बलराम चंद्राकर: असाड़
असाड़, साल के चौंथा महिना, लगते पानी बादर के गुरुरघारर शुरू हो जथे। जेठ के घाम ले लाहके जीव थीर पाथे।सरग के कतको पानी ला पियासे धरती तुरते सोंख लेथे।बरसा के पानी परे ले उन्ना तरिया डबरी के मछरी बेंगवा मन ला घलो नवा जीवन मिलथे।प्रकृति मा नवा ऊर्जा के संचार होथे। भोंभराय धरती हा हरिया जथे।हरियर हरियर डारा पाना देख के लागथे भुइयाँ नवा लुगरा अंगीकार करत हे। गरमी के चार महिना थिराय कमिया किसान खेती किसानी के उदीम मा लग जथे। झुलसे धरती मा गरवा गाय के चारा घलो सबो कोती दिखे ला धर लेथे। मानसून के आय ले बादर छाय रहिथे ।सुरुज नारायण छूपा छूपी खेलत अपन तेज ला कदा करत रहिथे।असाड़ के पहिली पानी हा धरती खेत खलियान ला सुवासित कर देथे। बादर कभु गरजथे कभु बरसथे त कभु हवा गरेर घलो चलथे। सुक्खाय नदिया नरवा मा फेर जलधार बोहावत देख के मन हरस जथे।
किसान के खेती किसानी अउ चउमासा के तइयारी शुरू हो जथे। नागर बखर अउ फसल के बोनी बर कांटा खूटी ला बिन के खेत के सफाई किये जाथे। जोताई अउ धान के बोनी बर किसान संझा बिहनिया एक करके खेत ला संवारथे। अंकुरित धान ला देख किसान के मन खुश होथे।
असाड़ के पानी परते ही किसान बियारा के पैरा ला परसार मा भरके मवेशी बर चार महिना के सुखा चारा के बेवस्था ला पुख्ता करथे।
चउमास हा पूरा खेती किसानी अउ फसल के बढ़ोत्तरी के काम बर हरे। किसान दिनरात लगे रहिथे। असाड़ के शुक्ल एकादशी ले देवता मन चार महिना बिश्राम करथे। कोनो प्रकार के मुहुर्त वाले काम बर देवउठनी तक विराम रहिथे। फेर। अन्नदाता किसान ए चार महिना जी तोड़ मेहनत कर के संसार बर अन्न उपजाथे। अउ शिव भोले के सुमिरन कर के शक्ति पाथे। काबर चउमासा भर शिव-शक्ति के उपासना होथे।
रजुतिया के तिहार अउ गुरू पूर्णिमा हर असाड़ के बहुत बड़े तिहार होथे।
हमर छत्तीसगढ़ मा भगवान जगन्नाथ के पूजा के ए परब ला बड़ हांसी खुशी सबो डाहर मनाथे। पढ़इया लइका मन के नवा कक्षा घलो इही असाड़ मा शुरू होथे। संत मन के चतुर्मास के पहिली पडा़व हरे असाड़ हा।
असाड़ मा बियारा बखरी ला जोत के किसम किसम के बीज ला बो के चार महिना के साग भाजी के बेवस्था घलो करथे।
असाड़ लगते घर छानही के खपरा लहूटाय के काम पूरा करे बर पड़थे, बरसा के पानी चुहे ले घर ला बचाय बर। पानी निकासी के बेवस्था ला ठीक किये जाथे।कतको घर झिपारी बांधे जाथे परछी, दिवार अउ दुवारी ला पानी के छींटा ले बचाय बर।
असाड़ के महिना मा पानी गिरते नवा नवा किसम के कतको किरा मकोड़ा के भरमार हो जथे। प्रजनन काल होय के कारण ए महिना मा असंख्य प्रकार के कीरा मन दिखथे अउ कुछ दिन बाद कहां जाथे पता नइ चलय। बतर तो पहिचान हरे असाड़ लगे के। मच्छर के प्रकोप बाढ़थे त कई प्रकार के रोग के राई घलो डर रहिथे। ए खातिर खास सावधानी ज़रूरी रहिथे। मेचका, गेंगरुआ, पिटपिटी ढोढ़िया, हिरु बिच्छु, किट पतंग ले पाला पड़थे। लोग लइका मन के खियाल विशेष करे ला पड़थे, चिखला पानी ले बचाय बर।
असाड़ धरती के श्रृंगार के महिना हरे।प्रकृति चारों तरफ हरियाली ले भर जथे। । ए प्रकार ले असाड़ के महिना हा संसार के सबो जीव बर वरदान हरे। कहे गए हे - "डार के चूके बेंदरा अउ असाड़ के चूके किसान " दूबारा पार नइ पाय।सिरतोन असाड़ अमरित बरसाथे धरती मा तभे संसार हा सालभर सजीव रहिथे।
बलराम चंद्राकर भिलाई
