफादारी कोनो बेकार नो आय फेर कहां तक ले? भला येला कुकुर के दुरगति काहन के वफादरी। 

            ये बात अलग आए एक ठन कुकर महाराज युधिष्ठीर के संग सरग तक पहुंच गे । ये ओकर करम अऊ संगत के असर रहीस ।फेर सब कुकुर ले अइसन अपेक्षा नहीं करे जा सके। देश व समाज ला नोंच नोंच के खवईया कुकुर ले जरूर सावधान रहना चाहि।सावधानी हटिस दुर्घटना घटीस।

            फकीर प्रसाद साहू 

                फक्कड़ 

                  सुरगी

भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे* *- अरुणकुमार निगम*

 *भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे*

 *- अरुणकुमार निगम*


*"छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के औचित्य"*


आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन बर कोनो *दिवस* मनाए जाथे। जनम दिवस, लइका मन बर खुशी अउ मनोरंजन के दिवस हो सकथे फेर बड़े मन बर आत्म चिंतन अउ आत्म समीक्षा के दिवस होथे। *अतिक उमर पहागे - मँय का कर पाएँव ? कोन जाने अउ कतका दिन बाँचे हे, मोला का-का काम निपटा लेना चाही?*  एक उमर के बाद हरेक के मन मा ये दू सवाल जरूर आत होही ? अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर दिखथे फेर जउन काम बाकी हें, वोकर सूची बहुत बड़े दिखथे। अइसनो विचार आथे कि अतिक काम करे बर बाकी के जिनगी कम पड़ जाही।


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा घलो अइसने आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन होना चाही। मनखे त मनखे, सरकार तको ला ए विषय मा सोचना चाही। अपन राज्य बने 24 बछर होगे, राज भाषा बने 16 बछर होगे। अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर हे फेर असल मा जउन काम बाकी हे वोला पूरा करे बर जिनगी झन कम पड़ जाए। महतारी भाषा मा वोट माँगे जा सकथे, शालेय पाठ्यक्रम मा शामिल करे डहर ध्यान नइ जाय। सरकारी कामकाज मा प्रयोग करे डहर ध्यान नइ जाय। फेर चुनाव आही, फेर लाउडस्पीकर मा मोर संग चलव गाना बजाए जाही, फेर जइसन चलत हे, वइसने चलत रही। 28 नवम्बर के आयोजन होही। छत्तीसगढ़ी भाषा के दशा अउ दिशा ऊपर उही उही मन भाषण देहीं, जउन मन के भाषण ला हर साल सुनत हन। लंच पैकेट के वितरण होही। कविसम्मेलन होही अउ *सफलतापूर्वक समापन* हो जाही। 29 नवम्बर के अखबार मा रिपोर्ट छप जाही अउ पेपर कटिंग ला राजभाषा के फाइल मा चस्पा कर दे जाही। का इही ला औचित्य कहे जाय ?


किताब अउ ग्रंथ छपे ले औपचारिकता पूरा हो सकथे, उद्देश्य पूरा नइ हो सके। भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे। कागज के खेत मा आँकड़ा के खेती करे ले पेट नइ भर सके। खेत मे नाँगर चलही, बीजा डारे जाही, पानी के व्यवस्था करे जाही, खातू अउ दवाई डारे जाही तब फसल काटे बर मिलही अउ पेट हर भराही। ये एक लम्बा प्रक्रिया आय। सरलग निगरानी चाही। भाषा के बीजा बर मनखे मन खातिर सबसे उपजाऊ खेत प्राथमिक शाला आय अउ सरकार बर सरकारी ऑफिस आय। कुछु सार्थक काम करे बर महतारी भाषा ला प्रायमरी स्कूल के पाठ्यक्रम मा शामिल करना पड़ही। सरकारी लिखा पढ़ी महतारी भाषा मा अनिवार्य करना पड़ही। परिपत्र निकाले से कुछु नइ होने वाला हे। एक किसान असन ये दुनों खेत के निगरानी करना पड़ही। परिणाम कागज मा नइ, परिवेश मा दिखना चाही। ये काम चालू हो जाही तब मानकीकरण अपनेआप होना शुरू हो जाही। साहित्यकार अउ लोक कलाकार मन अपन काम पूरा निष्ठा अउ मनोयोग से करत हें। अब छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा सरकार ला छत्तीसगढ़ी भाषा बर आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन करना चाही। दिवस मनाए के औचित्य तभे पूरा होही। 


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के शुभकामना।


*अरुण कुमार निगम*

राज भाषा छत्तीसगढ़ी कइसे आघू बढ़ही?

 राज भाषा छत्तीसगढ़ी 

कइसे आघू बढ़ही?


राज्य तो बनगे छत्तीसगढ़ l

ओकर भाखा ला राज भाषा  राज्य ह बना दीस l केंद्र म जाके अटक गे  कइसे ओला भाषा के दर्जा मिलही? 

उहू विषय म अपन पक्ष ले विचार दे दिये गये हे, ओला मानही कब? गुने ला परगे l 

         हमर भाखा महतारी भाखा हे हमला का करना हे?

अइसन कहे म बात कइसे बनही l

जन भाषा हे तभो ले अतेक गोहार पारे ला काबर पड़त हे?सोचे के बात हे l 

पूरा छत्तीसगढ़ म बोलत हन सुनत समझत  हन l  फ़ेर लिखत हन  लिखावत हे अउ बाकी मन काबर नई लिखय? सरकारी काग जात के आवेदन ल  l हमला अइसन बूता ला करना हे l छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी विज्ञापन /विग्यप्ति भी निकाल के देखय l 

   नान्हे लइका के मन के पढ़ाई ल

शुरू ले हमर भाखा म  कर दिये जाय l पढ़बो पढ़ाबो लिखबो  लिखाबो  सब होही l

मानकी करण होगे हे दिक्क़त घलो नई हेl 

कोनो विधा अब बांचे नई हे जेमा जोरदरहा नई लिखाये हे l

पोठ लिखत हे बढ़िया लिखे बर उमहियावत हे फ़ेर आयोग बने सरेखा नई कर पावत हे l

  जेन ओकर दुवारी म जात हे तेने ला चिन्हथे l जतका अखवार हे भाखा बर पन्ना देहे l विशिष्ट अंक निकालत हे सुगघर सुगघर रचना छापत हे रचनाकार मन के बढ़वार होवत हे l आयोग काला सकेले हे  का सकलवत हे उही जानही? फेर लिखय्या मन हताश नई हे l प्रिंट मिडिया वाले मन गर्व से कहत हे भाखा के जतन हम करत हन l भाखा दिवस के बधाई हम उही मन ला पहिली देबोन l छत्तीसगढ़ी म कतका झन बने लिखत  हे छपत हे,छपवावत हे अपन पुस्तक तेखर मन के बनाये होही सूची त आज उजागर करय आयोग  भाखा दिवस बेरा म l

एखर ले उंकर बूता दिखही घलो अउ रचनाकार मन आघू आही उत्साहित होही, बढ़वार  होही l आयोग  बूता करय  

हर विधा म लिखवाये के l नवा नवा उदिम करय  लिखय्या मन ला मान दय सम्मान दय l 

थोर बहुत अइसने लिखा जथे उपराहा झन लेहू l अंचिनहार हन आयोग बर  l भाखा दिवस हमू मनावत हन सुरता आगे आयोग के l आज जाने ला मिलही l

भाखा दिवस के अंतस ले आप सबो सियान जवान भाई दीदी मन ला बहुत बहुत  

बधाई l 


 तुहरेंच 

मुरारी लाल साव 

सियान सदन कुम्हारी

लघुकथा) *मोहल्ला के भाई*

 (लघुकथा)

*मोहल्ला के भाई*

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असो पहिली बार होये हे के तीजा मनाये ला  मइके आये सावित्री ला अपन ससुराल लहुटे मा अठुरिया ले जादा होगे हे।लइका मन के स्कूल हा तको खुलगे।आन साल वो हा बासी खाये के बिहाने दिन वापिस आ जवत रहिसे। वोकर गोसइया जितेंद्र ले बर आवय नहीं ते मनहरण हा अपन बेटी ला अमराये बर आ जवय फेर ये साल नवा-नवा रेडीमेड के दुकान खोले जितेंद्र हा पहिली ले चेता दे रहिसे के मैं हा असो ले बर नइ आ सकवँ--  बाबूजी ला कहि देबे वो हा तोला छोड़ दिही।

सावित्री के ससुर हा तको तीजा लिहे बर आये वोकर बाबू मनहरण ला कहे रहिस--" समधी जी! आपे मन तीजा के एक-दू दिन पाछू छोड़े ला आ जहू।नाती के स्कूल खुल जा रइही पढ़ई-लिखई मा नुकसान झन होवय। आपके गाँव हा इहाँ ले अस्सी-नब्बे किलो मीटर दूरिहा एकदम इंटेरियल में बसे हे।फटफटी के छोड़ आये-जाये के कोनो साधन नइये नहीं ते महीं हा आ जातेंव फेर वोतेक दूरिहा फटफटी नइ चला सकवँ।"

        पाछू दू-तीन दिन ले सावित्री हा बनेच परेशान हे। तीजा के बिहान दिन ताय वोकर बाबूजी मनहरण के एक्सीडेंट मा पैर के हड्डी टूटगे तेकर सेती प्लास्टर चढ़े हे। गाड़ी चलइ तो दूरिहा हे हले-चले तको नइ सकय।अब पहुँचाये बर जावय ते जावय कोन? सास ससुर अउ जितेंद्र हा नराज होगे होहीं अइसे सोच-सोच के वो अबड़े परेशान हे। वोकर चिंता ला भाँपके वोकर दाई हा कहिस--" बेटी !तैं जादा परेशान झन हो। हमर मोहल्ला के बाबू धर्मेंद्र ला कहि देथँव वोहा अपन गाड़ी मा काली बिहनिया ले तोला पहुँचा देही।वोकर खर्चा-पानी ला दे देहूँ।"

हव दाई मैं बिहनिया ले झटकुन तइयार हो जहूँ। वोला चेता दे रहिबे गाड़ी ला बने चलाही।

      ग्यारा बजे रहिस होही सावित्री हा अपन ससुराल पहुँचगे। धर्मेंद्र हा चाय पियिस तहाँ ले लहुटगे। सावित्री ला जनइस के सास हा बने बोलत नइये।ससुर हा तको गुसियाये बानी लागत हे।

    अचानक वोकर ससुर हा पूछिस-- "वो कोन टूरा ये जेन तोला छोड़े ला आये रहिस। तोर ददा नइ आइच का?"

 " बाबूजी के एक्सीडेंट होगे हे तेकर सेती फटीफटी नइ चला सकय। आये रहिसे तेन हा हमर मोहल्ला के भाई ये।"--सावित्री बताइच।

" अच्छा आजकल मोहल्ला मा तको भाई होथें का?" गुस्सा मा सवालिया नजर ले देखत ससुर जी कहिस।

वोकर बात ला सुनके सावित्री अवाक रहिगे।


चोवा राम वर्मा ' बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

लघुकथा - भोरहा

 लघुकथा -

             भोरहा 

दूनो बइठ के गोठियावत रहिस  परेमा अउ परभू l

बचपन के दोस्त हे l मिलगे अचानक छट्टी के कार्यक्रम म l 

छट्टी घर म का होथे कांके पानी 

लइका देखई अउ नेग  देवाई l

सगा पहुना संग मिल भेंट  गोठ बात अउ हाल चाल पूछई l

बेरा कती जाथे  गम नई मिले l

परभू -" सुरता नई करस मोला l" तै मोला सुरता करे हस l"

" सुरता करके का करबे, तहूँ अपन घर म मस्त  l महूँ अपन घर म तरस्त l"

"का तरस्त? तरसे ले जिनगी नई चलय l"

परभू -"परेमा, प्रेम ला सब नई जानय l पूछथे भर आपस म हे कि नहीं, ओ तो दिखथे l"

परेमा -" दिखय नहीं लोगन देखथे,भरम भूत  म l"

परभू -" बने बने हस ना l"

"बने बने हे सब फ़ेर सुरता आथे भोरम देव घुमाये हस तेन l" परभू -थोकिन मुड़ी हलावत 

" भोरहा म झन रहिबे  पूरा जिनगी म सीखे जाने के गुर हेl प्रेम अउ काम अलग अलग हे l' परेमा थोकिन हाँस के 

ढाई आखर प्रेम के पढ़े.... I"

परभू हाँस के -" मूरख होय l

उही बेरा सुवासीन आगे लइका ला धर के l  तुमन का करत हव देख बाबू भुवन ला l इही नाँव  धरे गिस l बड़ सुगघर हे l 



