छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ सोशल मीडिया ऊपर छंद के छ परिवार के साधक मनके विचार-
अभिव्यक्ति के आजादी के संगे संग महत्वपूर्ण बात एहू हर तो आय के साहित्यकार ल अपन रचना प्रकाशन के ललक रहिथे .....प्रिंट मीडिया के विकास हर साहित्यकार ल पत्र - पत्रिका मं प्रकाशन के मौका दिहिस त किताब के रूप मं भी रचनाकार अपन भावना ल अलग अलग विधा मं प्रकाशित कराये लगिन तभो ये बात के ध्यान रहय के व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के आज़ादी हर दूसर के गुलामी झन बने पावय ...अभी जादा दिन नई होये हे जब लोगन के हाथ सोशल मीडिया लगिस ....साहित्यकार समय संजोग देख सुन के अपन रचना फेस बुक , व्हाट्सएप , ब्लॉग आदि के माध्यम से लोगन तक सहज रूप से पहुंचाये धर लिहिन ...फायदा लेखक अउ पाठक दुनों ल होइस हे काबर के साहित्यकार ऊपर सम्पादक के टीका टिप्पणी के डर नईये , प्रकाशित होही के नहीं , होही त कब होही ? सब झमेला ले मुक्ति । रहिस बात पाठक के त का कहना हे सोशल मीडिया के अंगना मं पहुँचत देरी हे के मनपसंद लेख , कविता , कहानी , लघुकथा , संस्मरण सब मिल जाथे ...अब तो on line गोष्ठी , सम्मेलन , वेबिनार तक सम्पन्न होवत हे । सोशल मीडिया हर साहित्य अउ सहित्यकार दूनों ल सर्वजनसुलभ बना देहे हे ।
आज के विमर्श मं भागीदार बुधियार साहित्यकार मन के विचार जानके पटल के शोभा बाढ़ही ...।
कलम तोर जय हो ।
सरला शर्मा
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पहली कहय कि *नेकी कर अउ दरिया म डार* फेर आज सिरिफ एके चीज दिखथे, कुछु भी कर , अउ सोसल मीडिया म डार। अउ जरूरी घलो हे, काबर की आज सोसल मीडिया के तार मनखे के धड़कन ले जुड़ गेहे। केहे के मतलब जमाना सोसल मीडिया के हे। आज लगभग हर हाथ म मोबाइल हे, अउ सुबे साम मनखे वोमा भिड़े, जम्मो कोती के शोर खबर अउ मनोरंजन के साथ साथ गियान घलो पावत हे। बबा के लगाये बर के आज सबूत नइहे, काबर कि वो जमाना सोसल मीडिया के नइ रिहिस। आज तो एक पेड़ ल लगावत 20, 25 झन दिखथे। अउ फोटू खिचाके सोसल मीडिया म वाहवाही बटोरथे। चाहे परब- तिहार होय, या बर बिहाव सबे सोसल मीडिया म मान पावत हे।
जब सोसल मीडिया भारत म पाँव पसारत रिहिस त भारतीय सुधिजन मन चिंता व्यक्त करिन कि एखर ले अंग्रेजी के बोलबाला हो जही। फेर आज हिंदी अंग्रेजी ले आँखी मिलाके बतियावत हे। अइसन म *छत्तीसगढ़ी* काबर पिछवाय, उहू ल हमर राज के जम्मो झन मनखे मन बरोबर बउरत हे, फेसबुक वाटससप अउ कतको माध्यम म छत्तीसगढ़ी भाषा के लेख, कविता, गीत के आडियो, वीडियो भराय पड़े हे। सोसल मीडिया म हमर भाषा बरोबर जघा बना डरे हे, साहित्य अउ गीत संगीत के बढ़वार लगातार दिखत हे। आज कवि अउ लेखक मनके कविता, गीत लेख तरोताजा अउ तुरते सोसल मीडिया के जरिये चारो कोती बगर जावत हे। छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य ल नवा ऊँचाई मिलत हे। छत्तीसगढिया मन सोसल मीडिया म बरोबर भाषा साहित्य अउ छत्तीसगढ़ के पार परम्परा ल स्थापित करत हे। नवा कवि अउ लेखक मनके संगे संग हमर पुरखा साहित्यकार मनके गीत,कविता, कहानी अउ विचार ल घलो गुणीजन मन सोसल मीडिया म पहुँचावत हे, उँखर अइसन उदिम ले हमर साहित्य नवा ऊंचाई म जावत हे। पुरखा मनके धरोहर आज सोसल मीडिया के शोभा बढ़ावत हे। उँखर सुरता म कतको उदिम हमर राज के गुणवान संगी मन करत हे, अउ सबला येमा हाथ घलो बटाना चाही, काबर की उँखर साहित्य अउ विचार नवा जमाना बर नवा रद्दा गढ़ही।
*पुस्तक के पहुँच सिरिफ शिक्षित मनखे तक होवय, फेर सोसल मीडिया म साहित्य आडियो वीडियो रूप म अनपढ़ के अंतस ल घलो अमरत हे।* आज सोसल मीडिया मनोरंजन, शिक्षा, अउ सूचना के बड़का जरिया बन गेहे, ओमा हमर साहित्य घलो जगमगावत हे। सोसल मीडिया, पठोय सबे चीज ल बरोबर सम्भाल के रखथे येमा कॉपी पुस्तक कस पानी, बादर , अउ दिंयार के डर घलो नइ रहय। आज लेखक कवि मन अपन कविता लेख के बरोबर प्रचार प्रसार भी ये माध्यम ले करत हे, अउ उन ल आह, वाह , लाइक कमेंट रूपी उत्साह के संगे संग ज्ञानीजन मनके मार्गदर्शन घलो मिलत हे। लाकड़ाऊन म सबले जादा साहित्यकार मनके थेभा सोसल मीडिया बनिस। लिखई, पढ़ई के सँगे सँग आडियो वीडियो रूप म कवि मन खूब वाहवाही बटोरिन अउ बटोरत घलो हे। छत्तीसगढ़ी म लिखई पढ़ई दिनोदिन बाढ़त हे, येला सोसल मीडिया घलो बरोबर सिद्ध करत हे।
सोसल मीडिया के तार जमे कोती लमे हे, अइसन म हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य न सिर्फ भारत म बल्कि विदेश म घलो पहुँचत हे। *छंद के छ* के कविता ब्लाग *छंदखजाना* के लाखों विदेशी पाठक मिलथे। अउ अइसन कतको ब्लाग हे जेला पूरा विश्व निहारत हे। आदरणीय संजीव तिवारी जी कस कतको गुणीजन मन छत्तीसगढ़ी ल गूगल म स्थापित करत हे। पुस्तक घलो सॉप्ट कापी जे रूप म आकर्षक ढंग ले छपत हे। आज हर कोई मोबाइल ले जुड़े हे, उठत बइठत सब लगे हे , अउ रंग रंग के जानकारी के साथ मनोरंजन घलो पावत हे। छत्तीसगढ़ी साहित्य के उत्थान बर सोसल मीडिया बड़का मचान बरोबर हे, जे विश्वभर ल परोसे के काम करत हे।
सोसल मीडिया म झूठा वाहवाही घलो गजब फलत फूलत हे, बिन पढ़े आह, वाह चलत हे, जेन कभू कभू दुख लगथे, कतको झन कखरो लेख कविता ल घलो चोरावत दिखथे, यहू गलत बात ये। खैर छोड़व, *सबे चीज के बने म बने होथे, अउ गलत म गलत।* सोसल मीडिया जतके नेता, व्यापारी,डॉक्टर,मास्टर, वैग्यानिक, फ़िल्म, अउ गुणी ज्ञानी बर उपयोगी हे, ओतके उपयोगी हम सब साहित्यकार मन बर हे, बशर्ते उपयोग के दशा दिशा सकारात्मक होय।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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छत्तीसगढ़ी साहित्य पहिली पढ़े बर नइ मिलय,बड़े बड़े साहित्यकार मन के पुस्तक छपंय पर आम जन के पहुँच से दूर रहय।
लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से हमर साहित्यकार मन ला जाने के पढ़े के मौका मिलत हे।
अब हिंदी रचना मन हर जनसुलभ तो शुरू से हवय लेकिन छत्तीसगढ़ी साहित्य बर ये सोशल मीडिया बहुते कारगर उपयोगी होगे हे।
येखर से आज कतको ग्रुप चलत हे
एक दूसर से जाने पहचान के संगे संग रचना भी आदान प्रदान होवत हे।
अपन मन के भाव ल सबके सामने रखे के अवसर भी मिलत हे।
सबले बड़े तो सौभाग्य ये मिले हे कि येखर माध्यम से बहुत बढ़िया कक्षा भी चलत हे ,गुरुकुल जैसे वातावरण भी हे।
इहाँ सिर्फ छंद नइ सिखाय जाय
सम्पूर्ण व्यक्तित्व भी निखारे जाथे।
सोशल मीडिया में छत्तीसगढ़ी साहित्य के चर्चा होवत हे तब
छंद परिवार के कक्षा ल अनदेखा नइ किये जा सकय।
येखर माध्यम ले कतको झन नवा कलमकार मन हा अपन लेखनी ल धार करत हें। इँहा फोकट के वाहवाही नइ होवय बल्कि खरा बात होथे।
अगर अइसने हर जगह रचना मन के समीक्षा होय अउ रचनाकार येला सहजता से स्वीकार करें तो
पोठ पोठ रचना ही आही।
आज ये अभिव्यक्ति के सरल माध्यम होगे हे।
सोशल मीडिया से छत्तीसगढ़ी साहित्य सबो जगह बगरत हे अउ सम्मान पावत हे।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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साहित्य, समाज के दरपन आय एमा कोनो संदेश नइये काबर की साहित्य हा समाज ला एक सही दिशा प्रदान करथे।
आज दुनिया भर मा साहित्य के डंका बाजथे, साहित्य के परचम लहराथे माने साहित्य के अतका जादा परभाव अउ विस्तार देखे ला मिलथे जेकर कल्पना नइ करे जा सकय। छोटे-छोटे गाँव, कस्बा, शहर से लेके हर जगा साहित्य बोवाय हे। ए बात मा दूमत नइहे की साहित्य के प्रभाव अभी के युग मा जादा हे फेर साहित्य ला चलईया कलमकार मन के संख्या भी जादा हे जेमन नित दिन अपन सेवा देवत हवँँय।
आजकल के लोगन मन के मुँह ले सुने हँँव जेमन कहींथय कि-साहित्य के प्रभाव कम होगे हे, अइसन कछु नइहे हालांकि पहिली के साहित्य अउ आज के साहित्य मा थोर-थार बदलाव आए हे फेर विस्तार तो ओइसने हे जईसन पहिली रिहिस।
साहित्य अउ साहित्यकार के परम धरम आय की ओमन समाज ला अउ समाज ले जुड़े हर झन ला जागरूक करे के काम करय *काबर की जागरूकता हा एक मात्र विकल्प आय प्रगति के* हर मनखे के नकरात्मक धारणा ला बदलना भी साहित्य बर जरूरी हे, इही कारन साहित्य ला विस्तृत करना आज के तारीख मा बहुत जरूरी हे हालाँकि विस्तार हवय फेर अउ जादा विस्तार लाना एक नवा समाज के निर्मान करही।
एक बात अउ हे राजनीति घलो साहित्य ऊपर आधारित हे जब तक साहित्य हे तब तक जग मा सकारात्मकता विद्यमान हे।
*छंद साधक*- अमित टंडन अनभिज्ञ
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कुछ समे पहली तक छत्तीसगढ़ी भाखा मा लिखाय साहित्य नइ मिलत रहिस। शहर मन मा भले कुछ साहित्य मिल जाय फेर उहू हा सरलता ले नइ मिलत रहिस। साधारन मनखे मन ला आकाशवाणी के माध्यम ले बड़का साहित्यकार मन के गीत सुने बर मिल जाय। कभू कभू गोष्ठी साहित्यिक परिचर्चा घलो प्रसारित होवत रहिस।
संचार माध्यम के विकास दुनिया मा होवत गिस अउ देश के सँगे संग हमर छत्तीसगढ़ राज मा घलो मनखे मन के हाथ मा मोबाइल आइस। मोबाइल मा घलो तकनीकी विकास होवत गिस अउ स्मार्ट फोन आइस। जब ले स्मार्ट फोन लोगन मन के हाथ मा सहजता ले आय हे छत्तीसगढ़ी साहित्य पढ़े सुने बर भारी मातरा मा मिलथे। एमा अबड़ अकन ठिहा हे जिहाँ जाके लोगन मन अपन बिचार छत्तीसगढ़ी भाखा मा रखथें। इही ठिहा मन सोशल
मीडिया आयँ।
सोशल मीडिया मा बड़े बड़े जुन्ना साहित्यकार मन ले लेके छोटे छोटे जे मन ला नेवरिया साहित्यकार कहि सकथन, के विचार छत्तीसगढ़ी मा पढ़े सुने बर मिलथे। एकर माध्यम ले एक दूसर के सिरजन के आदान प्रदान सरलता ले घलो हो जवथे जेमा गलती के सरलता ले सुधार करत बन जथे। एकर ले समय अउ धन के घलो बचत होवत हे। अभी सोशल मीडिया मा छत्तीसगढ़ी के सैकड़ों ग्रुप मिल जही। गाँव गाँव मा एकर माध्यम ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रचार प्रसार होवत हे। सोशल मीडिया के माध्यम ले आनलाइन कार्यशाला, गोष्ठी, काव्य पाठ अउ बहुत अकन गतिविधि संचालित हावत हाबय जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला समृद्ध करत हाबय। सोशल मीडिया वर्तमान मा अपन विचार रखे के सहज अउ सरल माध्यम बन गेहे। ये कहिन कि सोशल मीडिया हा छत्तीसगढ़ी साहित्य ला बिकास के रस्ता धरा दे हे।
