विधा- एकांकी(नानकुन उदीम,पहिली घाँव)
बेटी बर सीख
पात्र-
मोनी- 14 बच्छर के नोनी
कमला- मोनी के महतारी
समारीन- मोनी के ककादाई
*परदा उठथे*
(बिहनिया के 7:30 बजे के बेरा, सुत उठ के मोनी मोबाइल धर के खेलत दुवार मा बइठे हे, कमला दुवार बुहारत हे)
समारीन -(भीतरी ले खटिया में सुते सुते हुँत करावत) कोनों एक गिलास मा पानी देवव ओ...! दवई खाहूँ....!
कमला- मोनी! जा तो ओ, तोर ककादाई ला एक गिलास पानी दे दे।
मोनी -( चुप ,मोबाइल मा खेलत रहिथे )
(थोकिन देर पाछू )
समारीन - अरे कोनों सुनत हव वो...। एक गिलास पानी देवव...! दवई खाहूँ....!
कमला- अरे जा ना ओ! फेंक तोर मोबाइल ला, मराइया मर जाही फेर तुहंर मोबाइल.....
मोनी - मय नइ जावँव,तहीं हा दे दे।डोकरी हा दिन भर बोरोर बोरोर चिचियात रथय।
कमला - (खिसियावत )अतका बड़ बाढ़गे हस, एक गिलास पानी देय लइक नाइ हस।कतका बेरा होगे सियानिन ला पानी मांगत।
(खुद पानी ला के देइस)
समारीन - ( पानी पियत कमला ला बोलत) अरे तोर बेटी बाढ़गे हे ओ, घर के थोकिन घर के बूता ला करे बल सीखो, नइते तुही ला सुनेबर परही।
कमला - कइसे करँव नइच मानय ता ? अरदली हो गे हे।
समारीन - कुछु तो करेबर परही लइका ला सुधारे बर।सुन ...( कमला के कान मा कुछु कहिथे)
(कमला बाहिर आ के )
कमला - मोनी ! जा जल्दी नहा ले ओ , नल बंद हो जाही। मँय रोटी साग बनावत हँव।नहा के खा लेबे।
मोनी- हव।(मोबाइल खेलत भीतरी डहर नहानी कुरिया मा गइस)
(कमला रँधनी कुरिया मा जाके रोटी अउ साग बना के मोनी बर अलग से निकाल दिस,ओखर कटोरी के साग मा दू चम्मच आगर पिसाय मिर्चा ला डार दिस )
मोनी - (नहाय के पाछू ) दाई मँय नहा डारेंव। रोटी दे दे । मोबाइल ला एक हाथ मा धरके निकलिस।
कमला - रंधनी कुरिया मा तोर बर रोटी अउ कटोरी मा साग निकाल दे हँव। लान के खा ले। मँय नहाय बर जावत हँव।
( डेरी हाथ मा मोबाइल ला धरके देखत अउ जेवनी हाथ मा रोटी संग साग ला धरके पहिली काँवरा मुँह मा लेगते साट)
मोनी - ए दई ओ! हाय मिर्चा ! साग हा अब्बड़ चुरपुर हे। दाई पानी! एक गिलास पानी !
(कपाट के ओधा ले देखत, सुनत )
कमला - पानी नइ निकाले का ओ! तहीं ले जा बेटी मँय तोर ओन्हा ला धोवत हँव। नइते मोबाइल ले निकाल के पी ले।
मोनी - (जोर जोर सेचिल्लावत) ये दाई ओ ! ए ककादाई, मर गेंव ओ। साग मा अबड़ मिर्चा। हाय ! हाय! पानी...! पानी... ! दाई पानी दे ओ।एक गिलास पानी जल्दी....। दाई....!
कमला - (हाँसत अउ गिलास मा पानी देवत) पानी ला निकाल के नइ बइठतेच ओ।
(मोबाइल ला फेंकत दूनो हाथ मा गिलास धरके एकसस्सी पानी पियत)
मोनी - हाय ! साग मा अतेक मिर्चा काबर डारे हस।मुँहू हा जरगे।आँसू निकलगे।
कमला - (हाँसत हाँसत) अब समझ मा अइस ओ , कोनों ला पानी नइ मिलय ता कइसे परान छुटे बरोबर लागथे।तोर ककादाई हा बिहाने पानी माँगत रहिस ता तँय मोबाइल खेलत रहे।
मोनी - अब समझगेव दाई।ककादाई ला अब ले कभू नइ तरसावँव।जौन जिनिस माँगही लघियाँत दे देहँव।
( कमला हाँसत हाँसत कटोरी के साग ला धरके नहायबर चल दिस)
*परदा गिरथे*
हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद
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