एखरे सुरता करत रहेंन  भोरम देवl

 हमू मन ला कब दिही? परेमा l


-मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

बिंसवास

 बिंसवास


बिंसवास वो दीया आवय। जेकर अँजोर मा मनखे जिनगी भर जगमगावत रहिथे। दसों दिशा मा ओकर  सोर होवत रहिथे। बिंसवास के बिना जिनगी अँधियार होथे। बिंसवास ले बिंसवास बाढ़थे, दुश्मन घलो दुश्मनी त्यागथे। बिंसवास मनखे ल महान बना देथे, पखरा ल घलो भगवान बना देथे। जिनगी के रद्दा मा बिंसवास के होना बहुत जरूरी हे। 

             बिंसवास के बिना कोनों कारज सफल नइ होवय। कोनों भी कारज ल करे के पहिली मनखे ल अपन आप मा बिंसवास होना चाही। बिंसवास ले कतको बड़े संकट ले उबरे जा सकथे। उजड़े दुनिया मा अँजोर लाये जा सकथे। मनखे ईमानदारी से काम करके दूसर के बिंसवास जीत सकथे। जिहाँ बिंसवास होथे, उहाँ सम्मान विराजथे। मनखे ल जिनगी मा सदा बिंसवास के अँचरा ल थामे चलना चाही।

               विद्यार्थी जिनगी मा जइसे पढ़ई के महता हे, वइसने पढ़ई मा बिंसवास के घलो बड़ महता हे। बिना बिंसवास के पढ़ई समय बरबादी ही होथे। कतको पढ़ ले याद कहाँ होथे? बिंसवास के बिना कोनों अपन लक्ष्य ल नइ पा सकय। ये बात कभू नइ भुलाना चाही कि बिंसवास सफलता के निसेनी होथे। जउन मनखे के   बिंसवास तगड़ा होथे, वो सदा जिनगी मा बाजी मारथे। 

                बिंसवास मा अइसन जादू हावे कि कतको मुश्किल काम ल सहज बना देथे। तेकरे सेती बिंसवास पात्र मनखे के बात ल कोनों इंकार करे के हिम्मत नइ करे। मालिक के हिरदे ल जीतना हे, तब नौकर ल मालिक के बिंसवास पात्र बनना पड़थे। जेन नौकर अपन मालिक के बिंसवास पात्र बन जथे। वो नौकर के जिनगी मा सुखेच सुख होथे। अपन मालिक बर वइसन मनखे, नौकर नहीं, बल्कि घर-परिवार के एक सदस्य के बरोबर होथे। बिंसवास पात्र मनखे सदा मया-दुलार के हकदार होथे। 

          संसार मा बिंसवास पात्र बने बर थोरिक समय जरूर लगथे। फेर कहे जाथे न, 'कोशिश करइया के कभू हार नइ होवय।' मनखे ल सदा बिंसवास पात्र बने के कोशिश करना चाही। बिंसवास बहुत नाजुक होथे। थोरिक गलती ले टूट भी सकथे। तेकर सेती सदा ये धियान रखना चाही, कि कोनों भी परिस्थिति में ककरो  बिंसवास नइ टूटना चाही। 

       बिंसवास परिवार अउ रिश्ता के आधार होथे। बिंसवास के टूटे ले घर-परिवार मा झगरा अपन पाँव जमाये ल लगथे। सात जनम तक संग दे के वचन देवइया पति-पत्नी के रिश्ता छिनभर मा टूट जाथे। अच्छा रिश्ता बिंसवास के बिना कभू संभव नइ हे। बिंसवास पक्का होय ले घरेच-परिवार नहीं, परोसी घलो अपन घर के ताला-चाबी ल सौंप देथे। जिनगी मा बिंसवास के मोल होथे, मनखे के नहीं। 

            संसार मा बिंसवास पात्र मनखे सम्मान पाथे। लोगन मन सदा गुन गाथे। कभू धन के जरूरत पड़ जाथे तब वोला लुलवाये बर नइ परे। हर कोई बिंसवास पात्र के मदद करे बर तियार हो जाथे।मनखे चाहे तो संसार मा सबके बिंसवास ल जीत के सरग के सुख भोग सकत हे, अउ बिंसवास तोड़ के अपन जिनगी ल नरक ले बदतर घलो बना सकत हे। 

         बिंसवास कोनों दुकान मा नइ मिलय। फेर दुकान ल चलाये बर बिंसवास काफी होथे। ग्राहक ल जब ये बिंसवास हो जाथे कि फलाना दुकानदार अच्छा माल बेचथे अउ वाजिब कीमत लगाथे। तब ग्राहक वो दुकान के नाँव ल पूछत सँउहत चले आथे। दुकानदार ल घलो ये धियान रखे ल पड़थे कि कोन गिराहिक बिंसवास के लायक हे अउ कोन नहीं। बिंसवास के लायक गिराहिक ल ही उधारी दिये जा सकथे। अपन धंधा ल बनाये रखे बर दुकानदार ल बिंसवासी अउ अबिंसवासी मनखे के परख करना जरूरी होथे।

      धन के खातिर कभू ककरो बिंसवास नइ टोरना चाही। बिंसवास, धन ले बड़े होथे, धन बिंसवास ले बड़े नइ होवय। धन ल खो के दुबारा पाये जा सकत हे। फेर बिंसवास के टूटे ले दुबारा बिंसवास पात्र बनना बहुत मुश्किल होथे। 

         बिंसवास के ताला ईमानदारी के चाबी ले खुलथे। तेकर सेती जिनगी मा सदा छल-कपट अउ बइमानी ल तियाग के लोगन मन के बिंसवास जीते के कोशिश करना चाही। 


               राम कुमार चन्द्रवंशी

               बेलरगोंदी (छुरिया)

                जिला-राजनांदगाँव

पाँच करोड़* (नानकुन कहिनी) - विनोद कुमार वर्मा

 [12/3, 7:25 PM] +91 98263 40331: .           *पाँच करोड़* (नानकुन कहिनी)


                      - विनोद कुमार वर्मा 


                             ( 1 )


         दादा जी प्रादेशिक छत्तीसगढ़ी समाचार के अगोरा म आधा घंटा पहिली ले रेडियो ला चला के बइठे रहिस। अनुपूरक बजट के समाचार अवइया रहिस। छत्तीसगढ़ी भाषा के संरक्षण अउ संवर्धन बर छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन पाँच करोड़ के माँगपत्र सरकार ला सौंपे रहिन, जेमा बीस हजार आदमी मन के दस्तखत घलो रहिस। साहित्यकार मन के सोच रहिस कि ' तोप माँगबो त तमंचा तो मिलिच्च जाही!.... कम से कम एक्को-दू करोड़ तो मिलबेच्च करही। ' ए माँगपत्र बनाय म दादा जी के प्रमुख भूमिका रहिस। बजट म पैसा बढ़ जातिस त दादा जी के रसूख घलो बाढ़ जातिस। परोसी जलन के मारे कतकोन झन ला कहत रहे- ' मुख्यमंत्री करा एकर कोनो जान-पहिचान नि हे! जबरदस्ती बड़े आदमी बनत फिरत हे। एकर कस सैकड़ों आदमी मुख्यमंत्री के आघू-पाछू किंदरत हें त का सबो के काम ला कर देही ! '

      बुड़ती बेरा ' हमर हाथी हमर गोठ ' रेडियो म शुरू हो गे। दादा जी रेडियो के वाल्यूम ला बढ़ा दीस अउ लइका मन ला डाँटिस- ' इहाँ ले भाग जावव नालायकों! नइ तो पिटाई कर देहूँ! '

       फेर पाँच मिनट बाद छत्तीसगढ़ी समाचार सुनाई परिस- ' ये आकाशवाणी रायपुर हे। अब आप मन रामलाल ले समाचार सुनव।..... बिलासपुर म सिटी ई बस टर्मिनल कांप्लेक्स बर अनुपूरक बजट म 12 करोड़ स्वीकृत करे गे हे। रायगढ़ म नालंदा परिसर बिकसित किये जाही। उहाँ स्मार्ट अउ हाईटेक लाइब्रेरी बर 20 करोड़ के आवंटन करे गे हे। दुर्ग म तीन किलोमीटर के स्मार्ट रोड बर 15 करोड़ रूपिया के आवंटन अउ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग बर  ......' एही बेरा लइका मन के झगरा-लड़ाई म रेडियो के आवाज दब गे। दादा जी वाल्यूम बढ़ाय के जतन करिस त अंते-तंते बटन घुम गे अउ स्टेशन बदल के रेडियो ह घों-घों करे लगिस! थोरकुन देर बाद दादा जी मन मार के घर ले बाहिर निकलिस अउ चौंकी-परसार म बइठ गे। 

        ' जै जोहार सरपंच जी! ' परोसी के गोठ ला सुन के दादा जी हड़बड़ा गे। 

       ' सरपंच काबर कहत हस पटेल जी! मैं तो सरपंच पति हों! ' - दादा जी परोसी के कुटिल हँसी ला देख के सफाई दीस। 

         ' एकेच्च बात हे! आज के छत्तीसगढ़ी समाचार सुने हव का ? ' - परोसी के चेहरा म व्यंग के भाव रहिस। 

         ' नइ सुन पाँय पटेल जी। कुछु खास बात हे का ? '

         ' बधाई हो, आपके माँग अनुसार पाँच करोड़ रूपिया छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग बर मुख्यमंत्री जी स्वीकृत कर देहें हें!' - दादा जी चौंक गीस अउ परोसी कोती देखिस त पटेल जी दूसर कोती मुहूँ कर के मुचमुचावत रहे। 

     ' सच कहत हौ पटेल जी! आपके मुँहू मा घी-शक्कर। '

    ' अरे! मैं लबारी काबर मारहूँ। कालि के पेपर म पढ़ लिहा। '   परोसी के चेहरा ला देख के दादा जी ये समझ नि पावत रहिस कि ओकर बात ला सच माने कि झूठ!


                               ( 2 )


         दादा जी रात के आठ बजे खाना खा के सुते बर अपन कमरा म चल दीस। आज रात दादा जी ला ठीक से नींद नि आवत रहिस। सोचत रहिस- ' सचमुच पाँच करोड़ रूपिया के आवंटन हमन ला मिल जाही त का करबो?...... कतकोन पुराना छत्तीसगढ़ी ग्रंथ मन ला इकट्ठा करके रिप्रिंट करवाबो जेमन इहाँ-उहाँ परे हें अउ नष्ट होवत हें। तहसील जिला अउ राज्य स्तर मा बड़े-बड़े सम्मेलन अउ वर्कशाप करइबो। छत्तीसगढ़ी लिखइया साहित्यकार मन ला खाली प्रमाणपत्र अउ मोमेन्टो देके सम्मानित नि करन बल्कि  ओकर साथ धनराशि घलो देबो। ........' अइसने कतकोन बात सोचत-सोचत दादा जी के नींद परगे। 

       दूसर दिन अखबार आइस त दादा जी ला कोनो मेर शुभ समाचार नि दिखिस। चौंकी-परसार म बइठे-बइठे सबो पन्ना ला दू-तीन बार पलट दारिस। 

        ' सातवाँ पेज के नीचे कोती ला देखव। आप मन के नानकुन समाचार छपे हे! ' - परोसी के व्यंग भरे आवाज सुनाई परिस। ये हा छाती म मूँग दरे वाला बात रहिस! अब परोसी घलो चौंकी-परसार म आ के बइठ गे! 

        दादा जी साँतवा पेज ला पलट के देखिस त नानकुन समाचार छपे रहय - ' छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कर्मचारियों-अधिकारियों को वेतन देने के लिए पैसे कम पड़ रहे थे इसलिए अनुपूरक बजट में 20 लाख रूपयों का आवंटन किया गया है। '

         दादा जी मने-मन परोसी ला गारी दीस- ' हरामी कालि झूठ बोले रहिस! अउ अभी मोर  मुड़ उपर आ के बइठे हे! '- फेर  दादा जी के चुचुवाय मुँहू ला देखत परोसी मुचमुचावत खिसक गे। एही देखे बर तो कालि लबारी मारे रहिस! हस्ताक्षर अभियान म परोसी पटेल जी घलो शामिल रहिस फेर दादा जी के धुर बिरोधी रहिस। एकर एक कारण एहू रहिस कि सरपंची चुनाव म परोसी के घरवाली हारे रहिस तेकर सेती बेरा-बेरा म दादा जी ला टोंचे त ओला मानसिक सुख मिले। 

          थोरकुन देर बाद ये सोचत-सोचत दादा जी के मन हा कलपत रहिस अउ पीरा म भर के आँसू टपके लगिस कि हमर छत्तीसगढ़ी भाषा ह एक ठिन स्मार्ट रोड के पुरता घलो नि हे!