सोशल मीडिया के माध्यम ले कुछ जुन्ना साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे बंदनीय बुता घलो करत हाबयँ। ये मन नेवरिया साहित्यकार मन ला अँगरी धर के लिखे बर सिखोवत हें अउ माँजत घलो हें । खच्चित उँकर ये उदिम छत्तीसगढ़ी साहित्य ला ऊँचाई तक ले जाही। नेट के जमाना मा मोला अइसे लगथे कि भविष्य मा ये प्रिंट मीडिया नँदा जाही अउ सोशल मीडिया के ही बोलबाला रइही जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ ले अउ पोठ करही।
मनीराम साहू 'मितान'
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आज के ये जउन दउर हे ओहर , ऑनलाइन अउ डिजिटल युग संग सोशलमीडिया के जमाना ये । आज कल हमर मन के बीच मा , अइसन - अइसन जिनिस मन के सुविधा अउ बेवस्था होंगे हावय । जीखर मन के आय ले समाज के लोगन मन ला बड़ सहूलियत होवत हावय , अउ काबर नइ होही पहिली जउन काम ला कराय बर हमला दुरिहा जाय बर पड़त रहिस । ओहर आज कल सबो जिनिस के सुविधा मन हर , हमला अपन तीर तखार म ही मिल जवत हे । आज विज्ञान हर अब्बड़ उन्नति करे के संगे संग , अतेक बड़े - बड़े काम बुता (आविष्कार) मन ला घलो सब करे हावय । जीखर मन के बारे म मनखे मन हर कभू सोचे घलव नइ रहिन होही । पहिली के समय मा लोगन मन हर सब , जउन जउन जिनिस मन के बारे म सोचत रहिस हे । आज विज्ञान के आविष्कार अउ आशीर्वाद ले ओ सबो जिनिस मन संग , ओखर ले कइ गुना जादा हमर मन के बीच मा आज हावय ।
जेमा अगर कहूँ हम गोठ करथन सोशलमीडिया के , ता सोशलमीडिया हर अइसन सुविधा आय । जेमा ले मनखे मन हर अपन खुद के प्रचार संग , काही जिनिस मन के घलव प्रचार अउ प्रसार ला । लोगन मन के बीच मा , अब्बड़ सरलता अउ सहजता ले कर सकथे । ये जउन सोशलमीडिया हे ओहु हर हमर मन के बीच मा नाना प्रकार के हावय : - जउन मन ला हमन - टीवी , रेडियो , मोबाइल , फोन , अउ किसम किसम के समाचार पत्र अउ पत्रिका मन म रोज पढ़त सुनत अउ देखत रहिथन ।
अब हम गोठ करथन हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य मा सोशलमीडिया के , आय के बाद ले होय बदलाव संग सोशलमीडिया मा हमर पहिली के अउ अभी के जउन साहित्यिक (गतिविधि) लेखन के दउर मा पड़े प्रभाव के ।
त हमर पहिली के अउ वरिष्ठ साहित्यकार लोगन मन सब बताथे की पहिली ये सब फेसबुक अउ वाट्सअप के चलन नइ रहिस हे । तेपाय के गिने चुने अउ बड़े बड़े साहित्यकार मन के ही लिखे रचना मन हर अखबार मन म छपत रहिस । फेर आज के दउर मा ये सोशलमीडिया अउ फेसबुक वॉटसअप के आय ले येखर चलागन अइसे होंगे हावय , की आज कल कुछ भी लिखव अउ ओला अपन फेसबुक होय चाहे वॉटसअप म ड़ाल के वाह वाही लुटव , आज के दउर मा येहर सब ले सरल अउ सस्ता सुविधा होंगे हावय । अउ येखरो ले निमगा सरल तो आज कल के अखबार मन म छपना होंगे हावय , पहिली के समय के तुलना मा आज अतेक अखबार होंगे हावय हमर मन के बीच म , की लोगन मन हर कुछ भी लिखथे अउ ओ सब हर छप जथे । जेखर चलते ही आज कल लोगन मन के जउन लेखन के ये स्तर हे ओमा सुधार नइ हो पावत हे । आज सोशलमीडिया के ये दउर हर लोगन मन के दिल अउ दिमाक म अइसे घर कर दे हावय की लोगन मन ला तो बस लिखना हे अउ बस छपना हे । चाहे ओ रचना हर कइसनो राहय , ओ सब ले ओमन ला कोनो फरक नइ पड़य । आज इही हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य के पछुवाय के एक ठन कारन इहु हरय । आज भी हमर मन के बीच मा , हमर महतारी भाखा के जानकार अउ वरिष्ठ साहित्यकार भाषाविद् सुजान मन हर हवै । फेर ओखर ले जादा तो दुख के बात ये हावय की अभी के दउर के जउन नवा लिखइया कलमकार मन हे , तउन मन दू चार लाइन का लिखथे अउ अपन आप ला आज के युवा अउ वरिष्ठ साहित्यकार घलव कहिथे । जउन मन ला न तो येखर बरोबर क ख ग पता राहय । आज सोशलमीडिया हर भले हमन ला अतका सुविधा दे हावय , फेर कहिथे ना फूल के संग म काँटा तो रहिबे करथे । बस इही हे कतकोन मन बने काम बर करथे त कुछ मन हर गलत काम बर , ये अपन अपन समझदारी के बात होथे ।
मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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जबले संचार क्रांति आइस हावय तबले नवा नवा सबो चीज मा उन्नति होइस हावय अउ हमर छत्तीसगढ़ साहित्य एखर से अछूता नई हावय। मोबाइल आज हमर जिनगी के एक अंग बनगे हावय अउ एखर प्रभाव छत्तीसगढ़ साहित्य मा भी देखे जा सकथे। आज संचार क्रांति के माध्यम ले सोशल मीडिया के नवा नवा हमला प्लेटफार्म मिलिस जइसे *व्हाट्सएप, फेसबुक, ब्लॉगर* अउ ये सबो सुविधा हमर समाज के सब्बो जन मेर पहुँचत हावय। आज हमन न सिर्फ अपन रचना ला मोबाइल के माध्यम ले लिखत हावय अउ प्रचार प्रसार तको करत हावय। आज प्रसार प्रसार करे बर हमर मेर व्हाट्सएप, फेसबुक हावय अउ रचना प्रकाश बर ब्लॉग तको हावय। पहली हमर रचना ला बिना प्रकाशन के सब जन मेर नई पहुँचा पावत रहेँन फेर सोशल मीडिया आय ले एहू समस्या हा खत्म होगय। पहली प्रकाशन में गलती होंगे त ओला सुधारे के भी सुविधा नई रहिस। फेर आज गूगल के माध्यम ले ब्लॉगर मा रचना ला प्रकाशन कर अपन रचना ला कइयो बछर सुरक्षित रख सकत हावय अउ अगर रचना में कुछ गलती हावय त ओला कभी भी सुधार भी कर सकत हावय। आज लोगन ब्लॉगर के रचना ला कहूँ मेर कोनो जगह जब भी समय मिलही पढ़ सकत हावय, चाहे मनखे दूर दराज देश मा होय या गाँव शहर में होय। आज छत्तीसगढ़ साहित्य ला सोशल मीडिया बहुत बड़े रूप मा पाठक अउ रचनाकार प्रदान करिस हावय अउ करत हावय। मोर सुरता मा सबले पहली छत्तीसगढ़ साहित्य मा ब्लॉगर के उपयोग अउ छत्तीसगढ़ साहित्य ला पढ़े के सुविधा *गुरतुर गोठ* के माध्यम ले *आदरणीय संजीव तिवारी जी* प्रदान करिन अउ उँकर अथक प्रयास ले हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग ला देख गूगल हा छत्तीसगढ़ी गूगल इंडक कीबोर्ड प्रदान करिन। एकर से हमन विचार कर सकत हावय की आज छत्तीसगढ़ साहित्य ला सोशल मीडया कतका प्रभावित करिस अउ कतका बढ़िया भाषा ला सहेजिस। आज छत्तीसगढ़ साहित्य मा नानम प्रकार के गद्य अउ पद्य ला सोशल मीडया के माध्यम ले सीखत अउ पढ़त हावय। सोशल मीडिया के माध्यम ले *आदरणीय अरुण निगम गुरदेव* हा छंद के छ ऑनलाइन कक्षा चालू करिन आज ओकर परिणामस्वरूप नवा नवा अनेक छन्दकार छत्तीसगढ़ मिल पाइस। मोर बिचार ले आज छत्तीसगढ़ साहित्य के विकास मा सोशल मीडया के महत्वपूर्ण भूमिका हावय अउ एला भुलाये नइ ला सके।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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छत्तीसगढ़ी भाखा अब धीरे धीरे भाषा मा तब्दील होवत हे। छत्तीसगढ़ के अधिकांश आबादी ए भाषा ला या तो उपयोग करथे या समझथे। सुदूर बस्तर के दंतेवाड़ा अउ बैलाडिला मा भी ए भाषा के जनइया आप ला मिलही ।आप आदमी सहज संपर्क भाषा के रूप मा एला बोलचाल मा लाथे। कुछ अलग अलग रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मा प्रचलित हे। परन्तु हमर पढ़े लिखे अउ शासन प्रशासन के भाषा अभी नइ बने हे। कतको साहित्यकार मन समर्पित होके छत्तीसगढ़ी मा साहित्य सिरजन करे हें, अउ वर्तमान मा करत हे। आज बहुत अकन अखबार मन नियमित छत्तीसगढ़ी मा साप्ताहिक पेज प्रकाशित करत हें। आकाशवाणी, टेलीविजन ले समाचार के प्रसारण होवत हे। रेल्वे मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के संग छत्तीसगढ़ी मा घलो सूचना मिलत हे। जनता के ये सर्वमान्य बोली ला भाषा के दर्जा बर बहुत अकन उदीम साहित्यकार मन करिन।तभे छत्तीसगढ़ सरकार हा 2008 मा राजभाषा के दर्जा दिस।अउ तब ले राजभाषा आयोग के माध्यम ले घलो छत्तीसगढ़ी के समृद्धि बर बहुत अकन आयोजन होवत आवत हे। ये छत्तीसगढ़ी अब तक कुछ पुस्तक अउ कुछ अखबार के साप्ताहिक पन्ना तक ही सीमित रिहिस।
जब ले मोबाइल आम आदमी के हाथ मा आय हे छत्तीसगढ़ी भाषा ला नवा उड़ान मिल गे हे। साहित्य जगत मा छत्तीसगढ़ी मा लिखने वाला मन के पूछ परख बने हो गए हे। फेसबुक वाट्सप मा छत्तीसगढ़ी मा लिखइया पढ़इया मन के बाढ़ आ गे हे। छत्तीसगढ़ी बर विचार मंथन होवत हे। भाषा के समृद्धि बर चिंतन होवत हे ।आज छत्तीसगढ़ी मा गद्य अउ पद्य के लेखन मा आप ला बहुत सुधार दिखही। व्याकरण अउ भाषायी शुद्धता मा प्रगति आप ला दिखही। छत्तीसगढ़ी मा आज गीत के साथ साथ छंद बद्ध काव्य के विपुल सामग्री आप ला दिखही, जेकर पहिली अभाव असन रहिस हे। नवगीत गजल सजल जइसे बहुत अकन हिंदी उर्दू के विधा हा घलो छत्तीसगढ़ी भाषा मा सम्मान पावत हे।
सरकार के बहुत अकन विज्ञापन आज छत्तीसगढ़ी मा रहिथे। बाजार भी आज छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व ला समझ के मार्केटिंग बर एकर उपयोग शुरू कर दे हे। शासन प्रशासन के कर्मचारी अधिकारी मन ला छत्तीसगढ़ी लिखे बोले बर प्रशिक्षण शाला लगत हे। छत्तीसगढ़ी आम आदमी के भाषा ए। हम जतके एकर महत्व ला बढ़ाबो, लिखबो पढ़बो बोलबो, सरकार वोतके मजबूर होही।
सोशल मिडिया के आम आदमी तक पहुंच होय ले छत्तीसगढ़ी भाषा ला संजीवनी मिल गे हे। मैशेज आज छत्तीसगढ़ी मा भी ओतके कन लिखे पढ़े जावत हे जतका कन हिंदी मा। बधाई संदेश, सूचना, कथा कहानी, कविता गीत, तीज तिहार के गोठ सबो आज आप ला छत्तीसगढ़ी मा आसानी ले मिलही सोशल मिडिया मा ।नवा नवा लेखक कवि मन बर बहुत सुग्घर मंच हो गए हे फेसबुक वाट्सप मन अउ इंटर्नेट। दूर अंचल के व्यक्ति भी छत्तीसगढ़ी भाषा ला माध्यम बना के आज प्रसिद्धि पावत हे।आंन लाइन सिखे सिखाय, लिखे पढ़े अउ गोठियाय के सुगम माध्यम उपलब्ध होय के कारण आज छत्तीसगढ़ी मा लेखन मा उत्साह दिखत हे । छत्तीसगढ़ी साहित्य निश्चित रूप ले महत्व पावत हे। भविष्य सुंदर हे। आज छत्तीसगढ़ी मा लिखइया मन के पूरा प्रदेश मा एक समर्पित समुह आप ला दिखही ।हम जतके ए ला पढ़े लिखे बोले के माध्यम बनाबो, ओतके एकर साहित्य मान पाही सरकार भी छत्तीसगढ़ी ला अपनाय बर मजबूत होही। जन बल के आगू सरकार ला झूके ला ही पड़थे। छत्तीसगढ़ी भाषा ला समाज के, साहित्य के, सरकार के, प्रशासन के भाषा बनाय बर, जन बल ला मजबूत करे बर पडही। ताकि शासन एला अवइया समय मा स्कूली शिक्षा के माध्यम बनाय। सरकार के कामकाज के भाषा बनाय। छत्तीसगढ़ी भाषा के उत्थान बर सोशल मिडिया हा जन आंदोलन के सर्वोत्तम माध्यम बनत हे।
बलराम चंद्राकर भिलाई
