Wednesday, 22 July 2020

खेल खेल में-संस्मरण

खेल खेल में-संस्मरण

           आजकल पेड़ -पात, साग-भागी, कुकरी-बकरी संग अउ कतको चीज, दवई-दारू अउ सूजी-पानी म डंगडंग ले बाढ़ जावत हे। का मनखे एखर ले अछूता हे? आज प्रकृति के नियम धियम  सब अस्त व्यस्त होगे हे। जे नइ हो सके उहू सम्भव होवत हे। खैर, छोड़व----- काबर कि नवा जमाना म सब जायज हे। जइसे लइकच मन ल देखव जे मन बिन खेलकूद के घलो बड़े हो जावत हे। दू ढाई साल के लइका कहिथन त हमर आघू उंखर लड़कपन,तोतला बानी, शोर- शराबा अउ उंखर खेलकूद सुरता आये बर लग जथे। फेर आज जमाना बड़ रप्तार म भागत हे, नान नान लइका मन आज सियान बरोबर टिफिन धरके गाड़ी चढ़, अपन भार ले जादा कॉपी पुस्तक ल पीठ म लाद, स्कूल जावत हे, अउ उँहा ले थक हार के आय के बाद घर म घलो पढ़त लिखत हे। अउ बाँचे खोंचे बेरा ल बइरी टीवी अउ मोबाइल नँगा लेवत हे। आगी पागी के होस नही उहू मन सबे चीज ल रट डारे हे, ये कोनो गलत नोहे , फेर लइका मनके आज शारीरिक कसरत कम होगे हे। जेन ल हमन अपन लइकई पन म खेल खेल संगी संगवारी बनाके सीखन तेला, आज लइका मन पढ़ अउ  रट के सीखत हे।
              आज के नान नान लइका मन के ये स्थिति ल देख मोला अपन बचपन याद आवत हे। दाई ददा खवा पिया के छोड़ देवय, ताहन  हमन छोटे बड़े सबे मिलके एक ले बढ़के एक खेल खेलन। स्कूल घलो छः बरस गेन, जब डेरी हाथ ले जेवनी कान, अउ जेवनी हाथ ले डेरी कान बराबर छुवाय लगिस तब। छः साल के होवत ले दउड़ दउड़ के गांव गली ,खेत खार म खेलेन । लिखई पढ़ई ल तो स्कूल म सीखेंन, फेर कई ठन जानकारी ल खेले खेल म सीख ले रेहेन। आज के लइका मन पुस्तक ल देख पढ़ के,अपन शरीर के अंग जानथे, या ददा दाई मन बताथे तब जानथे, फेर  मोला सुरता आवत हे एक खेल के जेमा सबे संगवारी मन संग गोल घेरा बनाके घूमन अउ चिल्लावत मजा लेवत काहन- *गोल गोल रानी- इता इता पानी।* पाँव ले चालू होके ये खेल चुन्दी म खतम होय। ये खेल रोजे खेलन, जेखर ले अपन शरीर के जमे अंग ल खेल खेल म जान जावन। आज के लइका मन स्कूल में ताहन दाई ददा के संग घर में घलो रट रट के गिनती सीखथे, फेर हमन अइसन कई ठन खेल अउ गीत ल, एक-दू बेर खेलके अउ गाके, कभू नइ भुलाय तइसन सुरता कर लेवन। लइकापन म बाँटी जीत,बिल्लस,गोटा, चोट-बदा(बाँटी डूबउल), कस कतको खेल, खेलके गिनती के एक, दो, तीन ----- सीखेंन। बाँटी ,बिल्लस, गोटा जइसे  खेल,खेलके  हमर निसाना घलो तेज होय अउ शरीर घलो चंगा रहय।
लुका छुपउल म घलो गिनती दस तक बोलई ले सीख जावन। तिरी पासा, चोर पुलिस जइसे खेल  म घलो गिनती के उपयोग होय।
            रंग के ज्ञान घलो स्कूल जाय के पहली हो गए रिहिस, *इटी पीटी रंग कोन से कलर* वाले खेल खेलके।
सूरज,चन्दा, पानी, पवन  ल घलो खेल म जान डरे रेहेन।