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[12/4, 7:14 PM] ओम प्रकाश अंकुर: आदरणीय विनोद वर्मा जी आप मन "पांच करोड" कहिनी के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी, छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के संगे- संग बजट के कमी के कारण छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दुर्दशा के सजीव चित्रण करे हावव।

अभी संस्कृति विभाग के अधीन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के स्थिति अउ सोचनीय होगे हावय। सिर्फ कवि, लेखक मन के किताब ह छपत हे। कृतितकार मन ल बस बीस किताब देय जावत हे जउन ह 'ऊंट के मुंह म जीरा' बरोबर हावय। बेचारा कवि,लेखक मन अपन किताब ल कोन ल देय अउ कोन ल नइ देय थथमरा गे हावय। साहित्ययिक आयोजन बर संस्कृति विभाग के पास एको कनक बजट नइ हे। आवेदन देते सात संस्कृति विभाग के सचिव के एके टप्पा बोल रहिथे -" हमारे संस्कृति विभाग के पास साहित्यिक आयोजन के लिए बजट ही नहीं है। हम कुछ नहीं कर सकते?" 

पाछू छै बछर ले छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के स्थिति एकदम खराब होगे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग डहन ले जउन प्रांतीय सम्मेलन होय वहू ह बंद होगे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के कुर्सी ह छै बछर ले अपन अध्यक्ष के अगोरा करत छटपटावत हे कि कब तक मोर हीनमान होवत रहि। छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के आत्मा ह कलपत हे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ल एक स्वतंत्र संस्था होना अब्बड़ जरूरी हे। संस्कृति विभाग के अधीन रहिते छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग   अउ छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन ल बने मान -सम्मान नइ मिल सकय।28 नवंबर के दिन छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस म माई पहुना के रूप म पधारे मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय जी ह छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ल एक स्वतंत्र संस्था के रूप म राखे जाहि कहिके घोषणा करे हावय। देखव एला कब लागू करते! छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष पद म नियुक्ति घलो बहुत जरूरी हे। पाछू सरकार ह पांच बछर म कोनो ल अध्यक्ष नइ बना के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग अउ छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन ल अब्बड़ नुकसान पहुंचाइस। यहू सरकार ल बछर भर होगे। अब सुनई देवत हावय कि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ल जल्दी अध्यक्ष मिल जाहि। बने बात हे। सबो छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन ल अपन मुखिया के अगोरा हे। काकरो मुंड़ म पागा बंधा जातिस त छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के काम काज म अउ बढ़वार होतिस। नानकुन कहिनी के माध्यम ले बेवस्था पर जमगरहा चोट करे हावव।🙏🏻🙏🏻🌷🌷🌹🌹

कहानी: बड़ोरा


कहानी: बड़ोरा

पोखन लाल जायसवाल

        मनखे रोवत आथे त दुनिया हाँसथे। जब जाथे, त दुनिया ल रोवा के जाथे। दुनिया के ए  आवाजाही म मुठा बाँधे आथे अउ हाथ पसारे जाथे। बँधाए मुठा अइसे लगथे कि कोनो बड़का संकलप ले के मनखे आय हावे। पसारे हाथ बताथे कि भगवान मोर ले चूक होगे। जम्मो संकलप ल भुलागेंव। मोला क्षमा दिहा भगवान!। मैं तोर सरण मं आवत हँव। मोला तार दिहा... भग...वान।

        मनखे भवसागर मं आ घमंड करे लगथे। नाना परकार के घमंड मं ओहर पाँव ले मुड़ी जात सना जथे। सब कुछ इहें के आय अउ इहें च रहि जाना हे। तब ले घमंड मं बुड़े मनखे खुद ल भगवान ले बड़े समझे धर लेथे। रुपवान अउ धनवान होगे त तो अउ ....भुला जथे कि रूप चार दिन के चाँदनी फेर अँधियारी रात सहीं होथे। पइसा तो हाथ के मइल आय। अभी हे, त हे...नइ.. ते...भइगे। एक बड़ोरा आथे अउ सबो... उड़ा जथे। कुछु नइ बाँचय। मनखे के जिनगी घलव दुख-पीरा के बड़ोरा ल ठेलके आगू बढ़थे। 

        जिनगी ल चलाय बर धन दौलत जरूरी हे। फेर जतिक भी नगदी रहिथे, वो कब खिरथे, कुछुच पता नइ चलय। इही बात आय कि लोगन 'चल' ले जादा 'अचल' सम्पत्ति ल मान देथें। नगदी थोरको जादा होइस कि गहना-गुँठा अउ जमीन म लगा देथें। जउन ह अड़चन घरी काम आथे। दू पइसा आगर देथे, वो अलगे...निमगा ठगे तो नइ। एकर रेहे मनखे संबल पाथे। दूसर मेर हाथ फैलाए के नौबत नइ आवय। फेर... गरब घलव करथे। बिरथा के गरब। तहान घमंड।

        लोगन समधी सजन के नता जोरत खानी घर-कुरिया अउ खेती के हिसाब लगाथें। एक किसम ले जुरत नता बर सुरक्षा निधि होथे। सुरक्षा निधि। जमीन सबो झन बिसा तो नइ सकँय, त गहना-गुँठा कोति चेत करथें। सुनहर अउ रमसीला सोनार दूकान गे रहिन। बहू बर गहना बिसाए। बिहाव के अकताहा बिसा-बिसा के राखत हावँय। कोनो भी बड़का कारज के जोरन अइसने तो धीरे-धीरे जोरे ल परथे। दू दिन के काज रही, फेर ओकर जोगासन  बर कतको दिन पूर जथे।

       हाँ ! सुनहर तो नाँव हावे, सियान कका के। रेगहा-कुता मिला के पाँच छे एकड़ के किसानी कर लेवय ओहर। ओकर संग म वोकर गोसाइन रमसीला काकी घलो बने मरे-जिए ले कमावय। खेती अपन सेती, नइ ते नदिया के रेती। इही गोठ ल जिनगी म गठरी बाॅंधे दूनो परानी रात-दिन खेते च म गड़े राहय। अपन दूनो लइका ल बने चेत करके पढ़ाइन। अब तो हाई स्कूल खुल गे हावय, गाॅंव म। वोकर पढ़े के दिन म प्राइमरी स्कूल के रहे ले पांचवी भर पढ़ पाय रहिस हे,वोहर। तहान ले बइला-भैंसा चराय म भुलागे। ...तब वोकर बबा मन पाँच भाई रहिन। बँटावत-बँटावत सब बँटागे। माया अउ मया दूनो खिरे लग गे। बाँटे भाई परोसी बनगिन।....सुनहर तिर आज चार एकड़ हावय। दू एकड़ ल बिसाये हे अउ दू एकड़ पुरखौती के आय। ओकर ददा मन दू भाई रहिन। वहू मन पाय बाँटा ल मिहनत के परसाद एक ले दू एकड़ करे रहिन। सुनहर कका अपन बाप के इकलौता हरे।

       सुनहर कका कमती पढ़े हावे त का होगे? पढ़ई के मरम ल जानथे। तभे तो दूनो बेटा कोति बने धियान दिस। उॅंकर मन भर उन ल पढ़ाइस। सबे च ल नौकरी मिल जाय, अइसे कहाँ संभव हे।

       सबो पढ़ाथें। जतका झन पढ़थें, सरकारी नौकरी बर परीक्षा घलाव देथें। फेर... नौकरी पाये बर मेरिट लिस्ट म ऊपर आय ल पड़थे। तब कहूँ नौकरी पक्का होथे। नौकरी पक्का होय ऊप्पर ले खेल घलव होथे। पोस्टिंग के खेल। उत्ती के ल बुड़ती मुड़ा। रक्सेल के ल भंडार छोर। माने ...जिला बदर। जइसे सौदा नइ करइया ह ...कोनो ...अपराधी आय।... मुख्य लिस्ट...फेर ... वेटिंग...जम के खेल। वेटिंग लिस्ट म घालमेल के गुंजाइश बनावत अफसर मन बड़ चतुरई करथें।...जेकर ले कुछ के जिनगी म घुप्प ॲंधियारी हो जथे। 

       अब के दाई-ददा मन पढ़ई-लिखई के नाॅंव म लइका ले कोनो बुता नि करावॅंय। सबो खेती किसानी ले दुरिहा रहय कहिके सोचथें। अइसन म आखिर खेती कोन करही? यहू सोचे ल परही। अब के लइका मन तो आड़ी-काड़ी नि करॅंय। कटाय अँगरी म नइ मूतँय। जिहाँ खेले कूदे रही, पछीना बोहाय रही, तिहाँ बर मनखे के हिरदे म जुड़ाव रही। मोर आय कहिके लगाव रही। नइ ते खेती भुइयाँ माटी के कुटका बस जनाही। जब चाही तब...बेच... खाही।

       एक समय रहिस, जब लइका मन रोपा लगाय जावॅंय। रोपा लगई के पइसा ले कापी-किताब बिसावॅंय। गणपति पूजा करॅंय। धान लुवई घरी बोझा डोहारॅंय। सिला बिनॅंय। वहू ल स्कूल जाय के पहिली अउ स्कूल ले आय के पाछू। सिला बिने धान के मुर्रा अउ मुर्रा लड्डू दूनो बिसावँय। जादा बिने ले कोनो चिन्हारी बिसावँय। बढ़ोना मिला के उखरा पाँव बर बने सरिख जूता-चप्पल लेवँय। गाँव-गँवतरी जाए बर कपड़ा लत्ता। अब के लइका मन टीवी अउ मोबाइल म मुड़ी गड़ियाय रहिथें। जड़ ले कटत हावँय। अइसन म खेती-बुता जानॅंय, न अउ आने बुता ल जानँय। तव जिनगी तो ॲंधियार होबेच करही। तइहा के बात ल बइहा लेगे। 'जनम दे हे ल जाने हन, करम ल थोरे देबोन', कहिके पिंड छुड़ाय नइ जा सकय। करम करे बर सिखाय ल परही...वहू ल नेक करम। नइ ते अपने लइका बिन मारे मरही। हमीं ल पदोही...हमरे मुड़ म मुतही। पक्का हे। एक दिन हमर जाँगर थकही त उन ल कमाय बर परही। यहू बात आजे बताय के हे।

०००

          कमा-कमा के जाँगर एक दिन थकबे करथे। अउ उमर जइसे-जइसे खिरकत जाथे, अपन परभाव दिखाबे करथे। जाॅंगर जुवाब देहे ल धर लेथे। घंटा दू घंटा के बुता करिस, तहान थके लगथे। मउसम बदलिस नहीं के, फट ले जुड़-खांसी घलव अपन डेरा बना लेथे। अइसने सुनहर के थके जाॅंगर उमर के संग जवाब दे ल धर ले राहय। रमसीला काकी के बुता अउ बाढ़े लगिस। कभू-कभू दूनो झन मं खटपिट होवय। 

        "महूँ ल थकासी लागथे। तहीं भर नइ कमावस। महूँ ह कमाथँव। मोरो जाँगर थकथे। मैं तो बाहिर ले आके, घर म घलव खटथँव।" रमसीला काकी के कहना सोला आना आय। ओकर तन ह लोहा-पखरा के तो नइ बने हावय, के नइ थकही। थकबे करही।

        मशीन गरम झन होवय, कहिके चलत मशीन ल थोकिन बंद करथे। जुड़ावन दे कहिथें। जब मनखे ल मशीन के अतिक संसो रहिथे। त रमसीला काकी के अपन बर संसो करई कोनो गलत नइ हे। सबो ल सुरताय बर लागथे। रमसीला काकी सुरताना चाहथे त एमा ओकर का दोष? 