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अइसे तो हर भाखा के अपन साहित होथे।जउन म वो भाखा के बोलइया मनखे के दुख-पीरा,हाँसी-ठिठोली, सँग जिनगी जिएँ सबो चलन के दरसन करे जा सकत हे।अइसे भी कहे जाथे, कहूँ कोनो सँस्कृति अउ सभ्यता के नाँव बुताना हे (नाश करना हे)त उँखर साहित ल बिगाड़ दौ।एखर मतलब होइस कि सँस्कृति अउ सभ्यता ल जानना हे त वो देश परदेश के साहित ल पढ़ना चाही। साहित जरूरी नइ हे कि बड़े-बड़े पोथी पथरा के रूप में मिले, साहित के सरूप समे के संग बदलत गे हे अइसे कहे जा सकत हे। काबर कि बहुत कुछ जानकारी जउन अभी तक देखे म मिलथे,वो म शिलालेख या पथरा में लिखे अउ उकेरें चित्र ल भी साहित्य के रूप में लिए जा सकथे। हाट बाजार मंदिर मन म इहाँ-उहाँ बिखरे पड़े मिले हे।
कुछ साहित मौखिक रूप ले एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी में सरलग आगू बढ़त हे। अइसन हमर छत्तीसगढ़ी साहित बर भी कहे जा सकत हे या माने जा सक थे। इहाँ कथा कहिनी बाबा डोकरी दाई मन ले सुन के कतको पीढ़ी बीत गिन, आजो बबा डोकरी दाई मन ल कई ठो कहिनी किस्सा गाँव के नाती नतुरा मन ल सुनात देखे जा सकथे।टीवी रेडियो के चलन नइ रहे ले गुड़ी चौक मा, पारा परोस के बड़े-बड़े चौरा म किस्सा कहिनी कहि के थके हारे मनखे मन के मनोरंजन करथे। धीरे-धीरे समे के संँग हमर पुरखा साहितकार मन एला लिखिन-पढ़िन अउ किताब पोथी के रूप में सहेजिन। आजो सहेजत जात हे।जउन ला लोकसाहित के नाव ले आज भी नवा नवरिया साहित्यकार मन अब सब परकार के छत्तीसगढ़ी साहित्य सिरजत हावे।फेर पढ़ईया के तब रोना रहिस रहे अउ आजो रोना हवे। ए कहे जा सकथे। किताब पढ़ईया अब नहीं के बराबर हे, अइसन काबर हे एखर गोठ करना अभी जरूरी नइ हे। फेर एकर पूर्ति करत नवा उदीम मोबाइल आय हे। जेमा सोशल मीडिया के रूप में व्हाट्सएप,फेसबुक,ट्वीटर गूगल के उपयोग करे जात हे। छोटे बड़े नवा नेवरिया अउ वरिष्ठ साहितकार मन ल एके मंच में देखे जा सकत हे। जेन नवा नेवरिया साहितकार मन ला मंच नइ पात रहिन।उन ल सोशल मीडिया मउका दिस।हर हाथ मोबाइल चलावत सोशल मीडिया में अपन भाखा बोली के बात सुनथे ।ए किसम ले कहे जाय त हर भाषा के साहितकार बर मीडिया बड़े वरदान साबित होत हे। फेर छत्तीसगढ़ी बर बहुते जादा वरदान माने जा सकत हे। कारण इहाँ समाचार पेपर म छत्तीसगढ़ी बहुत कम होथे ।छत्तीसगढ़ी के पर्याप्त समाचार पेपर नइ हे। छत्तीसगढ़ी के रचनाकार ल पाठक तक बरोबर पहुंचे के मौका फेर व्हाट्सएप फेसबुक के जरिया ले मिले हे।
आज सरकारी योजना मन के अउ राजनीतिक विज्ञापन के परचार परसार भी सोशल मीडिया म भरपूर होवत हे।यहू म छत्तीसगढ़ी के परयोग एक आशा के किरण हे कि सरकार अउ नेता मन मन ले मानथे कि जनता तक छत्तीसगढ़ी ले बात सही ढंग ले पहुँचथे।एखर फायदा साहितकार मन ल उठाना पड़ही।साहित सिरजन करत छत्तीसगढ़ी ल बराबर मान देवाय बर जरूरत के उदीम करँय।
सम के सँग चलत ही सफल होय जाथे, समे के पाछू चले ले कभू सफल नइ होय जा सकय।इही ढंग ले आज के समे सोशल मीडिया के हावै एकर उपयोग करत छत्तीसगढ़ी भाखा के विस्तार करना पड़ही।
सोशल मीडिया म छत्तीसगढ़ी भाखा या साहित बर दू ठन बड़े चुनौती दिखथे।एक किस्सा कहिनी बड़े होय ले एला पाठक नइ पढ़े।
दूसर आज के जादा पढ़े लिखे मन अपन लइका मन ला अपन महतारी भाखा ले दूरिहा रखत हें।
ए दूनो चुनौती ले पार सरकारी पहल ले ही पाय जा सकथे। पाठ्यक्रम म कहिनी लोकचरित्र के सँग गीत कविता के पढ़ाई के महतारी भाखा माध्यम बनै।
छत्तीसगढ़ी बर एक बात यहू हे कि बहुत पहिली एकर बोलइया रहिस तब साहितकार नइ रिहिन।आज दूनो हे त एला राजभाषा के सही मान देवाय म कोनो अड़चन नइ होना चाही।
*पोखन लाल जायसवाल*
*पलारी बलौदाबाजार छग.*
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छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करे के उदिम ले चलत छंद के छ रूपी आंदोलन, सोसल मीडिया के भरपूर लाभ उठावत हे। मार्च 2016 ले सतत रूप ले आनलाइन कक्षा गतिमान हे, जिहाँ छत्तीसगढ़ के लगभग 20,22 जिला के नवा अउ जुन्ना कलमकार मन जुड़े हे, अउ छंद विद्या के ज्ञान अर्जित करत हे। आज छंद के छ परिवार म 120 ले आगर साधक संगी मन लगभग 50, 60 प्रकार के छंद म बरोबर कलम चलावत हे, एखर साथ साथ ऑनलाइन छंदमय काव्य गोष्ठी जेन 2017 ले लगातार चलत हे, तेखर माध्यम ले छंद के लय, ताल यति, गति ल घलो सीख जे अपन गायकी ल निखारत हे। छंद के छ के ये उदिम 2016 ले आजो सब ला सँग लेके , शालीनतापूर्वक बरोबर चलत हे। भविष्य म अउ साधक मन घलो जुड़ही, कई झन अभी ले, छंद परिवार के सम्पर्क में हे। आज छंद के छ के 12 ठन कक्षा जारी हे, जिहाँ साधक मन छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदबद्ध रचना ल बढ़ाये बर लगे हे।
छंद के छ के ये उदिम पूर्णतः सोसल मीडिया उप्पर आधारित हे, वाट्सअप के माध्यम ले कक्षा अउ काव्य गोष्ठी दूनो संचालित होथे। छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदमय कई ठन पुस्तक छंद के छ के साधक मन निकाले हे, जेमा निगम गुरुदेव के छंद के छ(जेन ये आंदोलन के आधार बनिस), चोवाराम वर्मा जी के छंद बिरवा, मनीराम मितान जी के आगी सोनाखान के, जगदीश साहू जी के सम्पूर्ण रामायण, रमेश चौहान जी के दोहा के रंग, आँखी रहिके अंधरा आदि एखर आलावा कई झन साधक मनके पुस्तक प्रकासाधीन हे। सोसल मीडिया के सहारा ही, साधक मनके छंद, छंदखजाना ब्लाग म प्रकाशित करे जाथे, जेखर पाठक न सिर्फ हमर राज, हमर देश बल्कि विदेश म घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर दुर्ग भिलाई म क्लास चलाये ले आसपास के कवि या कोनो रुचि रखइया साधक मन भर जुड़ पातिस, पर सोशल मीडिया के मदद ले न सिर्फ रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई के साधक मन जुड़े हे, बल्कि कोरबा, रायगढ़, जशपुर, कोरिया, कांकेर, राजनादगांव, कवर्धा, बलौदाबाजार, चाम्पा, बेमेतरा, गरियाबंद, महासमुन्द, बस्तर, बालोद, आदि जिला के कलमकार मन घलो जुड़े हे। अउ वाट्सअप के माध्यम ले छंद सीखत हे अउ सीखे के बाद गुरु बनके सीखवत घलो हे। गुरु शिष्य के ये परम्परा (सीखे अउ सीखाय के) पूर्णतः निःस्वार्थ अउ निःशुल्क हे। छत्तीसगढ़ी छंद बर सोसल मीडिया के वाट्सअप बड़का सहारा बनिस, ओखर प्रताप ले आज छत्तीसगढ़ी म लगभग 5000 छंदबद्ध रचना छंद जे छ के साधक मन द्वारा हो चुके हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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मीडिया ल लोकतंत्र के चौथा स्तम्भ माने गे हे। प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संगे संग नवा -नवा अवतरे सोशल मीडिया ल जेला हम प्रेम से मोबाइल मीडिया कहि सकथन, एकर रूप कहे जा सकथे। आजकल के बात करन त एमा सोशल मीडिया/मोबाइल मीडिया जेकर फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्वीटर आदि अनेक अंग हे, बड़ सजोर दिखथें।काबर कि एहा सरी दुनिया मा छा गेहे।पढ़े लिखे मन ल कोन काहय अनपढ़ तक मन एकर परम भक्त होगे हें।
जहाँ तक छत्तीसगढ़ी साहित्य उपर सोशल मीडिया के प्रभाव के चर्चा करे जाय त अइसे लागथे कि ए दौर ह छत्तीसगढ़ी साहित्य के स्वर्णकाल जइसे लागथे। ए सोशल मीडिया के खाद-पानी पाके छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ रचनाकार जम्मों लहलहावत दिखथें। गाँव -गाँव म छिपे गुदड़ी के लाल मन के सृजन ल एहा जग जाहिर करत हे। पूरा जिनगी पहा जतिच फेर कभू उँकर रचना नानमुन पेपर के कोनो कोनटनिया तको म नइ छपतिच तेन ह आज चोबीस घन्टा सोशल मीडिया म छपत हे अउ ओला हमर देश प्रदेश के कोन काहय विदेश मन के मनखे मन पढ़त हें।
आप ल ए जान के सुखद आश्चर्य होही कि-छतीसगढ़ी के नवा जुन्ना छंद साधक मन के छंद खजाना नाम के एक फेसबुक पेज म संग्रहित होथे तेला यूरोप महाद्वीप के मनखे मन तको पढ़थे।एहा सोशल मीडिया के महिमा आय ओइसने अउ बहुत झन छत्तीसगढ़िया कलाकार, साहित्यकार मन के कृति विश्व व्यापी होवत हे।
कल्पना करव आज ले 10 --15 साल पहिली कोनो पुरखा साहित्यकार के रचना ल हम पुस्तक म ही पढ़ सकत रहेन । फेर पुस्तक का सबो आप जनता के पहुँच म रहिसे? नइ रहिसे । आज सोशल मीडिया के कृपा ले सब सहज रूप म उपलब्ध हे। मैं प्रणम्य पं सुंदरलाल शर्मा जी , हरि ठाकुर जी , जनकवि कोदू राम दलित जी आदि के पुस्तक ल नइ पढ़े अवँ , न तो उँकर किताब मोर सो हावय फेर सोशल मीडिया के माध्यम ले अब घर बइठे पढ़त हवँ। आँजे दानलीला ल अमर कवि गायक मस्तुरिहा जी के स्वर मा देखे ,सुने हवँ।
सोशल मीडिया के माध्यम ले सीखना सिखाना घलो होवत हे। साहित्य रस के प्रचार -प्रसार म सोशल मीडिया बड़का भूमिका निभावत हे। छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन के कृति म आधुनिक भाव बोध के दर्शन होवत हे। साहित्य के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी रीति रिवाज अउ संस्कार ले परिचय ए सोशल मीडिया ह सरी दुनिया ल बहुत तेजी ले करावत हे। भाषा घलो मँजावत हे ,एमा कोनो शक नइये।हम रचनाकार मन के परिचय के दायरा ल ए सोशल मीडिया ह बहुतेच जादा बढ़ावत हे, भले ए आभासी हे। कुछ नइ होना ले कुछ होना तो अच्छा हे। कुल मिलाके सोशल मीडिया ल छत्तीसगढ़ी साहित्य बर वरदान कहे जा सकथे।
ए तो होइच सोशल मीडिया के छत्तीसगढ़ी साहित्य म चमकत एक पहलू ।दूसर पहलू ऊपर नजर डारे म वो ह चिटिक धुँधला दिखथे। सबले बड़े करिया धब्बा तो एमा अविश्वनीयता के हाबय। एके ठन रचना ह आने आने के नाम ले सैंकड़ों पटल म बिन लगाम के दउँड़त रहिथे। पते नइ चलय कि ओकर असली जनक कोन ए। कहूँ के ईंटा कहूँ के रोड़ा ,भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाला किस्सा खूब चलत हे। ए हा छत्तीसगढ़ी साहित्य बर शुभ संकेत नोहय। आजकल रचना के चोरी होये ल धर लेहे। आन के रचना म अपन नाम लिख के सोशल मीडिया म डाल देथें अउ ए मीडिया ह पर्रा भर लाई कस बगरा देथे, जेला सकेलत म जीव छूट जही।
मौलिकता ल तो ए मीडिया ह सुरसा कस मुँह फइलाये लिलत हे। दू चार शब्द आगू पाछू ,भाव जस के तस तहाँ ले होगे मौलिक । सोशल मीडिया अउ गुणवत्ता के बात करना तो बेकारे हे। ऊँचा दुकान अउ फीका पकवान के भरमार हे ।एहा घरोघर कवि, लेखक ,शायर चुटकी बजावत गढ़ देथे । अइसन चमत्कार कर देना कोनो छोटे मोटे बात आय का?