नदी - पहाड़ , खेलके खचका - डिपरा अउ फोटो जितउल म एक जइसे दिखे वाले चीज छाँटे के जानकारी अउ घाम  छाँव म घाम छाँव के जानकारी हो जावत रिहिस। गिल्ला, भौरा , पिट्ठुल, रस्सी कूद, फुगड़ी, खो, कबड्डी,डंडा पिचरंगा,घलो शरीर ल चंगा रखे के साथ साथ दिमाक ल खोले। बड़े संगी मन संग खेल खेल म उंखर जानकारी ल हमू मन ले लेवन। सगा पुताना खेल म ज्ञान अउ मजा के बात भर नही बल्कि जिनगी के जम्मो बूता ल सीखे म मदद मिले। बाजार हाट जाना, समान बेचना लेना, पइसा कौड़ी के हिसाब, नता रिस्ता के जानकारी के संगे संग अउ कतको जीवन उपयोगी जानकारी ये खेल म मिले, जउन आज स्कूलो म नइ मिल पावत हे। गीत कविता सुनई गवई तो रोजेच होय, स्कूल जाय के पहिली कतको गीत कविता याद रहय। बर बिहाव, बाजा बराती, जइसे खेल खेलके  कतको संगी मन संगीत म घलो अपन पकड़ बना लेवत रिहिस। मोला सुरता आवत हे मोर बचपन के संगी उगेश के जउन पहली डब्बा, दुब्बी ल न सिर्फ पिटे बल्कि बढ़िया बजाय, आज वो तबला ढोलक बजाए म उस्ताद हे। ननपन म बबा, डोकरी दाई अउ कका के कहानी सुने बर घलो बराबर टेम देवन। तरिया नरवा म नहा के तँउरे बर घलो सीख जावन। पेड़ चढ़ना, भागना, नाचना, गाना अउ बूता काम म हाथ बँटाना सब खेल खेल म हो जावत रिहिस।
          आज लइका मन ल बताय बर लगथे कि  कुकुर भूं भूं कहिथे, बिल्ली म्याऊँ कहिथे, चिरई  चिंव कहिथे। फेर हमन तो कुकुर ल एक ढेला मार घलो देवन, अउ ओखर कुँई कुँई अउ भूं भूं ल सुनन  तब जानन। *काँउ मॉउ मेकरा के जाला* ये खेल ले शेर,कुकुर, बिलई, भालू, बेंदरा कस कतको जानवर के आवाज ल जान डरत रेहे। बारी बखरी के खेल(घिनिन मानन बटकी भवड़ा)  ले साग भाजी के नाम  मन घलो सुरता रहय। येमा भागी ,पाला, फल, पेड़ ल बढ़ाय, बचाय, अउ तोड़ें ,बेचे के घलो जानकारी रहय। दिन के नाम घलो आज इतवार है, चूहे को बुखार है, कहिके सातो दिन ल रट डारत रेहेन। तिहार बार, खेती खार, हाट बाजार, सगा सोदर आना जाना, नाच गान, सब खेल के हिस्सा रहय। कतको हाना, पहेली घलो खेल खेल म याद रहय। छोट बड़े संग जुरियाय पारा मुहल्ला के संगी मन संग, कई किसम के खेल खेलन, सबके वर्णन कर पाना मुश्किल हे, सबे खेल कोई न कोई ज्ञान अउ शरीर के कसरत ले जुड़े रहय। पतंग उड़ाना, तुतरु बजाना, कागज संग माटी के कई किसम के चीज बनाना, हमर निर्माण क्रिया ल घलो दर्शाये। आज गाँव घलो शहर बनत जावत हे, कुछ कुछ गाँव ल छोड़ ताहन लगभग सबे गाँव के लइका मन  शहरी बनके ये सब खेल मेल ले दुरिहागे हे। गाँव म आज भी कुछ खेल के कल्पना कर  सकथन, फेर शहर नगर के लइका मन तो किताब कॉपी , मोबाइल टीवी म ब्यस्त हे। आज घलो मोर मन वो दिन ल याद करके उही बेरा म  खींचा जथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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