       रेगहा-कुता के तीन एकड़ खेती जेकर भरोसा कभू कखरो आगू हाथ फैलाय के नौबत नइ आइस। ढलती उमर मं जाॅंगर थके ले उही खेती अब अजीरन लागत हावय। 

        बने होइस कि दू बछर पहिली खेत मालिक किसुन ह शहर ले लहुटे पाछू कुता के दू एकड़ खेती के सौदा वापिस ले ले रहिस। जेन ह अपन परोसी के दू एकड़ सँघार के बने मन लगा के किसानी करत हावय। शहर मं मोटर-गाड़ी, राइसमिल अउ बड़े-बड़े कारखाना मन के धुँगिया, मच्छर अउ नाली के बस्सउना हवा नइ सहाइस। गाँव के शुद्ध हवा मं रहइया किसुन घेरी-बेरी बीमार परे लगिस। जतका कमाय, ततका दवा-दारू मं लग जावय। हाथ कुछ नइ बाँचत राहय। दूनो परानी म मनमुटाव बाढ़े लगिस। जिहाँ पइसा-कौड़ी के खॅंगती होथे, उहें उटका-पैरी अउ झगरा होथे। घर के सुमता(एका) छरियाय लागिस। किसुन सुजानिक रहिस। ओला समझ मं आगे रहिस कि शहर आके ओहर बड़ जंजाल म फॅंसगे हावय। बड़ बिचारिस। एकर ले मोर गाॅंव बने हे। इही बिचार संग एक दिन शहर ले अपन गाँव, अपन छाॅंव लहुट के आगिन। जब ले शहर ले लहुटे हावँय, उँकर जिनगी सुलिनहा लागत हे। उँकर जिनगी के हाँसी-खुशी लहुट गे हे। दिन बने-बने बीते लगिस। झगरा के नाँव बुता गे हावय। जउन ह शहर म उँकर जिनगी म जहर-महुरा घोरत रहिस।

०००

       .... सुनहर अउ रमसीला अपन दूनो बेटा के बिहाव के सोचे लगिन। दू-चार जघा बात जनाय रहिन। कहूँ मेर बने सरिख नोनी होही त आरो देहू। तीन-चार महीना बीत गे कहूँ कोति ले कोनो सोर नइ आइस।... परोसी दरी साँप नि मरय, कहि सुनहर दू-चार झिन सगा घर गिस। पूछिस। फेर कहींच कोनो आरो नइ मिलिस। ...चार महीना बर बिहाव के नेत नइ जम पाइस।.....आसो ले दे के दूनो बेटा बर नोनी मिल पाइस। सिरतोन बिहाव ह कोनो ठठ्ठा दिल्लगी नोहय। संजोग वाले होहीं, तिंकरे चप्पल बिहाव के नाँव मं नइ घिसावत होही। दूनो डाहर ले तार जुरई बड़ मुश्किल आय। कोनो खेल-तमाशा अउ घरघुंदिया नोहय, बर बिहाव ह। जे ल मन नइ आय म दू चार दिन बाद बिझार दे। 

         सुनहर बहू खोजत ले थक गे रहिस। बड़ परेशान हो गे रहिस। संसो मं दुबराय ल धर ले रहिस। ...कहूँ मेर सुनहर के मन आवय, त बेटा मन के मन नइ आवय। कहूँ मेर दूनो के मन आतिस, त लड़की वाले मन ल मन नइ आय। कभू दूनो कोति जमे बानिक लगय त बात रास-बरग मं आ के अटक जय। कुछ न कुछ बाधा परय। अइसे-तइसे माघ ले चइत बीत गे। 

        गाँव के मनखे मन, जे मन म आवय ते गोठ करँय। जे मुँह, ते गोठ। लोगन मन गोठियाय लागिन कि सुनहर ह बने दाइज डोर के लालच म बने बने नता ल हीनत हावय। हड़िया के मुँह ल परई म तोप लेबे, फेर मनखे के मुँह ल कामा तोपबे? .....लगती बइसाख म सिध परिस।

       .... बिहाव के दिन आइस। बड़ धूम-धड़ाका ले बिहाव होइस। इंजीनियरिंग करे बेटा के आघू सुनहर के एक नइ चलिस। पइसा ल पानी बरोबर बोहावत गिस। गाँव-गोढ़ा म जइसन कभू नइ होय राहय, तइसन करिस। बफर सिसटम म खवाना। गाँव म नेंग-जोंग के बेरा गड़वा बाजा...बरात बर डीजे। बरात बर दर्जन भर गाड़ी। बरतिया मन के पूरा खियाल। जेन ल जे चाही, उही ब्रांड के...। साज-सज्जा के तो पूछ झन। महाराजा सेट।... कुछू बर टोंकय त बेटा काहय- "शादी एक बार होनी है, बार-बार नहीं। लोग क्या कहेंगे? एक इंजीनियर की शादी और...." मोबाइल के घंटी बाजे ले बात ल आधा ए छोड़ मोबाइल म भुलागे।  

       सुनहर ह बेटा के गोठ सुन.. बुदबुदाइस भर। "पइसा कमाबे तब पता चलही बाबू.... कतिक मिहनत ले पइसा आथे।....बाप के कमई उड़ाय म का जियानही।" आज सुनहर के मन टूट गे राहय। बिहाव के नाँव ले उपरछवा हाँसत भर हावे। भीतर ले बड़ रोवत हे। रोही काबर नहीं, जब लहू-पछीना के कमई पानी सहीं बोहावत रही अउ चाह के सकला नइ कर पाही।

०००

       ....सुख के छइहाँ म समय कब बीतथे, पता नइ चलय। दुख के घाम रहे ले एक छिन ह बड़ जियानथे। काटे नइ कटय, चाबे ल कुदाथे। घाम रहय ते छाँव, जिनगी तो जिए ल परथे। रो के जी, चाहे हाँस के। जिए के नाँव तो जिनगी आय। समय निकलत गिस। मुठा म हमाय रेती बरोबर।

         बहू हाथ के पानी पिए के साध, साध रहिगे, सुनहर अउ रमसीला के। दू महीना बीते नइ पाइस। अवई-जवई नइ जमत हे, कहिके बड़े बेटा-बहू शहर के रस्ता धर लिन। 

         छोटे बेटा बड़े बेटा ले जादा खर निकलिस। जेन ह नज़र मिला के गोठ नइ कर सकत रहिस। ओकर मुँह उले लगिस। उछरत हावे। आगी ले अँगरा ताव दिखावत हावे। 

       "मोर नाँव के खेती ल मैं सौदा कर डारे हँव। रायपुर म फ्लेट बिसाहूँ कहिके। उहें कमाहूँ-खाहूँ, खेती म का धरे हावय? कागज पत्तर ल कति लुकाय हस, तेन ल दे देबे मोला। नइ ते मेंह थाना-कछेरी के रस्ता रेंगाहूँ। घी निकाले ल आथे मोला।"

          रजधानी म राहत दू साल होय हे बाबू ल, उहाँ के हवा लग गे। गाँव के धुर्रा-माटी ल भुलागे। अउ खेती सोन के अंडा होगे। जेन ल बेच फ्लैट के सपना म सवार हे। वाह रे कलजुग... दू नया पइसा नइ लगाये ए अउ खेती के मालिक बनगे...।

         सुनहर के भरम टूटगे। बड़ गरब रहिस दू झिन बेटा हावे कहिके। ...ओकर संग का होवत हे? समझ नइ पावत हे। का सोचे रहिस अउ का होवत हावे? काँहीं च समझ नइ आवत हे ओला। बिहाव पाछू मुड़ ऊपर चार लाख रूपया के चढ़े करजा ....

         मोहलो-मोहलो म बहू मन बर गहना-गूँठा बिसाय रहिन। सबो अइसन करथें। का जानय अइसन होही? भल ल भल समझत सपना सँजोय रहिन हें दूनो परानी। थोर बहुत राखे पइसा घलव खिरक गे राहय। संसो बाढ़े लगिस। कभू करजा ल जाने नहीं, तउन आज करजा म लदा गे हे। खपलाए करजा ए। बेटा मन तो हाथ खींच ले हावय। खेती भरोसा करजा उतारे परही। 

         संसो म बुड़े गुनान करत हावे कि बिसाय जमीन ल हाथ ले बिहाथ कर डारेंव। मोर आँखी मूँदे पाछू बेटा मन के होबे करतिस। अभी मोर नाँव म रहितिस त मोर बियाय लइका मोला आँखी नइ दिखातिस। बस इही गोठ रहिगे-अब पछताए का होत हे, जब चिरई चुग गे खेत।

        सुनहर अपन लहू-पछीना के कमई ले बिसाये दूनो एकड़ ल दूनो बेटा के नाँव म चढ़ाए रहिस। तब रमसीला के बरजई ल एको नइ धरिस। सरवन कुमार समझत रहिस हे ...दूनो बेटा ल। अउ निकलिन का...भुलागे रहिस कि कलजुग आय।

        वोकर जिनगी म बड़ोरा अवई ह अभी अउ बाकी रहिस। पुरखौती तीनों खेत के रस्ता चारों मुड़ा ले रुँधागे। सड़क के खाल्हे दू खेत पार के खेत मन मं धन्ना सेठ अउ दलाल मन के नजर गड़े हावे। तभे तो धन्ना सेठ मन मुहाँटी ल बिसा के घेरा बंदी कर डारिन। विकास के बड़ोरा म अइसने कतको खेत परिया परत हावँय। धान के कटोरा उरकत जावत हे। गरीबी म जीयत मनखे जमीन के भाव देख चउँधिया गे हे। पुरखौती पूँजी ल बेच महल टेकावत हे। किसानी भुइयाँ नाँव ले उतरे पाछू चढ़ै नहीं, एकर कोनो ल चेत नइ हे। सब ल पइसा के धुन सवार हे। ...सड़क म आवत हावे। सड़क हे कि सुरसा बने लीले बर दाँव लगाय हे। ...फोर लेन सिक्स लेन....आज नइ ते काली... लीले बिना राहय नहीं। पक्का ए।

        आय किसानी के दिन म....। करय ते करय का? कुछु च सूझत नइ हावय। अब का होही भगवान ?...संसो सँचर गिस। इही संसो म बुड़े कब नींद परिस ते सुरता नइ हे।... बिहनिया उठथे त देखथे कि वोकर एक ठन हाथ उठत नइ हे। मुँह ले आरो नइ निकलिस। उठे के कोशिश म खटिया ले उतरत खानी भकरस ले गिर परिस। कुछु गिरे के आरो सुन रमसीला आइस त बोमफार रो भरिस। ....परोसी मन आइन। लउहा-लउहा बिगन देरी करे अस्पताल लेगिन। अटैक के संग लोकवा हे। इही तो बताइस हे। लकठा के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ह। अउ कहिस," हायर सेंटर ले जाइए।" अउ तुरते रिफर कर दिस। 

       रायपुर के प्राइवेट अस्पताल लेगिन। डॉक्टर मन सुनहर कका के हालत ल देख झटकुन आई सी यू म भर्ती करिन। ऑपरेशन करे परही काहत रमसीला काकी ले कागजात म दसखत करवाइन। आयुष्मान कार्ड के भरोसा भर्ती होगे रहिस। दू लाख रुपया अउ खर्चा आही। हाथ जुच्छा रहिस। कति ले पइसा आतिस। रमसीला खेत ल बेच पइसा दे हे के भरोसा देवाइस। अउ ऑपरेशन करे के विनती करिस, तीन दिन मं दू लाख रुपया अउ जमा करे के मोहलत मिलिस।

        बड़े बेटा अपन नाँव म चढ़े खेत बेचे बर तियार नइ होइस, त रमसीला काकी अपन माँग के लाली बचाए बर उही दलाल ल फोन करत हावे, जेन ल चारे च दिन पहिली सुनहर कका ह मोर पुरखौती भुइँया ल जीयत भर नि बेचँव कहे रहिस। दलाल ह मौका के फायदा उठाय के मूड म दिखत हावे। अनाप-शनाप रेट बोलत हावे। 

       सुनहर कका के जिनगी म आए बड़ोरा विकास के बड़ोरा आय‌। कोन जनी थमही कि नइ थमही ते? सब ल बहारत-बटोरत उड़ा के, तो नइ ले जही, ए बड़ोरा बैरी ह? बड़ोरा के मन म काहे ? कोन जानत हावे? 

       कुछु होवय रमसीला काकी ल ए बड़ोरा थमे के अगोरा हावे। वोकर अंतस् ले एके आवाज आवत हे- ए बड़ोरा उँकर जिनगी ले जुच्छा हाथ लहुटही।

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पोखन लाल जायसवाल

पलारी (पठारीडीह)

जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग.हाँसथे। जब जाथे, त दुनिया ल रोवा के जाथे। दुनिया के ए  आवाजाही म मुठा बाँधे आथे अउ हाथ पसारे जाथे। बँधाए मुठा अइसे लगथे कि कोनो बड़का संकलप ले के मनखे आय हावे। पसारे हाथ बताथे कि भगवान मोर ले चूक होगे। जम्मो संकलप ल भुलागेंव। मोला क्षमा दिहा भगवान!। मैं तोर सरण मं आवत हँव। मोला तार दिहा... भग...वान।

        मनखे भवसागर मं आ घमंड करे लगथे। नाना परकार के घमंड मं ओहर पाँव ले मुड़ी जात सना जथे। सब कुछ इहें के आय अउ इहें च रहि जाना हे। तब ले घमंड मं बुड़े मनखे खुद ल भगवान ले बड़े समझे धर लेथे। रुपवान अउ धनवान होगे त तो अउ ....भुला जथे कि रूप चार दिन के चाँदनी फेर अँधियारी रात सहीं होथे। पइसा तो हाथ के मइल आय। अभी हे, त हे...नइ.. ते...भइगे। एक बड़ोरा आथे अउ सबो... उड़ा जथे। कुछु नइ बाँचय। मनखे के जिनगी घलव दुख-पीरा के बड़ोरा ल ठेलके आगू बढ़थे। 

        जिनगी ल चलाय बर धन दौलत जरूरी हे। फेर जतिक भी नगदी रहिथे, वो कब खिरथे, कुछुच पता नइ चलय। इही बात आय कि लोगन 'चल' ले जादा 'अचल' सम्पत्ति ल मान देथें। नगदी थोरको जादा होइस कि गहना-गुँठा अउ जमीन म लगा देथें। जउन ह अड़चन घरी काम आथे। दू पइसा आगर देथे, वो अलगे...निमगा ठगे तो नइ। एकर रेहे मनखे संबल पाथे। दूसर मेर हाथ फैलाए के नौबत नइ आवय। फेर... गरब घलव करथे। बिरथा के गरब। तहान घमंड।

