Friday, 10 July 2020

सम्मान के बोजहा (निबन्ध)

सम्मान के बोजहा (निबन्ध)


सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलख कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु,जसु अपजसु विधि हाथ।।
         रामचरित मानस के ए दोहा ह बहुत बड़े जीवन दर्शन ए, अचूक राम बाण मन्त्र आय।एखर सीधा सीधा अर्थ तो इही हे कि--राजा दशरथ के मरे अउ क्रियाकर्म होये के बाद ,आगू काय करना हे तेला सोंचे बर सभा सकलइच तब रोवत गावत ,बहुतेच दुखी अउ उदास-निराश भरत जी ल अबड़ेच दुखी मन  ले गुरु वशिष्ठ जी ह समझावत कहिन--बेटा भरत ! दुखी झन हो।अपन ल दोषी झन मान।  नफा-नुकसान ,जीना-मरना,मान-अपमान उपर मनखे के जोर नइ चलय। समय बलवान होथे। ए सब के देवइया,रचइया भगवान होथे।
            फेर ए दोहा के  अतके अर्थ बस नइये ,एमा गूढ़ भावार्थ समाये हे। ए काहत हे कि-मनखे के जिनगी म सुख-दुख ,लाभ-हानि, जस-अपजस  के आना -जाना,धूप-छाँव कस लगे रथे। ए ह जम्मों घोर दुख म परे, बिपति के फांदा म फँसे मन ल ढाढ़स बँधावत ,धीर रखे के सीख देवत काहत हे - समय गुजरही तहाँ ले सब ठीक हो जही। दुख के दिन बीत जही। जेन भगवान अपन बिधान के चलती दुख देहे ,उही ह सुख घलो देही।कहे गे हे-घुरूवा के दिन घलो बहुरथे।
     कतका बड़े गुनान बात भरे हे एमा। सच म जे मनखे हा दुख मा धीर नइ धरय  वो ह टूटे माला सहीं बिखर जथे, छरिया जथे। कतको झन तो भगवान के दे वरदान ए मानुस तन ल बुजदिल बनके, आत्महत्या करके नष्ट तको कर देथें जबकि मन ल सम्हाल के दुख ल सहना चाही।
      ओइसने मान-अपमान के बात घलो हे। ए मृत्यु लोक म भला अइसे कोन हे जेला कभू मान नइ मिले होही या अपमान के अनुभव नइ करे होही? सब ल मान ,अपमान मिलत रइथे।इहाँ तक बड़े- बड़े सन्त-ज्ञानी, साधु-महात्मा, अवतार ,भगवान तको मन के जीवन म  उज्जर सम्मान के संग अपमान के करिया केंरवछ  लगे दिखते। चंदा म दाग हे त सुरुज ल घलो गरहन घेर लेथे, सूतक लग जथे। जेन आदमी अपमान ल हाँस के नइ टाल सकय ,धीर नइ धर सकय,वो ह बहुत अकन मानसिक बीमारी के चपेट म आ जथे। ओला इरखा, बैर, अवसाद, चिड़चिड़ापन, मनखे मन के बीच बइठइ ले डर , ककरो संग नइ गोठियाना, चुगरी-चारी करना,घर खुसरा बन जाना-----आदि अनेक प्रकार के बीमारी धरे के पूरा सम्भावना रइथे। अपमान के बीमारी ले बाँचे के सुग्घर उपाय तो इही हे कि हमला हमेशा धियान देना चाही कि अपमान होय के मौकैच झन आवय। फेर ए ह कोनो न कोनो रूप म आ जथे। जब आ जथे त झेल लेना चाही।अउ समझ लेना चाही कि ए दुनिया म भूँकइया कुकुर मन के कमी नइये। कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बाजार। बादर म थूकइया ऊपर ओकरे थूंक ह गिर जथे। अपमान होगे, अपमान होगे कहिके मूँड़ धरे सोंचत नइ बइठ के ,अपन अच्छा काम ल करते रहना चाही।