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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आज नवा जुग मा अंतर्जाल हा बहुत जादा लाभकारी हे,घर बइठे दुनियाँ के जानकारी हर जिनिस मा मिल जाथे।एखर जीता जागता उदाहरण *छत्तीसगढ़ी छंद*ला श्रद्धेय श्री निगम गुरुदेव द्वारा चलाय गये हे...जेला श्री जितेन्द्र वर्मा वरिष्ट गुरुदेव मन बहुत सुग्घर ढंग ले बताइन है।
बहुत बड़े लाभ हम महिला मन ला होइस हे,घर बइठे हम साहित्य साधना करत हावन अउ जग मा साहित्य ला परोसत हन।एक महिला के कक्षा के नाव लेके बार बार घर ले निकलना नइ हो पाय,आज साहित्य मा रुचि रखने वाला हर महिला अनेको साहित्यिक पटल ,फेसबुक...आदि ले जुड़े हवय अउ लाभ ला घर ब इठे लेत हावय ऐहा आज के जुग मा वरदान हे।
फेर अंनर्तजाल के सकारात्मक अउ नाकारात्मक दुनो पक्ष हे।साहित्य मा ज्ञान के लाभ उठाना अउ आधू बढ़ना सकारात्मक हे अउ दूसर के साहित्य ला अपन नाव देके आधू बढ़ना ए हा नकारात्मक पहलू हे,ऐला अनदेखा नइ करे जा सके।
साहित्य के बात होत हे ता जब कोनो साहित्य एक लेखक अपन हिसाब से लिखथे अउ मिडिया मा डालथे ता ओला अन्य रचनाकार पढ़थे,अउ ओखर सही आकलन करथे,के जेन साहित्य ला परोसे गे हे ओ हा कतका सही हे कतका गलत...!अउ एमा तर्क वितर्क चालू हो जाथे अउ एक सही साहित्य परिणाम के रुप मा निकल के आथे।जेन विश्व बर लाभकारी हे,एखर ले ए लाभ मिलथे के जब कोनो साहित्य हा मिडिया मा डले जाय ता सही सही डाले जाय।आज के जमाना मा मिडिया..बहुत प्रभावी हे हमला सकारात्मक सोच अउ ज्ञान ला अपनाके आधू बढ़ना चाही।
आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, के मंत्र ला साकार करे मा संचार तंत्र के भूमिका ,आरंभ से लेके आजतक चलायमान हवे।मिडिया के दू रुप आय,प्रिंट मीडिया अउ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रासंगिक दूनो हवे ,फेर वर्तमान मा इलेक्ट्रानिक मीडिया के बहुप्रचलन ले जन जन जुड़े हवे।अभी आप संग लिखित संवाद के सशक्त माध्यम,इही सोशल मीडियाच हवे।
हर मनखे के मौलिक बिचार, हम बइठे बइठे कोनो बेरा, कोनो दिन मा सकेल लेथन,बेरा मा जुड़ जाथन अउ नवा जुन्ना सबो के गियान, मिनट भर मा ले लेथन।ये सब माया, आभासी संसार ले हवे,जऊन- छत्तीसगढ़ी भाषा, समाज , साहित्य , संस्कृति विषय ला बगराय के काज ,सोशल मीडिया करत हावे।परिणाम हम छत्तीसगढ़ साहित्य गौरव के चर्चा ,पटल के माध्यम ले करत हन।भाषा के विकास मा साहित्य के योगदान गद्य पद्ध दूनो विधा मा समकालीन सरोकार के हर पहलू ले जुड़े हवे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य ला सोशल मीडिया मा समृध्द करे के उदमी मा डाॅ सुधीर शर्मा, श्री संजीव तिवारी जी मन ,ब्लॉग ,यू ट्यूब चैनल के जरिया छत्तीसगढ़ी साहित्यकार अउ साहित्य के पहुँच बर देश विदेश तक जोड़े मा,भाषा ला राजभाषा के मान देवाय बर नवा नवा उदमी करत हावे।ऐखर ज्वलंत उदाहरण मा र्व्हाटसअप के जरिया छंद असन कठिन विषय ला आसान बनाय के कारज करत हवे ,गुरु जी अरुण कुमार निगम जी ,सरलग 2016 ले छत्तीसगढ प्रदेश भर मा,छत्तीसगढ़ी साहित्य ला समृध्द करे बर , नवा पीढ़ी गढ़े मा लगे हवे।
आज फेसबुक ब्लॉग के जरिया लगभग दस बारह देश मा छत्तीसगढ़ी छंद ला पढ़े जात हे।
छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के विकास क्रम मा आज सोशल मीडिया के माध्यम ले साहित्य कार मन ला सजग बनाए हवे।नित नवा ऐप के क्रांतिकारी कदम ले आज छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य, साहित्य कार संस्कृति के जस चारों खूँट बगरय हवे,बिषय सामग्री साहित्य साहित्य कार परिचय, रचना सबो सोशल मीडिया मा असानी ले मिल जथे।सोशल मीडिया ले छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के जुडाव,वर्तमान मा तो अपन छाप छोड़त हवे,भविष्य मा भी मील के पथरा माने जाही।
*मीता अग्रवाल मधुर
रायपुर छत्तीसगढ़*
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इंटरनेट आये के बाद शुरुआती समय मा पी.सी. फेर लैपटॉप मा हिन्दी के संगेसंग छत्तीसगढ़ी भाषा घलो अपन रंग जमाना चालू करिस। तब साधन संपन्न मन करा पी.सी. अउ लैपटॉप रहिस जेमा ब्लॉग अउ वेबसाइट के माध्यम ले वोमन अपन रचना, आलेख आदि पोस्ट करत रहंय। इंटरनेट वाला मोबाइल फोन आए के बाद उपयोग करने वाला मन के संख्या बढ़गे। ब्लॉगर मन घलो फेसबुक, वाट्सएप, ट्वीटर आदि मा ज्यादा रुचि लेना चालू करिन। आज इंटरनेट वाला फोन सबो झन के पास हे अउ छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी भाषा मा अपन विचार व्यक्त करना आम बात होगे। लेखन ला सरल बनाए मा मुख्य योगदान हिन्दी-अंग्रेजी के की-बोर्ड ला जाथे। पहिली टाइपिस्ट मन टाइप करत रहिन, आज के की-बोर्ड मा टाइपिंग सीखे के जरूरते नइये। आज सोशल मीडिया मा छत्तीसगढ़ी साहित्य छाए हे। हरेक ला अपन विचार व्यक्त करे के सुविधा उपलब्ध हे।
*संजीव तिवारी जी अपन गुरतुर गोठ डॉट कॉम नाम के वेबसाइट मा छत्तीसगढ़ी साहित्यकार, कलाकार मन के कतको रचना ला संग्रहित करत हें। कई ठन छत्तीसगढ़ी किताब के पी डी एफ तको उहाँ पढ़े बर उपलब्ध हे। पुरखा साहित्यकार मन के कृतित्व अउ व्यक्तित्व, छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ परम्परा के जानकारी तको गुरतुर गोठ मा संकलित हे* एखर अलावा कई झन साहित्यकार के निजी ब्लॉग मा घलो छत्तीसगढ़ी रचना पढ़े बर उपलब्ध हे। *छन्द के छ - परिवार* के सदस्य मन के छन्द संकलन बर *छन्द खजाना* नाम के ब्लॉग मा निमगा छन्द रचना पढ़े बर उपलब्ध हे। *छत्तीसगढ़ी गद्य खजाना* मा इनकर गद्य रचना पढ़े जा सकथे। *हर छत्तीसगढ़ी साहित्यकार ला अपन एक ब्लॉग जरूर बनाना चाही*। ब्लॉग मा पोस्ट रचना इंटरनेट मा सदा दिन बर सुरक्षित हो जाथे अउ गूगल मा सर्च करके दुनिया के कोनो देश मा पढ़े जा सकथे।
*अरुण कुमार निगम*
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सच मा सोशल मीडिया के सदुपयोग करइया बर सोशल मीडिया वरदान साबित होत हे। मँय अपन आप ला येखर ले जोड़ के देखथँव ता लागथे सोशल मीडिया नइ होतिस ता मँय कहाँ होतेंव। मँय निच्चट गवँइहा अउ सायद आप सब झन ले बहुत कम पढ़े लिखे मनखे ला साहित्य के ज्ञान कहाँ ले मिलतिस। सोशल मीडिया नइ होतिस ता ना मोला गुरु मिलतिस ना ज्ञान। ना मोला हिन्दी आय ना अंग्रेजी अउ छत्तीसगढ़ी घलो जो हमर क्षेत्र में बोले जाथे उहीच आत रहिस हे। अब गुरुदेव यानी छंद के छ परिवार ले सोशल मीडिया के माध्यम ले जुड़ के धीरे धीरे बहुत कुछ सीखत हँव अउ कुछ लिख पात हँव।
येखर श्रेय सोशल मीडिया ला ही जाथे की मोला छत्तीसगढ़ी साहित्य उपलब्ध कराइस हे तभे मँय दूसर के ला पढ़ पढ़ के अपन मन मा उमड़त भाव ब्यक्त करे बर सीखत हँव।
अनिल सलाम
गाँव उरैया नयापारा
तहसील नरहरपुर
जिला काँकरे (छ. ग.)
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अभिव्यक्ति के आजादी के संगे संग महत्वपूर्ण बात एहू हर तो आय के साहित्यकार ल अपन रचना प्रकाशन के ललक रहिथे .....प्रिंट मीडिया के विकास हर साहित्यकार ल पत्र - पत्रिका मं प्रकाशन के मौका दिहिस त किताब के रूप मं भी रचनाकार अपन भावना ल अलग अलग विधा मं प्रकाशित कराये लगिन तभो ये बात के ध्यान रहय के व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के आज़ादी हर दूसर के गुलामी झन बने पावय ...अभी जादा दिन नई होये हे जब लोगन के हाथ सोशल मीडिया लगिस ....साहित्यकार समय संजोग देख सुन के अपन रचना फेस बुक , व्हाट्सएप , ब्लॉग आदि के माध्यम से लोगन तक सहज रूप से पहुंचाये धर लिहिन ...फायदा लेखक अउ पाठक दुनों ल होइस हे काबर के साहित्यकार ऊपर सम्पादक के टीका टिप्पणी के डर नईये , प्रकाशित होही के नहीं , होही त कब होही ? सब झमेला ले मुक्ति । रहिस बात पाठक के त का कहना हे सोशल मीडिया के अंगना मं पहुँचत देरी हे के मनपसंद लेख , कविता , कहानी , लघुकथा , संस्मरण सब मिल जाथे ...अब तो on line गोष्ठी , सम्मेलन , वेबिनार तक सम्पन्न होवत हे । सोशल मीडिया हर साहित्य अउ सहित्यकार दूनों ल सर्वजनसुलभ बना देहे हे ।
आज के विमर्श मं भागीदार बुधियार साहित्यकार मन के विचार जानके पटल के शोभा बाढ़ही ...।
कलम तोर जय हो ।
सरला शर्मा
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पहली कहय कि *नेकी कर अउ दरिया म डार* फेर आज सिरिफ एके चीज दिखथे, कुछु भी कर , अउ सोसल मीडिया म डार। अउ जरूरी घलो हे, काबर की आज सोसल मीडिया के तार मनखे के धड़कन ले जुड़ गेहे। केहे के मतलब जमाना सोसल मीडिया के हे। आज लगभग हर हाथ म मोबाइल हे, अउ सुबे साम मनखे वोमा भिड़े, जम्मो कोती के शोर खबर अउ मनोरंजन के साथ साथ गियान घलो पावत हे। बबा के लगाये बर के आज सबूत नइहे, काबर कि वो जमाना सोसल मीडिया के नइ रिहिस। आज तो एक पेड़ ल लगावत 20, 25 झन दिखथे। अउ फोटू खिचाके सोसल मीडिया म वाहवाही बटोरथे। चाहे परब- तिहार होय, या बर बिहाव सबे सोसल मीडिया म मान पावत हे।
जब सोसल मीडिया भारत म पाँव पसारत रिहिस त भारतीय सुधिजन मन चिंता व्यक्त करिन कि एखर ले अंग्रेजी के बोलबाला हो जही। फेर आज हिंदी अंग्रेजी ले आँखी मिलाके बतियावत हे। अइसन म *छत्तीसगढ़ी* काबर पिछवाय, उहू ल हमर राज के जम्मो झन मनखे मन बरोबर बउरत हे, फेसबुक वाटससप अउ कतको माध्यम म छत्तीसगढ़ी भाषा के लेख, कविता, गीत के आडियो, वीडियो भराय पड़े हे। सोसल मीडिया म हमर भाषा बरोबर जघा बना डरे हे, साहित्य अउ गीत संगीत के बढ़वार लगातार दिखत हे। आज कवि अउ लेखक मनके कविता, गीत लेख तरोताजा अउ तुरते सोसल मीडिया के जरिये चारो कोती बगर जावत हे। छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य ल नवा ऊँचाई मिलत हे। छत्तीसगढिया मन सोसल मीडिया म बरोबर भाषा साहित्य अउ छत्तीसगढ़ के पार परम्परा ल स्थापित करत हे। नवा कवि अउ लेखक मनके संगे संग हमर पुरखा साहित्यकार मनके गीत,कविता, कहानी अउ विचार ल घलो गुणीजन मन सोसल मीडिया म पहुँचावत हे, उँखर अइसन उदिम ले हमर साहित्य नवा ऊंचाई म जावत हे। पुरखा मनके धरोहर आज सोसल मीडिया के शोभा बढ़ावत हे। उँखर सुरता म कतको उदिम हमर राज के गुणवान संगी मन करत हे, अउ सबला येमा हाथ घलो बटाना चाही, काबर की उँखर साहित्य अउ विचार नवा जमाना बर नवा रद्दा गढ़ही।
*पुस्तक के पहुँच सिरिफ शिक्षित मनखे तक होवय, फेर सोसल मीडिया म साहित्य आडियो वीडियो रूप म अनपढ़ के अंतस ल घलो अमरत हे।* आज सोसल मीडिया मनोरंजन, शिक्षा, अउ सूचना के बड़का जरिया बन गेहे, ओमा हमर साहित्य घलो जगमगावत हे। सोसल मीडिया, पठोय सबे चीज ल बरोबर सम्भाल के रखथे येमा कॉपी पुस्तक कस पानी, बादर , अउ दिंयार के डर घलो नइ रहय। आज लेखक कवि मन अपन कविता लेख के बरोबर प्रचार प्रसार भी ये माध्यम ले करत हे, अउ उन ल आह, वाह , लाइक कमेंट रूपी उत्साह के संगे संग ज्ञानीजन मनके मार्गदर्शन घलो मिलत हे। लाकड़ाऊन म सबले जादा साहित्यकार मनके थेभा सोसल मीडिया बनिस। लिखई, पढ़ई के सँगे सँग आडियो वीडियो रूप म कवि मन खूब वाहवाही बटोरिन अउ बटोरत घलो हे। छत्तीसगढ़ी म लिखई पढ़ई दिनोदिन बाढ़त हे, येला सोसल मीडिया घलो बरोबर सिद्ध करत हे।