        लोगन समधी सजन के नता जोरत खानी घर-कुरिया अउ खेती के हिसाब लगाथें। एक किसम ले जुरत नता बर सुरक्षा निधि होथे। सुरक्षा निधि। जमीन सबो झन बिसा तो नइ सकँय, त गहना-गुँठा कोति चेत करथें। सुनहर अउ रमसीला सोनार दूकान गे रहिन। बहू बर गहना बिसाए। बिहाव के अकताहा बिसा-बिसा के राखत हावँय। कोनो भी बड़का कारज के जोरन अइसने तो धीरे-धीरे जोरे ल परथे। दू दिन के काज रही, फेर ओकर जोगासन  बर कतको दिन पूर जथे।

       हाँ ! सुनहर तो नाँव हावे, सियान कका के। रेगहा-कुता मिला के पाँच छे एकड़ के किसानी कर लेवय ओहर। ओकर संग म वोकर गोसाइन रमसीला काकी घलो बने मरे-जिए ले कमावय। खेती अपन सेती, नइ ते नदिया के रेती। इही गोठ ल जिनगी म गठरी बाॅंधे दूनो परानी रात-दिन खेते च म गड़े राहय। अपन दूनो लइका ल बने चेत करके पढ़ाइन। अब तो हाई स्कूल खुल गे हावय, गाॅंव म। वोकर पढ़े के दिन म प्राइमरी स्कूल के रहे ले पांचवी भर पढ़ पाय रहिस हे,वोहर। तहान ले बइला-भैंसा चराय म भुलागे। ...तब वोकर बबा मन पाँच भाई रहिन। बँटावत-बँटावत सब बँटागे। माया अउ मया दूनो खिरे लग गे। बाँटे भाई परोसी बनगिन।....सुनहर तिर आज चार एकड़ हावय। दू एकड़ ल बिसाये हे अउ दू एकड़ पुरखौती के आय। ओकर ददा मन दू भाई रहिन। वहू मन पाय बाँटा ल मिहनत के परसाद एक ले दू एकड़ करे रहिन। सुनहर कका अपन बाप के इकलौता हरे।

       सुनहर कका कमती पढ़े हावे त का होगे? पढ़ई के मरम ल जानथे। तभे तो दूनो बेटा कोति बने धियान दिस। उॅंकर मन भर उन ल पढ़ाइस। सबे च ल नौकरी मिल जाय, अइसे कहाँ संभव हे।

       सबो पढ़ाथें। जतका झन पढ़थें, सरकारी नौकरी बर परीक्षा घलाव देथें। फेर... नौकरी पाये बर मेरिट लिस्ट म ऊपर आय ल पड़थे। तब कहूँ नौकरी पक्का होथे। नौकरी पक्का होय ऊप्पर ले खेल घलव होथे। पोस्टिंग के खेल। उत्ती के ल बुड़ती मुड़ा। रक्सेल के ल भंडार छोर। माने ...जिला बदर। जइसे सौदा नइ करइया ह ...कोनो ...अपराधी आय।... मुख्य लिस्ट...फेर ... वेटिंग...जम के खेल। वेटिंग लिस्ट म घालमेल के गुंजाइश बनावत अफसर मन बड़ चतुरई करथें।...जेकर ले कुछ के जिनगी म घुप्प ॲंधियारी हो जथे। 

       अब के दाई-ददा मन पढ़ई-लिखई के नाॅंव म लइका ले कोनो बुता नि करावॅंय। सबो खेती किसानी ले दुरिहा रहय कहिके सोचथें। अइसन म आखिर खेती कोन करही? यहू सोचे ल परही। अब के लइका मन तो आड़ी-काड़ी नि करॅंय। कटाय अँगरी म नइ मूतँय। जिहाँ खेले कूदे रही, पछीना बोहाय रही, तिहाँ बर मनखे के हिरदे म जुड़ाव रही। मोर आय कहिके लगाव रही। नइ ते खेती भुइयाँ माटी के कुटका बस जनाही। जब चाही तब...बेच... खाही।

       एक समय रहिस, जब लइका मन रोपा लगाय जावॅंय। रोपा लगई के पइसा ले कापी-किताब बिसावॅंय। गणपति पूजा करॅंय। धान लुवई घरी बोझा डोहारॅंय। सिला बिनॅंय। वहू ल स्कूल जाय के पहिली अउ स्कूल ले आय के पाछू। सिला बिने धान के मुर्रा अउ मुर्रा लड्डू दूनो बिसावँय। जादा बिने ले कोनो चिन्हारी बिसावँय। बढ़ोना मिला के उखरा पाँव बर बने सरिख जूता-चप्पल लेवँय। गाँव-गँवतरी जाए बर कपड़ा लत्ता। अब के लइका मन टीवी अउ मोबाइल म मुड़ी गड़ियाय रहिथें। जड़ ले कटत हावँय। अइसन म खेती-बुता जानॅंय, न अउ आने बुता ल जानँय। तव जिनगी तो ॲंधियार होबेच करही। तइहा के बात ल बइहा लेगे। 'जनम दे हे ल जाने हन, करम ल थोरे देबोन', कहिके पिंड छुड़ाय नइ जा सकय। करम करे बर सिखाय ल परही...वहू ल नेक करम। नइ ते अपने लइका बिन मारे मरही। हमीं ल पदोही...हमरे मुड़ म मुतही। पक्का हे। एक दिन हमर जाँगर थकही त उन ल कमाय बर परही। यहू बात आजे बताय के हे।

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          कमा-कमा के जाँगर एक दिन थकबे करथे। अउ उमर जइसे-जइसे खिरकत जाथे, अपन परभाव दिखाबे करथे। जाॅंगर जुवाब देहे ल धर लेथे। घंटा दू घंटा के बुता करिस, तहान थके लगथे। मउसम बदलिस नहीं के, फट ले जुड़-खांसी घलव अपन डेरा बना लेथे। अइसने सुनहर के थके जाॅंगर उमर के संग जवाब दे ल धर ले राहय। रमसीला काकी के बुता अउ बाढ़े लगिस। कभू-कभू दूनो झन मं खटपिट होवय। 

        "महूँ ल थकासी लागथे। तहीं भर नइ कमावस। महूँ ह कमाथँव। मोरो जाँगर थकथे। मैं तो बाहिर ले आके, घर म घलव खटथँव।" रमसीला काकी के कहना सोला आना आय। ओकर तन ह लोहा-पखरा के तो नइ बने हावय, के नइ थकही। थकबे करही।

        मशीन गरम झन होवय, कहिके चलत मशीन ल थोकिन बंद करथे। जुड़ावन दे कहिथें। जब मनखे ल मशीन के अतिक संसो रहिथे। त रमसीला काकी के अपन बर संसो करई कोनो गलत नइ हे। सबो ल सुरताय बर लागथे। रमसीला काकी सुरताना चाहथे त एमा ओकर का दोष? 

       रेगहा-कुता के तीन एकड़ खेती जेकर भरोसा कभू कखरो आगू हाथ फैलाय के नौबत नइ आइस। ढलती उमर मं जाॅंगर थके ले उही खेती अब अजीरन लागत हावय। 

        बने होइस कि दू बछर पहिली खेत मालिक किसुन ह शहर ले लहुटे पाछू कुता के दू एकड़ खेती के सौदा वापिस ले ले रहिस। जेन ह अपन परोसी के दू एकड़ सँघार के बने मन लगा के किसानी करत हावय। शहर मं मोटर-गाड़ी, राइसमिल अउ बड़े-बड़े कारखाना मन के धुँगिया, मच्छर अउ नाली के बस्सउना हवा नइ सहाइस। गाँव के शुद्ध हवा मं रहइया किसुन घेरी-बेरी बीमार परे लगिस। जतका कमाय, ततका दवा-दारू मं लग जावय। हाथ कुछ नइ बाँचत राहय। दूनो परानी म मनमुटाव बाढ़े लगिस। जिहाँ पइसा-कौड़ी के खॅंगती होथे, उहें उटका-पैरी अउ झगरा होथे। घर के सुमता(एका) छरियाय लागिस। किसुन सुजानिक रहिस। ओला समझ मं आगे रहिस कि शहर आके ओहर बड़ जंजाल म फॅंसगे हावय। बड़ बिचारिस। एकर ले मोर गाॅंव बने हे। इही बिचार संग एक दिन शहर ले अपन गाँव, अपन छाॅंव लहुट के आगिन। जब ले शहर ले लहुटे हावँय, उँकर जिनगी सुलिनहा लागत हे। उँकर जिनगी के हाँसी-खुशी लहुट गे हे। दिन बने-बने बीते लगिस। झगरा के नाँव बुता गे हावय। जउन ह शहर म उँकर जिनगी म जहर-महुरा घोरत रहिस।

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       .... सुनहर अउ रमसीला अपन दूनो बेटा के बिहाव के सोचे लगिन। दू-चार जघा बात जनाय रहिन। कहूँ मेर बने सरिख नोनी होही त आरो देहू। तीन-चार महीना बीत गे कहूँ कोति ले कोनो सोर नइ आइस।... परोसी दरी साँप नि मरय, कहि सुनहर दू-चार झिन सगा घर गिस। पूछिस। फेर कहींच कोनो आरो नइ मिलिस। ...चार महीना बर बिहाव के नेत नइ जम पाइस।.....आसो ले दे के दूनो बेटा बर नोनी मिल पाइस। सिरतोन बिहाव ह कोनो ठठ्ठा दिल्लगी नोहय। संजोग वाले होहीं, तिंकरे चप्पल बिहाव के नाँव मं नइ घिसावत होही। दूनो डाहर ले तार जुरई बड़ मुश्किल आय। कोनो खेल-तमाशा अउ घरघुंदिया नोहय, बर बिहाव ह। जे ल मन नइ आय म दू चार दिन बाद बिझार दे। 

         सुनहर बहू खोजत ले थक गे रहिस। बड़ परेशान हो गे रहिस। संसो मं दुबराय ल धर ले रहिस। ...कहूँ मेर सुनहर के मन आवय, त बेटा मन के मन नइ आवय। कहूँ मेर दूनो के मन आतिस, त लड़की वाले मन ल मन नइ आय। कभू दूनो कोति जमे बानिक लगय त बात रास-बरग मं आ के अटक जय। कुछ न कुछ बाधा परय। अइसे-तइसे माघ ले चइत बीत गे। 

        गाँव के मनखे मन, जे मन म आवय ते गोठ करँय। जे मुँह, ते गोठ। लोगन मन गोठियाय लागिन कि सुनहर ह बने दाइज डोर के लालच म बने बने नता ल हीनत हावय। हड़िया के मुँह ल परई म तोप लेबे, फेर मनखे के मुँह ल कामा तोपबे? .....लगती बइसाख म सिध परिस।

       .... बिहाव के दिन आइस। बड़ धूम-धड़ाका ले बिहाव होइस। इंजीनियरिंग करे बेटा के आघू सुनहर के एक नइ चलिस। पइसा ल पानी बरोबर बोहावत गिस। गाँव-गोढ़ा म जइसन कभू नइ होय राहय, तइसन करिस। बफर सिसटम म खवाना। गाँव म नेंग-जोंग के बेरा गड़वा बाजा...बरात बर डीजे। बरात बर दर्जन भर गाड़ी। बरतिया मन के पूरा खियाल। जेन ल जे चाही, उही ब्रांड के...। साज-सज्जा के तो पूछ झन। महाराजा सेट।... कुछू बर टोंकय त बेटा काहय- "शादी एक बार होनी है, बार-बार नहीं। लोग क्या कहेंगे? एक इंजीनियर की शादी और...." मोबाइल के घंटी बाजे ले बात ल आधा ए छोड़ मोबाइल म भुलागे।  

       सुनहर ह बेटा के गोठ सुन.. बुदबुदाइस भर। "पइसा कमाबे तब पता चलही बाबू.... कतिक मिहनत ले पइसा आथे।....बाप के कमई उड़ाय म का जियानही।" आज सुनहर के मन टूट गे राहय। बिहाव के नाँव ले उपरछवा हाँसत भर हावे। भीतर ले बड़ रोवत हे। रोही काबर नहीं, जब लहू-पछीना के कमई पानी सहीं बोहावत रही अउ चाह के सकला नइ कर पाही।

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       ....सुख के छइहाँ म समय कब बीतथे, पता नइ चलय। दुख के घाम रहे ले एक छिन ह बड़ जियानथे। काटे नइ कटय, चाबे ल कुदाथे। घाम रहय ते छाँव, जिनगी तो जिए ल परथे। रो के जी, चाहे हाँस के। जिए के नाँव तो जिनगी आय। समय निकलत गिस। मुठा म हमाय रेती बरोबर।

         बहू हाथ के पानी पिए के साध, साध रहिगे, सुनहर अउ रमसीला के। दू महीना बीते नइ पाइस। अवई-जवई नइ जमत हे, कहिके बड़े बेटा-बहू शहर के रस्ता धर लिन। 

         छोटे बेटा बड़े बेटा ले जादा खर निकलिस। जेन ह नज़र मिला के गोठ नइ कर सकत रहिस। ओकर मुँह उले लगिस। उछरत हावे। आगी ले अँगरा ताव दिखावत हावे। 

       "मोर नाँव के खेती ल मैं सौदा कर डारे हँव। रायपुर म फ्लेट बिसाहूँ कहिके। उहें कमाहूँ-खाहूँ, खेती म का धरे हावय? कागज पत्तर ल कति लुकाय हस, तेन ल दे देबे मोला। नइ ते मेंह थाना-कछेरी के रस्ता रेंगाहूँ। घी निकाले ल आथे मोला।"

          रजधानी म राहत दू साल होय हे बाबू ल, उहाँ के हवा लग गे। गाँव के धुर्रा-माटी ल भुलागे। अउ खेती सोन के अंडा होगे। जेन ल बेच फ्लैट के सपना म सवार हे। वाह रे कलजुग... दू नया पइसा नइ लगाये ए अउ खेती के मालिक बनगे...।

         सुनहर के भरम टूटगे। बड़ गरब रहिस दू झिन बेटा हावे कहिके। ...ओकर संग का होवत हे? समझ नइ पावत हे। का सोचे रहिस अउ का होवत हावे? काँहीं च समझ नइ आवत हे ओला। बिहाव पाछू मुड़ ऊपर चार लाख रूपया के चढ़े करजा ....