             अपमान ले जादा खतरनाक सम्मान ह होथे। एखर मतलब ए नइये कि ककरो सम्मान नइ होना चाही, ककरो सम्मान नइ करना चाही या कोनो ल सम्मान नइ मिलना चाही। सब होना चाही। सम्मान भला कोन ल अच्छा नइ लागय? हम दूसर ल सम्मान देबो त हमू ल मान मिलही।ताली दूनों हाथ ले बाजथे। संसार म अच्छा मनखे के , प्रतिभा के, गुन के सम्मान नइ होही त अच्छा काम करे के, अपन कर्तब्य ल डँट के निभाये बर पंदोली, प्रेरणा कइसे मिलही?
    सँगवारी हो! मैं तो ए कहना चाहत हँव कि जब-जब हमला कोनो सम्मान मिलय तब-तब भारी सावधान रहना चाही। सम्मान के संग फूल के कुप्पा होये के बीमारी धरे के सोला आना सम्भावना रहिथे। कहूँ ए रोग संचरगे त घाव बनत देरी नइ लागय। सम्मान के खातू-माटी अउ वाह-वाह के पलोये पानी म हिरदे भीतर घमंड के विष बेल जामे अउ घपटे के पूरा खतरा रहिथे। ए कहूँ जाम गे त दुर्गति होना तय हे।  सम्मान के संग एक ठन भयानक ' कलकलहा ' रोग घलो कई झन ल धरे दिखथे। ए रोग म 'सम्मान के भूख' बाढ़ जथे।पेट भरबे नइ करय। ए रोगी ह जेती पाथे तेती मुँह मारते रथे। ओला छिन भर चैन नइ राहय। ए ला कहूँ सम्मान नइ मिलय त छीना झपटी अउ लड़ाई झगरा म तको उतर आथे। एकर हालत सीलनिधि राजा के स्वयम्बर मा एती-वोती कूदत नारद मुनि कस हो जथे। सम्मान ह अइसे विटामिन ए जेला जादा खाये म उल्टा 'अंधरौटी ' रोग धर लेथे । ए बेचारा बिमरहा ल दुनिया म खुद ले श्रेष्ठ अउ कोनो दिखबे नइ करय। जेन मेर रइही, ऊँट असन घेंच ला टाँगेच रहिथे। हाँ एक बात अउ हे जेन मनखे ल सम्मान नइ पचय ओला 'लपलपहा अउ चपचपहा ' रोग संघरा धर लेथे। लपलपहा रोग के चिनहा अइसे हे कि हर जगा लपर लपर अबड़े गोठियाते रहना, कोनो दूसर के नइ सुनना अउ अपन श्री मुख से मैं, मैं, मैं---नरियाते रहना। चपचपहा रोग मा रोगी ह चिपकू हो जथे।ओ कहूँ सुन डरिच कि फलाना जगा ढेकाना आयोजन होवत हे जेमा देकर- ओकर सम्मान करे जाही त आप दू सौ परसेंट सहीं मानव ओहा आयोजक करा जाके चिपकबे करही अउ कइसनो करके अपन सम्मान के जुगाड़ मढ़ा के रइही।ए रोगी बड़ा टेलेंटेड जुगाड़ू होथे।
              सँगवारी हो सम्मान पाना सहज हो सकथे फेर वो सम्मान ल बनाये रखना बहुतेच कठिन बूता आय। सम्मान ल बहुत सहजभाव अउ बिना अहंकार के स्वीकारना चाही, बिना मतलब के सम्मान के पीछू नइ परना चाही। सम्मान के लाइक करम रइही त  सम्मान  मिल के रइही। विधाता घलो ह मनखे के जइसने करम होही ओइसने भाग ल लिखथे कहिथें।
    सम्मान ह अपन संग बहुत अकन बन्धन घलो संग म धरके आथे। खासकर कोनो ल ओकर नैतिक पक्ष ल,समाज सेवा ल, इंसानियत ल देख के, उत्तम कला ल देख के, उत्तम साहित्य सृजन ल देख के, देशभक्ति ल देख के सम्मान मिले हे त ओला अउ जादा सम्हल के जिंदगी बिताये ल परथे। ए ह खांड़ा के धार म चलना आय। उज्जर कुरता म छोटकुन करिया दाग ह घलो टकटक ले दिखे ल धर लेथे।ए जमाना म  कोनो आन म दाग खोजइया मन जादा हें, भले  वो खुद चिखला म रात-दिन सनाये रइही।
     सँगवारी हो! सम्मान ल यदि सहज भाव ले नइ ले जाय तब एहा भार स्वरूप हो जथे। गँजा -गँजा के घातेच गरू बोजहा हो जथे जेमा लदका के जिनगी के सुख-शांति हा मर जथे।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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