सोसल मीडिया के तार जमे कोती लमे हे, अइसन म हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य न सिर्फ भारत म बल्कि विदेश म घलो पहुँचत हे। *छंद के छ* के कविता ब्लाग *छंदखजाना* के लाखों विदेशी पाठक मिलथे। अउ अइसन कतको ब्लाग हे जेला पूरा विश्व निहारत हे। आदरणीय संजीव तिवारी जी कस कतको गुणीजन मन छत्तीसगढ़ी ल गूगल म स्थापित करत हे। पुस्तक घलो सॉप्ट कापी जे रूप म आकर्षक ढंग ले छपत हे। आज हर कोई मोबाइल ले जुड़े हे, उठत बइठत सब लगे हे , अउ रंग रंग के जानकारी के साथ मनोरंजन घलो पावत हे। छत्तीसगढ़ी साहित्य के उत्थान बर सोसल मीडिया बड़का मचान बरोबर हे, जे विश्वभर ल परोसे के काम करत हे।
सोसल मीडिया म झूठा वाहवाही घलो गजब फलत फूलत हे, बिन पढ़े आह, वाह चलत हे, जेन कभू कभू दुख लगथे, कतको झन कखरो लेख कविता ल घलो चोरावत दिखथे, यहू गलत बात ये। खैर छोड़व, *सबे चीज के बने म बने होथे, अउ गलत म गलत।* सोसल मीडिया जतके नेता, व्यापारी,डॉक्टर,मास्टर, वैग्यानिक, फ़िल्म, अउ गुणी ज्ञानी बर उपयोगी हे, ओतके उपयोगी हम सब साहित्यकार मन बर हे, बशर्ते उपयोग के दशा दिशा सकारात्मक होय।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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छत्तीसगढ़ी साहित्य पहिली पढ़े बर नइ मिलय,बड़े बड़े साहित्यकार मन के पुस्तक छपंय पर आम जन के पहुँच से दूर रहय।
लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से हमर साहित्यकार मन ला जाने के पढ़े के मौका मिलत हे।
अब हिंदी रचना मन हर जनसुलभ तो शुरू से हवय लेकिन छत्तीसगढ़ी साहित्य बर ये सोशल मीडिया बहुते कारगर उपयोगी होगे हे।
येखर से आज कतको ग्रुप चलत हे
एक दूसर से जाने पहचान के संगे संग रचना भी आदान प्रदान होवत हे।
अपन मन के भाव ल सबके सामने रखे के अवसर भी मिलत हे।
सबले बड़े तो सौभाग्य ये मिले हे कि येखर माध्यम से बहुत बढ़िया कक्षा भी चलत हे ,गुरुकुल जैसे वातावरण भी हे।
इहाँ सिर्फ छंद नइ सिखाय जाय
सम्पूर्ण व्यक्तित्व भी निखारे जाथे।
सोशल मीडिया में छत्तीसगढ़ी साहित्य के चर्चा होवत हे तब
छंद परिवार के कक्षा ल अनदेखा नइ किये जा सकय।
येखर माध्यम ले कतको झन नवा कलमकार मन हा अपन लेखनी ल धार करत हें। इँहा फोकट के वाहवाही नइ होवय बल्कि खरा बात होथे।
अगर अइसने हर जगह रचना मन के समीक्षा होय अउ रचनाकार येला सहजता से स्वीकार करें तो
पोठ पोठ रचना ही आही।
आज ये अभिव्यक्ति के सरल माध्यम होगे हे।
सोशल मीडिया से छत्तीसगढ़ी साहित्य सबो जगह बगरत हे अउ सम्मान पावत हे।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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साहित्य, समाज के दरपन आय एमा कोनो संदेश नइये काबर की साहित्य हा समाज ला एक सही दिशा प्रदान करथे।
आज दुनिया भर मा साहित्य के डंका बाजथे, साहित्य के परचम लहराथे माने साहित्य के अतका जादा परभाव अउ विस्तार देखे ला मिलथे जेकर कल्पना नइ करे जा सकय। छोटे-छोटे गाँव, कस्बा, शहर से लेके हर जगा साहित्य बोवाय हे। ए बात मा दूमत नइहे की साहित्य के प्रभाव अभी के युग मा जादा हे फेर साहित्य ला चलईया कलमकार मन के संख्या भी जादा हे जेमन नित दिन अपन सेवा देवत हवँँय।
आजकल के लोगन मन के मुँह ले सुने हँँव जेमन कहींथय कि-साहित्य के प्रभाव कम होगे हे, अइसन कछु नइहे हालांकि पहिली के साहित्य अउ आज के साहित्य मा थोर-थार बदलाव आए हे फेर विस्तार तो ओइसने हे जईसन पहिली रिहिस।
साहित्य अउ साहित्यकार के परम धरम आय की ओमन समाज ला अउ समाज ले जुड़े हर झन ला जागरूक करे के काम करय *काबर की जागरूकता हा एक मात्र विकल्प आय प्रगति के* हर मनखे के नकरात्मक धारणा ला बदलना भी साहित्य बर जरूरी हे, इही कारन साहित्य ला विस्तृत करना आज के तारीख मा बहुत जरूरी हे हालाँकि विस्तार हवय फेर अउ जादा विस्तार लाना एक नवा समाज के निर्मान करही।
एक बात अउ हे राजनीति घलो साहित्य ऊपर आधारित हे जब तक साहित्य हे तब तक जग मा सकारात्मकता विद्यमान हे।
*छंद साधक*- अमित टंडन अनभिज्ञ
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कुछ समे पहली तक छत्तीसगढ़ी भाखा मा लिखाय साहित्य नइ मिलत रहिस। शहर मन मा भले कुछ साहित्य मिल जाय फेर उहू हा सरलता ले नइ मिलत रहिस। साधारन मनखे मन ला आकाशवाणी के माध्यम ले बड़का साहित्यकार मन के गीत सुने बर मिल जाय। कभू कभू गोष्ठी साहित्यिक परिचर्चा घलो प्रसारित होवत रहिस।
संचार माध्यम के विकास दुनिया मा होवत गिस अउ देश के सँगे संग हमर छत्तीसगढ़ राज मा घलो मनखे मन के हाथ मा मोबाइल आइस। मोबाइल मा घलो तकनीकी विकास होवत गिस अउ स्मार्ट फोन आइस। जब ले स्मार्ट फोन लोगन मन के हाथ मा सहजता ले आय हे छत्तीसगढ़ी साहित्य पढ़े सुने बर भारी मातरा मा मिलथे। एमा अबड़ अकन ठिहा हे जिहाँ जाके लोगन मन अपन बिचार छत्तीसगढ़ी भाखा मा रखथें। इही ठिहा मन सोशल
मीडिया आयँ।
सोशल मीडिया मा बड़े बड़े जुन्ना साहित्यकार मन ले लेके छोटे छोटे जे मन ला नेवरिया साहित्यकार कहि सकथन, के विचार छत्तीसगढ़ी मा पढ़े सुने बर मिलथे। एकर माध्यम ले एक दूसर के सिरजन के आदान प्रदान सरलता ले घलो हो जवथे जेमा गलती के सरलता ले सुधार करत बन जथे। एकर ले समय अउ धन के घलो बचत होवत हे। अभी सोशल मीडिया मा छत्तीसगढ़ी के सैकड़ों ग्रुप मिल जही। गाँव गाँव मा एकर माध्यम ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रचार प्रसार होवत हे। सोशल मीडिया के माध्यम ले आनलाइन कार्यशाला, गोष्ठी, काव्य पाठ अउ बहुत अकन गतिविधि संचालित हावत हाबय जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला समृद्ध करत हाबय। सोशल मीडिया वर्तमान मा अपन विचार रखे के सहज अउ सरल माध्यम बन गेहे। ये कहिन कि सोशल मीडिया हा छत्तीसगढ़ी साहित्य ला बिकास के रस्ता धरा दे हे।
सोशल मीडिया के माध्यम ले कुछ जुन्ना साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे बंदनीय बुता घलो करत हाबयँ। ये मन नेवरिया साहित्यकार मन ला अँगरी धर के लिखे बर सिखोवत हें अउ माँजत घलो हें । खच्चित उँकर ये उदिम छत्तीसगढ़ी साहित्य ला ऊँचाई तक ले जाही। नेट के जमाना मा मोला अइसे लगथे कि भविष्य मा ये प्रिंट मीडिया नँदा जाही अउ सोशल मीडिया के ही बोलबाला रइही जेन छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ ले अउ पोठ करही।
मनीराम साहू 'मितान'
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आज के ये जउन दउर हे ओहर , ऑनलाइन अउ डिजिटल युग संग सोशलमीडिया के जमाना ये । आज कल हमर मन के बीच मा , अइसन - अइसन जिनिस मन के सुविधा अउ बेवस्था होंगे हावय । जीखर मन के आय ले समाज के लोगन मन ला बड़ सहूलियत होवत हावय , अउ काबर नइ होही पहिली जउन काम ला कराय बर हमला दुरिहा जाय बर पड़त रहिस । ओहर आज कल सबो जिनिस के सुविधा मन हर , हमला अपन तीर तखार म ही मिल जवत हे । आज विज्ञान हर अब्बड़ उन्नति करे के संगे संग , अतेक बड़े - बड़े काम बुता (आविष्कार) मन ला घलो सब करे हावय । जीखर मन के बारे म मनखे मन हर कभू सोचे घलव नइ रहिन होही । पहिली के समय मा लोगन मन हर सब , जउन जउन जिनिस मन के बारे म सोचत रहिस हे । आज विज्ञान के आविष्कार अउ आशीर्वाद ले ओ सबो जिनिस मन संग , ओखर ले कइ गुना जादा हमर मन के बीच मा आज हावय ।
जेमा अगर कहूँ हम गोठ करथन सोशलमीडिया के , ता सोशलमीडिया हर अइसन सुविधा आय । जेमा ले मनखे मन हर अपन खुद के प्रचार संग , काही जिनिस मन के घलव प्रचार अउ प्रसार ला । लोगन मन के बीच मा , अब्बड़ सरलता अउ सहजता ले कर सकथे । ये जउन सोशलमीडिया हे ओहु हर हमर मन के बीच मा नाना प्रकार के हावय : - जउन मन ला हमन - टीवी , रेडियो , मोबाइल , फोन , अउ किसम किसम के समाचार पत्र अउ पत्रिका मन म रोज पढ़त सुनत अउ देखत रहिथन ।
अब हम गोठ करथन हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य मा सोशलमीडिया के , आय के बाद ले होय बदलाव संग सोशलमीडिया मा हमर पहिली के अउ अभी के जउन साहित्यिक (गतिविधि) लेखन के दउर मा पड़े प्रभाव के ।
त हमर पहिली के अउ वरिष्ठ साहित्यकार लोगन मन सब बताथे की पहिली ये सब फेसबुक अउ वाट्सअप के चलन नइ रहिस हे । तेपाय के गिने चुने अउ बड़े बड़े साहित्यकार मन के ही लिखे रचना मन हर अखबार मन म छपत रहिस । फेर आज के दउर मा ये सोशलमीडिया अउ फेसबुक वॉटसअप के आय ले येखर चलागन अइसे होंगे हावय , की आज कल कुछ भी लिखव अउ ओला अपन फेसबुक होय चाहे वॉटसअप म ड़ाल के वाह वाही लुटव , आज के दउर मा येहर सब ले सरल अउ सस्ता सुविधा होंगे हावय । अउ येखरो ले निमगा सरल तो आज कल के अखबार मन म छपना होंगे हावय , पहिली के समय के तुलना मा आज अतेक अखबार होंगे हावय हमर मन के बीच म , की लोगन मन हर कुछ भी लिखथे अउ ओ सब हर छप जथे । जेखर चलते ही आज कल लोगन मन के जउन लेखन के ये स्तर हे ओमा सुधार नइ हो पावत हे । आज सोशलमीडिया के ये दउर हर लोगन मन के दिल अउ दिमाक म अइसे घर कर दे हावय की लोगन मन ला तो बस लिखना हे अउ बस छपना हे । चाहे ओ रचना हर कइसनो राहय , ओ सब ले ओमन ला कोनो फरक नइ पड़य । आज इही हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य के पछुवाय के एक ठन कारन इहु हरय । आज भी हमर मन के बीच मा , हमर महतारी भाखा के जानकार अउ वरिष्ठ साहित्यकार भाषाविद् सुजान मन हर हवै । फेर ओखर ले जादा तो दुख के बात ये हावय की अभी के दउर के जउन नवा लिखइया कलमकार मन हे , तउन मन दू चार लाइन का लिखथे अउ अपन आप ला आज के युवा अउ वरिष्ठ साहित्यकार घलव कहिथे । जउन मन ला न तो येखर बरोबर क ख ग पता राहय । आज सोशलमीडिया हर भले हमन ला अतका सुविधा दे हावय , फेर कहिथे ना फूल के संग म काँटा तो रहिबे करथे । बस इही हे कतकोन मन बने काम बर करथे त कुछ मन हर गलत काम बर , ये अपन अपन समझदारी के बात होथे ।
मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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जबले संचार क्रांति आइस हावय तबले नवा नवा सबो चीज मा उन्नति होइस हावय अउ हमर छत्तीसगढ़ साहित्य एखर से अछूता नई हावय। मोबाइल आज हमर जिनगी के एक अंग बनगे हावय अउ एखर प्रभाव छत्तीसगढ़ साहित्य मा भी देखे जा सकथे। आज संचार क्रांति के माध्यम ले सोशल मीडिया के नवा नवा हमला प्लेटफार्म मिलिस जइसे *व्हाट्सएप, फेसबुक, ब्लॉगर* अउ ये सबो सुविधा हमर समाज के सब्बो जन मेर पहुँचत हावय। आज हमन न सिर्फ अपन रचना ला मोबाइल के माध्यम ले लिखत हावय अउ प्रचार प्रसार तको करत हावय। आज प्रसार प्रसार करे बर हमर मेर व्हाट्सएप, फेसबुक हावय अउ रचना प्रकाश बर ब्लॉग तको हावय। पहली हमर रचना ला बिना प्रकाशन के सब जन मेर नई पहुँचा पावत रहेँन फेर सोशल मीडिया आय ले एहू समस्या हा खत्म होगय। पहली प्रकाशन में गलती होंगे त ओला सुधारे के भी सुविधा नई रहिस। फेर आज गूगल के माध्यम ले ब्लॉगर मा रचना ला प्रकाशन कर अपन रचना ला कइयो बछर सुरक्षित रख सकत हावय अउ अगर रचना में कुछ गलती हावय त ओला कभी भी सुधार भी कर सकत हावय। आज लोगन ब्लॉगर के रचना ला कहूँ मेर कोनो जगह जब भी समय मिलही पढ़ सकत हावय, चाहे मनखे दूर दराज देश मा होय या गाँव शहर में होय। आज छत्तीसगढ़ साहित्य ला सोशल मीडिया बहुत बड़े रूप मा पाठक अउ रचनाकार प्रदान करिस हावय अउ करत हावय। मोर सुरता मा सबले पहली छत्तीसगढ़ साहित्य मा ब्लॉगर के उपयोग अउ छत्तीसगढ़ साहित्य ला पढ़े के सुविधा *गुरतुर गोठ* के माध्यम ले *आदरणीय संजीव तिवारी जी* प्रदान करिन अउ उँकर अथक प्रयास ले हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के उपयोग ला देख गूगल हा छत्तीसगढ़ी गूगल इंडक कीबोर्ड प्रदान करिन। एकर से हमन विचार कर सकत हावय की आज छत्तीसगढ़ साहित्य ला सोशल मीडया कतका प्रभावित करिस अउ कतका बढ़िया भाषा ला सहेजिस। आज छत्तीसगढ़ साहित्य मा नानम प्रकार के गद्य अउ पद्य ला सोशल मीडया के माध्यम ले सीखत अउ पढ़त हावय। सोशल मीडिया के माध्यम ले *आदरणीय अरुण निगम गुरदेव* हा छंद के छ ऑनलाइन कक्षा चालू करिन आज ओकर परिणामस्वरूप नवा नवा अनेक छन्दकार छत्तीसगढ़ मिल पाइस। मोर बिचार ले आज छत्तीसगढ़ साहित्य के विकास मा सोशल मीडया के महत्वपूर्ण भूमिका हावय अउ एला भुलाये नइ ला सके।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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छत्तीसगढ़ी भाखा अब धीरे धीरे भाषा मा तब्दील होवत हे। छत्तीसगढ़ के अधिकांश आबादी ए भाषा ला या तो उपयोग करथे या समझथे। सुदूर बस्तर के दंतेवाड़ा अउ बैलाडिला मा भी ए भाषा के जनइया आप ला मिलही ।आप आदमी सहज संपर्क भाषा के रूप मा एला बोलचाल मा लाथे। कुछ अलग अलग रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मा प्रचलित हे। परन्तु हमर पढ़े लिखे अउ शासन प्रशासन के भाषा अभी नइ बने हे। कतको साहित्यकार मन समर्पित होके छत्तीसगढ़ी मा साहित्य सिरजन करे हें, अउ वर्तमान मा करत हे। आज बहुत अकन अखबार मन नियमित छत्तीसगढ़ी मा साप्ताहिक पेज प्रकाशित करत हें। आकाशवाणी, टेलीविजन ले समाचार के प्रसारण होवत हे। रेल्वे मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के संग छत्तीसगढ़ी मा घलो सूचना मिलत हे। जनता के ये सर्वमान्य बोली ला भाषा के दर्जा बर बहुत अकन उदीम साहित्यकार मन करिन।तभे छत्तीसगढ़ सरकार हा 2008 मा राजभाषा के दर्जा दिस।अउ तब ले राजभाषा आयोग के माध्यम ले घलो छत्तीसगढ़ी के समृद्धि बर बहुत अकन आयोजन होवत आवत हे। ये छत्तीसगढ़ी अब तक कुछ पुस्तक अउ कुछ अखबार के साप्ताहिक पन्ना तक ही सीमित रिहिस।
जब ले मोबाइल आम आदमी के हाथ मा आय हे छत्तीसगढ़ी भाषा ला नवा उड़ान मिल गे हे। साहित्य जगत मा छत्तीसगढ़ी मा लिखने वाला मन के पूछ परख बने हो गए हे। फेसबुक वाट्सप मा छत्तीसगढ़ी मा लिखइया पढ़इया मन के बाढ़ आ गे हे। छत्तीसगढ़ी बर विचार मंथन होवत हे। भाषा के समृद्धि बर चिंतन होवत हे ।आज छत्तीसगढ़ी मा गद्य अउ पद्य के लेखन मा आप ला बहुत सुधार दिखही। व्याकरण अउ भाषायी शुद्धता मा प्रगति आप ला दिखही। छत्तीसगढ़ी मा आज गीत के साथ साथ छंद बद्ध काव्य के विपुल सामग्री आप ला दिखही, जेकर पहिली अभाव असन रहिस हे। नवगीत गजल सजल जइसे बहुत अकन हिंदी उर्दू के विधा हा घलो छत्तीसगढ़ी भाषा मा सम्मान पावत हे।
सरकार के बहुत अकन विज्ञापन आज छत्तीसगढ़ी मा रहिथे। बाजार भी आज छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व ला समझ के मार्केटिंग बर एकर उपयोग शुरू कर दे हे। शासन प्रशासन के कर्मचारी अधिकारी मन ला छत्तीसगढ़ी लिखे बोले बर प्रशिक्षण शाला लगत हे। छत्तीसगढ़ी आम आदमी के भाषा ए। हम जतके एकर महत्व ला बढ़ाबो, लिखबो पढ़बो बोलबो, सरकार वोतके मजबूर होही।
सोशल मिडिया के आम आदमी तक पहुंच होय ले छत्तीसगढ़ी भाषा ला संजीवनी मिल गे हे। मैशेज आज छत्तीसगढ़ी मा भी ओतके कन लिखे पढ़े जावत हे जतका कन हिंदी मा। बधाई संदेश, सूचना, कथा कहानी, कविता गीत, तीज तिहार के गोठ सबो आज आप ला छत्तीसगढ़ी मा आसानी ले मिलही सोशल मिडिया मा ।नवा नवा लेखक कवि मन बर बहुत सुग्घर मंच हो गए हे फेसबुक वाट्सप मन अउ इंटर्नेट। दूर अंचल के व्यक्ति भी छत्तीसगढ़ी भाषा ला माध्यम बना के आज प्रसिद्धि पावत हे।आंन लाइन सिखे सिखाय, लिखे पढ़े अउ गोठियाय के सुगम माध्यम उपलब्ध होय के कारण आज छत्तीसगढ़ी मा लेखन मा उत्साह दिखत हे । छत्तीसगढ़ी साहित्य निश्चित रूप ले महत्व पावत हे। भविष्य सुंदर हे। आज छत्तीसगढ़ी मा लिखइया मन के पूरा प्रदेश मा एक समर्पित समुह आप ला दिखही ।हम जतके ए ला पढ़े लिखे बोले के माध्यम बनाबो, ओतके एकर साहित्य मान पाही सरकार भी छत्तीसगढ़ी ला अपनाय बर मजबूत होही। जन बल के आगू सरकार ला झूके ला ही पड़थे। छत्तीसगढ़ी भाषा ला समाज के, साहित्य के, सरकार के, प्रशासन के भाषा बनाय बर, जन बल ला मजबूत करे बर पडही। ताकि शासन एला अवइया समय मा स्कूली शिक्षा के माध्यम बनाय। सरकार के कामकाज के भाषा बनाय। छत्तीसगढ़ी भाषा के उत्थान बर सोशल मिडिया हा जन आंदोलन के सर्वोत्तम माध्यम बनत हे।
बलराम चंद्राकर भिलाई
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अइसे तो हर भाखा के अपन साहित होथे।जउन म वो भाखा के बोलइया मनखे के दुख-पीरा,हाँसी-ठिठोली, सँग जिनगी जिएँ सबो चलन के दरसन करे जा सकत हे।अइसे भी कहे जाथे, कहूँ कोनो सँस्कृति अउ सभ्यता के नाँव बुताना हे (नाश करना हे)त उँखर साहित ल बिगाड़ दौ।एखर मतलब होइस कि सँस्कृति अउ सभ्यता ल जानना हे त वो देश परदेश के साहित ल पढ़ना चाही। साहित जरूरी नइ हे कि बड़े-बड़े पोथी पथरा के रूप में मिले, साहित के सरूप समे के संग बदलत गे हे अइसे कहे जा सकत हे। काबर कि बहुत कुछ जानकारी जउन अभी तक देखे म मिलथे,वो म शिलालेख या पथरा में लिखे अउ उकेरें चित्र ल भी साहित्य के रूप में लिए जा सकथे। हाट बाजार मंदिर मन म इहाँ-उहाँ बिखरे पड़े मिले हे।
कुछ साहित मौखिक रूप ले एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी में सरलग आगू बढ़त हे। अइसन हमर छत्तीसगढ़ी साहित बर भी कहे जा सकत हे या माने जा सक थे। इहाँ कथा कहिनी बाबा डोकरी दाई मन ले सुन के कतको पीढ़ी बीत गिन, आजो बबा डोकरी दाई मन ल कई ठो कहिनी किस्सा गाँव के नाती नतुरा मन ल सुनात देखे जा सकथे।टीवी रेडियो के चलन नइ रहे ले गुड़ी चौक मा, पारा परोस के बड़े-बड़े चौरा म किस्सा कहिनी कहि के थके हारे मनखे मन के मनोरंजन करथे। धीरे-धीरे समे के संँग हमर पुरखा साहितकार मन एला लिखिन-पढ़िन अउ किताब पोथी के रूप में सहेजिन। आजो सहेजत जात हे।जउन ला लोकसाहित के नाव ले आज भी नवा नवरिया साहित्यकार मन अब सब परकार के छत्तीसगढ़ी साहित्य सिरजत हावे।फेर पढ़ईया के तब रोना रहिस रहे अउ आजो रोना हवे। ए कहे जा सकथे। किताब पढ़ईया अब नहीं के बराबर हे, अइसन काबर हे एखर गोठ करना अभी जरूरी नइ हे। फेर एकर पूर्ति करत नवा उदीम मोबाइल आय हे। जेमा सोशल मीडिया के रूप में व्हाट्सएप,फेसबुक,ट्वीटर गूगल के उपयोग करे जात हे। छोटे बड़े नवा नेवरिया अउ वरिष्ठ साहितकार मन ल एके मंच में देखे जा सकत हे। जेन नवा नेवरिया साहितकार मन ला मंच नइ पात रहिन।उन ल सोशल मीडिया मउका दिस।हर हाथ मोबाइल चलावत सोशल मीडिया में अपन भाखा बोली के बात सुनथे ।ए किसम ले कहे जाय त हर भाषा के साहितकार बर मीडिया बड़े वरदान साबित होत हे। फेर छत्तीसगढ़ी बर बहुते जादा वरदान माने जा सकत हे। कारण इहाँ समाचार पेपर म छत्तीसगढ़ी बहुत कम होथे ।छत्तीसगढ़ी के पर्याप्त समाचार पेपर नइ हे। छत्तीसगढ़ी के रचनाकार ल पाठक तक बरोबर पहुंचे के मौका फेर व्हाट्सएप फेसबुक के जरिया ले मिले हे।
आज सरकारी योजना मन के अउ राजनीतिक विज्ञापन के परचार परसार भी सोशल मीडिया म भरपूर होवत हे।यहू म छत्तीसगढ़ी के परयोग एक आशा के किरण हे कि सरकार अउ नेता मन मन ले मानथे कि जनता तक छत्तीसगढ़ी ले बात सही ढंग ले पहुँचथे।एखर फायदा साहितकार मन ल उठाना पड़ही।साहित सिरजन करत छत्तीसगढ़ी ल बराबर मान देवाय बर जरूरत के उदीम करँय।
सम के सँग चलत ही सफल होय जाथे, समे के पाछू चले ले कभू सफल नइ होय जा सकय।इही ढंग ले आज के समे सोशल मीडिया के हावै एकर उपयोग करत छत्तीसगढ़ी भाखा के विस्तार करना पड़ही।
सोशल मीडिया म छत्तीसगढ़ी भाखा या साहित बर दू ठन बड़े चुनौती दिखथे।एक किस्सा कहिनी बड़े होय ले एला पाठक नइ पढ़े।
दूसर आज के जादा पढ़े लिखे मन अपन लइका मन ला अपन महतारी भाखा ले दूरिहा रखत हें।
ए दूनो चुनौती ले पार सरकारी पहल ले ही पाय जा सकथे। पाठ्यक्रम म कहिनी लोकचरित्र के सँग गीत कविता के पढ़ाई के महतारी भाखा माध्यम बनै।
छत्तीसगढ़ी बर एक बात यहू हे कि बहुत पहिली एकर बोलइया रहिस तब साहितकार नइ रिहिन।आज दूनो हे त एला राजभाषा के सही मान देवाय म कोनो अड़चन नइ होना चाही।
*पोखन लाल जायसवाल*
*पलारी बलौदाबाजार छग.*
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छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करे के उदिम ले चलत छंद के छ रूपी आंदोलन, सोसल मीडिया के भरपूर लाभ उठावत हे। मार्च 2016 ले सतत रूप ले आनलाइन कक्षा गतिमान हे, जिहाँ छत्तीसगढ़ के लगभग 20,22 जिला के नवा अउ जुन्ना कलमकार मन जुड़े हे, अउ छंद विद्या के ज्ञान अर्जित करत हे। आज छंद के छ परिवार म 120 ले आगर साधक संगी मन लगभग 50, 60 प्रकार के छंद म बरोबर कलम चलावत हे, एखर साथ साथ ऑनलाइन छंदमय काव्य गोष्ठी जेन 2017 ले लगातार चलत हे, तेखर माध्यम ले छंद के लय, ताल यति, गति ल घलो सीख जे अपन गायकी ल निखारत हे। छंद के छ के ये उदिम 2016 ले आजो सब ला सँग लेके , शालीनतापूर्वक बरोबर चलत हे। भविष्य म अउ साधक मन घलो जुड़ही, कई झन अभी ले, छंद परिवार के सम्पर्क में हे। आज छंद के छ के 12 ठन कक्षा जारी हे, जिहाँ साधक मन छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदबद्ध रचना ल बढ़ाये बर लगे हे।
छंद के छ के ये उदिम पूर्णतः सोसल मीडिया उप्पर आधारित हे, वाट्सअप के माध्यम ले कक्षा अउ काव्य गोष्ठी दूनो संचालित होथे। छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदमय कई ठन पुस्तक छंद के छ के साधक मन निकाले हे, जेमा निगम गुरुदेव के छंद के छ(जेन ये आंदोलन के आधार बनिस), चोवाराम वर्मा जी के छंद बिरवा, मनीराम मितान जी के आगी सोनाखान के, जगदीश साहू जी के सम्पूर्ण रामायण, रमेश चौहान जी के दोहा के रंग, आँखी रहिके अंधरा आदि एखर आलावा कई झन साधक मनके पुस्तक प्रकासाधीन हे। सोसल मीडिया के सहारा ही, साधक मनके छंद, छंदखजाना ब्लाग म प्रकाशित करे जाथे, जेखर पाठक न सिर्फ हमर राज, हमर देश बल्कि विदेश म घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर दुर्ग भिलाई म क्लास चलाये ले आसपास के कवि या कोनो रुचि रखइया साधक मन भर जुड़ पातिस, पर सोशल मीडिया के मदद ले न सिर्फ रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई के साधक मन जुड़े हे, बल्कि कोरबा, रायगढ़, जशपुर, कोरिया, कांकेर, राजनादगांव, कवर्धा, बलौदाबाजार, चाम्पा, बेमेतरा, गरियाबंद, महासमुन्द, बस्तर, बालोद, आदि जिला के कलमकार मन घलो जुड़े हे। अउ वाट्सअप के माध्यम ले छंद सीखत हे अउ सीखे के बाद गुरु बनके सीखवत घलो हे। गुरु शिष्य के ये परम्परा (सीखे अउ सीखाय के) पूर्णतः निःस्वार्थ अउ निःशुल्क हे। छत्तीसगढ़ी छंद बर सोसल मीडिया के वाट्सअप बड़का सहारा बनिस, ओखर प्रताप ले आज छत्तीसगढ़ी म लगभग 5000 छंदबद्ध रचना छंद जे छ के साधक मन द्वारा हो चुके हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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मीडिया ल लोकतंत्र के चौथा स्तम्भ माने गे हे। प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संगे संग नवा -नवा अवतरे सोशल मीडिया ल जेला हम प्रेम से मोबाइल मीडिया कहि सकथन, एकर रूप कहे जा सकथे। आजकल के बात करन त एमा सोशल मीडिया/मोबाइल मीडिया जेकर फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्वीटर आदि अनेक अंग हे, बड़ सजोर दिखथें।काबर कि एहा सरी दुनिया मा छा गेहे।पढ़े लिखे मन ल कोन काहय अनपढ़ तक मन एकर परम भक्त होगे हें।