         मोहलो-मोहलो म बहू मन बर गहना-गूँठा बिसाय रहिन। सबो अइसन करथें। का जानय अइसन होही? भल ल भल समझत सपना सँजोय रहिन हें दूनो परानी। थोर बहुत राखे पइसा घलव खिरक गे राहय। संसो बाढ़े लगिस। कभू करजा ल जाने नहीं, तउन आज करजा म लदा गे हे। खपलाए करजा ए। बेटा मन तो हाथ खींच ले हावय। खेती भरोसा करजा उतारे परही। 

         संसो म बुड़े गुनान करत हावे कि बिसाय जमीन ल हाथ ले बिहाथ कर डारेंव। मोर आँखी मूँदे पाछू बेटा मन के होबे करतिस। अभी मोर नाँव म रहितिस त मोर बियाय लइका मोला आँखी नइ दिखातिस। बस इही गोठ रहिगे-अब पछताए का होत हे, जब चिरई चुग गे खेत।

        सुनहर अपन लहू-पछीना के कमई ले बिसाये दूनो एकड़ ल दूनो बेटा के नाँव म चढ़ाए रहिस। तब रमसीला के बरजई ल एको नइ धरिस। सरवन कुमार समझत रहिस हे ...दूनो बेटा ल। अउ निकलिन का...भुलागे रहिस कि कलजुग आय।

        वोकर जिनगी म बड़ोरा अवई ह अभी अउ बाकी रहिस। पुरखौती तीनों खेत के रस्ता चारों मुड़ा ले रुँधागे। सड़क के खाल्हे दू खेत पार के खेत मन मं धन्ना सेठ अउ दलाल मन के नजर गड़े हावे। तभे तो धन्ना सेठ मन मुहाँटी ल बिसा के घेरा बंदी कर डारिन। विकास के बड़ोरा म अइसने कतको खेत परिया परत हावँय। धान के कटोरा उरकत जावत हे। गरीबी म जीयत मनखे जमीन के भाव देख चउँधिया गे हे। पुरखौती पूँजी ल बेच महल टेकावत हे। किसानी भुइयाँ नाँव ले उतरे पाछू चढ़ै नहीं, एकर कोनो ल चेत नइ हे। सब ल पइसा के धुन सवार हे। ...सड़क म आवत हावे। सड़क हे कि सुरसा बने लीले बर दाँव लगाय हे। ...फोर लेन सिक्स लेन....आज नइ ते काली... लीले बिना राहय नहीं। पक्का ए।

        आय किसानी के दिन म....। करय ते करय का? कुछु च सूझत नइ हावय। अब का होही भगवान ?...संसो सँचर गिस। इही संसो म बुड़े कब नींद परिस ते सुरता नइ हे।... बिहनिया उठथे त देखथे कि वोकर एक ठन हाथ उठत नइ हे। मुँह ले आरो नइ निकलिस। उठे के कोशिश म खटिया ले उतरत खानी भकरस ले गिर परिस। कुछु गिरे के आरो सुन रमसीला आइस त बोमफार रो भरिस। ....परोसी मन आइन। लउहा-लउहा बिगन देरी करे अस्पताल लेगिन। अटैक के संग लोकवा हे। इही तो बताइस हे। लकठा के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ह। अउ कहिस," हायर सेंटर ले जाइए।" अउ तुरते रिफर कर दिस। 

       रायपुर के प्राइवेट अस्पताल लेगिन। डॉक्टर मन सुनहर कका के हालत ल देख झटकुन आई सी यू म भर्ती करिन। ऑपरेशन करे परही काहत रमसीला काकी ले कागजात म दसखत करवाइन। आयुष्मान कार्ड के भरोसा भर्ती होगे रहिस। दू लाख रुपया अउ खर्चा आही। हाथ जुच्छा रहिस। कति ले पइसा आतिस। रमसीला खेत ल बेच पइसा दे हे के भरोसा देवाइस। अउ ऑपरेशन करे के विनती करिस, 

जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग.


बइगा के चक्कर

 बइगा के चक्कर


गनपत साठ साल तक कभू सुई-पानी ल नइ जानिस। गियानी मन कहिथे-कि उमर के संग-संग शरीर घलो जवाब दे लगथे। उही गनपत के संग घलो होइस।

       गनपत अउ परषोत्तम बचपन के संगवारी आवय। संगे खेलिन-पढ़िन। बर-बिहाव घलो दुनों के एके साल होइस। खेती-किसानी मा एक-दूसरा ल जरूर पूछी-के- पूछा होवय। धान-पान के मिंजाई-कुटाई करे के बाद एक-दूसरा के घर झरती जरूर खाये। 

           वो दिन परषोत्तम के मिंजाई के झरती रिहिस। गनपत ल खाये बर बुलाइस। खा के आइस अउ ओकर दुसरइया दिन गनपत के पेट पीरा उमड़गे। गनपत के गोसाइन सुकवारो फ़नफनाये ल लागिस। हाँ, अउ जा बने टोंटा के आवत ले खाबे। कभू तो खाये नइ हस न। जइसन करनी, तइसन भरनी। कतको बरजे हँव, भागबती के मनखे संग संगति मत कर। उँकर घर मत जा, लोगन मन भागबती ल गजब सुगाथे। फेर कहना ल नइ माने। अब भुगत। बात बढ़ाये ले बात बाढ़थे। इही सोच के गनपत चुप सुन लिस।

          सुकवारो, गनपत ल चैतू बइगा कर लेगिस। चैतू बइगा कर वइसे तो गजब दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन अपन समस्या लेके आवय। चैतू बइगा गनपत ल  फूँकीस, भभूत दिस अउ सात सम्मार ले उपास रहे के सलाह दिस। बोलिस कि तोर ऊपर टोना करे हे। देवी पूजा के खरचा डेढ़ हजार लगही। मँय सिध करके मुँदरी देहुँ वोला पहिरबे। गनपत हव किहिस। फेर सात सम्मार के पूरत ले दुखी मनखे शांत कइसे बइठ पातीस। गनपत, सुकवारो ल किहिस- सुकवारो, मँय हर नांदगाँव जा के डॉक्टर ल देखाये रहितेव। स्मार्ट कार्ड तो हावेच। कुछ रुपया आये-जाए अउ दवई- बूटी बर दे दे रहितेस। सुकवारो किहिस- कोई बीमारी होये हे का? टोना-जादू ल बइगच मन सुधारही। अउ बीमारी घलो होय होही ते फूँक-झार करवाये बिना डॉक्टर के सुई-पानी घलो काम नइ करे। रामकली के ल नइ सुने हस का? जब मूँड़ पीरा उमड़िस तब कई झन डॉक्टर मन कर इलाज करवाइस। रुपया खोवार करिस। जब अंकालू बइगा कर फूँकवाइस तभे बने होइस। तहूँ जा पहिली अंकालू बइगा कर फूँकवा के आ।

       गनपत अंकालू बइगा कर चाँउर अउ नींबू धरके गिस। अंकालू किहिस- जबरदस्त तोर पाछु परे जी। फेर तँय चिंता झन कर मँय हँव न। वो कइसन सोधे हरे तेन ल मँय देख लेहुँ। थोरिक खरचा लगही, पूजा के समान बर। गनपत पूछिस- कतका लग जाही? अंकालू बइगा किहिस- जादा नहीं, तीन हजार लगही। तोर घर ल घलो बंधेज करे ल पड़ही। वो सब इही रुपया मा हो जाही। अउ तोला पाँच बिरस्पत ले उपास रहना हे। गनपत मरता सो का नइ करता। हव किहिस। 

          गनपत घर मा आइस, तब सुकवारो पूछिस- कइसे कमल के बाबू, बइगा का किहिस? गनपत बइगा के कहे जम्मो बात ल दुहराइस। सुकवारो किहिस- ये दे होइस न, एक काँवरा खायेस अउ लगादेस तीन हजार के चूना। अब वोकर बताये नियम ल कर। गनपत किहिस- चैतू बइगा तो सम्मार के उपास कहे रिहिस वोला कइसे करंव? सुकवारो किहिस- वहू दिन उपास रही जा। का होही। कते दिन के फल मिल जाही कोन जानत हे। गनपत सम्मार अउ बिरस्पत दुनों दिन उपास रहे लागिस। फेर गनपत के पेट पीरा ठीक नइ होइस। तब सुकवारो, गनपत ल फत्तू बइगा कर लेगिस। फत्तू बइगा देवी खरचा बर एक हजार लगही किहिस। दुख मा परे मनखे का करे, फत्तू बइगा ल घलो एक हजार रुपया दिस। फत्तू बइगा गनपत ल शनिच्चर के उपास रहे के सलाह दिस। अब गनपत हप्ता में तीन दिन, सम्मार, बिरस्पत अउ शनिच्चर के उपास रहे लागिस। तभो पेट पीरा बने नइ होइस।  

          गनपत के सारा राकेश ल गनपत के पेट पीरा के  पता चलिस। तब देखे खातिर गनपत के गाँव आइस। बोलिस- का भाँटो तँय मोला पहिली खबर नइ करेस। मोर गॉंव तीर मा बिसम्भर नामी बइगा हे। कतको के बीमारी ओकर फूँके ले ठीक होय हे। टोनही मन ओकर देखे काँपथे। खरचा ल झन डर्रा। जान हे तब जहान हे। सुकवारो किहिस- अई हव गा राकेश तँय सिरतोन कहत हस। मँय भुलावत रेहेंव। जातो तँय अभिचे जा। ये तीन हजार ल रख। राकेश तोर भाँटो ल ले जा अपन संग। 

       गनपत, बिसम्भर बइगा कर गिस दू हजार के खरचा बताइस। नींबू काटिस अउ एक ठन तावीज ल पहिना दिस। हवन करे के आश्वासन दिस। इक्कीस मंगल ले उपास करे बर किहिस। अब सम्मार के उपास रहय। रात मा खाये अउ मंगल के फेर उपास रहय। बुधवार के खाये। बिरस्पत के उपास शुकरार के खाये शनिच्चर उपास। जादा उपास रहे ले गनपत के शरीर  दुबराय लागिस। हाड़ा-हाड़ा दिखे लागिस। गनपत ल लगिस कि अब वो नइ बाँचही। तब गनपत सुकवारो ल किहिस- सुकवारो तोर कहना मा बहुत बइगा-गुनिया कर डरेंव। अब एक घाँव डॉक्टर ल  घलो देखाये के मोर इच्छा होवत हे। मोला डॉक्टर कर ले चल। सुकवारो घलो बइगा ल देखात-देखात थकगे रिहिस। दूसरा दिन दुनो परानी नांदगाँव के सरकारी अस्पताल मा गिन। सोनोग्राफी होइस। पेट मा एक गाँठ पाये गिस। डॉक्टर ऑपरेशन के संगे-संग खून के घलो बेवस्था करे बर किहिस। सुकवारो अउ गनपत घर मा आइस तब गनपत के आँसू रहि रहि के झरत रहय। सुकवारो घलो अपन गोसइया के मया मा रोये लागिस।उही समय गनपत के संगी परषोत्तम गनपत ले गजब दिन होगे मुलाकात नइ होय हे सोच के मिले बर आइस। तब गनपत सबो बात ल फरिहा के बताइस। किहिस कि एक बॉटल खून कमल दे बर तियार हे, फेर डॉक्टर दू बॉटल खून केहे हे। एक बॉटल खून अउ कोनों दे बर तियार हो जातिस, तब कालीचे ऑपरेशन हो जातिस। परषोत्तम किहिस- तैं फिकर झन कर गनपत भाई। मोर उमर जादा होगे हे। मँय तो खून नइ दे सकँव फेर मोर बेटा राजू के खून देवइया मन ले गजब पहचान हे। वो कोनों ल भिड़ा लिही। तँय बस काली अस्पताल जाए के तियारी कर। गनपत अपन बेटा राजू ल सब बात बताइस। तब राजू तुरते अपन संगी मन ल खून दे बर तियार करिस। दूसरा दिन नांदगाँव मा गनपत के सफल ऑपरेशन होइस। तीन दिन के बाद छुट्टी कर दिस। गनपत, सुकवारो ल किहिस- देखे सुकवारो, तैं जेकर गोसाइन ल सुगात रहे आज उही काम आइस। बइगा मन के चक्कर मा कतको रुपया खोवार होगे। वो दिन ले गनपत अउ सुकवारो बइगा-गुनिया के चक्कर मा पड़े ले कान चाब के चेतगे। सुकवारो अब गनपत ल परषोत्तम घर जाए ले नइ रोके । आज घलो दुनों के घर कस सम्बन्ध हे।