असाड़, साल के चौंथा महिना, लगते पानी बादर के गुरुरघारर शुरू हो जथे। जेठ के घाम ले लाहके जीव थीर पाथे।सरग के कतको पानी ला पियासे धरती तुरते सोंख लेथे।बरसा के पानी परे ले उन्ना तरिया डबरी के मछरी बेंगवा मन ला घलो नवा जीवन मिलथे।प्रकृति मा नवा ऊर्जा के संचार होथे। भोंभराय धरती हा हरिया जथे।हरियर हरियर डारा पाना देख के लागथे भुइयाँ नवा लुगरा अंगीकार करत हे। गरमी के चार महिना थिराय कमिया किसान खेती किसानी के उदीम मा लग जथे। झुलसे धरती मा गरवा गाय के चारा घलो सबो कोती दिखे ला धर लेथे। मानसून के आय ले बादर छाय रहिथे ।सुरुज नारायण छूपा छूपी खेलत अपन तेज ला कदा करत रहिथे।असाड़ के पहिली पानी हा धरती खेत खलियान ला सुवासित कर देथे। बादर कभु गरजथे कभु बरसथे त कभु हवा गरेर घलो चलथे। सुक्खाय नदिया नरवा मा फेर जलधार बोहावत देख के मन हरस जथे।
किसान के खेती किसानी अउ चउमासा के तइयारी शुरू हो जथे। नागर बखर अउ फसल के बोनी बर कांटा खूटी ला बिन के खेत के सफाई किये जाथे। जोताई अउ धान के बोनी बर किसान संझा बिहनिया एक करके खेत ला संवारथे। अंकुरित धान ला देख किसान के मन खुश होथे।
असाड़ के पानी परते ही किसान बियारा के पैरा ला परसार मा भरके मवेशी बर चार महिना के सुखा चारा के बेवस्था ला पुख्ता करथे।
चउमास हा पूरा खेती किसानी अउ फसल के बढ़ोत्तरी के काम बर हरे। किसान दिनरात लगे रहिथे। असाड़ के शुक्ल एकादशी ले देवता मन चार महिना बिश्राम करथे। कोनो प्रकार के मुहुर्त वाले काम बर देवउठनी तक विराम रहिथे। फेर। अन्नदाता किसान ए चार महिना जी तोड़ मेहनत कर के संसार बर अन्न उपजाथे। अउ शिव भोले के सुमिरन कर के शक्ति पाथे। काबर चउमासा भर शिव-शक्ति के उपासना होथे।
रजुतिया के तिहार अउ गुरू पूर्णिमा हर असाड़ के बहुत बड़े तिहार होथे।
हमर छत्तीसगढ़ मा भगवान जगन्नाथ के पूजा के ए परब ला बड़ हांसी खुशी सबो डाहर मनाथे। पढ़इया लइका मन के नवा कक्षा घलो इही असाड़ मा शुरू होथे। संत मन के चतुर्मास के पहिली पडा़व हरे असाड़ हा।
असाड़ मा बियारा बखरी ला जोत के किसम किसम के बीज ला बो के चार महिना के साग भाजी के बेवस्था घलो करथे।
असाड़ लगते घर छानही के खपरा लहूटाय के काम पूरा करे बर पड़थे, बरसा के पानी चुहे ले घर ला बचाय बर। पानी निकासी के बेवस्था ला ठीक किये जाथे।कतको घर झिपारी बांधे जाथे परछी, दिवार अउ दुवारी ला पानी के छींटा ले बचाय बर।
असाड़ के महिना मा पानी गिरते नवा नवा किसम के कतको किरा मकोड़ा के भरमार हो जथे। प्रजनन काल होय के कारण ए महिना मा असंख्य प्रकार के कीरा मन दिखथे अउ कुछ दिन बाद कहां जाथे पता नइ चलय। बतर तो पहिचान हरे असाड़ लगे के। मच्छर के प्रकोप बाढ़थे त कई प्रकार के रोग के राई घलो डर रहिथे। ए खातिर खास सावधानी ज़रूरी रहिथे। मेचका, गेंगरुआ, पिटपिटी ढोढ़िया, हिरु बिच्छु, किट पतंग ले पाला पड़थे। लोग लइका मन के खियाल विशेष करे ला पड़थे, चिखला पानी ले बचाय बर।
असाड़ धरती के श्रृंगार के महिना हरे।प्रकृति चारों तरफ हरियाली ले भर जथे। । ए प्रकार ले असाड़ के महिना हा संसार के सबो जीव बर वरदान हरे। कहे गए हे - "डार के चूके बेंदरा अउ असाड़ के चूके किसान " दूबारा पार नइ पाय।सिरतोन असाड़ अमरित बरसाथे धरती मा तभे संसार हा सालभर सजीव रहिथे।
बलराम चंद्राकर भिलाई
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