जहाँ तक छत्तीसगढ़ी साहित्य उपर सोशल मीडिया के प्रभाव के चर्चा करे जाय त अइसे लागथे कि ए दौर ह छत्तीसगढ़ी साहित्य के स्वर्णकाल जइसे लागथे। ए सोशल मीडिया के खाद-पानी पाके छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ रचनाकार जम्मों लहलहावत दिखथें। गाँव -गाँव म छिपे गुदड़ी के लाल मन के सृजन ल एहा जग जाहिर करत हे। पूरा जिनगी पहा जतिच फेर कभू उँकर रचना नानमुन पेपर के कोनो कोनटनिया तको म नइ छपतिच तेन ह आज चोबीस घन्टा सोशल मीडिया म छपत हे अउ ओला हमर देश प्रदेश के कोन काहय विदेश मन के मनखे मन पढ़त हें।
आप ल ए जान के सुखद आश्चर्य होही कि-छतीसगढ़ी के नवा जुन्ना छंद साधक मन के छंद खजाना नाम के एक फेसबुक पेज म संग्रहित होथे तेला यूरोप महाद्वीप के मनखे मन तको पढ़थे।एहा सोशल मीडिया के महिमा आय ओइसने अउ बहुत झन छत्तीसगढ़िया कलाकार, साहित्यकार मन के कृति विश्व व्यापी होवत हे।
कल्पना करव आज ले 10 --15 साल पहिली कोनो पुरखा साहित्यकार के रचना ल हम पुस्तक म ही पढ़ सकत रहेन । फेर पुस्तक का सबो आप जनता के पहुँच म रहिसे? नइ रहिसे । आज सोशल मीडिया के कृपा ले सब सहज रूप म उपलब्ध हे। मैं प्रणम्य पं सुंदरलाल शर्मा जी , हरि ठाकुर जी , जनकवि कोदू राम दलित जी आदि के पुस्तक ल नइ पढ़े अवँ , न तो उँकर किताब मोर सो हावय फेर सोशल मीडिया के माध्यम ले अब घर बइठे पढ़त हवँ। आँजे दानलीला ल अमर कवि गायक मस्तुरिहा जी के स्वर मा देखे ,सुने हवँ।
सोशल मीडिया के माध्यम ले सीखना सिखाना घलो होवत हे। साहित्य रस के प्रचार -प्रसार म सोशल मीडिया बड़का भूमिका निभावत हे। छत्तीसगढ़िया साहित्यकार मन के कृति म आधुनिक भाव बोध के दर्शन होवत हे। साहित्य के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी रीति रिवाज अउ संस्कार ले परिचय ए सोशल मीडिया ह सरी दुनिया ल बहुत तेजी ले करावत हे। भाषा घलो मँजावत हे ,एमा कोनो शक नइये।हम रचनाकार मन के परिचय के दायरा ल ए सोशल मीडिया ह बहुतेच जादा बढ़ावत हे, भले ए आभासी हे। कुछ नइ होना ले कुछ होना तो अच्छा हे। कुल मिलाके सोशल मीडिया ल छत्तीसगढ़ी साहित्य बर वरदान कहे जा सकथे।
ए तो होइच सोशल मीडिया के छत्तीसगढ़ी साहित्य म चमकत एक पहलू ।दूसर पहलू ऊपर नजर डारे म वो ह चिटिक धुँधला दिखथे। सबले बड़े करिया धब्बा तो एमा अविश्वनीयता के हाबय। एके ठन रचना ह आने आने के नाम ले सैंकड़ों पटल म बिन लगाम के दउँड़त रहिथे। पते नइ चलय कि ओकर असली जनक कोन ए। कहूँ के ईंटा कहूँ के रोड़ा ,भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाला किस्सा खूब चलत हे। ए हा छत्तीसगढ़ी साहित्य बर शुभ संकेत नोहय। आजकल रचना के चोरी होये ल धर लेहे। आन के रचना म अपन नाम लिख के सोशल मीडिया म डाल देथें अउ ए मीडिया ह पर्रा भर लाई कस बगरा देथे, जेला सकेलत म जीव छूट जही।
मौलिकता ल तो ए मीडिया ह सुरसा कस मुँह फइलाये लिलत हे। दू चार शब्द आगू पाछू ,भाव जस के तस तहाँ ले होगे मौलिक । सोशल मीडिया अउ गुणवत्ता के बात करना तो बेकारे हे। ऊँचा दुकान अउ फीका पकवान के भरमार हे ।एहा घरोघर कवि, लेखक ,शायर चुटकी बजावत गढ़ देथे । अइसन चमत्कार कर देना कोनो छोटे मोटे बात आय का?
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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आज नवा जुग मा अंतर्जाल हा बहुत जादा लाभकारी हे,घर बइठे दुनियाँ के जानकारी हर जिनिस मा मिल जाथे।एखर जीता जागता उदाहरण *छत्तीसगढ़ी छंद*ला श्रद्धेय श्री निगम गुरुदेव द्वारा चलाय गये हे...जेला श्री जितेन्द्र वर्मा वरिष्ट गुरुदेव मन बहुत सुग्घर ढंग ले बताइन है।
बहुत बड़े लाभ हम महिला मन ला होइस हे,घर बइठे हम साहित्य साधना करत हावन अउ जग मा साहित्य ला परोसत हन।एक महिला के कक्षा के नाव लेके बार बार घर ले निकलना नइ हो पाय,आज साहित्य मा रुचि रखने वाला हर महिला अनेको साहित्यिक पटल ,फेसबुक...आदि ले जुड़े हवय अउ लाभ ला घर ब इठे लेत हावय ऐहा आज के जुग मा वरदान हे।
फेर अंनर्तजाल के सकारात्मक अउ नाकारात्मक दुनो पक्ष हे।साहित्य मा ज्ञान के लाभ उठाना अउ आधू बढ़ना सकारात्मक हे अउ दूसर के साहित्य ला अपन नाव देके आधू बढ़ना ए हा नकारात्मक पहलू हे,ऐला अनदेखा नइ करे जा सके।
साहित्य के बात होत हे ता जब कोनो साहित्य एक लेखक अपन हिसाब से लिखथे अउ मिडिया मा डालथे ता ओला अन्य रचनाकार पढ़थे,अउ ओखर सही आकलन करथे,के जेन साहित्य ला परोसे गे हे ओ हा कतका सही हे कतका गलत...!अउ एमा तर्क वितर्क चालू हो जाथे अउ एक सही साहित्य परिणाम के रुप मा निकल के आथे।जेन विश्व बर लाभकारी हे,एखर ले ए लाभ मिलथे के जब कोनो साहित्य हा मिडिया मा डले जाय ता सही सही डाले जाय।आज के जमाना मा मिडिया..बहुत प्रभावी हे हमला सकारात्मक सोच अउ ज्ञान ला अपनाके आधू बढ़ना चाही।
आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, के मंत्र ला साकार करे मा संचार तंत्र के भूमिका ,आरंभ से लेके आजतक चलायमान हवे।मिडिया के दू रुप आय,प्रिंट मीडिया अउ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रासंगिक दूनो हवे ,फेर वर्तमान मा इलेक्ट्रानिक मीडिया के बहुप्रचलन ले जन जन जुड़े हवे।अभी आप संग लिखित संवाद के सशक्त माध्यम,इही सोशल मीडियाच हवे।
हर मनखे के मौलिक बिचार, हम बइठे बइठे कोनो बेरा, कोनो दिन मा सकेल लेथन,बेरा मा जुड़ जाथन अउ नवा जुन्ना सबो के गियान, मिनट भर मा ले लेथन।ये सब माया, आभासी संसार ले हवे,जऊन- छत्तीसगढ़ी भाषा, समाज , साहित्य , संस्कृति विषय ला बगराय के काज ,सोशल मीडिया करत हावे।परिणाम हम छत्तीसगढ़ साहित्य गौरव के चर्चा ,पटल के माध्यम ले करत हन।भाषा के विकास मा साहित्य के योगदान गद्य पद्ध दूनो विधा मा समकालीन सरोकार के हर पहलू ले जुड़े हवे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य ला सोशल मीडिया मा समृध्द करे के उदमी मा डाॅ सुधीर शर्मा, श्री संजीव तिवारी जी मन ,ब्लॉग ,यू ट्यूब चैनल के जरिया छत्तीसगढ़ी साहित्यकार अउ साहित्य के पहुँच बर देश विदेश तक जोड़े मा,भाषा ला राजभाषा के मान देवाय बर नवा नवा उदमी करत हावे।ऐखर ज्वलंत उदाहरण मा र्व्हाटसअप के जरिया छंद असन कठिन विषय ला आसान बनाय के कारज करत हवे ,गुरु जी अरुण कुमार निगम जी ,सरलग 2016 ले छत्तीसगढ प्रदेश भर मा,छत्तीसगढ़ी साहित्य ला समृध्द करे बर , नवा पीढ़ी गढ़े मा लगे हवे।
आज फेसबुक ब्लॉग के जरिया लगभग दस बारह देश मा छत्तीसगढ़ी छंद ला पढ़े जात हे।
छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के विकास क्रम मा आज सोशल मीडिया के माध्यम ले साहित्य कार मन ला सजग बनाए हवे।नित नवा ऐप के क्रांतिकारी कदम ले आज छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य, साहित्य कार संस्कृति के जस चारों खूँट बगरय हवे,बिषय सामग्री साहित्य साहित्य कार परिचय, रचना सबो सोशल मीडिया मा असानी ले मिल जथे।सोशल मीडिया ले छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के जुडाव,वर्तमान मा तो अपन छाप छोड़त हवे,भविष्य मा भी मील के पथरा माने जाही।
*मीता अग्रवाल मधुर
रायपुर छत्तीसगढ़*
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इंटरनेट आये के बाद शुरुआती समय मा पी.सी. फेर लैपटॉप मा हिन्दी के संगेसंग छत्तीसगढ़ी भाषा घलो अपन रंग जमाना चालू करिस। तब साधन संपन्न मन करा पी.सी. अउ लैपटॉप रहिस जेमा ब्लॉग अउ वेबसाइट के माध्यम ले वोमन अपन रचना, आलेख आदि पोस्ट करत रहंय। इंटरनेट वाला मोबाइल फोन आए के बाद उपयोग करने वाला मन के संख्या बढ़गे। ब्लॉगर मन घलो फेसबुक, वाट्सएप, ट्वीटर आदि मा ज्यादा रुचि लेना चालू करिन। आज इंटरनेट वाला फोन सबो झन के पास हे अउ छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी भाषा मा अपन विचार व्यक्त करना आम बात होगे। लेखन ला सरल बनाए मा मुख्य योगदान हिन्दी-अंग्रेजी के की-बोर्ड ला जाथे। पहिली टाइपिस्ट मन टाइप करत रहिन, आज के की-बोर्ड मा टाइपिंग सीखे के जरूरते नइये। आज सोशल मीडिया मा छत्तीसगढ़ी साहित्य छाए हे। हरेक ला अपन विचार व्यक्त करे के सुविधा उपलब्ध हे।
*संजीव तिवारी जी अपन गुरतुर गोठ डॉट कॉम नाम के वेबसाइट मा छत्तीसगढ़ी साहित्यकार, कलाकार मन के कतको रचना ला संग्रहित करत हें। कई ठन छत्तीसगढ़ी किताब के पी डी एफ तको उहाँ पढ़े बर उपलब्ध हे। पुरखा साहित्यकार मन के कृतित्व अउ व्यक्तित्व, छत्तीसगढ़ के संस्कृति अउ परम्परा के जानकारी तको गुरतुर गोठ मा संकलित हे* एखर अलावा कई झन साहित्यकार के निजी ब्लॉग मा घलो छत्तीसगढ़ी रचना पढ़े बर उपलब्ध हे। *छन्द के छ - परिवार* के सदस्य मन के छन्द संकलन बर *छन्द खजाना* नाम के ब्लॉग मा निमगा छन्द रचना पढ़े बर उपलब्ध हे। *छत्तीसगढ़ी गद्य खजाना* मा इनकर गद्य रचना पढ़े जा सकथे। *हर छत्तीसगढ़ी साहित्यकार ला अपन एक ब्लॉग जरूर बनाना चाही*। ब्लॉग मा पोस्ट रचना इंटरनेट मा सदा दिन बर सुरक्षित हो जाथे अउ गूगल मा सर्च करके दुनिया के कोनो देश मा पढ़े जा सकथे।
*अरुण कुमार निगम*
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सच मा सोशल मीडिया के सदुपयोग करइया बर सोशल मीडिया वरदान साबित होत हे। मँय अपन आप ला येखर ले जोड़ के देखथँव ता लागथे सोशल मीडिया नइ होतिस ता मँय कहाँ होतेंव। मँय निच्चट गवँइहा अउ सायद आप सब झन ले बहुत कम पढ़े लिखे मनखे ला साहित्य के ज्ञान कहाँ ले मिलतिस। सोशल मीडिया नइ होतिस ता ना मोला गुरु मिलतिस ना ज्ञान। ना मोला हिन्दी आय ना अंग्रेजी अउ छत्तीसगढ़ी घलो जो हमर क्षेत्र में बोले जाथे उहीच आत रहिस हे। अब गुरुदेव यानी छंद के छ परिवार ले सोशल मीडिया के माध्यम ले जुड़ के धीरे धीरे बहुत कुछ सीखत हँव अउ कुछ लिख पात हँव।
येखर श्रेय सोशल मीडिया ला ही जाथे की मोला छत्तीसगढ़ी साहित्य उपलब्ध कराइस हे तभे मँय दूसर के ला पढ़ पढ़ के अपन मन मा उमड़त भाव ब्यक्त करे बर सीखत हँव।
अनिल सलाम
गाँव उरैया नयापारा
तहसील नरहरपुर
जिला काँकरे (छ. ग.)