             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

लघुकथा - " लड़न्ककीन "

 लघुकथा -

         " लड़न्ककीन "


"तोरेच करा मुँह हे, जइसे पाये वोईसे बोलत जा l सुनत हे तौन पखरा हे l"बहेसर अपन बाई ला कहत रहिस l ओकर बाई तीखार तीखार के पूछतीस घेरी पइत पूछातिस कहिस -" तोला कोन कहत हे सुने बर पखरा घलो सुनही तै तो पथरा ले गये गुजरे हस l"

"मूरख  संग का बात करना बुद्धि भस्ट करना हे "

" तोर करा कहाँ बुद्धि हे भकला गतर l

तोला बुद्धि  नइ मिले हे परबूधिया l "

इही बीच म ओकर टुरा  रेखू आगे l

"जब देखो तब खींचीर खींचीर का तुमन ला अइसने गोठ म मजा आथे? तुमन ला बने ढंग ले गोठ बात करत नई सुनेव l"

ओकर माँ कहिस -" अरे बेटा रेखू,परबुधिया ला का जानबे, काकर बुध म चलत हे l"

बिसेसर -" अरे रेखू तोला बीच म काबर लाथे lतै  कोन कोती रहिबे,l तहीं बता? फ़ेर तीखारन    

टप ले तानाबोली म -

ओहर का बताही? "

रेखू -" तुमन ना मोर माँ बाप असन नई लगत हव l"  बीच म फेर लबले तीखारन -

" तोर बाप नोहय रे तोर बाप होतिस त तोर मोर बर मंगल सूत्र आ जतिस l मय मंगलीन नई होतेव l  मोर गला म करिया धागा बर  हे l ओकर करा माँगत हँव, ओकर करा माँगत हँव पइसा त घर चलत हे l"

बिसेसर कंझाके के कहिस- " मंगल सूत्र बर झगरा  करत करत मंगल मय दिन सिरा गे l धागा म दुनिया बंधाये हे l  खूंटा म दम निये  गेरवा का करही? हर दम के लड़ई म दम सिरा जथे बेटा l अभी नानकुन हस l काकर पाला म पर गेंव रे    l  हताश होवत   बिसेसर " मोर पाला  पड़गे तुमा बीजा अस बाजत रहिथे फोकटे फोकट l

तहूँ ह चिन्हा हस अब उही धागा के  l अउ का मंगल सूत्र मंगलसूत्र चिल्लाथे l"

तीखारन ए दरी अउ जोर देके 

"दूसर के डउकी ला पहिराबे सांटी बिछिया l दू लाख के पूरती नई हँव का l

बिसेसर "तोर पुरती ला कोन करत हे? मही तो करत हँव ना?"

"तै का पूरती करत हस? ऊपर वाले देखत हे l

जतका गोठियाबे ओतका बढ़त जाथे l नई घेपय नई मानय नई तेखर ले मुँह नई लगना चाही l

घुनही बांसरी के धुन ला कोन सुन ही भला l  बिसेसर अपन बाई ले हार खाके  बैरागी  बन जथे l तमुरा बजावत 

तना नना हे ए घर के ना 

जिहाँ तिखारन  ओ घर के तना नना  ना.... I

गुड़ेरा-गुड़ेरी के झगरा*

 .                   *गुड़ेरा-गुड़ेरी के झगरा*

                                        

                              - विनोद कुमार वर्मा 


( *गुड़ेरा* चिरई ला कोनो जगा *गोड़ेला* चिरई त

     कोनो जगा *बाम्हन* चिरई  घलो कहिथें। )


        एक किसान परिवार गाँव म सुखपूर्वक रहत रहिस। दुनों जाँवर-जोड़ी म बहुत मया रहिस। ओमन के दू लइका रहिस जेमन प्राइवेट स्कूल मा पढ़त रहिन। किसान बड़े बिहन्चे खेत के देख-रेख अउ काम करे बर घर ले बाहिर निकल जाय अउ ओकर घरवाली घर के सबो काम-बूता ला जतन से निपटाय। दुनों लइका मन ला टिफिन-बाटल देके स्कूल भेजे।  कपड़ा-बरतन, झाड़ू-पोंछा, दाल-रोटी कतकोन काम घर के लगे रहे, रेले-रेस कस। फेर लइका मन ला स्कूल भेजे के बाद चिरई मन ला गेहूँ-चावल के दाना, मुर्रा-लाई अउ पानी देना कभू नि भूले। एकरे खातिर ओकर अँगना अउ कोठा के आसपास गुड़ेरा चिरई के दस जोड़ा अपन खोंधरा बना ले रहिन। लइकामन के स्कूल जाय के बाद गुड़ेरा चिरई मन के चीं-चीं के समवेत स्वर-ध्वनि कुछ रुक-रुक के तब तक गूँजत रहे जब तक किसान के घरवाली ओमन के दाना-पानी के इंतजाम नि कर दे।

          सब ठीके-ठीक चलत रहिस फेर एक दिन लइकामन के पढ़ाई ला लेके पति-पत्नी के बीच झगरा होगे। किसान दुनों लइका ला पढ़ाई बर शहर भेजना चाहत रहिस। एक ठिन प्राइवेट होस्टल मा ओमन के रहे अउ खाय-पीये के बेवस्था रहिस- उहाँ बातचीत घलो कर दारिस। ओमन के गाँव ले शहर हा 30 किलोमीटर  दूरिहा म रहिस। किसान के घरवाली ये बात ला सुनके भड़क गीस कि बिना ओकर सलाव के दुनों लइका ला बाहिर भेजे के फैसला कइसे कर लीस? गाँव के सरकारी स्कूल मा 12 वीं तक पढ़ाई होथे..... ओकर कहना रहिस कि आठवीं के बाद दुनों लइका ला प्राइवेट स्कूल ले सरकारी मा डार देबो फेर ओकर बाद कालेज पढ़े बर शहर भेजबो। कम उमर मा लइकामन  शहर के हवा मा बिगड़ जाथें। प्राइवेट स्कूल मा आठवीं तक के पढ़ाई होत रहिस। एती किसान के कहना रहिस कि सरकारी स्कूल म पढ़ाई कंडम हे। इहाँ पढ़ाय ले दुनों लइका के भविष्य खराब हो जाही! दुनों के बीच झगरा अतका बाढ़िस कि बोलचाल ही बन्द हो गे। घर के सबो काम सुचारू रूप ले चलत रहिस फेर दुनों लइका के स्कूल जाय के बाद अउ ओमन के वापिस आत ले घर हा सुन्ना-सुन्ना रहे। सबो गुड़ेरा मन घलो घर के सूनापन ले दुखी रहिन। 

       एक दिन खोंधरा मा एक गुड़ेरी अपन गुड़ेरा ले कहिस- ' मैं तो किसान के घरवाली कोती हों तैं कोन कोती हस?'

        गुड़ेरा जवाब दीस- ' मैं किसान कोती हों। ओहा ठीक कहत हे। पढ़े बर शहर मा लइकामन ला भेजना चाही। '

       एही बात ला लेके गुड़ेरा-गुड़ेरी के घलो झगरा हो गे अउ दुनों के बोलचाल बन्द होगे। कहे घलो गे हे कि खरबूजा ला देखिके खरबूजा रंग बदलथे! दू-चार दिन अइसने गुजर गे। ओकर बाद एक बुजुर्ग गुड़ेरा ओमन ला समझाय बर आइस। गुड़ेरी के गुस्सा अभी घलो कम नि होय रहिस। बुजुर्ग गुड़ेरा सवाल करिस- ' गुड़ेरा ये बता तोला बोट देह बर परही त कोन ला बोट देबे? किसान ला कि ओकर घरवाली ला? '

       ' किसान के घरवाली ला बोट देहूँ! '- गुड़ेरा जवाब दीस। 

       ' अब तो तुमन के झगरा खतम हो गे बेटी। दुनों एके कोती हावव त का बात के झगड़ा! '- गुड़ेरी ला समझावत बुजुर्ग गुड़ेरा बोलिस। 

      ' तैं किसान के घरवाली ला काबर वोट देबे? तैं तो किसान कोती रहे! ' - गुड़ेरी शक के नजर ले देखत गुड़ेरा ले सवाल करिस। 

       ' मैं किसान के बात ले सहमत हौं फेर बोट ओला नि दों! ' - गुड़ेरा जवाब दीस। 

      ' बोट काबर नि देस तेला ठीक से बता? ' - गुड़ेरी फेर सवाल करिस। 

      ' किसान के घरवाली हमन के बहुत ख्याल रखथे। ओकर से मैं बहुत ज्यादा मया करथौं! एकरे सेथी ओला बोट देहूँ! ' - गुड़ेरा के जवाब ला सुन के गुड़ेरी के जी हा कच्च ले करिस!

      ' मोर ले घलो जादा मया करथस का? ' - गुड़ेरी फेर सवाल करिस। 

       ' हाँ, तोर ले घलो जादा मया करथौं! तोला छोड़ देहूँ फेर किसान के घरवाली ला नि छोड़ सकौं! ' 

         गुड़ेरा के जवाब ला सुनके गुड़ेरी बिफर गे।  बुजुर्ग गुड़ेरा ले बोलिस- ' एला बोल दे कि दू हप्ता तक मोर लक्ठा मा झन आही! लक्ठा म आही  त चाब दिहों! बड़ आय हे किसान के घरवाली ला मया करने वाला! दू हप्ता बर एला तलाक देवत हौं! '

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कुकुर पोसवा समाज*. ब्यंग (टेचरही).

 *कुकुर पोसवा समाज*.         

                             ब्यंग (टेचरही).  

          सामाजिक नवाचार के नीत यहू हे कि घर के मोहाटी मा उँचहा नसल के कुकुर बँधे होना। कुछ नहीं तौ देसी खर्रू कुकुर ला डेहरी रखवार बना। अतको नइ कर सके माने वर्ग विभाजन के क्रम मा गरीबी रेखा के निचे वाले क्रम मा फेंके जाबे। समाज मा इज्जत पाना हे तौ कुकुर पोस। अउ यहू चेत रहे कि निँगती मोहाटी मा कुकुर ले सावधान के तख्ती लटके मिलना चाही। मान ले कुकुर नइ भी हे तभो झझक तो रही कि इहाँ कुकुर रथे। कुकुर रहिके घलो नइ भूँकिस तब समझ ले कि वो अपन कुत्ताईपना ला अपन स्वामी ला सउँप देय हे। अइसे भी घर बँगला के ठसन शान सौकत रूआब  ला देख के पता चलि जाथे कि इहाँ कुकुर ही रथे। शुद्ध शाकाहारी मन खटिया मा परे बाप के दवा लाने बर भुला सकथे फेर कुकुर के आहार लाने बर नइ भूले। एक झन हास्य कवि कुकुर पोषक ला कहि दिस कि, तोर कुकुर बढ़िया हे जी, कहाँ ले लाने हावस। कुकुर पोषक जोरहा गुर्राके किहिस तँय एला कुकुर झन बोल ये मोर बेटा असन हे। बतकड़ू कवि फेर एक ठन गोली दाग दिस अउ कहि दिस कि कुकुर तोर बेटा असन हे  तौ तोर बेटा काकर असन हे?

