संस्मरण-ज्ञानु
'हंडा'
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ददा मन चार भाई एक बहिनी रिहिन तेमा मोर ददा सबले छोटे आय ।फूफू ससुराल चल दे रिहिस।ददा मन अपन अपन अलग कमात खात रिहिन।कुछ पुरखौती जमीन रिहिस तेला आपस म बाँट के खेती किसानी करय ।बनी भुति करत अपन अपन बसर करय।बूढ़ी दाई(जेला हम सब प्यार ले बालक दाई कहन) हमर घर रहय।हमन 3 भाई अउ एक बहिनी हवन। बड़े भइया , बहिनी, मैं अउ छोटे भाई ।बालक दाई हमेशा हम तीनों भाई ल मोर बेटा के तुमन तीन हंडा आव कहिके बड़ मया करै।अउ अपन अँचरा तरी राखय।
हमर बचपना बहुत दुख तकलीफ म बीते हे।कोनो दिन तो अइसे हो जय एक जुवर दाना घलो नसीब नइ होय। माँ के हमेशा तबीयत खराब रहय। घर के बुता म माँ के अक्सर मैं हाथ बटावँव ।जेन उमर खेले- कूदे इतराय के रिहिस ओ समे घर के बुता काम म निकलय।
सोला-सतरा के उमर रिहिस होही तब ले ददा ह पंडवानी म हारमोनियम बजाय बर शुरु करे रिहिस तेन अभी ले चलत हे।पहिली पइसा कमाय के उद्देश्य ले जात रिहिस फेर अब अपन शउक पूरा करे बर जाथे। कभू पंद्रह दिन त कभू एक महीना घलो बाहिर राहय।हा फेर जाय के पहिली फूल ददा के दुकान ले नून- तेल, साबुन - सोडा उधारी ले के चल दय अउ आवय तहाँ ले पटा दय। वो बीच म काही अड़चन आय जइसे हमर बर कॉपी पुस्तक लेना या फीस पटाना हे त बड़ मुस्कुल होय। हमर घर म एक ठन हंडा हे (पानी भरे के जेन हउला ले बड़े होथे) माँ ह ओला गाँव म एक महराज घर गिरवी धरके पइसा के बेवस्था करय। जब ददा आवय त ब्याज सहित पटा के फेर ले आवय।पता नहीं वो हंडा बपुरा हज़ारों बार गिरवी धराय होही हमर सेती।
आज भी वो हंडा घर म रखाय हे।जब भी देखथव त ओ दिन ह अपने अपन आँखी म झूल जथे। आज ओ हंडा के सेती सही म हम तीनों भाई सुग्घर कमात खात हन। ददा आज भी सुरता करथे दाई ह तुमन ला हंडा कहय कहिके।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक(सत्र-3)
चंदेनी कवर्धा
'हंडा'
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ददा मन चार भाई एक बहिनी रिहिन तेमा मोर ददा सबले छोटे आय ।फूफू ससुराल चल दे रिहिस।ददा मन अपन अपन अलग कमात खात रिहिन।कुछ पुरखौती जमीन रिहिस तेला आपस म बाँट के खेती किसानी करय ।बनी भुति करत अपन अपन बसर करय।बूढ़ी दाई(जेला हम सब प्यार ले बालक दाई कहन) हमर घर रहय।हमन 3 भाई अउ एक बहिनी हवन। बड़े भइया , बहिनी, मैं अउ छोटे भाई ।बालक दाई हमेशा हम तीनों भाई ल मोर बेटा के तुमन तीन हंडा आव कहिके बड़ मया करै।अउ अपन अँचरा तरी राखय।
हमर बचपना बहुत दुख तकलीफ म बीते हे।कोनो दिन तो अइसे हो जय एक जुवर दाना घलो नसीब नइ होय। माँ के हमेशा तबीयत खराब रहय। घर के बुता म माँ के अक्सर मैं हाथ बटावँव ।जेन उमर खेले- कूदे इतराय के रिहिस ओ समे घर के बुता काम म निकलय।
सोला-सतरा के उमर रिहिस होही तब ले ददा ह पंडवानी म हारमोनियम बजाय बर शुरु करे रिहिस तेन अभी ले चलत हे।पहिली पइसा कमाय के उद्देश्य ले जात रिहिस फेर अब अपन शउक पूरा करे बर जाथे। कभू पंद्रह दिन त कभू एक महीना घलो बाहिर राहय।हा फेर जाय के पहिली फूल ददा के दुकान ले नून- तेल, साबुन - सोडा उधारी ले के चल दय अउ आवय तहाँ ले पटा दय। वो बीच म काही अड़चन आय जइसे हमर बर कॉपी पुस्तक लेना या फीस पटाना हे त बड़ मुस्कुल होय। हमर घर म एक ठन हंडा हे (पानी भरे के जेन हउला ले बड़े होथे) माँ ह ओला गाँव म एक महराज घर गिरवी धरके पइसा के बेवस्था करय। जब ददा आवय त ब्याज सहित पटा के फेर ले आवय।पता नहीं वो हंडा बपुरा हज़ारों बार गिरवी धराय होही हमर सेती।
आज भी वो हंडा घर म रखाय हे।जब भी देखथव त ओ दिन ह अपने अपन आँखी म झूल जथे। आज ओ हंडा के सेती सही म हम तीनों भाई सुग्घर कमात खात हन। ददा आज भी सुरता करथे दाई ह तुमन ला हंडा कहय कहिके।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक(सत्र-3)
चंदेनी कवर्धा
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर गुरुदेव💐
ReplyDeleteनमन💐