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छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ सोशल मीडिया
ये समय हा सोशल मीडिया के समय आय कहना अतिशयोक्ति नइ होही।संचार के जउन भी साधन हे वोमा सबले लोकप्रिय सोशल मीडिया हा हवे। येखर पहुँच जनसामान्य तक हावय काबर की आज सबके हाथ मा मोबाइल हावय ।साहित्य बर भी सोशल मीडिया हा संजीवनी साबित होवत हे अउ साहित्य के संगे संग साहित्यकार के लोकप्रिय ता बाढ़त हे ।अतका लोकप्रिय माध्यम के परभाव हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य मा पड़ना भी स्वभाविक हे अउ येमा कोनो दू मत नइहे कि सोशल मीडिया ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के लोकप्रिय ता बाढ़िस हे कतको झिन नवा रचना कार मन ये माध्यम ले अपन पहचान बनात हे।हमर पुरखा साहित्यकार मन के रचना ला संजोये के काम घलो सोशल मीडिया करत हे ।ये सब के बावजूद एक बात धियान मा रखे के लाइक हे कि जब कोनो रचनाकार हा अपन रचना ला समाचार पत्र या कोनो पत्रिका मा भेजथे ता रचना संपादक ला पसंद नइ आवय ता रचना छप नइ पावय उही रचना हा सोशल मीडिया मा डाले ले अपन जघा बना लेथे आह वाह के संगे संग लाइक कमेंट आय लगथे।रचनाकार के छपास के पीरा शांत हो जाथे आत्ममुग्धता मा रचना कार अपन आप ला बहुत बड़े साहित्यकार माने लगथे।लोकप्रिय ता के आघू गुणवत्ता छोट हो जाथे।जबकि संपादक के दुवारा कोनो रचना ला अस्वीकृत करे के बाद भले मन मा दुख होथे पर अउ अच्छा लिखे के प्रेरणा घलो मिलथे।तभो ले सोशल मीडिया के रूप मा छत्तीसगढ़ी साहित्य ला एक बेहतर प्लेटफार्म मिले हे जेखर से छत्तीसगढ़ी साहित्य के लोकप्रियता चारो मुड़ा मा बगरत हे ।साहित्यकार मन ला ये बात धियान म रखना परही कि वोमन सिरफ आह वाह से खुश मत होंय
काबर कि लोकप्रियता ही हा उत्कृष्टता के पैमाना नोहय।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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कुलदीप सिन्हा: आज के युग मा हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे बर सोशल मीडिया हा जेन काम करे हवे वो कखरो ले छिपे नइ हे। येखर पहिली हमर बड़े बड़े गुनिक जन के विचार ला पुस्तक अउ समाचार पत्र के माध्यम ले पढ़त अउ सुनत रेहेन। जब ले हमर बीच मा सोशल मीडिया हा आइस हे तब ले हमन ला फेसबुक वाट्सएप इंस्टाग्राम अउ न जाने कतना समूह चलत हे जेन हा कोई ना कोई रूप में हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला प्रभावित करत हे। हमर मन के पढ़ाई के समय मा सोशल मीडिया हा जनम घलो नइ धरे रिहिस तब बड़े बड़े कवि अउ लेखक मन के नाम ला पढ़न ता अइसे लागे येमन हा हमर बीच के मनखे नोहय। येमन हा कोनो अलग मनखे होवत होही जेन मन हा लिखथे पढ़थे। हमन तो कभू सपना में घलो नइ सोंचे रेहे होबो कि अइसन दु आखर ला लिख लेबो। हमन ला आज जेन जगा मिले हावे वोमा आदरणीय गुरुदेव मन के संगे संग सोशल मीडिया के घलो हाथ हावे, येमा कोनो दु मत के बात नइ हे।
आज के जमाना मा हर पढ़े लिखे मनखे मन अपन बात ला समाज के बीच मा कोनो ना कोनो माध्यम ले रख सकत हे, अउ रखत घलो हे। चाहे वोला कोनो पढ़े या झन पढ़े। फेर वो लिखइया के विचार हम सबके बीच मा आ जाथे। मेहा बात करत रेहेवँ हमर महतारी भाखा के विकास मा सोशल मीडिया के का योगदान हे, वोखर बर मेहा अतनी कही सकत हौं कि, आज जेन जगा हमर साहित्य खड़े हे वोमा वोखर बहुत बड़े भूमिका हे।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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धनराज साहू: *छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ सोशल मीडिया*
बड़ सुग्घर अकन अउ सँहराये लइक एक से बढ़के एक विचार समूह म आइस। हम नवा पीढ़ी के सिखइया मन बर ,सोशल मीडिया बरदान बरोबर आय। सोशल मीडिया उपर जतेक गोठ करे जा सकत हे , हमर साहित्यकार आदरणीय मन करिन हे। आज के नावा पीढ़ी आघु के साहित्यकार मन सँग परिचित नइ रिहिन। ओकर मूल कारण पुस्तक अउ पत्र-पत्रिका के अभाव। जुन्ना सियान मन मे बहुत कम झन के पुस्तक अउ पत्र-पत्रिका म रचना छपे हे। वर्तमान म हम जतेक रचनाकार से परिचित हन ओकर ले जादा आज भी दबे- छुपे हावय। उँकर खोजबीन करके रचना मन ल सकेले जाय तो , मोला विश्वास हे , एक से बढ़के एक निमगा लिखैय्या साहित्य कार मन सँग परिचित होबो साथ ही लोक कला- लोक साहित्य अउ अन्य विधा मन के रचना मिलही। ये क्षेत्र म आदरणीय सुधीर शर्मा जी के लोकाक्षर पत्रिका के जतेक मान किया जाय कम हावय। फेर अभी भी जतेक उदिम होय हे , अइसने उदिम अउ अन्य मन ल भी करे के जरूरत हे।
ओ तो भला हो सोशल मीडिया के जौन आज गुमनाम कवि-साहित्यकार मन के रचना कृतित्व/व्यक्तित्व के जानकारी कौनो-कौनो के पोस्ट के माध्यम से पता चल जाथे।
कतको कवि साहित्यकार मन आज ले कइ बछर आघु पत्र पत्रिका अउ आकाशवाणी / कवि सम्मेलन म छपे अउ प्रस्तुति देंहे । फेर दुख तब होथे जब उँकर मन के नाँव कोनो साहित्य सम्मेलन अउ अन्य साहित्यिक मँच मन म नइ लिये जाए। जबकि जुन्ना साहित्यकार मन बहुत झन के कृतित्व से परिचित हें। जब तक उन मन ल मान दिये नइ जाही तो फिर नवा पीढ़ी उन ल कइसे जान पाही।आज भी कुछ साहित्यकारअउ उँकर रचना ऊपर ही चर्चा होथे , छत्तीसगढ़ म साहित्यकार अउ साहित्य के कौनो कमी नइ हे, अउ जब तक उन रचनाकार मन ऊपर उँकर रचना ऊपर शुद्ध मन से , निस्वार्थ चर्चा अउ समीक्षा नइ करे जाही तब तक हमर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के लिए सोंच अधूरा रही।
सोशल मीडिया के माध्यम से जौन गुमनाम साहित्यकार मन के बारे म जानकारी मिलथे, उँकर सूची बनाके उँकर जन्म जयंती या पुण्य तिथि म व्यक्तित्व/कृतित्व पर ऊपर चर्चा हो , ताकि सोशल मीडिया म जुड़े जम्मो जन मानस तक उँकर जानकारी पहुँचय । इही उदिम हर दिवंगत रचनाकार मन के लिए सही श्रद्धांजलि होही।
धनराज साहू
कुलदीप सिन्हा: आज के युग मा हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला पोठ करे बर सोशल मीडिया हा जेन काम करे हवे वो कखरो ले छिपे नइ हे। येखर पहिली हमर बड़े बड़े गुनिक जन के विचार ला पुस्तक अउ समाचार पत्र के माध्यम ले पढ़त अउ सुनत रेहेन। जब ले हमर बीच मा सोशल मीडिया हा आइस हे तब ले हमन ला फेसबुक वाट्सएप इंस्टाग्राम अउ न जाने कतना समूह चलत हे जेन हा कोई ना कोई रूप में हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य ला प्रभावित करत हे। हमर मन के पढ़ाई के समय मा सोशल मीडिया हा जनम घलो नइ धरे रिहिस तब बड़े बड़े कवि अउ लेखक मन के नाम ला पढ़न ता अइसे लागे येमन हा हमर बीच के मनखे नोहय। येमन हा कोनो अलग मनखे होवत होही जेन मन हा लिखथे पढ़थे। हमन तो कभू सपना में घलो नइ सोंचे रेहे होबो कि अइसन दु आखर ला लिख लेबो। हमन ला आज जेन जगा मिले हावे वोमा आदरणीय गुरुदेव मन के संगे संग सोशल मीडिया के घलो हाथ हावे, येमा कोनो दु मत के बात नइ हे।
आज के जमाना मा हर पढ़े लिखे मनखे मन अपन बात ला समाज के बीच मा कोनो ना कोनो माध्यम ले रख सकत हे, अउ रखत घलो हे। चाहे वोला कोनो पढ़े या झन पढ़े। फेर वो लिखइया के विचार हम सबके बीच मा आ जाथे। मेहा बात करत रेहेवँ हमर महतारी भाखा के विकास मा सोशल मीडिया के का योगदान हे, वोखर बर मेहा अतनी कही सकत हौं कि, आज जेन जगा हमर साहित्य खड़े हे वोमा वोखर बहुत बड़े भूमिका हे।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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धनराज साहू: *छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ सोशल मीडिया*
बड़ सुग्घर अकन अउ सँहराये लइक एक से बढ़के एक विचार समूह म आइस। हम नवा पीढ़ी के सिखइया मन बर ,सोशल मीडिया बरदान बरोबर आय। सोशल मीडिया उपर जतेक गोठ करे जा सकत हे , हमर साहित्यकार आदरणीय मन करिन हे। आज के नावा पीढ़ी आघु के साहित्यकार मन सँग परिचित नइ रिहिन। ओकर मूल कारण पुस्तक अउ पत्र-पत्रिका के अभाव। जुन्ना सियान मन मे बहुत कम झन के पुस्तक अउ पत्र-पत्रिका म रचना छपे हे। वर्तमान म हम जतेक रचनाकार से परिचित हन ओकर ले जादा आज भी दबे- छुपे हावय। उँकर खोजबीन करके रचना मन ल सकेले जाय तो , मोला विश्वास हे , एक से बढ़के एक निमगा लिखैय्या साहित्य कार मन सँग परिचित होबो साथ ही लोक कला- लोक साहित्य अउ अन्य विधा मन के रचना मिलही। ये क्षेत्र म आदरणीय सुधीर शर्मा जी के लोकाक्षर पत्रिका के जतेक मान किया जाय कम हावय। फेर अभी भी जतेक उदिम होय हे , अइसने उदिम अउ अन्य मन ल भी करे के जरूरत हे।
ओ तो भला हो सोशल मीडिया के जौन आज गुमनाम कवि-साहित्यकार मन के रचना कृतित्व/व्यक्तित्व के जानकारी कौनो-कौनो के पोस्ट के माध्यम से पता चल जाथे।
कतको कवि साहित्यकार मन आज ले कइ बछर आघु पत्र पत्रिका अउ आकाशवाणी / कवि सम्मेलन म छपे अउ प्रस्तुति देंहे । फेर दुख तब होथे जब उँकर मन के नाँव कोनो साहित्य सम्मेलन अउ अन्य साहित्यिक मँच मन म नइ लिये जाए। जबकि जुन्ना साहित्यकार मन बहुत झन के कृतित्व से परिचित हें। जब तक उन मन ल मान दिये नइ जाही तो फिर नवा पीढ़ी उन ल कइसे जान पाही।आज भी कुछ साहित्यकारअउ उँकर रचना ऊपर ही चर्चा होथे , छत्तीसगढ़ म साहित्यकार अउ साहित्य के कौनो कमी नइ हे, अउ जब तक उन रचनाकार मन ऊपर उँकर रचना ऊपर शुद्ध मन से , निस्वार्थ चर्चा अउ समीक्षा नइ करे जाही तब तक हमर छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के लिए सोंच अधूरा रही।
सोशल मीडिया के माध्यम से जौन गुमनाम साहित्यकार मन के बारे म जानकारी मिलथे, उँकर सूची बनाके उँकर जन्म जयंती या पुण्य तिथि म व्यक्तित्व/कृतित्व पर ऊपर चर्चा हो , ताकि सोशल मीडिया म जुड़े जम्मो जन मानस तक उँकर जानकारी पहुँचय । इही उदिम हर दिवंगत रचनाकार मन के लिए सही श्रद्धांजलि होही।
धनराज साहू
सोसल मिडिया मा छत्तीसगढ़ी साहित्य के अधिकता दिखाई देवत हे।आघू जमाना मा कम्प्यूटर अउ टाइपिंग मशीन के आलावा कोनो साधन नइ रिहिस हे जेखर ले अपन भाषा के विकास हो सकय। अब तो एंड्राइड मोबाइल के जमाना होगे हे। उहू मा इंटरनेट के संग मा। लोगन मन के अभिव्यक्ति क्षमता घलो बाढ़ गे हे। ते पाय के लोगन मन उत्ते-धुर्रा लिखत हावै। काबर विचार के स्वतंत्रा ऊपर कखरो प्रतिबन्ध नइ हे।
ReplyDeleteजम्मों लेख म सुग्घर विचार व्यक्त करे गे हे।
ReplyDeleteए संग्रह बहुत उपयोगी हे।
साधक मन के गद्य विधा म लेखन छत्तीसगढ़ी साहित ला सजोर करही।
ReplyDeleteआप सब ल योगदान बर बधाई
गज़ब सुग्घर संग्रह
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