         सच तो इही हे कि कुकुर ला लइका असन पाले पोसे जावत हे, अउ लइका कुकुर बरोबर गली मा बिना सीख अऊ संस्कार के घुमत हे। बिना देख रेख के लइका बेँवारसपना मा गली के होके रहिगे हे। ये मन सरकारी पानी चघाके नाली सैया के सुख भोगत हें। एकर ले मान सम्मान मा कटौती नइ होवय। नाक तो तब कटथे जब मोहाटी मा कुकुर नइ बँधे मिले।

       कुकुर आदमी के सँग रहिके आदमीपना सीखत हे। अउ आदमी कुकुरपना ला। ओइसे भी आदमी ला कुकुर चरित्र अपनाए मा जादा दिक्कत नइ होवय। वो एकर सेती कि आज के परिधान मा मनखे हर दूसर मनखे के सुभाव मा कुत्तागिरी ला देखा सीखी मा सीख जाए रथे।

        मनखे चोर डाकू लुटेरा ले डरे। अब कुकुर ले डरथें। एक इही जीव तो हे जे मनखे अउ पशु के बीच के सभ्यता मा समानता लाथे। जेकर ले ईमानदारी अउ वफादारी के परिभाषा बाचे हे। बजार के बिसाय दस रुपिया के तारा उपर भरोसा हे फेर परोसी उपर नइये। कुकुर उपर भरोसा हे फेर हजार रुपिया के तनखाधारी चौकीदार उपर नइ रहय। सुविधा सम्पन्न मानवीय विकास यात्रा के डहर मा चलत कुकुर सभ्यता मा आके डेरा डारे हावन। हबकना भूँकना गुर्राना हम इही कुकुर मन ले सीखे हावन। ये अलग बात हे कि विज्ञान चन्दा मा चल दिस अउ हम तर्कशील होके नव राति चतुर्थी मनाए बर चंदा परची धरके मोहाटी मोहाटी किँजरत हावन। हमर कोती के रावन ला मारे बर घलो चंदा देना परथे। उपासना अउ जगराता तक ले घलो हमर कुकुरपना के निवारण नइ हो पावत हे। जौन रैबीज वैक्सीन तइयार हे अब काम नइ आवे। अब ये दू पाया मन अतका जहरीला होगे हें कि काटे के तो बात छोड़ गुर्रा दिहीं ओतके मा संक्रमण बगर सकते। तब अइसन मा डब्ल्यू एच ओ ला आवेदन देके सचेत करवा देना उचित समझथौं। जेकर ले नवा वैक्सीन के खोज चलत रहय।

     हमरो पारा मा एक ठन सम्मानित आदरणीय जी रथे। जेकर खसुवाहा होय के कारण अतके हे कि ये खसमाड़ू ह हर पंचवर्षीय मा मालिक बदलत रथे। एकर ले साफ हे कि वो स्वामी भक्त नइये। अपन ईमानदारी वफादारी ला चौपाया मन ला धरा देय हे। कर्तव्यनिष्ठ कर्मठ अउ जुझारूपन ले स्वामीभक्ति देखातिस  गुर्राये हबके के काम करतिस ते कम से कम सरपंच तो बने के संभावना तो रतिस।

         जेकर मा दम होथे वोमन चौपाया के सँगे सँग दू पाया घलो पोस के राखथें। इही पोसवा मन मा वो सब गुण भरे रथे जेकर ले कुकुर के इज्जत होथे। इन मन ला तोर हमर नुकसान से मतलब नइ रहय। मालिक के आदेश मिलत भर के रथे, फेर तो ये मन मालिक के जुट्ठा नमक खाय के करजा उतारे मा देरी नइ करे अउ शांति पारा के शांति ला भंग करके भगदड़ मचाके मालिक के साख बचाथें। अइसन बेरा मा मर कटगे तब नाम ला सहीद मनके सुचि मा जोड़वाए बर बाचे दू पाया मन धरना तो कर ही सकथें। कुकुर देव के मंदिर एकलौता बालोद जिला के मालीघोरी मा ही काबर रहय। आस्था के घंटाघर तो अबड़ बनत हे, फेर मालीघोरी के मंदिर कस भरोसा के चिनहा प्रतिक बर एक ठन एतिहासिक काम तो घलो होना चाही।

        आज हमर समाज ला कुकुर के बहुते जरुरत हे। नाम इज्जत अउ रुआब के साख बचाना हे तौ कुकुर पोसना जरूरी हे। हम ये नइ कहन कि  कुकुर चौपाया ही होय। बिना पट्टा सँखरी वाले घलो चलही।

       गाय सड़क मा हे अउ कुकुर बेडरूम मा, मनखे के लइका कुपोषित होवत हे अउ कुकुर दूध मलाई मा सनाय रोटी बिस्कुट खावत हे। पाठ भर पूरा पार करके लइका मन पैदल इस्कुल जावत हे, कुकुर कार मोटर के सँग हवाई जहाज तक मा सफर करत हे। कुकुर पोसवा समाज कुकुर ला गोदी मा लेय के जगा ओतके खरचा मा कोनो गरीब के लइका ला गोद ले लेतिस ते देन दिन येमन कुकुरगति के होही वो दिन हो सकथे मुखाग्नि तो नहीं कंधा देय बर खड़े मिलतिस। फेर हमला तो कुकुर पोसवा समाज के नाक साख ला बचाके ये परम्परा ला आगू पीढ़ी तक ढकेलना हे, कि हम उचहा दरजा के कुकुर पोसवा समाज के पोषक आवन। 


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनांदगांव।

हरू कइसे पारन?*

 *हरू कइसे पारन?*

पहिली के मनखे मन के विचारधारा हा कतका विस्तृत, सकारात्मक अउ पोठ राहय, आर्थिक रूप ले भले थोरिक कमजोरहा रहितिस फेर सोंच उंचहा अउ जमगरहा राहय...अउ उही मेर आज काल के मनखे मन के बारे म सोंचबे अउ गुनबे ते कतको पढ़ लिख ले हन, आर्थिक रूप ले घलो ओतेक कमजोर नइ हन फेर..कतको मनखे मन के सोंच अउ बिचार धारा आज घलो एकदम संकीर्ण अउ स्वार्थी प्रवृत्ति के रहिथे... आजकाल तो सिर्फ सामने वाला ला कसनो करके  *हरू कइसे पारन?*  वाले सिस्टम घलो चलत हे लगथे, संगवारी हो...जइसे कोनो पारिवारिक कार्यक्रम में जाय रहिबे ता काकरो काकरो मुहूं ले गोठ सुने बर मिलथे...सामने वाला मन अपन तरफ ले बनेच करे के पूरा पूरा परयास करे रहिथे..फेर...

कुछ खास किसम के प्राणी मन सिर्फ कमी निकाले अउ नीचेच गिराए (हरू पारे वाले बुता)मा ही लगे रहिथे ...अउ एक बात... अइसन किसम के प्राणी मन अपन जइसे प्राणी घलो खोज डरथे...काबर जब तक नइ गोठियाय राहय इंकर मुहुं खजवावते रहिथे अउ इनला आखिर म इंकर जइसे प्राणी मिल घलो जथे...ताहने सोने पे सुहागा हो जथे।

....बर बिहाव हो चाहे छट्ठी होय,चाहे घर पूजा होय या अउ आने कुछु परिवारिक कार्यक्रम मा...अधिकतर  सुने अउ देखे मा आथे ता वो हे ...... सामने वाला के चारी निंदा करना अउ सामने वाला ला *हरू कइसे पारन?*  वाला हिसाब किताब चलत रहिथे ...ताहने इंकर पुरोगराम शुरू..फलाना ला तो देख..बड़ घमंडी होगे हे लगथे, गोठियावन तक नइ सकत हे..?. इंकर घर में आए हन ता,नइ चिन्हत हे, ते हा बहिरी मा काला चिन्ही ...

ता कोनो अतेक पैसा कहां ले आइस होही ?

ता कोनो वा.. घर ला घलो कब-कब बने बना डारे हे?..

ता कोनो का बुता करथे?

ता..कतको के तो मुहुच फूले रहिथे...

ता कोनो ओकर लइका मन ला तो देख...

ता कोनो...साग ह तो ढल ढल ले हबे...

ता कोनो...नाश्ता तक बर नइ पुछ सकिस ? जी 

ता कोनो...लड्डू हा तो ठक ठक ले रिहिस.. दांत घलो टूट जही।

ता कोनो..गुलाब जामुन गठनहा  हवय...

ता कोनो..सोहांरी खड़खड़ ले रिहिस ..

ता कोनो...भात ह चिबरी हे..

ता कोनो साग दार धुंगियहा हो गेहे....

ता कोनो.. ओ ..तो.. हमन आएन ता सब सिरागे रिहिस..

ता कोनो दार भात भर ला खाएन...जी 

ता कोनो बइठे तक ला नइ किहिस गा अतेक.... हो गेहे...

ता कोनो...वा हमन ला तो देखिस ताहने मुहु ला ओति कर लिस... 

ता कोनो नानुक चेंदरी के पुरतिन नइहन...

ता कोनो चिन्ह चिन्ह के देत हे कहिथे...

ता कोनो ठिकाना नइ हे तेला देहे...

ता कोनो, वा..ते जानत हस अपन लइका ला वहादिहां पढ़ात हे कथे...

ता कोनो हमन ला तो फोटू खिंचवाय तक बर नि पूछ सकिस? 

ता कोनो.. खाय हस ते नइ खाय हस तक नइ पूछ सकिस जी? 

ता कोनो.. हमला तो नेवता दे बर तक नइ आन सकिस, दूसर करा भेजवाय रिहिस...तभो ले हमन आए हन ? ...

ता कोनो... हमर तो पांव तक नइ परिस ...?

ता कोनो...ओमन ला तो देख....(अपन मन भले कार म आय रही) ना फेर... दुसर किराए के कार म आ जाही तहु सहन....नइ होय.….

मतलब जमाना अइसन चलत हे 

जो कुछ राहय अपनेच करा राहय...

नौकरी लगे ते हमरेच लइका के..

फस्ट आय ते हमरेच लइका.. 

बने पहिरे ओड़हे ते हमरेच लइका..

हुसियार राहय ते हमरेच लइका.. 

संस्कारी राहय ते हमरेच लइका...

सुख के बेरा म मनखे मन गोठियाथे ते गोठियाथे... फेर.. कतको मन .....

दुख के बेरा मा घलो नइ चुके संगवारी हो...

भले अपन मन ,अपन दाई - ददा, सास - ससुर के एको दिन सेवा झन करे राहय फेर बात अइसे करही...जइसे... जानो मानो....भारी....।

बने सेवा जतन नइ होइस नहिते‌? सियनहा ,सियनहिन मन हा अउ जिये  रहितिस...

ता कोनो कहत हे...बने खाय बर घलो नइ देवत रिहिस कहिथे?...

ता कोनो..बने इलाज पानी घलो नइ करइस कहिथे? ...

अउ अइसने गोठियइया मन के घर कोनो हास्पीटल के आस पास रही अउ कोनो भरती हे कहिके कोनो डाहर ले जान डरे रही ना....ते देखे बर आना तो छोंड़िदेव....फोन तको नइ उठावय.....काबर ए तेला उहिच मन जानय....

भले अपन मन एक दिन देखे तक ला नइ आवन सके फेर सामने वाला ल *हरू कइसे पारन?*.... 

कोनो रिश्तेदार मन कोनो दुरिहा घुमे ल नहिते कुछू आने बुता ले चल दे रहिथे ...अउ इही बीच गोतियारी या नजदीकी मा कोनो बीत जथे, तेन समय के कथा परसंग ला सुनव.....

हमन आवन नइ सकन कहिके नइ काहय? अउ अंदर से आय के मन भी नइ राहय फेर सामने वाला ल *हरू पारना हे* ता कइसे करही? खबर कोनो ना कोनो डाहर ले मिल घलो जाय रही फेर...

आय रहितेन ते...

हमन ला तो खभरेच नइ मिलिस.. 

एक मुठा माटी ल तो दे रहितेन...

दुख के नेवता म घलो कारड के इंतजार....

कारड मिल जाही ता.. एक घांव फोन तक नइ कर सकिस...

ओतेक जिनिस परिस कहिथे फेर नानुक चेन्द्रा ला नइ जानेन?

मतलब जमाना अइसन चलत हे......अउ कुछ अकन के बात ल सुनहु ते  तो मुंहूंच फार दुहू.....

इंकर बात ला सुनहू ते तो....

दुनिया म जानो मानो इंकर छोंड़ कोनो ईमानेदार नइ होही... दूसर मन तो..कुछु जानेच नहीं......  संस्कारी हे...ता इंकरेच परिवार 

इन जेन बोलदिन तेने सही हे...  इंकर से तो कभु कुछु गलतिच नइ होय...सकय।

मतलब दूसर के सुखी अउ खुशी ला थोरको झेल नइ सकय 

फेर अपन आप ले एक घांव कभू नइ पुछ सकय?

कोनो‌ एक घांव नइ काहय?

 चल भला पूछ लेथन बिचारा बिचारी मन कहां ले अतेक करत होही?

अतका घलो नइ सोंचय... गोठियावत हन ते बात हा कोनो माध्यम ले ओकर तक पहुंच जाही ता का होही?

कुछु सहयोग के जरुरत रिहिस होही  का?

आने...........आने...?

.....................?

अमृत दास साहू 

ग्राम -कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)

मो.नं-9399725588